सोमवार, 26 नवंबर 2012

हम वह हो गए


* हम वह हो गए हैं जिन पर नहीं चलता हमारे मन का वश |

* मैं और मेरा मन बिलकुल लोकतान्त्रिक स्वभाव के हैं | न वह मुझे चलाने की कोशिश करता है , न मैं उसे वश में करने की चेष्टा |

जन प्रतिनिधियों को गालियाँ

कोई आज की बात नहीं है | यह अन्ना -अरविन्द की कोई एक दिन की उपलब्धि नहीं है | आपने देखा होगा इनके आन्दोलनों के बहुत पहले ही जनता किस तरह सार्वजनिक स्थलों पर जन प्रतिनिधियों को गालियाँ देती रही है !

सामाजिक सम्मान


सामाजिक सम्मान हासिल करने का तरीका [ To be well placed in society ]
भले हिंदी - उर्दू - संस्कृत - अंग्रेजी के पक्ष में नहीं हो , धर्म का पालन न करो , भगवन को न मानो , लेकिन सामाजिक सम्मान का अधिग्रहण इन्ही चीज़ों से होता है | इसलिए समाज के समक्ष , छद्म ही सही , इन विषयों पर अपनी विद्वता का प्रचुर प्रदर्शन करो | अपने वार्तालाप में सभी भाषाओँ का थोडा थोडा सम्मिश्रण रखिये , इनके ज्ञाता होने का भाव प्रदर्शित कीजिये | आप चाहे जिस जाति धर्म के हों , रामायण - गीता -पुराण के श्लोकों का उच्चारण  कीजिये , उनकी व्याख्या की क्षमता दिखाइए | थोड़ी स- सम्मान प्रशंसा तो कीजिये , लेकिन जरा आलोचनात्मक रुख भी रखिये , क्योंकि आलोचना का आजकल बाज़ार गर्म है | बस यह ध्यान रखिये की वह एक सीमा से अधिक न होने पाए क्योंकि आस्था का मार्केट भी खूब है |
यह बहुधर्मी समाज है | इसलिए केवल हिन्दू किताबों का ही नहीं , इस्लाम और ईसाई मजहबों का भी बराबर उल्लेख कीजिये , अलबत्ता ज्यादा समझदारी और सावधानी के साथ | सबको एक डंडे से मत हांकिये, सबके स्वभाव में अंतर हैं जिससे आपके व्यक्ति और व्यक्तित्व को नुक्सान पहुँच सकता है | तो , कुरान के कथन , पैगम्बर के नैतिक आचरण प्रस्तुत कीजिये , ईसा मसीह के जीवन चरित्र और प्रवचनों का अभिज्ञान कराइए, लेकिन धर्मपरिवर्तन का विरोध कर दीजिये | कुछ आधिनिकता के पक्ष में तो कुछ विपक्ष में भी कह दीजिये | थोडा इसी प्रकार सरकार की भी आलोचना प्रशंसा समय और श्रोता देखकर कीजिये | कैसे नहीं समाज आपको आदर देगा ?
और आगे कुछ आधुनिक लोकतंत्र , समाजवाद , मार्क्सवाद पर अपना ज्ञान बघार दीजिये , माओवाद समझाइए | लेकिन वही बात ! माओवादियों की आलोचना स्थिति देखकर ही कीजिये , कम या ज्यादा  | इससे आपका सम्मान बढ़ेगा , आपका सिक्का जमेगा और आप आदर के पात्र ही नहीं होंगे उसे प्राप्त भी करेंगे | यदि आप दलित जाति के हैं तो यह फार्मूला आपके लिए अत्यंत उपयुक्त है, रामवाण नुस्खा है | ब्राह्मण होने मात्र से तो कोई किसी को तो पूजने से रहा , उलटे वह सामाजिक निरादर ही पाता है | और जो उपरोक्त गुणों से युक्त होगा , वह समाज में स्थान पायेगा ही | यदि कोई समझता है कि आरक्षण सामाजिक सम्मान का माध्यम है , तो वह बिलकुल गलत समझता है | कानून के डर से भले कोई किसी का सम्मान , या कहें निरादर नहीं , करता मिले , पर वह कोई सम्मान तो नहीं है | भला सरकारी भिक्षापात्र  में सामाजिक श्रद्धा और सम्मान कैसे समाहित किया जा सकता है | कोई इसमें ये मूल्यवान वस्तुएँ अपनी इच्छा से क्यों डालेगा ? कुछ लोग इसके  स्वप्नदर्शी हैं , पर यह बात मेरी समझ में नहीं आती |  आरक्षण , और आरक्षण की बदौलत सामाजिक सम्मान ? तो वह देखिये , वह बहुत दूर खड़ा |

रविवार, 25 नवंबर 2012

ब्राह्मणवाद का उलट है समता

ब्राह्मणवाद का उलट है समता / समानता वाद | तो , अपने बाप को भी [ बड़ा तो क्या ] बराबर न मानने वाले जब ब्राह्मणवाद के खिलाफ कैंची की तरह जुबानें चलाते हैं तो अचरज ही नहीं गुस्सा भी आता है | ऐसे लोगों से मेरा स्थायी प्रश्न होता है - किसी को आप अपने बराबर समझते हैं क्या ? इसे समझते हुए ही हम मायावती की आलोचना नहीं करते | इसमें दलित की बेटी का क्या दोष ? सारा दोष तो ब्राह्मणवाद का है , जिसकी आलोचना वह स्वयं करती तो हैं  ? तो ज़ुबानी ज़मा खर्च करने में क्या हर्ज़ ? इसमें किसी का जाता ही क्या है ? और समता / समानता की दिशा में कुछ करने की ज़रुरत क्या है ? कठिन काम है यह | इसके लिए व्यक्ति को समाज के सम्मुख विनम्र होना पड़ता है, उसके प्रति प्रेम या आदरभाव से आप्लावित होना पड़ता है , जो इस आन्दोलनकारी पीढ़ी के वश का नहीं | उसके पास उपलब्ध नहीं हैं ये चारित्रिक गुण |

ब्राह्मणवाद का दोष ही दोष


ब्राह्मणवाद का दोष ही दोष ;-
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यह घोषणा करना अत्यंत समीचीन होगा कि संसार की सारी बुराइयों , समस्याओं की जड़ ब्राह्मणवाद है | भारत की वर्ण व्यवस्था , जाति प्रथा का तो वह शाश्वत, प्रामाणिक गुनहगार है ही, अमरीका में जो रंगभेद था , उसका भी कारण यही नालायक व्यवस्था थी | अंग्रेजों ने तमाम देशों को गुलाम बनाया हुआ था वह भी इसी के निर्देश पर था | जालियाँवाला काण्ड भी इसी ने कराया | यहूदियों के बारे में इस्लाम की जो 'ख़ास ' दुर्भावना है, वह भी उनकी पवित्र किताबों में ब्राह्मण ने ही दर्ज किया और फरमान जारी किया | उसमें इस्लाम का कतई , रत्ती भर दोष नहीं है | कोई अन्य दोषी हो ही नहीं सकता ब्राह्मणवाद के अतिरिक्त | तदन्तर अमरीका द्वारा विएतनाम - ईराक - अफगानिस्तान आदि मुल्कों पर हमला , अरे वह तो भूल ही गया , हिरोशिमा - नागासाकी क्या अमरीका की करामात थी ? जी नहीं , वहाँ ब्राह्मणवाद काम कर रहा था | तुर्कों का भारत पर हमला, मुगलिया शासन ,हिटलर का नाजीवाद कुछ नहीं केवल ब्राह्मणवाद के ही आयाम थे | मुंबई में बाल ठाकरे का मराठावाद तो ब्राह्मणवाद है ही , आस्ट्रेलिया सरीखे देशो में भारतीयों / विदेशियों के साथ जो हिंसा / मारपीट की घटनाएँ हुयीं , कश्मीर का अलगाव वाद , नक्सली हिंसा ,पाकिस्तान में हिन्दुओं / हिन्दू लड़कियों के साथ जो निर्मम  व्यवहार , और जो मलाला के साथ , वह सब ब्राह्मणवाद से पृष्टपेषित था | और ९/११ , ताज होटल - संसद भवन पर हमला सब ब्राह्मणवाद के ही तहत हैं | और तमाम घटनाएँ जो हुईं , जो होंगी , जो रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं , सब ब्राह्मणवाद से ही ताक़त पा रही हैं, पाती रहेंगीं |
    अब प्रश्न यह है कि सारे ब्राह्मणवाद का दोष क्या भारत के उसी भिक्षाधनिक , वेदपाठी दुबले पतले , दो हाँड़ के ब्राह्मण द्वारा ही प्रतिपादित सिद्धांत का है या हो सकता है , और इसमें किसी लोकतंत्र , राजा - रानी शाही , किसी इस्लाम ,न किसी ईसाइयत , किसी अन्य दर्शन का कोई दोष नहीं है ? तब तो मानना पड़ेगा ब्राह्मणवाद का जलवा जिससे दुनिया का कोई भाग - प्रभाग अछूता नहीं है , जिसे कोई मिटा नहीं पाया, जिसका कोई बाल बाँका नहीं क्र पाया ! या , कहीं ऐसा तो नहीं कि भेदभाव , अमानुषिक व्यवहार एक राजनीतिक विश्व व्यवहार [ world phenomenon ] है , जिसे हम ब्राह्मणवाद के ऊपर थोप कर अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर जाना ज्यादा आसान समझते हैं ?    

हम ओशो हैं


* हम ओशो हैं
कभी दुखी न होते
न कभी सुखी |

* बाबा कह दें
और बात गलत ,
संभव नहीं |

* भूत पिशाच
कैसे घेर लेते हैं
नर नारी को !

अपने ही पैमानों पर


* लोग कहते हैं तो ठीक ही तो कहते हैं ,
मैं अपने ही पैमानों पर खरा नहीं उतरा |

स्त्री के देह का अधिकार


[ कविताभ्यास ]
१ - सच है कि
ज़िन्दगी के फेजेज़ होते हैं
आते हैं , तो जाते भी हैं |
मैं तो यह पूछ रहा था कि
जीवन में ऐसे कालखंड
आते ही क्यों हैं ?
# #

२ - स्त्री का है ज़रूर
स्त्री के देह का अधिकार ,
तो करें न इस्तेमाल
स्त्री अपनी देह पर अपने
अधिकार का , अधिकारपूर्वक !
कौन रोकता है ?
# #

नेता का मात्र काम


* सत्य संत को
कहीं चैन नहीं है
यहाँ या वहाँ |

* कुछ भी करो
धर्म के नाम पर
सब जायज़ |

* फीता काटना
नेता का मात्र काम
दीप जलाना |
[ आग लगाना ]

शनिवार, 24 नवंबर 2012

सवारी आई


* हल निकालूँ
कविता के ज़रिये
तो कविता हो |

* तीज त्यौहार
मनाते हैं मनाते हैं
बस मनाते |

* सत्य संग में
संत लोग बोलते
हम सुनते |

* क्या कोई अभी
सुलह का रास्ता है
बचा तो करो |

* सवारी आई
सवारियां चढीं
सवारी चली |

* अलग मज़ा
शिकार करने में /
खरीदने में |

* हिंदुस्तान में
आदमी मूर्ख न हो
संभव नहीं |

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

कान में डालकर


* एक दिल है
तुम्हे देखकर ही
धड़कता है |

* भरा जाता है
मनों में , बैठता है
नक्सलवाद |

* क्या कभी रहा
लोक में लोकतंत्र
जो अब होगा ?

* बात , उनके
कान में डालकर
मैं चला आया |

कान में डालकर


* एक दिल है
तुम्हे देखकर ही
धड़कता है |

* भरा जाता है
मनों में , बैठता है
नक्सलवाद |

* क्या कभी रहा
लोक में लोकतंत्र
जो अब होगा ?

* बात , उनके
कान में डालकर
मैं चला आया |

बुधवार, 21 नवंबर 2012

कसाब की फाँसी


मैं तो कसाब की फाँसी के विरोध में रहा हूँ शुरू से ही | हम जब सिद्धांततः ही फाँसी की सजा के विरोधी हैं तो हैं | इसमें छद्म क्या करना ? चाहे वह कसाब का हो या अफज़ल गुरु का | [ हाँ एक मित्र बता रहे थे कि देखिएगा, गुरु को फाँसी नहीं होगी क्योंकि इसका वोट बैंक है | कसाब को सूली पर चढ़ा दिया गया क्योंकि उसका वोट बैंक नहीं था | {अब इस विचार की सत्यता / असत्यता की ज़िम्मेदारी कोई मुझ पर न डाले }]
बाल जी ठाकरे के बारे में स्पष्ट कर दूँ कि किसी को हुआ हो या होता हो, पर यद् नहीं आता मुझे कभी किसी नेता के मरने पर दुःख हुआ हो | न जन्म की ख़ुशी , न मृत्यु का शोक | अतः मैंने शोक नहीं मनाया | अब इसे कोई अपनी ख़ुशी के लिए ख़ुशी मनाना समझ ले तो इसमें मेरी कोई त्रुटि तो नहीं है |
और मेरा कोई दोष तब भी नहीं होगा , जब कसाब की फाँसी से आतंकवाद के खात्मे या इसमें कमी का उद्देश्य पूरा नहीं होगा |

एक विकल्प मैंने दिया था उसे नक्सलवादियों के क्षेत्र में छोड़ देने का | तब या तो वह माओ का अनुयायी होता , या उसके प्रभाव से माओवादी तब आतंकवादी के आरोप में आ जाते |


Rajendra Singh सहमत आपसे दुनिया के ११० देश फांसी की सजा के विरोध में खड़े हे ..होना ये था कसाब को जेल में आजीवन सड़ा देना था ..तिल तिल कर वो मरता ..हा,हमने उसे आजाद कर दिया |

Sandeep Verma कसाब को प्रायश्चित करने का मौका देकर आतंकवाद के खिलाफ प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था . अपने अंतिम समय में अपने किये पर उसे पछतावा था . एक नए और बड़े राजनितिक कदम की शुरुआत हो सकती थी .

अब इतनी क्रिएटिव बुद्धि हमारी राजनीति में कहाँ ? इसके लिए ही तो प्रिय समाज [ नई राजनीति ] है !

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

दो - एकगीत


                     [ दो - एकगीत ]
१ - कैसा गीत ?
                     [ किसलिए यह छटपटाहट ? ]

सुन रहा अन्दर की आहट ,
इसलिए यह छटपटाहट |
                      किसलिए यह छटपटाहट ?
चाहता हूँ जगमगाहट ,
इसलिए यह छटपटाहट |
                         किसलिए यह छटपटाहट ?
चाहता हूँ चंहचहाहट ,
इसलिए यह छटपटाहट |
                          किसलिए यह छटपटाहट ?
                          इसलिए यह छटपटाहट |
किसलिए यह छटपटाहट ?
(१/३/९२)

२ - किसलिए यह छटपटाहट ?
सुन रहा हूँ मैं ह्रदय में 
आपके चलने की आहट ,
इसलिए यह छटपटाहट | १ 
किसलिए यह छटपटाहट ?

कौंध उठती है नयन में
स्वप्न दर्शी जगमगाहट ,
इसलिए यह छटपटाहट | २
किसलिए यह छटपटाहट ?

पढ़ रहा हूँ मैं समय की
शिला पर अपनी बुलाहट ,
इसलिए यह छटपटाहट | ३
किसलिए यह छटपटाहट ?

क़ैद मेरे कंठ में है
मुक्त खग की चंहचहाहट ,
इसलिए यह छटपटाहट | ४
किसलिए यह छटपटाहट ?

खोजता हर पुष्प में हूँ
एक कली की मुस्कराहट | ५
इसलिए यह छटपटाहट |
किसलिए यह छटपटाहट ?
# # # (१/३/९२ )

दिमाग के बारे में


[ कविता ]
* कमरा , मेज़ , रैक वगैरह
जितना ही खाली रखो , वह
उतना ही सुंदर लगता है ,
सुकून आता है , सुना है -
लक्ष्मी भी आती हैं |
मेरे ख्याल से -
दिमाग के बारे में भी
यही सच है |
# #

अल्लाह देता


* हर पुरुष
शाश्वत स्त्री विरोधी
विलोम लिंगी |

* कमाई कुछ
कैसी भी हो , बोल दो
अल्लाह देता |

* व्यापार ही है
यह भी , तो , वह भी
व्यापार ही है |
[ पिछले दिनों हिदुस्तान समिट में थाईलैंड के एक नेता ने सलाह दी कि जिन्हें राजनीति में आना हो , उन्हें इसमें अपना व्यापार छोड़ कर आना चाहिए ]


सोमवार, 19 नवंबर 2012

गीतों के टुकड़े टुकड़े


[ कुछ गीतों के टुकड़े टुकड़े ]
१ - मैं कभी हूँ घास का तिनका ,
मैं कभी हूँ ताड़ सा ऊँचा ,
मैं कभी वट वृक्ष सा फैला ,
मैं कभी हूँ प्याज का छिलका |
# #
२ - बिलावजह तू अपने हुस्न पर इतराए है ,
कोई नहीं जाता मरा तेरे ऊपर |   / or
तू अपने हुस्न पर इतना न ऐंठ ,
कोई मरता नहीं तेरे बगैर |
# #
३ - आसान है हँसना अगर हँसने की इजाज़त हो |  
# #
४ - मनई मानुख, सब बेकार ,
ईश्वर अल्ला , सब बेकार ,
अच्छे तो बस गोंजर साँप ,
उनके कान न इनके आँख |
# #
५ - लोग कहते हैं क्या ज़माना था ,
एक रूपये में सोलह आना था |
# #
६ - " आयेंगे , उनको आना है "
सोच सोच कर रह जाना है |
# #
७ - कुछ प्रश्न कठिन होते ही हैं ,
कुछ सवालात आसाँ होते |
# #
८ - यह जो कौंध नयन में आई ,
क्या कहते हैं इसको भाई ?
# #

दलित हो ? ज़रा उधर खिसको |


Notes for a Lekh :
 दलित हो ? ज़रा उधर खिसको |
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 * यह सारी लड़ाई झूठी है और हवा में लड़ी जा रही है |

* तुम ब्राह्मण को श्रेष्ठ , अपने को निम्न क्यों समझते हो ? इस से तो तुम अपने को नीच बनाते / बनाते हो | यह ठीक नहीं है , ऐसा कब तक चलेगा ?

* दलित कार्यक्रम में तुम सवर्ण विरोध के अलावा कुछ नहीं बोलते , तो सवर्णों से क्यों और कैसे आशा करते हो कि वे तुम्हारे पक्ष में बोलें ? सवर्ण भी मनुष्य हैं कोई देवता नहीं , और तुम तो किसी देवता को भी नहीं मानते , उन्हें भी अपशब्दों से सुशोभित करने से नहीं बख्शते ?

‎* दलित इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के शीर्ष क्यों नहीं बनते ? लिखें नया मनुस्मृति , पढ़ें शास्त्र ! बनायें जन्मकुंडली , कराएँ मुंडन - विवाह संस्कार , गढ़ें उनके मन्त्र ! कौन ब्राह्मण रोक लेगा ?

* मैं दलितों से सहमत नहीं हूँ, पर भारत की राज्य सत्ता पर दावेदारी का पूर्ण समर्थन करता हूँ | दूसरी तरफ मैं मुसलमानों में घुलमिल कर रहता हूँ,पर भारत की सत्ता में उनकी हिस्सेदारी खारिज करता हूँ |

* अपना सारा दलितपन का मैला भरे प्लास्टिक बैग को हर समय अपनी जेबों में डाले घूमते हो कि कब कोई ब्राह्मण रूपी उचित स्थान मिले  और  तुम उस पर डालो !

* ब्राह्मण लडे न लड़े , जब तुम उसकी मूर्ति बना कर लड़ रहे हो तो वह तो तुम्हारे विपक्ष में अनायास ही आ जाता है , भले वह विपक्ष में न हो |

* मैं जाति प्रथा नहीं मानता | लेकिन सोचता हूँ ब्राह्मण वादी हो जाऊँ | फर्क अर्थात अंतर का दर्शन स्वीकार करूँ - अंतर ज्ञानी बनूँ | श्रेष्ठता और नीचता को जानूँ |  मैं क्यों न श्रेष्ठ बनूँ / बनना चाहूँ ? यह कंपटीशन, प्रतियोगिता का युग है भी तो !  तुम निम्न रहना चाहते हो तो रहो , श्रेष्ठता अधिग्रहण नहीं करना चाहते तो न करो , कुछ ख़ास न बनो |तब तो तुम दलित ही रहोगे |

* लोग आपत्ति करते हैं दलितों की भाषा पर | उन्हें इसे स्वाभाविक मानकर सहन करना चाहिए | जिसका स्वभाव , जिसका भाषा - संस्कार जैसा होगा वह वैसा ही तो बर्ताव करेगा ?

* एतदद्वारा  मैं दलित आन्दोलन इन पंक्तियों से उकसावा देकर तेज कर रहा हूँ | ठीक कर रहा हूँ , क्योंकि एक नेता का कहना है इसे इतना फेंटो , इतना फेंटो  - - कि - - |

* सवर्ण जाति में जन्म लेना हमारा भी कोई चुनाव न था | तुम मुझे गाली दोगे तो मैं भी तुमसे घृणा करूँगा | मैं जातिवादी हूँ या नहीं पर तुम्हारे मुहिम के चलते मुझे भी जातिवादी बनना पड़ेगा |

* एक विचार , मार्क्सवाद , सफल नहीं हुआ | तब भी विचारधारा के लोग उसका समर्थन छोड़ नहीं रहे हैं | ऐसे ही गांधीवाद के साथ हुआ , तो भी कोई उसे मानता है तो तुम्हे परेशानी क्यों होती है ? अब ब्राह्मणवाद यदि सफल है , या कहें - विफल नहीं हो रहा है तो तुम इसे क्यों नहीं मान रहे हो ?

* इसीलिये मैं कोई चीख चिल्लाहट नहीं पैदा करता जब कोई आरोप लगाता है - मायावती ब्राह्मणवादी हैं | पैर छुआती हैं , सबको नीचे बिठाती हैं | या सपा के कार्यकर्ता शारीरिक रूप से इतने प्रबल और सक्रिय क्यों हैं ? जिन्हें दुविधा हो , उन्हें हो | मैं तो जानता हूँ कि ऐसा ही होगा, ऐसा होगा ही | ब्राह्मणवाद ऐसा ही कहता है | माना जाना चाहिए, फिर भी लोग , वही लोग जो इसमें शामिल हैं , नहीं मानना चाहते तो क्या किया जाय कि ब्राह्मणवाद ही एक महान सफलतम सामाजिक वाद है | अमरीकी ब्राह्मणवाद , उसकी दादागिरी बराबर देखते , पर वामपंथी भी इस सत्य से मुँह चुराते हैं | ऐसी अज्ञानता को क्या कहा जाय ? और जब तक ब्राह्मणवाद को समझा नहीं जायगा , इसे अन्दर - बाहर से ठीक से पहचाना नहीं जायगा , तब तक इसे मिटाने कि हर कोशिश व्यर्थ ही तो जानी है ?

* और आरक्षण ? यदि किसी साझी संपत्ति से किसी को ज्यादा हिस्सा दिया जायगा तो तुम्हे भी तकलीफ होगी | फिर मिल तो रहा है ! लीजिये उपयोग कीजिये , उपभोग कीजिये | ऊपर से गाली क्यों देते हैं , जबकि पाने वाले को तो विनम्र होना ही चाहिए ?

* मैं आन्दोलनों में बिल्कुल विश्वास नहीं करता | इसके ज़रिये लोग न्याय संगत ही नहीं , गलत मांगें भी पूरी करा ले जाते हैं |

* तो , अब भी तुम दलित हो ? अपने को दलित समझते हो ? लेकिन मैं दलित नहीं हूँ | तब तो स्वाभाविक और अनिवार्य रूप से मैं ब्राह्मण हो गया | ज़रा उधर खिसक कर बैठो भाई !

दिल और दिमाग


[ दिल और दिमाग ]
मुख्यमंत्री का प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों को प्रथम संबोधन = [ सार ]
मेरे शासन काल में आप लोग आत्म विश्वास के साथ काम करें | हम किसी का ट्रांसफर नहीं करने जा रहे हैं | जो जहाँ है वह वहीँ अपना कर्त्तव्य निर्वाह जारी रखे | नियुक्तियों में परिवर्तन अन्य कारणों से तो हो सकता है किन्तु इस कारण नहीं  कि पिछले मुख्यमंत्री का कोई चहेता था या कोई अन - चहेता | हम दोनों वर्ग एक साथ सामंजस्य पूर्वक मिलकर प्रदेश के हित में संलग्न होंगे | हमारे बीच कोई द्वेष , कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं होगी | क्योंकि हम आपका सम्मान करते हैं | हम समझते हैं कि यदि हम देश के दिल हैं , क्योंकि हम ELECTED हैं , तो आप देश के दिमाग हैं , SELECTED हैं | दिल - दिमाग दोनों मिलकर प्रदेश को प्रगतिशील बनायेंगे | अब यह बात और है जैसा शायर ने कहा है कि - अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने अक्ल , लेकिन कभी कभी इसे तनहा भी छोड़ दें |

प्रगति के भ्रम में


[उवाच ]
* क्या कोई कहकर , चिल्लाकर प्यार जताता है कहीं ?

* लोग प्रगति के भ्रम में हैं | दुनिया गरीबों और श्रमिकों के बल पर चल रही है |

रविवार, 18 नवंबर 2012

इतना लिखा


* कोई कहता
इतनी अच्छी मौत
कोई थूकता |

* हम अकेले
ही नहीं सन्मार्ग में
तमाम लोग |

* देना अभी तू
एक जीवन और
देना मुझे तू ,
काम जो कुछ
कर न पाया पूर्ण
पूरा करूँ मैं |

* मैं व्यक्ति नहीं
व्यक्तित्व हूँ पर्याप्त
एक ठो लोग |

* कोई मेरा है
न कोई मेरा घर
न कोई प्यार |

* पुरुष साला
पूरा कुत्ता है कुत्ता
बात न कर |

* चिन्तक कहाँ
हिन्दुस्तान में
न कोई ज़िम्मेदारी
न ही जवाबदेही
लन्तरानियाँ
बस हाँकते |

* हँस करके
ताल दिया बात को
आगे के लिए |

* इतना लिखा
कितना कोई छापे
और क्यों छापे ?

* कुछ तो है जो
मानव जीवन में
गोपनीय है |

* प्यार या प्यार
प्यार , प्यार ही प्यार
जग आधार |

* चट्टे बट्टे हैं
नर नारी दोनों ही
एक थाली के |


* मेरे अन्दर
एक कुत्ता बैठा है
एक कुतिया |

* कभी कभी मैं
टिप्पणी करता हूँ
बेमतलब |

ये पारसी लोग


[ अंतरजातीय ]
चाहता तो मैं भी हूँ कि मेरे पुत्र / पुत्रियों का विवाह टाटा ग्रुप के परिवारों में हो जाय ! लेकिन  ये पारसी लोग इतने कठोर हैं कि जाति बाहर न करते हैं न करने देते हैं |मज़ा यह कि इन्हें कोई जातिवादी नहीं कहता , जब कि हालत यह है कि इनके इस रूढ़िता के कारण इनकी जनसंख्या कम होती जा रही है | उधर ब्राह्मण को सब एक सुर गली देते हैं , सह ब्राह्मण भी | जबकि ब्राह्मण तो कम से कम अपने गोत्र में तो विवाह नहीं ही करता | गैर जातिवादी न सही पर गैर गोत्र वादी तो वह है ही |


[ रूपक ]
मेरा मधुमेह दीवाली भर मुझे छोड़कर इधर - उधर घूमता रहा नालायक , आवारा | अब खूब मिठाइयाँ खाकर घर लौटा है तो मुझसे कहता है - परहेज़ करो
[ सच्चाई यह है कि मुझे डायबिटीज़ नहीं है ]

बाल ठाकरे की मौत

* आयु में कमी आड़े आ रही होगी , वरना जो लोग बाल ठाकरे की मौत पर ख़ुशी मना रहे हैं , वे जिन्ना की मौत पर तो ज़रूए रोये होते |

* मौत का जश्न मनाया या अपने मन का भय भगाया ?

* विद्रोही विचारकों की बातों से ऐसा लगता है कि भारत के हिन्दू धर्म को छोड़ बाक़ी दुनिया जाति वंश आदि समस्त बुराइयों से विमुक्त है | तिस पर भी , लेकिन इसकी एक खूबी तो माननी पड़ेगी , कि इसे छोड़ना बहुत आसान है | एक शनीचर देवता की बाधा थी तो वह बाल ठाकरे भी अब नहीं रहे | खुशियाँ और काहे के लिए मनाई गयीं ? उपयोग कीजिये आज़ादी , प्रयोग कीजिये लोकतान्त्रिक अधिकार |

आर्थिक आज़ादी चेतना मंच







शनिवार, 17 नवंबर 2012

" पर्स में रखा जाना रुपयों का "


[ यह पत्रकारिता ]          " पर्स में रखा जाना रुपयों का "
खरीदारी करते समय , एटीएम / बैंक से पैसे निकाल कर उन्हें पर्स में रखते समय मैं देखता हूँ कि लोग नोटों को बिलकुल सीधा रखने में परेशान रहते हैं , उन्हें ठूँसते हैं | फिर जब पर्स को मोड़ते हैं तो वह बहुत मोटा हो जाता है | मेरा अनुभव है कि यदि नोटों को बीच से मोड़ कर उन्हें पर्स के दोनों तरफ अलग अलग रखा जाय तो वह आसानी से रखा भी जाता है और बीच मोड़ने पर सिर्फ चमड़े की मोटाई रह जाती है , उसमे नोटों की मोटाई शामिल नहीं होती | पर्स को पॉकेट में रखना आसान होता है |

हम अत्र कार भी तो हैं


[ गलत बयानी ]
* पत्रकार होने के साथ साथ हम अत्र कार भी तो हैं ! ' अत्र ' माने' - ' यहाँ ' की जिंदगी जैसी जी जानी चाहिए , जीने वाले , जीने की राह बनाने वाले !

* ' असहमति के स्वर ' शासन के खिलाफ बहुत हैं | बहुत आसान भी है यह !
लेकिन दलित - नारी - नक्सल वारी - काश्मीरवादी - बाँध वादी -भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन वादी से असहमति [ संभवतः हो तो ] व्यक्त करके तो दिखाओ |

* दुष्यंत कुमार ग़ज़ल में कहते हैं - कहाँ तो तय था चिरागाँ हर एक बशर के लिए |
लेकिन यह सच कहाँ है ? स्वाधीनता - स्वराज की बात तो थी , लेकिन दुष्यंत की बात कहाँ थी ? किसने ऐसा वादा किया था ? सोचा , सपना भले देखा हो | यह तो उन्होंने अपने मन से जोड़ लिया , और हमारे दिलों में अशांति भर दी | अवश्य इन्होने काम यह किया कि अशांति के कार्यकर्ताओं - संगठनों के हाथ में एक जलती हुई लुकाठी पकड़ा दी | इनकी कवितायेँ देश में असंतोष भरने के बहुत काम आयीं | पात्र - पत्रिकाओं के क्रांतिकारी दिखने में ये बहुत उपयोगी रहीं |

तुम्हें शब्दों में रखते हैं


[ कविता ]
* फाइल में रखूं तो तुम
गुम हो जाते हो '
दिल में रखूँ तो तुम
दिखाई नहीं देते ,
चलो तुम्हें
शब्दों में रखते हैं |
# #

उग्रनाथ हो


* उग्रनाथ हो
तो उग्रनाथ रहो
विनम्र नहीं |

* काम बहुत
है मेरे पास अभी
डोंट डिस्टर्ब |

* डिमाक्रेसी ही
इलाज़ है मनुष्य
का होम्योपैथी
होमियो सेपियंस
हेतु उचित |

* जाति विभेद
हम नहीं मानेंगे
हमारी जिद
तुम क्या कर लोगे
हमारी मर्जी |

* ये भेड़िये हैं
फलाँ और फलाने
शक्ल आदमी ,
कुत्ते के पिल्लै
साले हराम खोर
रईसज़ादे |

* यह है संघर्ष
और युद्ध में, आप
जानते ही हैं !

* प्रसाद मिला
क्या मतलब, कथा
किसने सुनी ?

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आदमी की पहचान


* अब आदमी की पहचान
उसके कपडे जूते , मोटर गाड़ी से
होने लगी है ,
और प्यार की मात्रा नपने लगी
इस बात से कि वैलेंटाइन दिवस का
कार्ड कितना लम्बा था, या आपने
कितना मँहगा तोहफा दिया |

क्या कहा जाय कि -
दुनिया अब सचमुच
" दुनिया " हो गई है , और
इसमें दुनिया से अलग
अब कुछ भी नहीं है ?
# # #
[ यह कविता नहीं है ]

हम भी चुप


* हम भी चुप
आखिर बात क्या है
तुम भी चुप |

* तनाव में हूँ
कारण कुछ नहीं
अकारण ही |

* मैं दुनिया के
पाखण्ड देखता हूँ
सन्न होता हूँ |

* बिना त्याग के
मिलता नहीं कुछ
फल तो दूर |

* परेशान हूँ
अनिवार्य चिंतन
दुखद होता |

आप नेता हैं , आप विचारक हैं

यदि आपके साथ कुछ लोग हैं तो आप नेता हैं | यदि आपके साथ कोई नहीं है तो आप विचारक हैं |

पानी बरसा है


[ अभ्यासार्थ ]
* मार तो ली ज़रूर है तुमने ,
अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी तो |
# #
[ नवगीत ]
* आज कुछ पानी बरसा है |
या कोई वी आई पी आया |

सड़कें धुली हुई हैं जल से ,
धुल नज़र नहीं आया | - -
- - - - - - या कोई वी आई पी आया |
# #

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

त्योहारी और दलित प्रश्न


[ त्योहारी और दलित प्रश्न ]
इसे आज ही पोस्ट करना ज़रूरी है क्योंकि वह आज ही आया | इस बात को मैं तब से उठा रहा हूँ जब से मैं जाति विभेद के खिलाफ हुआ | अब तो खैर हम अविश्वसनीय हो चुके हैं ,पर आज जब सीवर वाला ईनाम माँगने आया तो फिर ख्याल आया | यह तो सामंती प्रथा है | गाँव में पवनी - प्रजा त्योहारी माँगते थे | निश्चय ही ये सेवक वर्ग के होते हैं - नाई - धोबी - - , अब शहर में जमादार | ऐसा नहीं कि हमें देना बुरा लगता है , हमें तो ख़ुशी होती है | लेकिन जब उनके स्थान पर स्वयं को रखकर देखता हूँ तो मुझे लगता कि यह तो आत्म सम्मान के विरुद्ध है | नहीं पता , इनके नेता सामाजिक व्यवहारों पर इनके लिए कोई निर्देश या आह्वान करते हैं , पर ऐसे ज़मीनी कार्यक्रम सोचे जाने चाहिए जिससे इन कार्यकर्ताओं की मानसिकता भी  बदले , नए समय के अनुरूप |

चरित्र


[ क्षण - कविता ]
* चरित्र !
हाँ , एक अच्छी चीज़ है
यदि , इससे मुक्त हो जाएँ |

यह भी कहना


[ यह भी कहना ]
* मेरी दोस्ती कई लोगों से कायम है | क्योंकि , अव्वल तो मैं किसी से पैसे नहीं माँगता , और यदि कभी कोई इमरजेंसी आ ही गई तो शीघ्र वापस कर देता हूँ |

* मेरे बच्चों ने बड़ी तकलीफें सही हैं मेरी निर्धनता के साथ | अब वे अपने पाँव खड़े हैं , तब वे मेरे साथ क्यों तकलीफ झेलें ?

बराबरी अच्छी बात


[ नागरिक उवाच ]
* बराबरी तो अच्छी बात है , लेकिन इसके झाँसे में नहीं आना चाहिए |

* सत्ता का तो हो सकता है , पर जनता का कोई विकल्प नहीं है | उसे बदला नहीं जा सकता |

दुःख जायेगा


* दुःख आएगा
सहना ही पड़ेगा
दुःख जायेगा |

*  थोडा पढ़ते
काम पर चलते
अब लिखते |

* एक कमी हो
तो उसे बताऊँ भी
क्या क्या गिनाऊँ ?

* ये हिंदी वाले
देश को बाँट देंगे
ये हिन्दू वाले |

* पसंद नहीं
लाइक का अर्थ है
जी , देख लिया |

* नहा धोकर
बैठे सिस्टम पर
बैठे ही रहे |

* यफ बी पर
न व्यक्ति न विचार
सब गलत |

* उद्धत होते
शक्ति संतुलन में
बाल ठाकरे |

* मैं तो बैठा था
तुम नाराज़ हुए
मैं चला आया |

* जो लिखता है
वह पत्रकार है
भले कविता |

पुलिस की ताक़त


  [ पुलिस की ताक़त ]
पुलिस हमारी सामूहिक शारीरिक शक्ति का द्योतक है | तो हम चाहते हैं कि वह अपनी शक्ति से हमारी सशक्त रक्षा और सहायता करे | अतः वह इतनी शक्तिशाली हो, और उस शक्ति का प्रयोग - प्रदर्शन भी करे कि छेड़कारी या चोर उचक्के को पकड़ कर धुन सके | और वह एक और काम करे | यदि कोई कथित गुंडा - नेता उसे ' जूतों ' से पिटाई कि धमकी दे या हाथापाई करे तो वह उसे वहीँ फ़ौरन दो - चार हाथ धमक दे | यह जनाकांक्षा है कि उसकी पुलिस इतनी तो ताक़तवर हो !

ज्ञान ही नहीं


* लिखता जाता
लिख नहीं पाता हूँ
चिल्लाता जाता |

| * ज्ञान ही नहीं
ज्ञान प्रणालियाँ भी
जाननी होंगी |

* बीड़ी पीता है
हिंदुस्तान तो तुम
सिगरेट क्यों ?

* नमक ही है
चखकर देख लो
इसी देश का |

* घर में जो हो
कोई आकर्षण तो
मैं घर जाऊँ |

* तुम होते तो
किसी काबिल होता
मैं , अब नहीं |

* तुम नहीं हो
मानो कुछ भी नहीं
दुनिया सूनी |

* मेरा ईश्वर
मेरी अंतरात्मा है
मेरा विवेक |

* पहुँच गया
संत अपने घर
जो ' कहीं नहीं '
फकीर का मुकाम
' कहीं नहीं ' है
' कहीं नहीं ' ही होता
उसका लक्ष्य |

* सत्य पा गया
मन तो बौरा गया
अब क्या बोले !

* जैसे सपना
तुमसे था मिलना
अब कब हो !

* मैं जान गया
झूठ का साम्राज्य है
यह जो मेरा |

* खाएँ न खाएँ
धरती वलीमा को
आपकी मर्जी !

* दाम बढ़ेगा
तो अठन्नी में नहीं
पूरा रुपया |

* जैसा देश हो
पुरानी कहावत
वैसा भेष हो |

* अगरबत्ती
अगरु की बनती
सुगंध देती |

* आप बताएँ
इसको कैसे खाएँ
जीवन भोज ?

* बाप, बाप है
कर्तव्यों के कारण
माँ, महतारी |

कैसे दलित नेता

* तुम कैसे दलित नेता हो भाई , जो ब्राह्मणों से घृणा नहीं करते ?

बुधवार, 14 नवंबर 2012

सिद्धार्थनागरियों की खिदमत में


प्रिय सिद्धार्थनागरियों की खिदमत में खास तौर पर कुछ प्रतिनिधि कविताएँ  : -
(1)        कफ़न
मैं एक कफ़न हूँ
ज़िंदा ही जला दिया जाता हूँ
एक मुर्दा लाश के साथ
गोया मैं एक ज़िंदा लाश हूँ |

फिर भी मुझे गर्व है कि मैं
शव का देता हूँ क़ब्र तक साथ
और उसके राख होने तक
उसकी लाज ढके रहता हूँ ,
और खाक होकर भी
तन से लगा रहता हूँ |

लेकिन मुझे खेद है -
कोई मुझे जीवन में
प्यार नहीं करता ,
आख़िरी साँस तक
स्वीकार नहीं करता
बस चंद शहीदों के सिवा
वही तो मुझे अपनाते हैं जीते जी
तो मैं भी उन्हें
कभी मरने नहीं देता |
# #

(2) शहीद ?
मर गए , चिरायु हैं
वे गिद्ध नहीं
जटायु हैं |
# #

(3) सारे योद्धा
अ-योध्या में ?
डरपोक कहीं के !
# #

(4)  जब मैंने तुमसे
प्यार किया था ,
विश्वास करो
मैं कोई किताब
पढ़कर नहीं गया था |
# #

(5) नमाज़ ?
सिर्फ पाँच वक्त !
यह तो बहुत
कम है भाई |

(6)  ईद का चाँद
और शिव जी के माथे पर ?
भाई वाह !
# #

(7)  ठीक है तुम
घृणा के बीज बोओ
मैं इधर प्रेम फैलाता हूँ ,
देखता हूँ तुम
कहाँ तक जीतते हो
देखता हूँ
मैं कहाँ तक
हारता हूँ |
# #
[ शेष फिर ]

बराबरी के लिए

बराबरी के लिए बराबर लड़ो , पर ब्राह्मण को अपने बराबर न मानो |

सब किस्से हैं


* सब किस्से हैं
पौराणिक कथाएँ
किस्सों का क्या है !

* हम मानते
सबका अधिकार
लोकतंत्र में |

लिखित देने का पाप


[ गलत बयानी ]
* ओशो की एक ध्यान विधि है - पूर्व जन्म में जाने की | मैं इसे मानता ही नहीं सो इसकी उपयोगिता भी नहीं समझ पाया | अब कुछ विवादों के परिप्रेक्ष में मुझे इसकी ज़रुरत पडी | मैं समझता हूँ इसे हर विचारक को सिद्ध करना चाहिए | हमें अपने को उस काल में ले जाना चाहिए जब जाति प्रथा - वर्ण व्यवस्था नहीं थी | फिर वहाँ से आगे बढ़ें और नोटिस करें एक समाज विज्ञानी की तरह कि यह सब कैसे वजूद में आया | मेरे विचार से, तब जो जानकारी हमें मिलेगी वह उससे अलग होगी जिसे हम ब्राह्मणवाद के नाम से पुकारते हैं |

* लिखित देने का पाप  = यदि आप समाज की किसी अप्रिय स्थिति को लिख कर दे देते हैं , भले आप उसमें लिप्त न हों , तो वह आपके लिए अभिशाप हो जायगा | ऐसे कुछ ब्राह्मणों , अब्राह्मणों ने भी संभवतः , समाज  को जातियों - वर्णों के रूप में लिख दिया | वह अब उनके गले की हड्डी बन गयी है, मानो उनके आलावा और कोई शक्तियाँ तब विद्यमान ही नहीं थीं | अब उनकी पीढ़ियाँ भले ही उनका पालन न करें , या न करना चाहें पर अब वे उससे विमुक्त नहीं हो सकतीं | दूसरी तरफ जिन्होंने अपनी किताबों में सब शुभ ही शुभ लिख दिया वे जग में वरेण्य हो गए , भले व्यवहार में वही तमाम बुराइयाँ उनके यहाँ भी प्रचुर रूप में व्याप्त हो, क्योंकि वे वस्तुतः तो सत्य हैं | इसलिए हे बंधुओ जब भी लिखो शुभ लिखो भले ही सब झूठ लिखो |  

चुप रह नागरिक


 [ गलतबयानी ]
* उधर एक केजरीवाल हैं जो रोज़ प्रेस वार्ता में एक बम फोड़ते हैं  , तो इधर हमारी नीलाक्षी जी हैं जो रोज़ फेसबुक पर एक धमाका करती हैं |

* दिलीप मंडल नामक एक जीव इस भूमंडल पर अवतरित हुए हैं | जो ब्रह्मा के पारंपरिक चार अंगों से नहीं जन्मे , न पूरी काया से ही पैदा हुए , बल्कि ये ब्रह्मा की चोटी से सीधे पृथ्वी पर उतरे , जिस प्रकार गंगा शिव की जटाओं से | इनमे विद्यमान है धरती और आकाश का सारा ज्ञान- विज्ञानं, सर से पाँव तक ज्ञान ही ज्ञान | स्वागतम , सुस्वागतम !

* ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ' पर नारियों को घोर आपत्ति है | माना जाना चाहिए कि नारियाँ पूजा करने योग्य [थीं या नहीं थीं पर अब ] नहीं हैं | ऐसी दशा में यदि अ-देवताः [ राक्षस या बलात्कारी ] इनके साथ रमते हैं तो किमाश्चर्यम ?

* गोमांस भोज एक अच्छा कार्यक्रम था | एक तो इसमें सामूहिकता की गंध थी | दूसरे, यह सस्ते में निपट भी जाता | सुना है यह अन्य मांसों की तुलना में काफी सस्ता है , इसीलिये गरीब मुसलमान इस पर मुनहसर हैं | तीसरे इस आयोजन से हिंदुस्तान के हमारे पुराने आका अतिप्रसन्न होते , जिन्होंने ब्रिटिश काल से पहले लगभग हज़ार वर्ष हिंदुस्तान पर शासन किया और दलितों की सेवा में तमाम हितकारी काम किया - सब भला ही भला, जिसे ये भुला नहीं पाए | इसी से तो प्रभावित होकर इन्होने अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लडाई में भाग लेना उचित नहीं समझा था | इससे विलग रहे क्योंकि उसमें इन्हें हिन्दू ब्राह्मणों की साजिश नज़र आई |

* कहाँ तो सलाह है कि कुरान की आयतों के सही अर्थ जानने के लिए अरबी भाषा का अच्छा ज्ञान अपेक्षित है | और कहाँ संस्कृत का कुछ भी न जानने वाले यही लोग वेद- पुराण- मनुस्मृति आदि ग्रंथों की प्रामाणिक व्याख्याएँ साधिकार संपन्न किये जाते हैं |
चुप रह नागरिक, इन्हें अपने हँसी- मजाक के कालम में ले |

शवासन


* जिस वक्त मुझे लोग थे मुर्दा समझ रहे ,
उस वक़्त शवासन के पोज़ में मैं पड़ा था |
    - संत उग्रनाथ

दीवाली मना


* ले मधुमेह
यह ले मिठाई खा
दीवाली मना |

* दीपावली है
दूर जा मधुमेह
मीठा खाने दे |

* जिसका दिल
प्रदूषण मुक्त हो
दिए जलाये |

* टाल दो मुझे
सब बकवास है
कह करके |

* ईश्वर - धर्म
काल्पनिक वितान
जन - मन का |

* आक्रान्त हूँ मैं
अतिशय प्रेम से
मानवता के |

गोबर्धन पहाड़

इस घटना की एक और काल्पनिक [ हाँ काल्पनिक ही , पर सत्य के अधिक निकट ] हो सकती है | गावों में गोबर - धन को उपलों [ गोबर के सुखाये गए चिपटे ,कहीं कंडे भी कहे  जाते  हैं ]  के रूप में भी रखा जाता है, ईंधन के लिए | बड़े बड़े उपलों को एक दूसरे के ऊपर रखते हुए पिरमिड  के आकार में | वह ढेर पहाड़ जैसा ही लगता है | संभव है , उन्ही उपलों को सबने अपने हाथों पर एक एक उठा लिया हो और करीब करीब खड़े हो गए हों | गोबर का पहाड़ ऐसे ही उठा होगा | जैसे वह किस्सा याद कीजिये एक व्यक्ति ने एकता का पाठ सिखाने के लिए लकड़ी के गट्ठर को तोड़ने को कहा था , जिसे वे नहीं तोड़ पाए | और जब लकड़ियों को अलग अलग करके दिया तो उन्होंने आसानी से तोड़ लिया | गोबर के एक एक उपलों [ ये बड़े आकार में भी बनाये जा सकते हैं छाते की तरह ] से गोबर्धन पहाड़ बन गया , जिसके एक एक उपले उठा कर बृजवासियों ने मनो गोबर्धन पहाड़ ही उठा लिया | अन्यथा मान ले कि सब फिक्शन है |

आँखें खोलिए


[ हाइकु कविता ]
* आँखें खोलिए
देखिये कितनों की
आँखें खुली हैं ?

अद्भुत आयडिया


[ अद्भुत आयडिया ]       " ईश्वर मुक्ति अभियान "

* अभी तक मैं सोचता था , और बहुत से आन्दोलन इस दिशा में चल भी रहे हैं , कि ईश्वर से मुक्ति पाई जाये | यह और इसकी परिणति ' धर्म ' तमाम समस्याओं कि जड़ हैं | लेकिन गौर से देखा तो पाया कि ईश्वर तो बेचारा खुद ही असहाय है | उसे तो उसके भक्त जन अपने मंदिरों जैसी निर्मितियों में , या फिर अपने दिलों , अपने ह्रदय में क़ैद किये हुए हैं | वह तो इनका दास है | जब कि दास प्रथा तो समाप्त है | ऐसी दशा में हमें ईश्वर की आज़ादी के लिए जंग छेड़नी  पड़ेगी | युद्ध स्तर पर आन्दोलन होने चाहिए , और इसमें सभी स्वतंत्रता संग्राम वादियों , मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को - अरुंधती राय को , कश्मीर के जिहादियों को , नक्सलवादियों को , गांधीवादियों को , राजनेताओं - पत्रकारों को ,सबको शामिल होना चाहिए और ईश्वर को मनुष्य के मन / मंदिर रूपी जेल से बाहर निकालना चाहिए , जिससे वह भी खुली हवा में साँस ले सके , मानवेतर नहीं तो मनुष्य का तो जीवन जी सके | यह ईश्वर का नहीं उत्तिष्ठित जागृत मनुष्यों का आधुनिक लोकतान्त्रिक कार्यभार है |

ईश्वर मुक्ति अभियान


[ अद्भुत आयडिया ]       " ईश्वर मुक्ति अभियान "

* अभी तक मैं सोचता था , और बहुत से आन्दोलन इस दिशा में चल भी रहे हैं , कि ईश्वर से मुक्ति पाई जाये | यह और इसकी परिणति ' धर्म ' तमाम समस्याओं कि जड़ हैं | लेकिन गौर से देखा तो पाया कि ईश्वर तो बेचारा खुद ही असहाय है | उसे तो उसके भक्त जन अपने मंदिरों जैसी निर्मितियों में , या फिर अपने दिलों , अपने ह्रदय में क़ैद किये हुए हैं | वह तो इनका दास है | जब कि दास प्रथा तो समाप्त है | ऐसी दशा में हमें ईश्वर की आज़ादी के लिए जंग छेड़नी  पड़ेगी | युद्ध स्तर पर आन्दोलन होने चाहिए , और इसमें सभी स्वतंत्रता संग्राम वादियों , मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को - अरुंधती राय को , कश्मीर के जिहादियों को , नक्सलवादियों को , गांधीवादियों को , राजनेताओं - पत्रकारों को ,सबको शामिल होना चाहिए और ईश्वर को मनुष्य के मन / मंदिर रूपी जेल से बाहर निकालना चाहिए , जिससे वह भी खुली हवा में साँस ले सके , मानवेतर नहीं तो मनुष्य का तो जीवन जी सके | यह ईश्वर का नहीं उत्तिष्ठित जागृत मनुष्यों का आधुनिक लोकतान्त्रिक कार्यभार है |

थोड़ा विरत

* मैं हिन्दू धर्म से क्यों थोड़ा विरत रहता हूँ ? ज्यादा कुछ तो नहीं जानता , पर हमारे बहुत से बन्धु इसकी बड़ी आलोचना करते , बुराई बताते हैं | सो , मानना ही पड़ता है कि यह कोई अच्छा धर्म नहीं होगा | भले मैं पैदा इसमें हो गया , जैसे वे दलित भाई लोग |

वे चिन्तक हैं


* सबका मान
सबकी इज्ज़त हो  -
लोक का मूल्य |

* मेरा क्या जाता
मदद कर देता
यदि उसकी !

* साफ़ दिखती
मूर्खता झलकती
मेरी बातों में |

* वे चिन्तक हैं ,
जितना दिमाग है
वे लगाते हैं |


* वे चिन्तक हैं
जितना सोच पाते
सोचते तो हैं |


* पढ़ाई तो हो
इज्ज़त बढ़ती है
दौलत भी हो ,
अतिरिक्त मात्रा में
या तो ताक़त |

वही शब्द हैं


[ हाइकु ]     " वही अक्षर "

* वही शब्द हैं
क्या से क्या बन जाते
कविताओं में
अपशब्दों में ये ही
क्या बन जाते !

* हाँ , होता तो है
कुछ मोहब्बत जैसा
इसी नाम का !

* क्या तो नहीं है !
दिल है मेरे पास
दिमाग भी है |

* काम आती है
कभी बेचारगी भी
साथ देती है |

* देखो , उसमें
खूब आकर्षण है
सराहनीय |

तीन बेटियाँ


[ कविता ? ]      " तीन बेटियाँ "

* तीन बेटे हैं |
यदि हर बेटा
चार चार लात लगाएगा
[ और उनके पास है ही क्या ?
उनका तो सब उनकी बीवियों का है ]
तो बारह लात हो जायेंगे
साल भर पीठ पर टीसेंगें |
पर अगर तीन बेटियाँ हैं
और हर बेटी
चार चार भी रोटियाँ दे देगी
[ बेटियाँ रोटियाँ बनाना जानती हैं ]
तो बारह रोटियाँ हो जायेंगी
साल भर भूख मिटायेंगी |

नीतियों का ज्ञाता

* पढ़ा लिखा होने का मतलब है - कुछ नीतियों का ज्ञाता होना , नैतिकता का आग्रही होना | वरना काम तो  कोई बे या कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी कर सकता है | ज्यादा शिक्षित होने का अर्थ होना चाहिए अधिक नैतिक होना |

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

अरे ठीक है


* अरे ठीक है
नहीं आ पाए होंगे
भीड़ भी तो थी !

* विद्वान लोग
बहस में पड़े थे
शेर खा गया |

बहाना


                " बहाना "
* शाम घिरने को थी | दो आदमी गुमसुम एक बेंच पर बैठे हुए थे , रेलवे स्टेशन पर गाडी की प्रतीक्षा में | दोनों के पास बात करने को कोई विषय नहीं था | तभी पटरी पार सामने के घर में एक दिया जला , एक छुरछुरी जगमगाई , एक पटाखा दगा |
एक ने कहा - आपको दीवाली मुबारक !
दूसरे ने कहा - आपको भी !

एक दिया

* इस दिवाली , अभी एक कवितानुमा याद आई | जब अम्मा कहती - एक दिया घारी [ पशुओं के रहने का स्थान ] में रख आओ | जब दादी बोलतीं - एक दिया घूरे [ गोबर इकठ्ठा रखने का स्थान ] पर रख आओ |

हो सकता है

* Irritate  न हों , किसी को गाली न दें | हो सकता है वह जो आज लिख रहा है , कल उसके ही विचार बदल जाएँ | यह भी असंभव नहीं की वह जो आज लिख रहा है [ जिससे आप नाराज़ हैं ] , कल वही आप लिखने लग जायँ |

जल तो रहा है दिया



[ कविता ]
* जल तो रहा है
दिया , मेरे ह्रदय में
तुम्हारी याद का !
# #

* तुम कभी साथ नहीं रहे
तुम कभी मिले ही नहीं
फिर तुम्हारी इतनी
मुझे याद क्यों आती है ?
# #

दीपावली २०१२



* न कोई सोचे गरीबों की बात | तो भी मितव्ययिता एक मौलिक मूल्य तो है ही ! [ दीपावली २०१२ ]

* जब किसी को किसी की बात माननी ही नहीं है तो क्या केंद्रीकृत , कैसी विकेन्द्रीकृत व्यवस्था ?


* जो बहुत बुद्धिमान हों वे अपनी बुद्धि में संशोधन कर लें | वे बुद्धिमान नहीं हैं |
 

एक ही बात


* पैसा बचाना
दुर्दिन से बचना
एक ही बात |

* मिष्ठान्न नहीं
किसी ने बताया है
मिष्टान्न कहो |

* धरती पर
अँधेरा तो रहेगा
कहीं न कहीं !

* मुक्ति कहाँ है
बिल्कुल मुक्ति नहीं
संस्कारों से तो !

* सुख कहाँ है
बिना मूर्ख बने रे
मानव जीव !

* जो मान लिया
सत्य असत्य , फिर
मान ही लिया |

* जाती मिटाने
जागृत नर नारी
चले मुरारी |

* शोर में गुम
है कविता , कहानी
 का नाम न लो |

* विचारधारा
नहीं प्रकट होती
पहनावे से |

* आन्दोलन में
सही क्या , गलत क्या
चाहे जो माँगों |

* कम्युनिस्ट हैं
हर काम में साथ
राज्य विरुद्ध |

* प्याला भरा हो
छोटा हो या बड़ा हो
शिष्टाचार है |
[ यही तरीका ]

* निष्पक्ष होना
कठिन तो बहुत
[ दुस्साध्य तो अवश्य ]
असाध्य नहीं |

* हिन्दू मुस्लिम
होने से चूक गया
हारा या जीता ?

सोमवार, 12 नवंबर 2012

फेक आई डी वाला

निश्चित तौर पर फेक आई डी वाला है वह और वह तमाम समूहों में धड़ल्ले से अपनी बात ही नहीं आदेश भी पोस्ट करता है | और लोग उसकी बात आस्थापूर्वक मानते भी हैं, उसके समक्ष नतमस्तक होते हैं | पूरी धरती पर उसे अनेक साइट्स हैं, जिन्हें पवित्र स्थान कहा जाता है | लोग वहाँ की तीर्थ यात्रा करते हैं और उसके दर्शन करके धन्य होते हैं | ऐसे ईश्वर पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठाता, कोई आपत्ति नहीं करता, कोई अपने ग्रुप ( मन ) से नहीं निकालता | उलटे यदि कोई ऐसा करने का दुस्साहस करे, उसके खिलाफ आवाज़ उठाये तो उसे झूठा , अनैतिक , अधार्मिक , पापी ,राक्षस आदि कहकर अपमानित किया जाता है | दुखद समाचार ! sad news ?

दो दो हज़ार के पटाखे

धनतेरस के दिन मोटर , मोटर साईकिल , साईकिल [ अचर्चित ] खरीदने की बात तो चलो समझ में आती है , लेकिन सुना है कोई कोई हज़ार हज़ार , दो दो हज़ार के पटाखे फोड़ डालते हैं , तब आश्चर्य होता है | कौन है ये लोग , इतना पैसा उड़ा रहे हैं , कहाँ से हैं इनके पास इतना ? और है भी तो व्यर्थ क्यों कर रहे हैं ? तब मन को समझाता हूँ - हे नागरिक , तुम नहीं समझ पाओगे | यह समझ लो कि तुम्हारी दुनिया और है , और इनकी दुनिया और है | सिने तारकों- तारिकाओं, व्यापारियों , सटोरियों से आम जनता की तुलना न करो भाई !

नहीं हरा सकते

लडाई से जिसका कोई स्वार्थ न जुड़ा हो , उसे आप लड़ाई में नहीं हरा सकते |

शर्म - व्यवहार

मुझे लगता है शर्म एक समाज सापेक्ष व्यवहार है | यदि आप अकेले में हैं या अपने समाज में जहाँ की वह सहज परंपरा है , तो शर्म की कोई ज़रुरत नहीं है | पर अन्यथा, यदि आपको कोई अस्वाभाविक नज़र से घूर रहा है तो शर्म आना कोई शर्म की बात नहीं [ हाँ , यह पाश्चाताप के अर्थों में भी तो प्रयुक्त होता है ] ,  बल्कि स्वाभाविक है | भूल चुक क्षमा , यह केवल स्त्री के ही लिए पुरुषों पर भी लागू होता है | किसी अपरिचित या मेहमान के आने पर हम नेकर बनियाइन पहने कहाँ निकलते हैं , जब कि वहाँ तो नग्नता भी नहीं है ? इसे मूढ़ व्यक्ति का बयान समझें , क्योंकि यह विद्वानों का विषय है |


नरेंद्र मोदी को शर्म नहीं आई , यह शर्म की बात है या नहीं ?

समझ में नहीं आता स्त्री अपने शरीर के प्रति क्यों इतनी उत्सुक है , चाहे वह ब्यूटी पार्लर में हो या बाज़ार में ? पुरुष तो इतना सतर्क नहीं रहता , और शायद इसीलिये वह ' पुरुष ' है | तो स्त्री दिखाए न वह सब जो वह दिखाना चाहती है , कौन देखता है उन्हें ? " और भी 'बात ' है औरत में उसकी देह सिवा "| और हम उसे adore करते एडोरते हैं |

जहाँ शर्म नहीं आनी चाहिए वहाँ तो शर्म न आये औरत को ! हमारी ' शर्मिष्ठा ' , हयादार औरतें तो भरी बाज़ार में छाती खोलकर बच्चे को दे देती हैं | खुली देह वाली स्त्रियाँ स्तनपान नहीं करातीं | किसके लिए बचाती , बनाती हैं वे फिगर अपनी ? यह तो शर्म की बात है | तथापि कुछ भी करने का अधिकार औरत का अपना है |

शरीर पर शर्म तब भी नहीं करना चाहिए यदि उसमे कोई डिफेक्ट , अन्धता -अपंगता - विकलांगता या कुरूपता भी हो | भले उसका रंग काला या गोरा हो , सफ़ेद दाग हों | नैन नक्श अच्छे न हों , उसमे स्त्री पुरुष या जनखे की योनि लगी हो | और जो भी होगा उसका शरीर , जैसा भी होगा वह हर हाल में दिखेगा तो है ही | दिखाएँ या न दिखाएँ |

Love my God


* Love me , love my God /
This is the situation between me and people /
Otherwise , I am an atheist .

ई - मेल पता


[ कविता ]
* बहुत बड़े न बनो
अपना ई - मेल पता
छोटे अक्षरों में ही
टाईप करो |
# #

क्षमा याचना


* सहना होगा
किंचित अनुचित
भी अपनों का |

* क्षमा याचना
कितनी बार करूँ
कितना करूँ ?

* रह ही जाता
कभी कुछ न कुछ
याद आने से |

* सोचता रहा
सोचता रहा , फिर
विचार कौंधा |

* May we come in , sir !
Yes , you all are quite welcome here
It is a public site .

शादी के पहले

शादी के पहले / शादी के बाद / ग़म का चूर्ण खाएँ / फायदा करेगा |

संत उग्रनाथ


किसी की समृद्धि से ईर्ष्या तो न ही रखें , उससे प्रेरित , अभिभूत भी न हों | समृद्धि को महिमामंडित न करें , न समृद्ध व्यक्ति को अतिरिक्त आदर भाव ही दें | उससे एक तरह कि उदासीनता , Reluctance प्रदर्शित करें | इससे उन्हें बल और प्रोत्साहन मिलेगा जो पैसा कमाने के पीछे नहीं पड़े हैं , या जिनके पास ( धन ) लक्ष्मी नहीं हैं |
- संत उग्रनाथ
[ दीपावली पर विशेष ]

नया ईश्वर


[ कविता ]   " नया ईश्वर "

* हम उसे भोग लगाते हैं
वह कुछ नहीं खाता,
हम उसे फूल चढ़ाते हैं
वह प्रसन्न नहीं होता ,
कोई आशीर्वाद नहीं देता ,
न कोई फल - प्रसाद ,
बस , मेरी आँखों में आँखें डाले
जड़वत, पाषाण जैसा बैठा
या खड़ा मुझे देखता है ,
 मानो मेरी मूर्खता परखता है |
बिलकुल ज़ीरो, सिफ़र, शून्य
है मेरा ईश्वर,
बिल्कुल ही नया |
# #

औरत बाज़ार


[ कविता ?]

* पुरुष
औरत खरीदता है ,
औरत
बाज़ार खरीद लाती है |
# #
[ बाज़ार में औरत ही औरत , औरत का वर्चस्व ]

एक नया पाखंड

एक नया पाखंड [ फैशन या कार्यक्रम ] यह भी चला है कि आरोप लगाओ , और चुनौती दो कि जांच करवा लो | यदि सही निकले तो आरोपित को सजा दो , गलत निकले तो मुझे फांसी दो [ ऐसा ही कुछ ] | इस पर मुझे अपना एक पुराना रूपक याद आता है , जो मैंने धार्मिक पाखंडों के दावेदारों के लिए सोचा था | धार्मिक कर्मकांडी भी ऐसे ही दावे करते हैं कि लंगोट पहनना ,चोटी रखना , जनेऊ पहनना , सूर्य को जल देना , खतना कराना , बकरे का गला रेत कर जिबह करना , आदि आदि सब वैज्ञानिक है | चाहे तो परीक्षण करा लिया जाय | तब मैंने लिखा था - क्या विज्ञानं और वैज्ञानिकों के पास यही एक काम है कि तुम ऐसे ही मनगढ़ंत शिगूफे छोड़ते रहो और वह तुम्हारे पीछे टेस्ट ट्यूब लेकर घूमता रहे ?   

श्वाँस छोड़ दो


* यह दीवाली
कितने तो दिलों को
उदासी देती |

* श्वाँस छोड़ दो
बाहर जाने भी दो
फिर आएगी |

* हमारे पास
अब सिर्फ भूलना
बस काम है |

* लेना न कुछ
बस देखना भर
भरा बाज़ार |

* दिन बीतता
रात नहीं बीतती
जागे कटती |

* कुछ जागते
कुछ सोते हुए भी
ज़िन्दगी कटी |

* दिखता हूँ मैं
पागलों की तरह
पागल नहीं |

* पाखण्ड है जी
पाखण्ड ही पाखण्ड
सारा पाखण्ड |

* जीवन धन
सर्वहारा पन को
दूर करता |

* साधू संत को
चाहिए ही चाहिए
कम बोलना |

* शादी के बाद
या शादी के पहले
ग़म खाइए |

* यह बेचारा
समझ का मारा है
मूर्ख  युग में |

* कोई विचार
नहीं हैं मेरे पास
कुछ काम हैं |

* स्वस्थ रहेंगे
नींद आती रहेगी
जब तलक |

दिग्विजय सिंह साहित्यकार

एक सशक्त संभ्रांत लेखक ने पूछा है - यदि दिग्विजय सिंह साहित्यकार होते तो क्या करते ? मेरा विनम्र उत्तर है - तब वह केजरीवाल की तुलना राखी सावंत से न करके मैत्रेयी पुष्पा से करते |

मर तो नहीं जायेंगे


समस्या पूर्ति =
तुम नहीं देखोगे तो हम मर तो नहीं जायेंगे |

रविवार, 11 नवंबर 2012

प्रथम दृष्टि के प्यार


गलत बयानी =
* मैं उस आदमी को महत्व नहीं देता जो स्वयं को महत्व नहीं देता |

* मैं प्रथम दृष्टि के प्यार का कायल नहीं हूँ | कम से कम दो बार देखना चाहिए |

* सामंत नहीं रहेंगे तो निठल्ले विचारकों कवियों , लेखकों और संतों के पेट कौन भरेगा ?

* सामंतवाद जाकर भी क्या करेगा ? उसके बाद तो पूँजीवाद आ जायेगा ? वही मेरे लिए कहाँ शुभ होगा ?

पुराणमित्वा


मेरे कुछ नए नाम =
कमज़ोर आदमी / पुरान मितवा [ पुराणमित्वा न हि साधू सर्वम से लिया गया ]

घूस कहाँ चलता है


[ कथा वस्तु ]
* उसे किसी को किसी काम के फलस्वरूप किसी को घूस देना था |
साथी ने कहा - अब घूस कहाँ चलता है ? भ्रष्टाचार समाप्त हो गया |
- - तो फिर ?
- अगले महीने उसकी लडकी की शादी है | उसी में दे देना |
# #

पन्ना धाई की मजदूरी


[ उवाच ]
* प्यार से दुनिया तनिक भी नुकसान नहीं है | फिर भी यह उसकी दुश्मन बनी हुयी है |

* मजदूरी का सही आकलन संभव नहीं है | पन्ना धाई की मजदूरी का भुगतान कोई राजा नहीं कर सकता |

मचलती राहें


गीतांश =
हर और मचलती राहें हैं ,
हैं राह जोहती राही की |
- - - -
- - |

मनुष्य हूँ मैं


* लिखता तो हूँ
कह नहीं सकता
अच्छा या बुरा |

* मैं हँसता हूँ
गाता हूँ, रोता भी हूँ
मनुष्य हूँ मैं |

* कविताओं में
वज़न नहीं रहा
क्या अब दोस्त ?

* अब , जब कि
लिखना छोड़ दिया
वह लिखाता |

* जी हाँ ! बेशक
देखता हूँ मैं उन्हें
वे भी तो मुझे !

* ध्यान अपने
लक्ष्य , उद्देश्य पर
सदा रखिये |

* नहीं जी नहीं
मैं बूढ़ा नहीं हुआ
जवान हूँ मैं |

* अब ले चलो
आजिज़ आ गया हूँ
तेरे जहाँ से |

हाइकु लिखकर


* ज़िन्दगी जीता
हाइकु लिखकर
जी रहा हूँ मैं |

* मिलना तो था
खाना बना बनाया
कहाँ नसीब !

* वह बात थी
ज़माना बदला तो
यह बात है |

* कहाँ शुभता
बच्चों का बूढ़ापन
माओं - बापों को !

* पकड़ता हूँ
कोई तो एक बात ,
ले उड़ता हूँ |

* आप बाएँ हैं
तो मुझे भी बाएँ ही
चलना होगा |

* दाढ़ी चोटी से
ऐसा कुछ नहीं कि
खुदा मिलता |

* सब जायज़
प्रेम और युद्ध में
नहीं मानता |

* खाने के लिए
बड़ी जद्दो जहद
बफे सिस्टम |

* फिर तो मैंने
स्वीकार नहीं किया
किसी का प्रेम |

* हर किसी को
जानना ही चाहिए
पड़ोसी कौन ?

* आस में हूँ मैं
आर्थिक संकट है
आशय मेरा |

* शादी होती है
बुढ़ापे की खातिर
जवानी नहीं |

* मैं देखता हूँ
स्वयं निज व्यक्तित्व
देख पाता हूँ |

* गांधीवाद में
रखा क्या है , चल रे
मन माओ को |

* जहाँ फर्क है
उसे फर्क रखिये
सम रहिये |

* ज्यादा सोचना
हानिकारक होता
स्वास्थ्य के लिए |

* आदर्शवादी !
सोच - समझकर
जीना ज़िन्दगी |

* आदमी एक
बँटवारे अनेक
दुश्वारियाँ |

* समझने में
दुनिया की रीति को
ज़माने लगे |

* कभी सो गए
फिर जागते रहे
जब जागे तो |


* पैर मालिश
सुबह उठकर
फिर शाम को |

* आदर भाव
बनाये रखना है
वृद्धों के प्रति |

* देखो ही नहीं
खतरों की तरफ
टल जायेंगे |

* वृद्धावस्था में
हड्डियाँ गलती हैं
तो गलने दो |

* यह तो देखें
हम किस लायक
तदनुसार
किसी मंजिल पर
बढ़ाएँ पैर  |

शुभकामनाएँ भी एक पाखण्ड


" दीपावली की शुभकामनाएँ "
क्या यह भी एक पाखण्ड नहीं है ? इसलिए हम इसे किसी से नहीं कहते | लेकिन हमें मिलते तो हैं ?

हमारा पाखण्ड [ सच सच ]


हमारा पाखण्ड [ सच सच ] हमारा जीवन तमाम तरह के पाखण्डों से घिरा हैं, और हम उसे सच मान कर प्रसन्न हैं | ईश्वर , धर्म-अर्थ -काम -मोक्ष इन पाखंडों के बड़े सराय हैं | सेक्स - संस्कृति - भाषा , सामाजिक - पारिवारिक सम्बन्ध कुछ भी तो अछूता नहीं है इस झूठ से ! राजनीति तो मानो महासागर ही है इस प्रवृत्ति का ! ज़ाहिर है हमें इसे मिटाना चाहिए , इससे मुक्ति पाने के प्रयास करने चाहिए | लेकिन इससे किंचित भी बाहर निकलना तो तब संभव होगा जब हम जानें कि हमारे छ्द्माचरण हैं क्या ? कितने , कितनी मात्रा में हैं , कितने लाभदायक कितने हानिकारक हैं, कितने त्याज्य तो कितने अपरिहार्य हैं ? इसलिए ,चलिए नास्तिक मंडली सम्प्रति इसी की चर्चा करती है | इस समूह का नाम अभी तक ' नास्तिक मंडली ' था | क्या आप को नहीं लगता कि हमारी नास्तिकता भी एक प्रकार का पाखंड , एक फरेब ही है जैसे आस्तिकों की आस्था , जिसके हम विरोध में हैं ?

PEN IS MY SWORD

चूँकि मैं खुद मूलतः पत्र लेखक ही रहा हूँ , इसलिए " उपदेसक " वाली बात हूबहू मैं चंचल जी जैसी के विक्रम राव जी के "PEN IS MY SWORD " पुस्तक के विमोचन के अवसर पर गत नौ तारिख को प्रेस  क्लब में उठाना चाहता था | आमंत्रित भी था पर वक्ताओं की बहुलता के कारण बात नहीं कर सका | तथापि यह मुद्दा बहुत जायज़ है | 11/11/12

शनिवार, 10 नवंबर 2012

उत्तमोत्तम ईश्वर

जैसे जैसे मनुष्य अच्छाइयों की श्रेणी में आगे बढ़ता जायगा , उसका ईश्वर भी उत्तमोत्तम होता जायगा |

दलित बड़ी गहराई से हिन्दू


आभासी किताब पढ़कर मन कसैला तो होता है | पर उससे उबार कर मैं शांति पूर्वक विचार करता हूँ कि  इसका क्या कारण हो सकता है कि दलित लेखक पानी पी पी कर हिन्दू धर्म कि बखिया उधेड़ते हैं , उसे गालियाँ देते हैं , और खोज खोज कर ऐसी उद्ध्रितियाँ सामने लाते हैं, जो स्पष्टतः अनैतिक और घटिया होता है , और जो पर्याप्त होता है किसी सभ्यता और संस्कृति को शर्मसार करने के लिए ? तो मैं पाता हूँ कि इसके दो कारण हो सकते हैं | (यह विवेचक हिन्दू भले पैदा हुआ है , और इस पर उसे कोई शर्म या गर्व नहीं है , यह मात्र एक घटना भर है, इसलिए यह निष्पक्ष है  ) | एक तो यह कि दलित सचमुच हिन्दू धर्म को अपमानित करना और अपमानित होना देखना चाहते हैं , इसमें उन्हें आनंद  आता है , एक मनोवैज्ञानिक सुख प्राप्त होता है , जिससे ये सदियों से वंचित रखे गए थे | लेकिन इससे परे मुझे एक और कारण संभावित समझ में आता है ,और वह सच के ज्यादा करीब लगता है | वह यह कि इन्हें हिन्दू धर्म से इतना प्रेम , इतना लगाव है कि इसमें कोई कमी , कोई प्रदूषण , कोई अनैतिकता बर्दाश्त नहीं होती , जिसे वे पुराणों में तमाम पा जाते हैं | इससे वे पीड़ित होते हैं , इसलिए इनकी सशक्त - सतर्क -सटीक आलोचना आलोचना करते हैं || तभी इन्हें राम का चरित्र , ब्रह्मा का कुकर्म , नारी के साथ  देवता का रमण बुरा लगता है | अन्या किसी को भले वे सब काल्पनिक कथाएं लगें , पर इन्हें सारा सर्वथा सत्य लगता है , और वे इन्हें ऐसा ही मानकर चलते हैं |कुछ क्या तमाम उदहारण हैं किताबों में जो इनके ह्रदय को सालता है | यह इनकी संवेदनशीलता का प्रतीक और परिचायक हैं | अतः इनके द्वारा हिन्दू धर्म कीनिंदा को इसी परिप्रेक्ष में लिया जाना चाहिए , न कि उलटे इन्ही की आलोचना , भले ये लोग  बर्दाश्त की सीमा से काफी आगे निकल जाते हैं | इससे हासिल क्या होता है यह तो यही जाने , लेकिन ऐसा करने का इन्हें पूरा हक है | उस बाप को गाली देने का , जिसने इनका उचित हक नहीं दिया | हिन्दू इतना तो सहिष्णु है ही कि वह अन्दर बाहर की सारी गालियाँ खा - पचा लेता है | इसलिए आलोचक निश्चिन्त हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा | वर्ना वे यह भी जानते हैं कि ऐसी ही बातें ज़रा माओवाद या इस्लाम के विरुद्ध तो कह कर देखते  , भले ये विचार भी कोई हर समय के लिए दूध के धुले हुए नहीं हैं |
अब हम मूल निष्कर्ष पर आते हैं कि अविरल अपशाब्दिक दलित गण मूलतः बड़ी गहराई से हिन्दू ही हैं तभी वे इसके बारे में इतना बोलते हैं | वर्ना यदि ये अपने को हिन्दू न कहते , हिन्दू होने में शर्म खाकर इसे छोड़ दिए होते , तो भला ईनसे क्या मतलब था कि सीता राम ने क्या किया , रावण को क्यों जलाया , ब्रह्मा ने बलात्कार किया ? सुबूत है कि कोई मुसलमान  तो हिन्दू धर्म की इतनी चिंता नहीं करता ! दलित ऐसा करके प्रकारान्तर  से हिदू धर्म के प्रति अपना प्रेम और आस्था ही व्यक्त करते हैं |

No followers,Custodians of religion

FB friend सुभाष रविन्द्र झा ठीक ही कहते हैं सारी समस्याओं के निदान यहीं छिपे हैं | इस प्रकोण से हमने कुछ विषयों को छुआ तो वाकई मज़ा आया | एक तो यह कि हम प्रायः धार्मिक उत्पातियों के बारे में सोचते है कि ये भला कैसे धार्मिक हैं ? धर्म , इन्ही का धर्म, सिखाता कुछ और है , ये करते कुछ और हैं | अब इसका वैचारिक हल देखिये | मैंने निकाला कि हिन्दू मुस्लिम या कोई भी धार्मिक जन उसके follower ,[अनुपालक] नहीं होते , बल्कि उसके CUSTODIAN [ अनुरक्षक ] को ऐसा धार्मिक कहा जाना चाहिए | तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है , और मानसिक तनाव कम हो जाता है | इस आईने से कई  वैचारिक समस्याएँ और उलझनें सुलझ जाती हैं | हम फिर , तब धार्मिक जनों से इसकी उम्मीद नहीं करते कि वे अपने धर्म का पालन करें | और यदि वे अपने धर्म [ के प्रतीकों ] कि रक्षा में हिंसा पर उतारू हो जाते हैं तो यह बात भी समझ में आने लगती है |    

फेसबुक ऐसी किताब

फेसबुक ऐसी किताब है , जिसमे कुछ भी कितना भी लिखते रहिये , उसके कोई अंक , कोई मार्क्स नहीं मिलते | इसीलिये छात्र इस पर  बिना पास फेल की परवाह किये खुलकर अपनी बात लिखते हैं | इसे कुछ  लोग इसीलिये भड़ास की भी संज्ञा देते हैं | लेकिन वह होता है मौलिक अपने चरित्र में | निश्चय ही यह दूसरों के पोल खोलता है , लेकिन उसके पहले या उसके साथ अपनी सारी पोल खोल देता है | नग्न होता है यहाँ आदमी | नग्न आँखों से सबकी सारी नग्नता देखता है | फिर भी, चूंकि  यह शब्दों के माध्यम से मूर्तन अवस्था में तो होता ही है , इसलिए यह लेखक को शर्मसार भी करती है | इसीलिये कुछ लोग जो ज्यादा खुलकर लिखना चाहते हैं , अपना  चेहरा और नाम बदल कर इसके परदे पर आते हैं |

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

नमाज़ की तरह


* ज़िन्दगी जियो
नमाज़ की तरह
पूजा की भाँति |

* क्या ज़रूरी है
बड़ा लेखक होना
छोटा ही काफी |

* कितने आये
अधर्म मिटाने को
कितने गए !

* जीने की ज़िद
बनाएगी नैतिक
नर नारी को |

* दुस्साध्य होता
बराबरी का रिश्ता
उसे निभाना |

* पैसे की तंगी
कुछ भी करा देती
जो न करा दे !

* अब मुझसे
यह गलती हुई
कि सच बोला |

* अकेले हो  [4]
अकेले रहो  [5]
अकेले रहोगे  [6]
[प्रयोग]

* कमाई ही तो
बढ़ाती मँहगाई
दो नम्बर की !

* सब चोर हैं
यह मान लेना भी
भ्रान्ति पूर्ण है |

* सामान रहे
सम्मान रहे न रहे
जग की रीति |

* जिसको चाहा
आभासी पन्नों पर
मित्र बनाया |

* कौन किसी की ,
, मेवा मिले न मिले ,
सेवा करता ?

* स्वीकार भाव
बहुत बड़ी बात
महान गुण |

* न दस्त आया
न पेचिश पड़ी है
सुहानी घड़ी |

* बिना प्रयास
मुकम्मल आदमी
मैं होता गया |

* सबसे अच्छे ,
, जो लोग झगड़ते ,
दोस्त होते हैं |

* कितनी चिंता
तन - मन - धन की
आखिर करें ?

* तो बताइए ,
अकेले क्या करते
एकलव्य जी ?

* कोई भी पाप
छोड़ना न चाहिए
करना शेष |

* विश्वसनीय
हूँ, पर किसी पर
विशवास नहीं |

* किसने देखा
अकेले में प्रार्थना !
रोड शो जारी |

* सरदार जी ,
खासियत है , वे हैं -
चुटकुलों में |

* मैं खुद बना
, समाज ने बनाया ,
मेरे बच्चों को |

* एक ज़िन्दगी
बस उनकी याद में
गुजारूँगा  मैं |

* एक ज़िन्दगी
उनकी याद में ही
गुज़र गयी |

* अननुभूत
अब चिर थकान
सो जा मसान |

* चुप रहना
साधक के लक्षण
कम बोलना |

* कहना और ,
हे जातक मनुष्य !
करना और |

* सरल तो हूँ
पर इतना नहीं
कि कुत्ते चूमें |

* साले हरामजादे  
[यह सात अक्षर हो गया ,
इसके पहले पाँच,
इसके बाद में पाँच अक्षर
लगा कर हाइकु बनाया
जा सकता है ]
इसी प्रकार " कोई उम्मीद नहीं "
भी सात अक्षरों का है | क्या
गजल- गीतों की तरह हाइकु
में भी ' समस्या पूर्ति ' की प्रथा
शुरू की जा सकती है ?

वामपंथ को अक्षत योनि


प्रकारांतर से मैं उज्जवल जी से असहमत होने का नाटक करना चाहता हूँ | मैं इस बात के पक्ष में हूँ कि इस्लाम की किताबों की भाँति वामपंथ को भी अक्षत योनि रहने दिया जाय | इनके साथ कोई छेड़ छाड़, कोई परिवर्तन-संवर्धन - संशोधन न किया जाय, न इनके पुनर्परिभाषित करने की कोई दुश्चेष्टा | क्योंकि इससे इनकी शुद्धता - पवित्रता नष्ट होने का खतरा है | फिर तो कोई भी इनकी मनमानी व्याख्या कर सकता है , जो उचित नहीं | इसलिए जिस तरह इस्लाम की किताब के पन्नों के बाहर क्या हो रहा है किसी मौलाना से न पूछिए , उसी प्रकार वामपंथियों से भी प्रश्न न कीजिये कि ऐसा क्यों हुआ कि इसका सारा चटख लाल रंग बैंक और बीमा कर्मचारियों के धवल सफ़ेद कालरों में फँस गया ? या फिर जे एन यू के जीन्स के पाकेटों में ? मत पूछिए कि ये बनतू कम्युनिस्ट स्वयं कुछ सर्वहारा की ज़िन्दगी जीकर क्यों नहीं दिखाते ?
और यह विडम्बना, कि जो सादा जीवन जीते है वे दुर्भाग्यवश अधिकांश गाँधी से प्रभावित क्यों होते हैं ? हमने रमेश सिन्हा और चंदर तिवारी की जिंदगियां देखी हैं और अनेकों की देख रहे हैं | अब गांधीवाद तो गया कूड़े में , तो वामपंथ को तो शुद्ध रहने दिया जाय | जिसको होना हो वह पूरा हो, अन्यथा न हो | इस स्पष्टता के साथ मैं गांधीवादियों से तमाम दूरियों और वाम मित्रों से नजदीकियों के बावजूद इनके कार्यक्रमों से भरसक परहेज़ करके शायद उचित ही करता हूँ |      

आज जाने की जिद न करो

जाने क्यों , कल से कानों में " आज जाने की जिद न करो " की धुन लगातार गूँज रही है | जब कि जाने को कौन कहे , यहाँ किसी के आने की ही कोई उम्मीद नहीं है |

तुमने एक पहाड़ खोदा


आज फिर तुमने एक पहाड़ खोदा ,
आज फिर निकलेगी कोई चुहिया |
यह सिलसिला कभी तो ख़त्म हो , इसलिए हम आप की सारी खोज स्वीकार करते हुए अंततः यह मानने को तैयार हैं कि भारत को आज़ादी देने और दिलाने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजों को है , किसी भी हिन्दुस्तानी- पाकिस्तानी को नहीं | तिलक ही नहीं अन्य तमाम ज्ञात -अज्ञात , छोटे - बड़े  नेता - कार्यकर्त्ता या स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को मारिये गोली | उन्हें नाहक ही देश में सम्मान दिया जाता है | अब तो आप खुश हों !

बुधवार, 7 नवंबर 2012

कह्कुले


कह्कुले
छोटी छोटी उक्तियाँ | कुछ गंभीर चिंतनपरक , कुछ हास्यपुट , कुछ व्यंग्ययुक्त , कुछ बदमाशियाँ, या कुछ शब्दों के जोड़ के साथ खिलवाड़ | सार्थक अथवा निरर्थक , उन्हें कह देना , व्यक्त कर देना |

निजी कहानी


* ज़िन्दगी जीता
कविता बनाकर
यही ज़िन्दगी |

* कुछ खा लिया
कुछ दस्त आ गए
तो क्या हो गया ?

* सामंत वाद
मेरे अक्षुण प्यार
को भी कह लें |

* खल रहा था
जब अकेलापन
सृष्टि रच ली |

* अब जो भी हों
अभी तक नहीं थे
हम अंग्रेज़ |

* अँधेरा तो था
उजाले की तरह
वह चमका |

* निभ ही गया
किसी प्रकार निभा
पर निभा तो !

* तब से अब
दिल का मामला था
दिमाग का है |

* दया कीजिये
गरीब आदमी है
कल दे देगा |

* सबका ही है
कुछ अपना किस्सा
निजी कहानी |

* वह है नहीं
उसे अर्ध्य देता हूँ
जलावतन |

* हम ठीक हैं
संतोषजनक है
हमारी स्थिति |

* अँधेरा तो है
उजाला संभावित
है भी , नहीं भी |

* किसी प्रकार
हँसकर रोकर
जीना है हमें |

* छद्म जीवन
जीना भी एक कला
कोई माहिर |

* अच्छा , तो अभी
कुछ खौफ बाक़ी है
सरकार का !

* उसके आगे
कोई अमीर नहीं
सभी गरीब |

* लिहाज़ जो है
बड़े काम आता है
छोटे बड़े का |

* पूछते लोग
ऊपरी आमदनी
वर चुनते |

* शून्याकाश में
विचरण करता
ध्यान समृद्ध |

खुदा , जुदा ही रहे


[ उवाच ]
* कोई सहारा नहीं होता तब आत्मविश्वास बढ़ता है |

* अपना भाग्य अपने आप झेलना चाहिए , किसी के मत्थे मढ़ना नहीं |

* क्या ऐसा हो सकता है कि खुदा , जुदा ही रहे ?

* विचारक को चिन्तक भी कहा जाता है | यदि चिन्तक के चिंतन में व्यक्ति और समाज की चिंता नहीं है , तो वह विचारक नहीं है |

तुम्हारी याद के मद्दे नज़र


थोडा गायन :-
[ शेर ] * इसके चलते मैं युगों से इस कदर हैरान हूँ |
           किसने मेरे सर पे रक्खा बुद्धि का जलता दिया ?

[ अपूर्ण ग़ज़ल ] * तुम्हारी याद के मद्दे नज़र ,
                       रहा हूँ लिख ये ख़त लख्ते - जिगर |

[  नव ग़ज़ल - अभ्यास ] - " लेकिन फिर भी "
                     * आस नहीं थी ,  लेकिन फिर भी ,
                        प्यास लगी थी , लेकिन फिर भी |  or
बुझने की कोई आस नहीं थी ,
प्यास जगी थी , लेकिन फिर भी |

आंबेडकर और लोहिया के बीच लड़ाई

मायावती - मुलायम के बहाने लड़ाई हो रही है आंबेडकर और लोहिया के बीच | वह काम , जो वे अपने जीते नहीं कर पाए , जीते होते तो न कर पाते |

सामंत हैं कहाँ ?


[ गलतबयानी ]
* जातिवाद समाप्त करने का तरीका - जातीय संस्कृति का परित्याग !

* अभी बेईमान नेताओं से देश परेशान है | आगे , ईमानदार नेताओं से देश को ऊब होने लगेगी |

* आंबेडकर वादियों को जितनी परेशानी गांधी से होती है , उतनी दिक्कत गाँधी वादियों को आंबेडकर से तो नहीं होती !

* न्याय व्यवस्था की दशा इसलिए भी लद्धड़ होने का अंदेशा है , क्योंकि यह ज्यादातर वकीलों के ऊपर निर्भर है | और वकील , पढ़ाई में सबसे लिद्धड़ छात्र होते हैं |

* सामंत हैं कहाँ ? मुझे तो सब सेल चोट्टे - उचक्के लगते हैं |

* हम जन्म जात पराधीन हैं | क्योंकि हमारी लाश का ठिकाना कोई और ही लगाएगा |  

* और तो छोड़िये | जगह जगह की टोपियाँ ही अलग हैं | कैसे कायम करेंगे सांस्कृतिक एकता ?

* एक मित्र का कहना है कि भारत के गाँव  और किसान समाप्त हो जाने चाहिए , तभी सामंतवाद का खात्मा होगा | ऐसे में , अब तो सोचना पड़ेगा कि फिर सामंत वाद जाये ही क्यों , जससे भारत के किसान और गाँव सुरक्षित बच जायँ , अपने अस्तित्व , अस्मिता और जिजीविषा के साथ ?

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

सब तो नाटक था


* मैं मरा नहीं
सब तो नाटक था
जो मैंने किया !

* क्यों प्यार करें ?
आखिर कारण क्या
जो प्यार करें ?

* प्यार न बांधो
एकनिष्ठ न बनो
साम्यवादी हो |

* बड़े शौक से
सुना रहे थे वह
फिर सो गए |

* इतना टेढ़ा
संपत्ति का मामला
तो होता ही है !

* थोड़ा तो ठीक
पर ज्यादा विद्रोह
कलह पूर्ण |

* अपनी जान
बचे तो जानूँ कोई
भगवान् है |

* भर गयी है
कितनी बेचारगी
कितना कहूँ ?

* विवादग्रस्त
राम जन्म भूमिश्च
किं स्वर्गादपि ?

* अभी - अभी था
मर गया आदमी
अभी अभी तो !

* सारी कहानी
कहने की बात है
सुनने की है |

* कला फिर  भी
थियेटर , नाटक
फिल्म निर्माण !

* मुझसे कोई
गलती नहीं हुई
हुई सो हुई |

* समझौता तो
किया तुमसे दुनिया
ज़िन्दगी भर !

* देख चुकेंगे
सबका सारा छद्म
तब लौटेंगे |

गलत बयानी


[ गलत बयानी ]
* शादी से कुछ हासिल नहीं होता | बस यह होता है कि नारी तन - मन का थोड़ा निकट से ज्ञान हो जाता है |

* दूध सचमुच मांसाहार है | इसे बिल्ली उसी चाव से पीती है , जिस चाव से वह चूहे खाती है |

* ब्राह्मण है तो वह वैसा होगा ही , यह जातिवाद की शुरुआत है | और आंबेडकर ही एकमात्र विचारक और नेता थे , यह जातिवाद का अंत |

* मार्क्स न होते तो मार्क्सवादी विचारक , बेचारे दो कौड़ी के होते |

* मैं सोच रहा हूँ कि मुझे किसी को डराना नहीं चाहिए , उलझाना भी नहीं चाहिए | ऐसी शब्दावली नहीं लिखनी चाहिए , जो उन्हें समझ में न आये |

सोमवार, 5 नवंबर 2012

लिखते क्या हैं


* लिखते क्या हैं
दिवस काटते हैं
किसी तरह !

* राजा जो होगा
कुछ प्रजा भी होगी
रानी भी होगी !

* सच निकला
झूठ समझते थे
जिसको हम |

* झूठ निकला
सच समझते थे
जिसको हम |

* फर्क के साथ
कैसे रहा जाता है
जानना होगा |

* मैं कहता हूँ
फूल क्यों तोड़े जाएँ
गेंदे  गुलाब ?

* सोच न पाऊँ
कितना नहीं पिया
कितना पिया ?

* कोशिश करें
तो समता की ही क्यों ,
बड़े होने की |

* स्वावलंबन !
अपना कमाना है
अपना खाना |

* डोरे डालता
इसके पहले ही
डोर से बँधा |

* जो हो रहा है
बड़ा मज़ा आएगा
उसे होने दो |

तिश्नगी है


* गाना गाना है :-
टेक - तिश्नगी है |
इसमें भी है ,
उसमे भी है ,
उसमे भी है |
        तिश्नगी है |

कुछ अवचेतना


HAIKU POEMS

* क्या दिक्कत है
मिट्टी मिला देने में
किसी मिट्टी में ?

* कुछ चेतना
कुछ अवचेतना
चलाती मुझे
नवचेतना !

* दो भाइयों में
इतना टकराव
अच्छा तो नहीं !

* क्यों नहीं पूजें
मिट्टी , पत्थर , लोहा
मातृभूमि का ?

* मँहगाई हो
तो परेशानी , मंदी
हो तो संकट !

* कभी तो पीठ
 ने कुछ मार झेले
तो कभी पेट |

* ढूँढते भिन्नता
नर और नारी में
अनावश्यक |

* सिर खपाना
अन्याय के विरुद्ध
खून जलाना |

* कविता लिखें
या आन्दोलन करें
एक ही बात |

* दकियानूस
नए को भी पुराना
मानता हूँ मैं |

* नजदीकियाँ
पता ही नहीं चलीं
कोई दूरियाँ |