शनिवार, 30 नवंबर 2013

[ नागरिक पत्रिका ] 1 से 30 नवम्बर , 2013


* मूर्ख ही नहीं
बेवकूफ भी तो हैं
क्या समझाएँ !

* सारा बाज़ार
बनियों का जाल है
बच लीजिए |

* अफवाह हैं
चुनाव सर्वेक्षण
विश्वास न दें |

* काम की चीज़
लिखिए तो हाइकु
नहीं तो नहीं |

* दिखाते भी हैं
फिर शिकायत भी
देखते क्यों हो ?

* प्रेम करता ?
झूठ बोलता वह
बचना बाबा !

* धैर्य तो रखो
कोई लाभ नहीं है
घबराने से |

* तुम नहीं हो
मन नहीं लगता
किसी काम में |

* चलते रहो
कोई साथ न देगा
अकेले चलो |

* ताड़ सोचता
तिल भर लिखता
सूक्ष्म देखता |

* मन में पाप
जाति सम्प्रदाय का
न लाना चाहूँ |

* किसी ने कहा
हमने जैसे सुना
फौरन लिखा |

* मेरा महत्त्व
मुझमें निहित है
कोई क्या जाने !

* जो है ही नहीं 
दुनिया पागल है 
उसके पीछे |

* भागना ही है 
तो भागो , जल्दी भागो 

ज्ञान के पीछे |

धर्म तब भी अप्रासंगिक हैं हमारे लिए यदि वे अच्छी बातें सिखाते हैं | इन बुरे वक्तों में अच्छी , चिकनी चुपड़ी बातों का क्या महत्त्व ?

* चेहरा अलग
मनुष्य का चेहरा ही उन्हें अन्य मनुष्यों से अलग करता है |चेहरे न होते तो सब मनुष्य , स्त्री और पुरुष एक से दिखते , एक ही होते !

* " पशुता " को एक अवसर दो |

* अच्छी तरह जान लीजिये , जान नहीं देना है किसी के लिए | न नास्तिकता के लिये , न आस्तिकता के लिए | नास्तिक नहीं हो पा रहे हैं तो कोई बात नहीं | या जितना हो पा रहे हैं उतना बहुत है | शेष आस्तिक बने रहिये कोई दिक्कत नहीं है |
इसी प्रकार यदि यदि पूर्ण आस्तिक नहीं बन पा रहे है तो भी कोई समस्या नहीं है | जितना आस्तिक हैं उतना बहुत है | उतने से संतोष कीजिये क्योंकि आप जैसा और जितना आस्तिक भी बहुत कम हैं | और आस्तिकता के जितने पाखण्ड आप पचा नहीं पा रहे हैं , उसे छोड़ दीजिये | वाही पर्याप्त नास्तिकता है | जल्दबाजी न कीजिये | हीन भावना न पालिए | जान न दीजिये | जीवन महत्वपूर्ण है |

* हिन्दू तो ईसाई या मुसलमान हो सकता है ( तभी तो होता है ) | लेकिन क्या मुसलमान और ईसाई भी हिन्दू होते हैं ? कारण कोई हिन्दू में अनाकर्षण का होना तो नहीं हो सकता ( यह बहुत ही रोचक है ) , बल्कि उन धर्मों में बन्धनों की कठोरता है , जिससे वे नहीं निकल पाते , जितनी आसानी से हिन्दू निकल कर धर्म परिवर्तन कर लेता है | लेकिन यह भी है कि वहां भी बहुत सारे लोग निकलने की छटपटाहट में हैं , वज्ञानिक सोच के और सेक्युलर हैं | उनकी मुक्ति का मार्ग है हिन्दू होना | यद्यपि वे जैसे हैं वैसे भी रह सकते हैं , लेकिन कठिनाई यह है की उनकी कुल मिला कर संख्या इतनी कम होती  है कि उनके कोई असर समाज और देश की राजनीति पर दृष्टव्य नहीं हो पाता , जैसी ताक़त वे हिन्दू के समुदाय बनकर बटोर सकते हैं | अब प्रश्न उठता है कि हिन्दू होकर वे किस जाति में माने जायेंगे ? उत्तर आसान है - " है न " शुद्र " वर्ण " ? शुद्र होने में ब्राह्मण - दलितों को एतराज़ हो सकता है , लेकिन बुद्धिवादी का टी यह अहोभाग्य जो वह शुद्र होकर शूद्रों का साथी बन सके | फिर स्वाभाविक शुद्र तो हिन्दू का बगावती गुट है ? फिर तो समझिये शुद्र होना एक तरह से हिन्दू से भी मुक्त होना हो गया | इस तरह पूरी धार्मिक आज़ादी मिल गे |

* मेरा घर है मेरा राष्ट्र -
राष्ट्रवाद एक अत्यंत छुई मुई विषय हो गया है | कुछ संगठनों द्वारा इसके कट्टर इस्तेमाल के कारण यह अनावश्यक बदनाम हुआ और इसके चलते ईमानदार देशप्रेमी भी संदेह की दृष्टि में आ जाते हैं | लेकिन चूँकि मैं अपने कारणों से राष्ट्र से लगाव रखता हूँ इसलिए इसलिए इस पर अलोकप्रियता का खतरा उठा कर मुझे बोलना तो होगा | किसी पर असर हो , न हो | अव्वल बात तो यह तथ्य कि राष्ट्रवाद के तमाम विरोधी, कथित अंतर राष्ट्रवादी अभी तक तो विश्ववाद का कोई कोना हासिल करके नहीं दिखा पाए | बिना वीजा पासपोर्ट अमरीका ( ज्यादातर ये वहीँ जाते हैं ) नहीं जा पाए , न ब्रिटेन में ( यहाँ भी जाते हैं ) हिन्दुस्तानी गाँधी मार्का सौ - पांच सौ का नोट ही भुना पाए | दरअसल इस्लामी और साम्यवादी अंतर राष्ट्रवाद इस कुत्सित इरादे के तहत मात्र है की एक दिन ये पूरे संसार के शासक हो जायेंगे | छलावे में जी रहे हैं ये और इस अभियान में विश्व शांति का विनाश ही कर रहे हैं | दुसरे इसके चलते अपने हकीकतन मुल्क या देश को हेय दृष्टि से देखते हैं | उसकी सेवा , और उसके ज़रिये मानवता की सेवा जो ये कर सकते थे वह तो नहीं कर पाते , उलटे राष्ट्र विरोधी कुकृत्यों में लिप्त हो जाते हैं |
बहरहाल , उनकी वे जानें , मैं अपने राष्ट्र का मतलब खुद अपने तरीके से लगता हूँ | मेरा गाँव में कुछ ज़मीन और एक रिहाइश है | लखनऊ में 450 वर्गफीट में एक LIG आवास आवंटित है | अब मैं क्या चाहता हूँ ? यह कि मेरे घर सलामत रहें , जिसमे रहने वाला मेरा परिवार , मेरे बच्चे सुरक्षित रहें | न मैं किसी के निजी घर में घुसूं न कोई मेरे कमरे पर हमला कर मेरे बच्चों को मारे | तो मैं क्या गलत चाहता हूँ ? इसी को अब बढ़ा कर देखते हैं | मेरा घर तभी सुरक्षित रहेगा जब मेरा अलीगंज मोहल्ला बचेगा | अलीगंज लखनऊ शहर के बचना से बचेगा , लखनऊ , यू पी के बचने से और यू पी की सलामती भारत नामक एक ऊबड़ खाबड़ देश की सुरक्षा पर निर्भर है | इसलिए मैं इसके लिए हाथ पाऊँ मारता रहता हूँ | बहुत पढ़ा लिखा विद्वान् नहीं हूँ कि इसकी आलोचना में इतनी दुर्गति कर दूँ कि मेरा घर , मेरा पनाह मुझसे छिन जाए |
दूसरा तर्क मेरा बिलकुल देहाती किसनई का है | तीन एकड़ का एक चक है मेरा | उसे मेरी पूरी धरती मान लीजिये | फिर भी उसे मेंड बाँध कर कई टुकड़ों में बांटते है | इससे एक तो सिंचाई में आसानी होती है , दूसरे कई किस्म की फसलें अलग अलग खेतों में उगाई - पैदा की जा सकती हैं | इसे देश की सान्स्क्रित्क विविधता से जोड़ सकते हैं | एक और हँसी की बात ! खेत के एक एक टुकड़े को भी पूरा एक एक खेत ही कहते हैं | मानो एक एक देश अपने में एक पूर्ण विश्व हो | लेकिन कोई इसे ऐसा समझे तो ! सब अपने को अधूरा ही समझते हैं और अपने देश की सीमा फैलाना ही चाहते हैं | क्या इसे अपूर्ण - अतृप्त राष्ट्रवाद कहें ? हा हा हा |
तो इस प्रकार मेरा तो घर - ज़र - ज़मीन ही मेरा राष्ट्र है , और मैं इसी तरह का राष्ट्रवादी हूँ |

* तीसरी बार टला संस्कृत संस्थान का पुरस्कार वितरण समारोह " - समाचार ( N BT - ३/११/२०१३ )
# क्यों नहीं टलेगा ? उर्दू , अरबी , फ़ारसी का समारोह करो | दौड़े आएँगे मुख्यमंत्री , मुख्यमंत्री  क्या मुख्यमंत्री के पिताजी भी | चाचा जी भी , ताऊ जी भी |

* मैं अंग्रेजी पढ़ने की वकालत इसलिए करता हूँ कि जिससे आदमी कम से कम पोस्टमैन की नौकरी तो पाने लायक हो जाय !

* मैं ईश्वर के खिलाफ नहीं , उसके रूढ़ होने के खिलाफ हूँ |

* मान लीजिये मैं "आसा वादी "हूँ | तो क्या मुझे आस्तिक मान लिया जायगा ? 

* कोऊ नृप होय हमें का हानी ( या लाभा भी कह सकते हैं ) | यह स्थिति कहने वाले के मुंह से कैसे निकलती होगी , उसे कैसा अनुभव होता होगा ,वह मैं अभी से महसूस हो रहा है | जो और जैसा माहौल बनाया जा रहा है , उसके चलते यदि मोदी कहीं सचमुच पी एम बन गए तो मेरी वही दशा होगी  , और मैं भी यही दोहा दुहराऊँगा |

* बड़े लोगों से तुलना छोटे लोगों के लिए हमेशा नुकसानदेह होती है | तमाम हाथ पावं मारे मोदी जी ने पटेल के समकक्ष अपने को मनवाने के लिए | लेकिन एक ही बयान में धराशायी हो गए कि - " यदि पटेल होते तो मोदी को हरगिज़ अपना उत्तराधिकारी न बनाते " |

* हिसाब किताब का न मिलना भ्रष्टाचार ही हो , ज़रूरी नहीं |

* जो दोनों वक़्त खाना खाते हैं वे भारत जैसे गरीब मुल्क के कम्युनिस्ट नहीं हो सकते |

* खुल गया - खुल गया -खुल गया
" आस्था इंजीनियरिंग वर्कशाप " -
by - Er Ugra nath
[ Aastha Engineer ( A.E.)]

* खानदानी हों तो टेढ़े, ऐंचे, भेंगे, काने एक्टर भी फ़िल्मी हीरो बन जाते हैं |

* तुम न आओगे तो सड़ जाए मेरी लाश ,
इतने भी कम नहीं हैं मेरे चाहने वाले |

* देखिये भाई , हमें नीति पर कायम रहना ही होगा , रहना ही चाहिए | हम किसी भी देश , जाति , धर्म , लिंग के व्यक्ति हों | व्यक्तिगत रूप से ही सही |

क्या आपने गौर किया सारे नियम - कानून व्यक्ति के लिए होते हैं | इसीलिए तो गलती या अपराध के लिए व्यक्ति को ही सजा होती है | किसी पूरे समाज - सम्प्रदाय को नहीं | इसलिए मैं तो व्यक्ति को समाज से ऊपर महत्त्व देता हूँ | व्यक्ति भला तो समाज भला |