बुधवार, 7 नवंबर 2012

निजी कहानी


* ज़िन्दगी जीता
कविता बनाकर
यही ज़िन्दगी |

* कुछ खा लिया
कुछ दस्त आ गए
तो क्या हो गया ?

* सामंत वाद
मेरे अक्षुण प्यार
को भी कह लें |

* खल रहा था
जब अकेलापन
सृष्टि रच ली |

* अब जो भी हों
अभी तक नहीं थे
हम अंग्रेज़ |

* अँधेरा तो था
उजाले की तरह
वह चमका |

* निभ ही गया
किसी प्रकार निभा
पर निभा तो !

* तब से अब
दिल का मामला था
दिमाग का है |

* दया कीजिये
गरीब आदमी है
कल दे देगा |

* सबका ही है
कुछ अपना किस्सा
निजी कहानी |

* वह है नहीं
उसे अर्ध्य देता हूँ
जलावतन |

* हम ठीक हैं
संतोषजनक है
हमारी स्थिति |

* अँधेरा तो है
उजाला संभावित
है भी , नहीं भी |

* किसी प्रकार
हँसकर रोकर
जीना है हमें |

* छद्म जीवन
जीना भी एक कला
कोई माहिर |

* अच्छा , तो अभी
कुछ खौफ बाक़ी है
सरकार का !

* उसके आगे
कोई अमीर नहीं
सभी गरीब |

* लिहाज़ जो है
बड़े काम आता है
छोटे बड़े का |

* पूछते लोग
ऊपरी आमदनी
वर चुनते |

* शून्याकाश में
विचरण करता
ध्यान समृद्ध |

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