[ त्योहारी और दलित प्रश्न ]
इसे आज ही पोस्ट करना ज़रूरी है क्योंकि वह आज ही आया | इस बात को मैं तब से उठा रहा हूँ जब से मैं जाति विभेद के खिलाफ हुआ | अब तो खैर हम अविश्वसनीय हो चुके हैं ,पर आज जब सीवर वाला ईनाम माँगने आया तो फिर ख्याल आया | यह तो सामंती प्रथा है | गाँव में पवनी - प्रजा त्योहारी माँगते थे | निश्चय ही ये सेवक वर्ग के होते हैं - नाई - धोबी - - , अब शहर में जमादार | ऐसा नहीं कि हमें देना बुरा लगता है , हमें तो ख़ुशी होती है | लेकिन जब उनके स्थान पर स्वयं को रखकर देखता हूँ तो मुझे लगता कि यह तो आत्म सम्मान के विरुद्ध है | नहीं पता , इनके नेता सामाजिक व्यवहारों पर इनके लिए कोई निर्देश या आह्वान करते हैं , पर ऐसे ज़मीनी कार्यक्रम सोचे जाने चाहिए जिससे इन कार्यकर्ताओं की मानसिकता भी बदले , नए समय के अनुरूप |
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