रविवार, 11 नवंबर 2012

हाइकु लिखकर


* ज़िन्दगी जीता
हाइकु लिखकर
जी रहा हूँ मैं |

* मिलना तो था
खाना बना बनाया
कहाँ नसीब !

* वह बात थी
ज़माना बदला तो
यह बात है |

* कहाँ शुभता
बच्चों का बूढ़ापन
माओं - बापों को !

* पकड़ता हूँ
कोई तो एक बात ,
ले उड़ता हूँ |

* आप बाएँ हैं
तो मुझे भी बाएँ ही
चलना होगा |

* दाढ़ी चोटी से
ऐसा कुछ नहीं कि
खुदा मिलता |

* सब जायज़
प्रेम और युद्ध में
नहीं मानता |

* खाने के लिए
बड़ी जद्दो जहद
बफे सिस्टम |

* फिर तो मैंने
स्वीकार नहीं किया
किसी का प्रेम |

* हर किसी को
जानना ही चाहिए
पड़ोसी कौन ?

* आस में हूँ मैं
आर्थिक संकट है
आशय मेरा |

* शादी होती है
बुढ़ापे की खातिर
जवानी नहीं |

* मैं देखता हूँ
स्वयं निज व्यक्तित्व
देख पाता हूँ |

* गांधीवाद में
रखा क्या है , चल रे
मन माओ को |

* जहाँ फर्क है
उसे फर्क रखिये
सम रहिये |

* ज्यादा सोचना
हानिकारक होता
स्वास्थ्य के लिए |

* आदर्शवादी !
सोच - समझकर
जीना ज़िन्दगी |

* आदमी एक
बँटवारे अनेक
दुश्वारियाँ |

* समझने में
दुनिया की रीति को
ज़माने लगे |

* कभी सो गए
फिर जागते रहे
जब जागे तो |


* पैर मालिश
सुबह उठकर
फिर शाम को |

* आदर भाव
बनाये रखना है
वृद्धों के प्रति |

* देखो ही नहीं
खतरों की तरफ
टल जायेंगे |

* वृद्धावस्था में
हड्डियाँ गलती हैं
तो गलने दो |

* यह तो देखें
हम किस लायक
तदनुसार
किसी मंजिल पर
बढ़ाएँ पैर  |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें