रविवार, 30 अक्तूबर 2011

RDHS

* गौर कीजिये कि अन्ना टीम में बहुत बड़े बड़े लोग हैं , इलीट क्लास के । बिल्कुल ब्राह्मण जैसे । और ये सरकार को दबा कुचल कर अपनी बात मनवाना , अपना काम करवाना चाहते हैं । सरकार इस समय बिल्कुल दलितों की अवस्था और स्थिति में हैं । अब आप सोचिये कि हम लोगों का क्या कर्तव्य बनता है ?

* मैं तो यह देख रहा हूँ कि जन लोक पाल बिल पास होने से पहले यदि मेरे द्वारा प्रस्तावित RDHS= Right to die of hunger strike [भूभ हड़ताल द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने या मरने का अधिकार] सम्बन्धी बिल संसद में पारित नहीं हो जाता , तब तक भ्रष्टाचार तो कैसे भी समाप्त नहीं होगा , यह आन्दोलन रुपी सामाजिक भ्रष्टाचार तो समाप्त नहीं होगा ।

* लोग कैसी कैसी गलतफहमियों में जीते हैं ! कि सरकार हो भ्रष्टाचार न हो ! जहाँ चार आदमी हों वहां स्वार्थ न हों , समाज हो और स्वार्थों का टकराव न हो ! तो भ्रष्टाचारियों का तो निश्चय ही एक स्वार्थ हो सकता है , होगा ही । लेकिन आन्दोलन कारियों का भी एक प्रति स्वार्थ अवश्य है , इसे ठीक से समझा जाना चाहिए । यह अकारण नहीं है कि तथाकथित गाँधीवादी संत अन्ना महाशय अपनी टीम का आँख मूँद कर समर्थन कर रहे हैं । #

शर्म , मगर नहीं आती

* बड़ा शोर है कि सरकार अन्ना टीम को परेशान कर रही है । ज़रूर सच्चाई होगी इसमें । सरकार तो वह करेगी ही जो उसका चरित्र है , और लिसके लिए वह बदनाम है । पर आप को क्या हो गया है ? क्या आपको यह पता नहीं था कि सरकार यह सब करेगी ? इसके लिए तो आपको तैयार रहना चाहिए था । कमसे कम नहा ढो कर , धुले कपड़े तो पहन ही लेना चाहिए था ! अब आप एक दिन नौकरी नहीं करेंगे और पैसा खा ले जायेंगे तो यह कैसे उम्मीद मारेंगे कि सरकार चुप रहेगी ? किरण ने स्वयं अपनी कलाकृति स्वीकार की और पैसे वापस करने का प्रस्ताव किया । कविवर महाशय स्कूल पढ़ाने नहीं जाते , इसमें झूठ क्या है ? आप लोग यह क्यों भूल रहे हैं कि शासन - प्रशासन की ऐसी ही अक्षमताओं का नतीजा जनता भुगतती है , जिसे आप ही भ्रष्टाचार कहते हो । सर्विस डेलिवरी को आप ही पुख्ता करना चाहते थे न अन्ना ! तब तो बड़ी जोर शोर से बोल रहे थे , समय बद्ध कम निपटा रहे थे जनता का ! लगा दीजिये अपनी टीम को और देखिये । कहना बहुत अच्छा लगता है , पर करना पड़े तो - - । सामान्य कर्मचारी भी केजरी -बेदी - कुमार - प्रशांत से कम कर्म निष्ठ और ज्यादा बेईमान नहीं हैं , जैसा तुम समझते हो । तुम अपने टीम की वकालत कर रहे हो , यह तुम्हारे नहीं , आन्दोलन के भी नहीं , गाँधी के भी नहीं , हमारे और पूरे देश के लिए शर्म की बात है । शर्मिंदा हैं हम की एक शुभ आन्दोलन का नेता अन्ना एक छुद्र आचरण पर उतारू है । #

शाश्वत भ्रम

* अन्ना टीम एक शाश्वत भ्रमित लोगों का एकजुटन है । कुमार विश्वास कहते है कि यह सौ करोड़ जनता का कोर कमेटी बने । कैसे हो सकता है यह ? क्या उन्हें मालूम नहीं कि ऐसी ही वास्तविक कोरे कमेटी तो सरकार का मंत्रिमंडल है जिसे जनता पूरे देश से चुन कर भेजती - बनाती है , और उसी से वे पंगा लिए हुए हैं । देश की कोर कमेटी में शामिल होना हो तो चुनाव में उतरो । अब तुम इस सुख को बिना चुनाव लड़े भोगना चाहते हो तो और बात है । #
* बड़ी आसानी से समझा जा सकता है की टीम क्या चाहती है । भ्रष्टाचार विरोध उसकी दिली आकांछा नहीं है , यह तो तय है । जैसे इंदिरा गाँधी का गरीबी हटाओ का नारा गरीबी हटाने के लिए नहीं था । सीधा सा खेल राजनीतिक खिलवाड़ का है । यह टीम जन लोकपाल बिल के बहाने अपने को एक समानांतर सरकार के रूप में प्रतिष्टित करना चाहती है । अभी लोकपाल है , फिर वह हर मसले पर दबाव डालकर अपनी बातें ही मनवाने का स्वरुप धरेगी , अपना राज भारतीय राज्य पर चलाएगी , या इसकी कोशिश करेगी । इसलिए भूषण के बयान को अनदेखा नहीं किया जा सकता , क्योंकि इससे हमें इनकी भावी राजनीति की झलक मिलती है । न ही केजरी, बेदी , कुमार विश्वास के ,अनियमितता ही सही , व्यवहारों को यूँ नज़रंदाज़ किया जा सकता है ।

बेदाग़ लोकपाल

* बताया गया है कि अन्ना टीम की जन लोकपाल बिल के अनुसार बेदाग और अच्छी , ईमानदार छवि वालों की कोई कमेटी एक सर्व शक्तिमान लोकपाल की नियुक्ति करेगी । पता नहीं वह कमेटी अन्ना टीम के सदस्यों की तरह ही बेदाग होगी ,या उससे कुछ कम , या उससे कुछ ज्यादा ईमानदार होगी ? यह तो भविष्य ही बताएगा , पर अभी तो भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा है । क्या हम अन्ना टीम जैसी कमेटी , और इन्ही में से किसी को लोकपाल के रूप में सहन कर पाएंगे ? उस लोकपाल के अधीन प्रधान मंत्री क्या कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग बताने का साहस कर पाएगा ? अभी जैसे सी ए जी अपनी सीमा लांघना चाहता है , क्या पता लोकपाल भी यदि सीमा लांघ जाय , और सारी ताक़त उसके पास हो , तो कल्पना करें कैसा अनर्थ हो सकता है ? इसीलिये मैं पी एम को उसके दायरे में रखने वाली बिल का सख्त विरोधी हूँ जिसके लिए केजरीवाल [इसके अलावा अन्ना टीम का कोई अर्थ ही नहीं है] पूरी जिद बनाये हुए है । #
* मैं सरकार में नहीं हूँ , पर समझ में नहीं आया कि सरकार क्या क्या करती है ? या केजरीवाल इस बहाने भी अपना महत्व बढ़ाने के लिए यह आरोप लगा रहा है कि उनके खिलाफ सब सरकार कि साजिश है ? अब कुमार विश्वास ने अन्ना को चिट्ठी लिखकर कोर कमेटी भंग करने को कहा ,तो इसमें सरकार क्या करे ? अख़बार ने किरण के यात्रा बिलों का खुलासा किया तो इसमें सरकार का क्या दोष ? प्रशांत भूषण यदि देश के जन मानस विरोधी वक्तव्य पर पिट गए ती - - । यदि अन्ना टीम के सदस्यों की साख उनके अपने दुष्कर्मों , घमंड पूर्ण और अलोकतांत्रिक , जिद्दी स्वभाव के कारण गिर गयी तो सरकार क्या करे ? आखिर जनता के पास भी आँख - कान हैं , और वह भी कुछ देख -सुन रही है ।
* एक बात मेरी समझ से बाहर हो रही है कि ये खजरी वाले जनता को इतना मूर्ख क्यों समझते है जो इनके तरफ से बयान पर बयान जारी किये जा रहे हैं ? कहते हैं यह सौ करोड़ जनता का आन्दोलन है । एक तो मैं नहीं हूँ , रामदेव आपसे सहमत नहीं हैं , संघ का समर्थन आप माँ नहीं रहे हो , और - - और - । फिर इतना झूठ क्यों बोलते हो ? राजनीति का ग्रहण लग गया न !#

भ्रष्टाचारी टीम

* अन्ना , यह तो मौन नहीं है | मौन तो तब , जब मन भी न बोले |
[इस पर सैन्नी अशेष , mystic rose ज्यादा बेहतर लिख सकते हैं ] #
* भ्रष्टाचार रहे या जाये , बस जन लोकपाल बिल आये |
[अन्ना टीम का आशय]

* जैसे कुमार विश्वास मंच के कवि हैं , वैसे ही अन्ना मंच के क्रांतिकारी हैं |

* यदि अन्ना टीम की कारगुज़ारियाँ भ्रष्टाचार नहीं हैं , तो भाई , भ्रष्टाचार होता क्या है ? भ्रष्टाचार कहते किसे हैं ? यह तो अवसर और स्थिति की बात है | इन्हें यदि मंत्रालय का मौका मिला होता तो क्या भरोसा कि वे वही न करते जो इन्होने अपनी छोटी सी स्थिति में किया ? यदि ईमानदारी इनका आतंरिक मामला नहीं है , तो भ्रष्टाचार की खिलाफत भी इनका कोई मामला नहीं है | आश्चर्य का विषय है कि अन्ना टीम के समर्थक टीम के भ्रष्टाचार को अनदेखी करना चाहते हैं | ऐसे में पता नहीं कैसे अन्ना को भरोसा है कि वे ऐसी भ्रष्ट मानसिकता की भीड़ की नाव पर चढ़कर भ्रष्टाचार विरोधी बिल को वे वैतरणी पार उतार सकते हैं ? लेकिन अब गेंद जनका के पाले में है कि वह अन्ना टीम को अपना उद्धारक माने , या उनके छद्म को पहचान कर उनकी राजनीतिक मंशा की प्रतिपूर्ति में भागीदार न बने | #
* और , व्यक्ति का प्रभाव पड़ता क्यों नहीं है , मुद्दे व्यक्ति के आधार पर ही जोर पकड़ते हैं । जे पी या अन्ना के व्यक्तित्व पर ही लोग इकट्ठा हुए | अब यदि प्रशांत भूषण अपने वक्तव्य से जनता में अविश्वश्नीय हो जायं तो यह कैसे कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोग उनके पीछे जान छिड़कने लगेंगें ? यदि मुद्दा व्यक्तियों से इतना अलग है तो फिर छोड़ दे अन्ना टीम मुद्दे को जनता के ऊपर । पर अब तो इनकी सत्य निष्ठां संदिग्ध है । #

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

क्षीण मन

गीत -
अब वे जैसा भी सोचें , लेकिन मैं तो सोचूंगा ;
उनका कोई बुरा हो , हो भला सदा सोचूंगा
#

गीत -
फिर लगा मन क्षीण होने
जीर्ण होते , शीर्ण होने
फिर लगा - - - =
#

पाठक हूँ मैं

* न विचार की तरफ , न सरकार की तरफ ;
सब काम मुखातिब हैं पुरस्कार की तरफ |
#
* मेरे ऊपर
कहानियाँ लिखोगे
कवितायेँ बनाओगे
लेकिन जियोगे नहीं
तुम मेरा जीवन .
योग्यता ही नहीं तुममे
विषम जीवन जीने की
साहस ही नहीं विषम
परिस्थितियाँ का
सामना करने का |
#
* पाठक था मैं
पाठक ही हूँ
पाठक ही रहूँगा मैं
अपने मूल में ।
#

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

दीवाली

* दिया जल गया तो
किसी ने नहीं देखा
कि दिए का आकार क्या है ,
क्या है उसका रंग रूप ,
वह मिट्टी का बना है या
सोने या चांदी का ,
उसमे घी पड़ा है या तेल ?
लोगों ने बस रोशनी देखी
उन्हें रोशनी चाहिए ,
उन्हें रोशनी से मतलब है |

तानाशाह

* लीबिया के तानाशाह का तो अंत हुआ । अब मुझे यह स्पष्ट लिखना तो नहीं चाहिए पर देश हित को ध्यान में रखकर भारत की जनता को आगाह कर रहा हूँ , जिसे वह शायद अभी आसानी से न पचा पाए , कि अन्ना टीम के नाम से भारत में एक तानाशाह जन्म ले चुका है । #
* अन्ना के अतार्किक बयान समझ में इसलिए आ रहे है , और इसलिए वह क्षमा किये जा सकते हैं क्योंकि जिस मंदिर को उन्होंने अपने आवास बनाया है , सुनने में आया है कि उसमे वास्तु -दोष है । #

तुम्हारे बारे में

* अगर भीड़
मेरी तरफ है
तो वह जनता है ,
लेकिन यदि भीड़
मेरी तरफ है
तो वह भीड़ है ।
#मैंने तुम्हारे लिए
कुछ नहीं किया
मैंने तुम्हारे बारे में
सिर्फ सोचा किया ।
#
* इसलिए नहीं कि
मैं तुमसे इससे अधिक
पाना नहीं चाहता था ,
बल्कि इसलिए कि मैं
तुमसे इससे अधिक
पा नहीं सकता था ।

पत्ता - प्रार्थना

* प्रार्थना एक समय
प्रार्थना थी ,
प्रार्थना , अब
किसी भी प्रभु की
निंदा प्रस्तावना ।
#
* हवा पत्ते को उड़ा ले गयी
यह कहना ठीक नहीं है ,
सच तो यह हुआ
कि हवा ने पहले तो
पत्ते को छुआ
फिर उसे सर्वांग चूमा
फिर जोर से उसे आलिंगन में भींचा
और उसका हाथ पकड़ कर
अपनी ओर खींचा
और अपने साथ ले चली ।
लोग यह क्यों नहीं कहते
कि पत्ता ही हवा को उड़ा ले चला ?
#
[Poem by - Paradise Lost]

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

Jeewan garima

* Jeewan ko garima deni ho to bolo -
' Koi jeewan bekar nahi hota hai .'

* woh usse
Sunder nahi thee ,
Yeh , usse
Sunder nahi hai ;
Isee tulnatmak adhyayan me
Beet gaya jeewan ,
Na sunder milee ,
Na a-sunder .

* Bhagya ko
Nahi mante ?
Aytant
Durbhagya poorna !

शक

* Woh mujhe
Shaque ki nazar se
Dekhta hai
Main use
Shaque ki nazar se
Dekhti hun .
[Poem from - KALA JEEWAN]

* Dekhiye ud ke kahan jaate hain ,
Dil ke tukde jo bikhere hamne !
[Sher from - KALA JEEWAN]

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

किरण बेदी को बचत सम्मान

* हम किरण बेदी को माफ़ करते हैं । हमें उनकी नेक नीयती पर भरोसा है । हम भरोसा करने वाले लोग हैं । बिना भरोसे और विश्वास के शिष्टाचार क्या भ्रष्टाचार भी संभव नहीं होता । यही दिक्कत अन्ना टीम के साथ है कि वे किसी पर भरोसा नहीं करते , केवल अपने को स्वच्छ -ईमानदार और बाकी सबको बेईमान समझते हैं । यहीं वे गच्चा खा जाते हैं । तो अब भुगतें । लेकिन मैं उन्हें क्लीन चिट देता हूँ । ऐसी छोटी छोटी बातें तो हो ही जाती हैं , होती रहती हैं । यदि ऐसे शुभ प्रयासों को भी हम भ्रष्टाचार कह देंगें तो आन्दोलन के लिए हम अन्ना - अरविन्द -बेदी कहाँ से लायेंगे ।
मैं तो प्रस्तावित करता हूँ कि बेदी की इस अभूतपूर्व बचत योजना के लिए बचत निदेशालय द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए , किराये में पाँच फीसद और छूट देनी चाहिए जिससे वे अपनी संस्था के लिए और पैसे बचा सकें और देश की ज्यादा सेवा कर सकें ।
उनके आलोचक मेरी बात का जवाब दें कि यदि उस छूट से उन्हें कोई लाभ ही न हो तो ऐसी छूट से क्या लाभ ? क्या वह दिखाने के लिए होगा , या उन्हें बुलाने वाले आयोजकों के हित के लिए ? तब तो वह एक दिन भी सभा - सेमिनार से फुर्सत न पायें !
फिर भी कुछ पेंच मेरे भी मन में है । एक तो यही कि सख्त न सही , सधारण लोकपाल ही होता तो वह क्या करता ? दूसरे , बिल की नैतिक सच्चाई तो खटाई में पड़ ही गयी । किराये के अलावा जो उन्हें मानदेय प्राप्त हुआ उसी को अपनी संस्था के फंड में डालना था । फिर , जिन संस्थाओं का उन्होंने दोहन किया , वे भी तो कुछ सामाजिक कार्य कर ही रही हैं , उन पर बोझ डालना उचित न था । और अंततः , ठीक है कि वह कोई कोमलांगी महिला नहीं हैं फिर भी इकोनोमी में यात्रा करके शरीर को कष्ट नहीं देना चाहिए था । वह कष्ट हम लोगों की धरोहर है ।
चिंता न करें , यह तो होता ही रहता है । ठेकेदार को तो जो दर के हिसाब से भुगतान होता है वह तो होगा ही , इसीलिये इन्जीनियेर उसमे से कुछ बचत कर लेता है , शुभकार्यों के लिए । अक्सर राज्य और शासन के प्रतिनिधियों के लिए । इसमें गलत क्या है । हम भी जो थोड़ा बहुत हाथ मरते हैं वह भी बच्चों की पढ़ाई के लिए , उनके रहने का ठिकाना बनाने के लिए , पत्नी को खुश रखने के लिए । कौन हम सब अपने लिए करते हैं ?

बेदी की बचत

* अभी याद आया कि मुकदमा जीतने के लिए तमाम मन्त्रों - गंडों - तावीजों का प्रचार बाबाओं का छपता रहता है अख़बारों मेंऐसे में यदि कोई पक्ष सचमुच अयोध्या राम जन्म भूमि / बाबरी मस्जिद का मुकदमा जीतना चाहता है तो उन्हें क्यों नहीं अपनाता ?
* मैं अभी वहाबी आन्दोलन के बारे में टी वी पर समाचार विवरण देख रहा था , कि इस आन्दोलन के लिए खूब पेट्रो डॉलर भारत और दुनिया भर के देशों को भेजे जा रहें हैंतब दिमाग दौड़ा कि जिसके पीछे बाबा रामदेव पड़े हैं , भारत का पैसा जो विदेशों में है , उससे ज्यादा खतरनाक तो वह पैसा है जो विदेशों से देश में रहा है
* ' बचत ' करो
मंदिर में लगाओ
' बेदी ' कहाओ ,
भ्रष्ट बनो
ईमानदार रहो
' बचत ' करो । [ डबल हाइकु ]
* अन्ना जी मौनव्रत पर हैं , बोल नहीं सकतेऐसे में वह एक पंक्ति का बयान फोटोकापी करा कर रख लें और रोज़ सुबह -शाम बँटवा दिया करें कि - यह सब विरोधियों की साजिश हैक्योंकि यही बोलने की स्थिति उनकी रोज़ की हो गयी हैपहले केजरीवाल , फिर प्रशांत भूषण , फिर किरण बेदी , फिर कुमार विश्वास , फिर केजरीवाल - - -।

तो कहाँ जाते

* कर न लेते तेरे वादे पर यकीं,
तो कहाँ जाते , कहाँ होते मकीं ?

* भ्रष्टाचार के अनेक रूप ,
कोई हड्डी , कोई सूप |

* जब टी वी पर विज्ञापन आता है , उतनी ही देर घर का कुछ काम करने का मौका मिलता है |

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

गरीब क्यों

* मैं बेईमान हूँ ,
फिर भी
इतना गरीब क्यों ?
तुम ईमानदार हो
तिस पर भी
इतने धनी कैसे ?

haiku 2

* आदमी सब
कितने मजबूर
कोई क्या जाने |

* मत गहिये
धनिकों की कतार
उनमे राह |

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

हर तरफ राक्षस

* हर तरफ राक्षस हैं
राक्षसों से लड़ाईयाँ हैं
बुराई पर
सच्चाई की जीत है
फिर ,
हर तरफ राक्षस हैं |
###

अन्ना की टीम

* सत्तर के दशक में जिस प्रकार श्रीमती इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था , उसी प्रकार जब अन्ना ने एक असंभव काम , भ्रष्टाचार मिटाओ , का नारा दिया , और वह भी केवल उनके जन लोकपाल बिल के माध्यम से , तभी मेरे कान खड़े हो गए थे | ज़रूर दाल में काला है | लेकिन भारतीय जनता का क्या , वह तो लोलीपोप पर मचल जाती है , बल्कि आश्वासनों पर जिंदा रहने की आदी हो गयी है | वह छुपे एजेंडों को नहीं समझ पाती | अब अन्ना टीम की चाभी कहाँ है , कौन है , दिखने लगा है | उनकी नीयत शुरू से राजनीतिक थी ,जिसे हमने उनकी जिद , और अब चुनाव प्रचार में देखा , वरना वे असंभव काम हाथ में न उठाते | अपनी असफलता का ठीकरा किसी अन्य पर थोपने की पूरी गुंजाईश इससे बनी रहती है , और चलती रहती है इनकी राजनीति | अन्ना कुछ भी कहें , प्रशांत भूषण उनके ही टीम के मेम्बर हैं | हिसार उपचुनाव का श्रेय उठाने की ललक पूरी तरह राजनीतिक है | अब कुछ मैग्सेसे अवार्डी टीम से हट रहे हैं , उन्हें बुद्धि आ रही है | पुरस्कृत लोग सोशल एक्टिविस्ट होते हैं , इनके पास दिमाग ज़रा कम होता है | अब बाहर हो भी जायं तो क्या संतोष ,प्रशांत ,राजेन्द्र , राजगोपाल | अरविन्द ने उनसे अपनी नीव की ज़मीन पुख्ता करने के लिए इस्तेमाल तो कर ही लिया | हम अपनी पीठ ठोंक सकते हैं कि हम अरविन्द के झांसे में नहीं आये } अभी भी हम आगाह करेंगे मीडिया को कि वह आदरणीय अन्ना को ही महत्त्व दे और अरविन्द को दरकिनार करे वर्ना यह विदेशी मग्सेसे पुरस्कृत छोकड़ा देश को विदेशी सपनों के जाल में फंसा कर उसका तहस नहस कर डालेगा | अन्ना से कुछ नहीं कहना , उन्हें भी समझ में आ रही हैं , और आ जायंगी और अनंत मौन धारण करने में ही देश की भलाई समझेंगे | ##

जग - न - मिथ्या

* मैं संत तो हूँ , पर मैं किसी को भी यह सीख न दूंगा कि यह जगत मिथ्या है , जीवन क्षण भंगुर है , शरीर मिट्टी है और धन - संपत्ति का कोई महत्व नहीं है | #
= अतिसामान्य [ Extra ordinary]

मकडी

* मकड़ी तो इंतज़ार
कर ही रही है
तुम जाओ और वह
तुम्हे जाल में फांसे |
##

हाइकु == 2

* जो चाहोगे तो
सब मिल जायेगा
चाहो ही नहीं |
#
* सब सुंदर
सब ही सुंदर है
देखो तो सही !
#

हाइकु = 6

उड़ान [ वैचारिक संस्था ]
* प्यास भर है
कामना कोई नहीं
झांक कर देखो |
[हाइकु ]
* भ्रष्टाचार है
क्योंकि भ्रष्टाचार की
ज़रूरत है |
[हाइकु ]
* जो जीत गया
वह तो हंसेगा ही
तुम भी हंसो |
[हाइकु ]
* नहीं बदली
कुछ नहीं बदली
कोई भी स्थिति |
* असली रूप
बहुत घिनौना है
नर - नारी का |
[हाइकु ]
* इतने जन
हम नहीं रहे कि
जनसभा हों |
[हाइकु ]

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

क्या होगा लिखने से

* सिर्फ हंगामा खड़ा करना
आपका मकसद भले न हो , पर
हंगामा तो खड़ा , आप करते ही हो ,
हमारा तो मकसद , कोई हंगामा
खड़ा नहीं करना है |

* बोलता तो हूँ
आवाज़ नहीं निकलती |

* क्या हो जायगा
मेरे लिख देने से
कुछ भी नहीं |
[ हाइकु ]

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

कुदरत

* कुदरत ने बनाया है तो
गर्व करने के लिए नहीं ,
विनीत होने के लिए ।

दर्शको !

* वैसे दर्शको !
वह इतनी
सुंदर होगी नहीं
जितनी वह
फोटो में दिखती है |

* तिस पर भी
कहाँ जीत पाया मैं
अहंकार को !
[ हाइकु ]

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

कश्मीर

मुसलमानों का जनमत संग्रह
* प्रशांत भूषण पर हमले से एक संकेत तो मिलता ही है कि अभी तो जनमत संग्रह [ Plebiscite] की बात है यदि कहीं कश्मीर इन लोगों की मूर्खता से सचमुच भारत से निकल गया तब हिंदुस्तान के मुसलमानों की क्या दशा होगी , और साथ ही , इन लोगों की भी ? राजनीति और देश का मामला इतना सीधा नहीं होता जैसा ये बयान कर देते हैं कि जो , जो कुछ मांग रहा है उसे वह दे दो | क्यों दे दें ? कौन हैं लोग जो अलगाव चाहते हैं ? उनके अलग होने से हमें , हमारे देश को क्या मिलेगा ? कहीं पड़ोस से स्थायी अशांति तो नहीं ? बंगला देश बनने से हमें क्या मिला ? उसे भारत में ही रखना था पूरी आज़ादी देते हुए | भले मुजीब या अब हसीना तब पूरे हिन्दुस्तान की प्रधान मंत्री होतीं | राष्ट्र का काम काज लुंज पुंज होने से नहीं चलता | डिमोक्रेसी में थोड़ा तानाशाही का रंग होता है तभी डेमोक्रेसी भी चलती है , अन्यथा वह अराजकता की स्थिति हो जाती है [जैसा अन्ना हजारे के आन्दोलन में किंचित निहित हुआ] | चाणक्य का उदाहरण दूंगा तो बुरा कहलाऊंगा , इसलिए चर्चिल को ही ले लीजिये | उसने अपने शासन काल में हिन्दुस्तान को आज़ाद नहीं ही होने दिया , क्योंकि वह इसे उचित नहीं समझता था | यह तो तब ,जब कि उसकी सीमायें हमसे नहीं मिलती थीं | वह एक राजनयिक [diplomat] का राजनय [diplomacy] था | इसकी हमारे नेताओं में बड़ी कमी है | ये ढीले पड़ते हैं वोट की दुहाई देकर , जब कि इन्हें वोट , जन समर्थन इनकी इसी ढिलाई के कारण नहीं मिलता , और इनकी हालत दो कौड़ी की हो गयी है | एटली ने भी , उग्र राष्ट्रवादी क्षमा करेंगे , भारत को आज़ादी कोई हिंसक - अहिंसक आंदोलनों , सुभाष -गाँधी- भगत सिंह से भयभीत होकर नहीं दी | उन्होंने भारत को आज़ादी तब दी जब उनका हित यहाँ नहीं रह गया था , और उनके लिए हिंदुस्तान पर राज्य करना खर्चीला लगने लगा था | तिस पर भी उन्होंने भारत को आज़ाद अपनी शर्तों पर किया | एक पाकिस्तान तो बनवा ही दिया | इसे आप बांटो और राज करो [divide and rule] कहकर टालना चाहें तो टाल दें , पर इसी को राजनीति कहते हैं | तो फिर कोई , किसी भी देश का राजनीति का साधारण सा छात्र बता दे कि हम अपने बगल में एक दुश्मन इस्लामी राज्य के रूप में एक स्थायी आस्तीन के सांप , कश्मीर को क्यों पालना चाहेंगे ? अब हमारे देश की ही सिविल सोसायटी इसके लिए भारत राज्य को विवश कर दे तो बात और है , पर ख़ुशी ख़ुशी तो हम अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेंगे | अभी पकिस्तान क्या कम सर दर्द है | ये बुद्धिजीवी , आखिर कोई सबक क्यों नहीं लेते | ये पकिस्तान से भी प्रेम करने को कहते हैं , जैसे अभी कश्मीर के लिए भूषण जी कह गए | पर कैसे रहे प्रेम के साथ , उसके साथ , जो निरंतर हर मुद्दे पर हमसे दुश्मनी रखता हो ? प्रेम से रहना होता तो वे अलग ही क्यों हुए होते ? वहां तो तानाशाही जैसा इस्लामी राज्य है , यह भूषणों - पद्म विभूषणों को समझना चाहिए | ऐसे राज्य से विश्व को विमुक्त करना भी उनके कर्तव्य की सीमा में है | और इधर हम घोषित रूप से सेकुलर , समाजवादी , प्रजातान्त्रिक देश हैं | तो जिसे हिंदुस्तान जैसे खुले मिजाज़ के देश में रहने में परेशानी हो , उसे लोकतंत्र क्या मनुष्यता का दुश्मन समझने में हमें कोई देर नहीं करनी चाहिए |
तो कहना यह था कि कश्मीर जाय , और अभी तो यह वह नामक सेना के तीन तेरह गुंडों ने मारपीट की , यदि कहीं पूरा देश गुंडई पर उतारू हो जायगा तो उसकी ज़िम्मेदारी किस पर होगी ? अतः बयान भी , हम यह तो नहीं कहेंगे कि उसे भी sedation , राष्ट्र द्रोह के दायरे में लाया जाय पर , तनिक सजीदगी से दिए जायं | मुसलमानों के प्रति एक बड़ी ज़िम्मेदारी राष्ट्र राज्य और इसके बुद्धिजीवियों पर है | यह समझते हुए कि उनकी जिंदगियां खतरे में पड़ जायंगी , पड़ सकती हैं , कश्मीर को और फिर महादेश की भलाई और तरक्की के लिए पाकिस्तान को भी वापस हिंदुस्तान में लाने की राजनयिक कोशिशें की जानी चाहिए | ये सीमायें स्थायी नहीं हैं , बनावटी हैं , खासकर हिंदुस्तान - पाकिस्तान की | अभी ६४ साल पहले जब यह लकीर नहीं थी तो क्या हम अमन चैन से नहीं थे ? या फिर किसी विदेशी शासन की ज़रूरत होगी इन्हें एक करने के लिए ? क्या हम में यह स्वतंत्र माद्दा नहीं बन सकती ? चलिए नहीं सही , पर जो बचा है उसमे विष के बीज तो न बोइये |
अभी मुसलमानों के तमाम संगठन जो बाबरी मस्जिद , पर्सनल ला , मदरसे और डेनमार्क के कार्टूनिस्ट के सर के लिए लड़ रहे हैं , वे ज़रा इधर भी ध्यान दें | कश्मीर से उनका भारत में भविष्य तय होना होगा | बल्कि यह समस्या सुलझाने के लिए क्यों न उन्ही से कह दिया जाय , जिससे यह स्वयं अपना भविष्य चुन लें ? जनमत संग्रह केवल कश्मीर के ही क्यों , पूरे भारत के मुसलमानों का क्यों न करा लिया जाय ? लेकिन तब , याद रहे , यदि कश्मीर को भारत से वे निकाल लेगे तो फिर शेष भारत में एक भी मुसलमान नहीं रहेगा | १९४७ की गलती बार बार भारत दुहराए यह ज़रूरी तो नहीं ? अब गाँधी सरीखा नेता भी नहीं कोई ! उस दशा में यदि जिन्ना उधर होंगे , तो जिन्ना ही इधर भी होंगे | ##

पुत्रवत

* [ कहानी ] " पुत्रवत "
बस की तीन सीटर पर हम दो आराम से बैठे थे कि एक बूढ़ा आदमी आकर तीसरी सीट पर बैठ गया और हमारे आराम में बाधा पड़ी | यह मुझे अच्छा नहीं लगा , और मैंने बूढ़े को परेशान करने की सोच ली | मैं बार बार सोने का बहाना करके उसके ऊपर गिरने लगा और उसकी ओर खिसक कर उसके लिए जगह कम करने लगा , जिससे वह तंग आकर कहीं पीछे जाकर बैठे |
एक जगह बस रुकी और ड्राइवर ने बत्ती जलाई , तो पीछे के एक व्यक्ति ने बूढ़े से कहा कि वह क्यों नहीं मुझे जगा कर ठीक से बैठने के लिए कहता ? इसे मैंने भी सुना , क्योंकि मैं तो जग ही रहा था | बस यह था कि रात की सफ़र को मैं थोड़ा आराम से बिताने के लिए बूढ़े को भागना चाहता था | लेकिन बूढ़े ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मैं चकरा गया | उसने कहा -" भाई यह मेरे पोते की उम्र का है , यह आराम से बैठे इसी में मुझे आराम है , हम तो जिंदगी भर तकलीफें सहते रहे हैं , हमारे लिए इतना क्या है | "
अब तो जब गाडी चली तो मैं उससे बिल्कुल दूर खिसक उसके लिए पूरी जगह कर दी | अच्छा लगा जब मेरे बाबा का सर थोड़ी देर में मेरे कंधे से टिक गया, और वह सो गए | ##























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इतिहास

* मेरा यह विचार बना है कि नया जैसा कुछ होता नहीं है । कुछ भी नवीन घटित नहीं होता । सब पुराने की पुनरावृत्ति होते है | मैं तो सरेआम कहता हूँ कि मैं जो कवितायेँ लिखता हूँ , वे पहले लिखी जा चुकी हैं और कई कई बार लिखी जा चुकी हैं । मैं भी दुहराता हूँ , जैसे इतिहास अपने को दुहराता है , भले बिल्कुल उसी रूप में नहीं । इसी को भले आप अपनी नवीनता का भ्रम बना लें । पर यह मूलतः हमारा आपका दोष ही होगा । इसलिए मैं समाज बनाने का स्वप्न नहीं ढोता । न मैं नया ईश्वर बनाना चाहता हूँ , न कोई नया धर्म । जब कि ये सब सड़ गल कर अनुपयोगी , निरर्थक हो चुके हैं । यह भी तो हो सकता है कि नया और भी अनर्थकारी हो ? तिस पर भी देखें , शायद यही कारण है कि तमाम सदाशयता पूर्ण प्रयासों के बावजूद मानववाद नामक घर्म वजूद में नहीं आ सका । हम कुछ भी बनाएँगे वह पुराने का ही प्रतिरूप हो जायगा । जनता यूँ भी नवीनता से बहुत भय खाती है । इसीलिये दुनिया के सारे मजदूर एक नहीं हो सके , न दुनिया में साम्यवाद स्थापित हो सका । जहाँ कुछ दिन के लिए आया ,वहां से वह कुछ दिन बाद विदा भी हो गया । मैं आश्वस्त हूँ कि मैं कुछ भी नया नहीं कर रहा हूँ , न कुछ नया करने का विचार रखता हूँ । बस पुराने को दुहराता जाता हूँ । वह मेरा कर्तव्य है । मैं मान चुका हूँ कि जितना कुछ बन चुका है वह पर्याप्त है मनुष्य को बिगाड़ने के लिए , वे ही पर्याप्त हैं फिर से मनुष्य को बनाने के लिए । ##

बनियान

[पत्रकारिता के आयाम ]
जीरो नंबर के वस्त्रों से
शुरू हुआ जीवन ,
पंचानबे सेंटीमीटर के
बनियान तक चला |
अब पैंसठ की उम्र में
नब्बे सेंटीमीटर की
बनयान भी
ढीली लगने लगी |
##
[गीत ]
मल्लाहों ने घाट उतारा
मौत के घाट उतारा , मल्लाहों ने |

हे सीलिंग के पंखो !

* [कविता ]
हे सीलिंग के पंखो !
तुम्हारा काम
ज़िन्दगी को हवा देना था
या अच्छी भली जिंदगियों की
हवा निकाल देना ?
कोई गणना है तुम्हारे पास
कितने युवक - युवतियों को
लटका कर मारा है तुमने ?
कितने मासूमों ,
बेबस - मजलूमों की
जानें ली हैं तुमने ?
##























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राशिफल

* मेरे घुटने में दर्द के कारण मैं जिंदगी की दौड़ में पीछे रह गया | यह बहाना है मेरे पास मेरी असफलता का |
* राशि फल प्रत्येक पत्र - पत्रिका में छपता है । उन्हें मज़े से पढ़ने का एक तरीका मैंने विकसित किया है | चूँकि उन पर विश्वास नहीं है , इसलिए मैं ऐसा करता हूँ कि मैं मान लेता हूँ मानो मेरी जन्म तिथि वही है जिस दिन मैं उसे पढ़ रहा हूँ | अतः आज के दिन से सम्बंधित राशि का फल अपना भविष्य फल मान लेता हूँ | फिर मैं एक तरीके से और उसे पढ़ता हूँ । बारह राशियाँ हैं तो बारह महीने हैं । जनवरी में प्रथम क्रम का राशिफल , और दिसंबर में अंतिम क्रम का राशिफल मैं अपने लिए धारण कर लेता हूँ । अब दोनों प्रकार के नतीजों से जो मुझे अच्छा लगता है उसका पालन करता हूँ ।

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

राजा रानी का देश

* गरीबी में इंसानियत बनी रहती है |जैसे बाढ़ में एक ही पेंड पर सांप और मनुष्य रह लेते हैं । दिमाग तो ख़राब करता है पैसा | पहले घर में फिर मन में घुसते ही |
* अल्लाह मेहरबान की महिमा तो देखिये कि आधुनिकता के चरम पर अब लड़कियों में हिजाब / परदे का भाव आ रहा है | उसका लाभ उन्हें अब समझ में आ रहा है |
* मैं तुम्हारा साहित्य वाहित्य कुछ नहीं जानता | तुम इन [गरीबों ] के बीच इन्ही की तरह रहो , तो मैं मान लूँगा तुम साहित्यकार हो | मैं तुम्हारे मोटे उपन्यास , कविता संग्रह कुछ नहीं जानता |
* भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई का एक यह भी तरीका है कि ज्ञात भ्रष्टाचारी , संबंधी , मित्र , पड़ोसी का भरसक तिरस्कार , हर संभव बहिष्कार किया जाय |
* मैं किसी को जल्दी 'बेवकूफ ' नहीं कहता । मुझे 'मूर्ख ' शब्द ज्यादा अच्छा लगता है ।
* राजा रानी का देश
यह देश राजा रानी पसंद करता है | वह भगवान को भी राजा के रूप में देखना , पूजना चाहता है | पुरुषोत्तम राम राजा थे , श्री कृष्ण राज घराने से थे , रानी विक्टोरिया भी राज करके चली गयीं , रियासतों के राजा टोडरमल स्वीकार्य थे , भगवान रजनीश राजसी ठाट से रहते थे , गौतम बुद्ध भी राजकुमार सिद्धार्थ थे , इत्यादि | सोनिया गाँधी की सफलता का राज़ भी यही भारतीय मानसिकता है | मायावती के प्रशंसक उनके जेवर - चप्पल और श्रृंगार पर फ़िज़ूल खर्ची को बिल्कुल गलत नहीं मानते | राजा शाही , रानी शहंशाही से इस मुल्क को कोई एतराज़ नहीं है | राजा कि ऐयाशी भी उसे स्वाभाविक रूप से ग्राह्य है | अमेठी के राजा संजय सिंह , या राजा भैया के आन - बान शान पर इतने थपेड़ों के बाद भी क्या कोई फर्क पड़ा ? नहीं , पड़ेगा ही नहीं | हिन्दुस्तान राजा रानी पसंद देश है | इसे यह विदेशी लोकतंत्र सेकुलरवाद की अवधारणा अटपटी लगती है | इसीलिये वह चुनाओं में भी राजाओं , पुराने या नव धनाढ्यों और बलवानों को ही वोट देता देता है | वह स्वयं भले दरिद्र रहे पर अपने राजा को तो वह भगवान स्वरुप ही देखना चाहता है | #

बुद्धि बिकी होती है

* हँसी आती है
बचपने के ज्ञान पर ,
हम समझते थे कि
एक बुद्धिमानी होती है
दूसरी मूर्खता होती है
शुद्ध रूप से |
लेकिन नहीं ,
अब ज्ञात हुआ है कि
एक बुद्धि होती है
और वह बिकी होती है ,
जो बिकी नहीं होती
वह दुर्बुद्धि होती है |
#
* तह में पैठ नहीं है जिनकी ,
वह कविता क्या खाक करेंगे ? #

* कविता को
जीना होता है
जीने से
कविता होती है | #

* माँ बताती है
माँ का हाथ
लथ हो जाता था
मुझे लिए -लिए काम करते
माँ बताती है , तब
वह मुझे बाप की गोद में
डाल देती थी
और मैं सो जाती थी
अम्मा बताती है |
अब मन होता है -
बप्पा होते तो मैं
आज भी उनकी गोद में
सर डाल देती |
सोचकर आँखों में
आंसू ही आते हैं |#

सारा जहाँ हमारा

* आंध्रा में क्या रखा है ? पूरे प्रदेश का नाम बदलकर तेलंगाना क्यों नहीं कर देते ?
* अगर हिसार उपचुनाव में कही कांग्रेस जीत गयी तो क्या होगा अन्ना जी ? यही होती हैं विसंगतियां राजनीति की !
* देखिये सर्वजन प्रयोग से मायावती को कैसा नुकसान हुवा | सवर्ण विधायकों की करतूतों से सरकार का चेहरा काला हो गया , और उन्हें पार्टी से निकाला गया | इसीलिये मैं कहता हूँ कि विधायक , मंत्री सिर्फ दलित बनें | वे अपने किये -कराये के ज़िम्मेदार होंगे | सवर्ण केवल उन्हें वोट देकर सत्ता में बिठाएं |

* खबर है कि बाबा का अपने ११०० करोड़ से काम नहीं चल रहा है , और अब उनकी नज़र विदेशों में जमा अकूत धन पर है | लेकिन उससे क्या होगा , यह समझ में नहीं आया | क्योंकि वह तो उनका है , उनका ही होगा और रहेगा जिनके नाम वह जमा है | सरकार ज्यादा से ज्यादा उस पर टैक्स ले लेगी , तो वह तो सरकार का हो जायगा | और जब सरकार इतनी भ्रष्ट है ही , तो वह क्या सरकारी भ्रष्टाचारियों की जब में नहीं चली जायगी ? इससे तो अच्छा है कि वह सुरक्षित वहीँ पड़ी रहे | सरकारी खजाने में न आने पाए | अलबत्ता यह हो सकता है कि इस मुहिम से वे जमाकर्ता स्वाभिमान ट्रस्ट में बाबा को प्रसन्न करने के लिए और पैसे जमा करें दान के रूप में | ऐसा तो शायद हो ही रहा है | नहीं तो क्या जो बाबा के पास ११०० करोड़ रूपये हैं वह बीस रूपये प्रतिदिन की आमदनी वाली सत्तर प्रतिशत भारतीय जनता का हो सकता है ? कदापि नहीं | बाबा रामदेव एक काम और बहुत अच्छा कर रहे हैं | वह धनिकों से योग और पतंजलि दवाओं द्वारा स्वास्थ्य लाभ के नाम पर इतना पैसा वसूल ले रहे हैं कि अब धैनकों को अपना धन विदेशों में जमा करने कि सोचने की नाबत ही नहीं आयेगी |
* जब कोई कहता है -"सारा जहाँ हमारा ", तब हम जान जाते हैं कि इसकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं है |इसके विपरीत जब बाबा रामदेव [IBN-7 पर ] कहते हैं कि उनके पास एक रुपया भी नहीं है तो विश्वास होने लगता है कि इसके पास ज़रूर करोड़ों रूपये हैं , वह किसी के नाम से हो , इससे क्या फर्क पड़ता है ? इतने बड़े झूठ पर प्रभु चावला [ साक्षात्कर्ता ] को पूछना चाहिए था कि फिर तुम्हारा खर्चा कैसे चलता है ? हवाई जहाज से उड़ानें क्या योग विद्या से भरते हो ? और भाई , गुरु जी , स्वामि जी महाराज ! नहीं तो फिर यह लो एक रुपया हमसे ले लो और फिर इधर -उधर यह न गया करो कि तुम इतने गरीब हो | इससे भारत की छवि विदेशों में बिगडती है , जहाँ तुमने उसे खूब जमा कर रखा है | हाँ ! यह बात भी खूब निकली | विदेशों के इतने विरोधी होकर वे विदेशो में क्या जोड़ रहे हैं ? योग का जोड़ , या धन संपत्ति का योग , या दोनों हाथ लड्डू ?

* आप अन्ना जी के समर्थन में हों या उनके विरोध में , यह आपकी वैचारिक स्वतंत्रता है | आप के इस अधिकार के लिए वाल्तेयर , रूसो , हम और हमारा वोट बैंक के सभी साथी आपके साथ होंगे | लेकिन अपना पक्ष इस जानकारी के साथ तय कीजिये कि अन्ना टीम भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं , अपने जन लोकपाल बिल के लिए संघर्ष कार रहे हैं , जिससे उनका , और केवल उनका [अन्य सिविल जन या समाज नहीं , इसीलिये उन्होंने हम किसी से कोई राय नहीं ली ] रूतबा बुलंद हो सके | या हो सकता है उनकी राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस के विरुद्ध हो , जैसा कि उ .प्र. काग्रेस अध्यक्ष रीता बी जोशी ने कहा है कि अन्ना जी यह स्पष्ट करें कि उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है या कांग्रेस के खिलाफ ? किसी भी स्थिति में उनका यह कहना कि उन्हें राजनीति से कुछ लेने देना नहीं है उनका छद्म [ shrewdness] है | ऐसा तो हम साधारण जन लेखक -कवि -पत्रकार भी , जो कोई आन्दोलन नहीं करते , केवल , लिखते -विचार व्यक्त करते हैं , नहीं कहते | हम इतने बड़े लोग भी नहीं हैं जो इतने बड़े झूठ को बोल पायें और उस पर मुलम्मा लगा सकें |

* बड़े दुःख के साथ टिप्पणी करनी पड़ती है , यद्यपि आस्थावान पाठक जन बुरा मान जाते हैं | कि एक गाँधी जी थे जिनके पीछे नेहरु - पटेल तमाम लोग चलते थे | एक नए गाँधी जी हैं जिनके आगे कुछ खंजरी बजाने वाले लोग हैं , और वह उनके पीछे चलते हैं | दिखने के लिए ज़रूर उनका पोस्टर रहता है , और वे खुद को नेता प्रदर्शित करने का प्रयास भी करते है , लेकिन दरअसल स्थिति यही है |





















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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

हाइकु

[हाइकु कवितायेँ ]
* लोकतंत्र तो
उपाय भी है , पर
समस्या भी है |

* अब हम तो
छपने की दृष्टि से
लिख नहीं सकते ,
छापें न छापें
लिखेंगे अपना ही |

* पाप - पुण्य की
नई बनानी होंगी
परिभाषाएं |

* सब विशिष्ट
अपने -अपने में
सभी ख़ास हैं |

* दवा खा लेता
इतनी भी ताक़त
कहाँ बची थी !

* कौन रोयेगा
मेरे मरने पर
यही तलाश !

* भाग्य तो नहीं
लाटरी मानते हैं
लेकिन हम |
#################

ईमानदारी के उदाहरण नहीं

* भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि आज पीढ़ी के पास ईमानदारी के कोई उदाहरण नहीं हैं , और ऐतिहासिक - पौराणिक आदर्शों में सर खपाने की किसी को फुर्सत नहीं है | लाल बहादुर शास्त्री के बाद कोई राष्ट्रीय चरित्र सामने नहीं आया | अन्ना - रामदेव जैसे लोग मंच पर आते ही संदेह के घेरे में आ जाते हैं | पहले के दिनों में परिवार का कोई सदस्य , कोई नातेदार , कोई पडोसी , कोई अफसर , मातहत , साथी दोस्त , या किसी साहित्यिक कहानी का कोई पात्र ही मिल जाता था जिसका हवाला देकर हम अपनी ईमानदारी पर दृढ रह सकते थे | अब सब गायब है | मैं कोई प्राचीनता का पुजारी नहीं , न आज का रोना रोने वाला , पर सच यही है कि आज ज़रा सा ईमानदारी का बीड़ा उठाओ तो लोग खिल्ली उड़ाते है , दकियानूस बताते हैं । बोलते हैं किस दुनिया में रहते हो यार , आधुनिक बनो , पैसे कमाओ , साईकिल हटा कर बाइक लाओ | संतोष से रहने वाले को चैन से रहना नहीं मिलता | पत्नी और औलादें साथ नहीं देती , तिरस्कार करते हैं | अन्ना आज बहुत बड़े नेता बनते हैं , पर यदि वे अपने समर्थक युवाओं से यह शपथ खिलाते कि वे जीवन में अपनी मेहनत की कमाई के अतिरिक्त एक पैसे का भी भ्रष्टाचार नहीं करेंगे , और अभी तो वे अपने पिता / अभिभावक को ऐसा नहीं करने देंगे , न उनका गलत पैसा इस्तेमाल करेंगे | तो देखते राम लीला मैदान कैसा खाली हो जाता ! इसीलिये उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया , और भीड़ निश्चिन्त बनी रही | इनसे कुछ होने जाने वाला नहीं है | नाटक से पात्रों के चरित्र नहीं बदल जाते , और नाटक से आगे कोई जाने को तैयार नहीं है | तो फिर भ्रष्टाचार भी जाने वाला नहीं है | तिस पर भी ईमानदारी इक्का -दुक्का संकल्पों से जिंदा तो रहेगी | वह मरने वाली नहीं है जब तक एक भी व्यक्ति संसार में बचा है | अब देखना यह है कि वह " इक्का -दुक्का आदमी " बनने के लिए कितने लोग तैयार हैं | मैं उनका स्वागत , उनके आगे नमन करना चाहता हूँ | #

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

दो कविता

* समझदारी की बात
करना एक बात है ,
समझदारी से
बात करना दूसरी बात ,
एक तौर है तो
दूसरा तरीका ,
मेरे ख्याल से
तरीका
ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
#

जब कोई तुमसे कहे -
मैं तुमसे प्यार - - - -
तो उसे दो झापड़ लगाओ
दोनों गालों पर ,
और जब तुम्हारी
इच्छा हो ऐसा कुछ
किसी से कहने की
तो अपने गालों पर
दो - दो चपत लगाना ,
कभी मत पड़ना
इस शरीर के धोखे में ।
##

अशआर

* मेरी नज़र जब से फकीर पर आई ,
जिंदगी तब जाकर लकीर पर आई ।
#

* मैंने उनको कभी देखा नहीं है ,
मगर उनसा कोई देखा नहीं है ।

मोहब्बत खुद ही एक धोखा है ,
मोहब्बत में कोई धोखा नहीं है ।
#

* न मैं उसे दिखाई दूँ
न वह मुझे दिखाई दे ,
तो बात कुछ बने सही
तो काम कुछ दिखाई दे ।
##

ख़याल - बंदिश

सब कल्पना :-
ईदगाह - मैं अपने घर का नाम रखना चाहता था । प्रेमचंद की इस कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया है , और मेरी हरसंभव यह कोशिश बन गयी है कि कैसे मैं भारत मन के लिए एक चिंता लाऊं ? मुझे खिलौने , मिठाईयां नहीं चाहिए ।
बड़े भाई साहब _ यह मेरा नाम होना चाहिए । प्रेमचंद की कहानी का यह पात्र मेरे बिल्कुल करीब है । मैं खुद तो किसी योग्य हूँ नहीं , कुछ कर नहीं पाता , पर दूसरों को नसीहतें देता , डांटता - डपटता रहता हूँ - तुम यह नहीं करते , तुम लोग यह नहीं करते ।

राजनीतिक मनुष्य - अपने लिए यह भी नाम था । नागरिक मूलतः यही होता है , होना चाहिए ।

संस्था के लिए रोज़ कई नाम आते हैं । अभी है - स्वर्गिक आनंद , जिसमे मैं हमेशा रहता हूँ -Fools' Paradise।
pr अभी अभी " ख्याल - बंदिश " आया । मेरा यही शगल है -Thoughts and Poetry ।

फेस बुक पर ग्रुप के रूप में मंटो की कहानी के आधार पर -'खोल दो ' , यानी मन की गांठें । जैसे 'सिमसिम ' खुल जा । दिल - दिमाग की "हेरा फेरी "भी एक है ।
और यह नाम तो हमेशा है -" मनुष्य की डायरी " , DIARY - NOTEBOOK । साहित्य की इस विधा को आगे बढ़ाने की बड़ी आवश्यकता है ।
अपने सभी मित्रों से यह बताना भी था कि अपनी रचनाओं का सर्जक मैं स्वयं को नहीं मानता । इसलिए ये स्वत्वाधिकार मुक्त हैं । इसकी घोषणा मैंने अपने ब्लॉग की डिजाईन में कर दी है । इसका प्रकाशन या अन्य उपयोग कोई किसी भी नाम से कर सकता है । बात जानी ज़रूरी है , नाम नहीं । इस हेतु मेरा बैनर बनता है =
COPYRIGHT FREE " |

पानी क गिलास [कविता ]

* तुमने मुझे
पानी का गिलास पकडाया
मैंने सावधानी से
तुम्हारी उँगलियाँ बचाते हुए
गिलास ले लिया ,
बस , इतनी बात से
तुम मुझसे नाराज़ हो गयी ! #
###
[प्रेरित कविता ]

शेर

शेर :-
पैदा होने के पहले ही इतना पाप किया ,
जीवन भर मंदिर की दौड़ लगते बीता !

डा जाकिर नायक

डा जाकिर नायक [इस्लाम गुण गायक मौलाना ] का बेटा उनके चैनेल पर तक़रीर कर रहा था कि ईश्वर का भला कोई बेटा कैसे हो सकता है ? क्या ईश्वर बच्चे पैदा करता है ? वगैरह । ज़ाहिर है वह ईसाई धर्म के खिलाफ blasphemy कर रहा था , वह कृत्य जो कि यदि कोई दूसरा इस्लाम के खिलाफ कर दे तो उसका पता नहीं क्या हो जाय । बहरहाल जाकिर जनाब उसे बड़े फख्र से सुन रहे थे । लेकिन चिंता के बजाय उस समय मुझे मसखरी सूझी और एक शुभ विचार मेरे मन में आया । अच्छा है कि बालक में धार्मिक मान्यताओं पर तर्क करने की माद्दा तो पैदा हुई । फिर वह अवसर आने पर शायद अपने इस्लाम मज़हब पर भी नज़र उठा सकेगा । यद्यपि यह मेरी खाम ख्याली है । मज़हबी लोगों को दूसरे की आँख का तिनका तो बहुत बड़ा दिखता है , पर अपनी आँख का लट्ठा नहीं दिखता ।
डा नायक की एक खासियत यह है कि कुरान पाक को समझाते हुए वे संस्कृत श्लोकों क भी धारा प्रवाह उद्धरण देते हैं कि देखो वह बात यहाँ भी लिखी हुई है । ईश निंदा , धर्म निंदा का मेरा कोई इरादा नहीं होता , पर पूछने का मन होता है कि जब सब वेदों में लिखा ही था तो फिर उसे दोबारा लखने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी ?
हे ईश्वर उन्हें भी क्षमा करना और मुझे भी । #

नागरिक उवाच

* ग्लानी इस बात की है कि मुझे गुस्सा तब आया जब गुस्सा करने की उम्र नहीं रही । #

* वह दिन दूर नहीं जब फेस बुक की भाषा में लोग हिंदी में " व्यंग्य " को " व्यंग " लखने लगेंगे ! #

दलित विरोधी

* मुसलमान ब्राह्मणवाद के ही विरोध में होता तो यह ठीक था । लेकिन वे दलितों के बारे में भी वही निम्न राय व व्यवहार रखते हैं जो ब्राह्मण या सवर्ण उनके बारे में रखते हैं । जो लोग दलित -मुस्लिम एकता के आधार पर राजनीति करने को सोचते हैं वे निष्फल होंगे और मुंह की खायेंगे । सारी सफलता मुसलमानों की झोली में चली जाएगी । यह असहनीय है , और यह नहीं चलेगा । इसलिए दलितों को मनुवादियों के साथ -साथ इन कथित बराबरी का धर्म -गान करने वालों के भी खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा । सुधी , जागरूक जनता को चाहिए कि वह दलितों को निर्विघ्न भारत पर अपना राज्य बनाने में सहयोग करें । तभी वे अपना सम्मान वापस पाएंगे , और देश सच्चे मायनों में लोकतान्त्रिक , समतावादी कहाने के योग्य होगा । #

मोदी का अभिमान

* मोदी को अभिमान हो गया है । अपने दल के भीतर भी वह पार्टी , और अडवाणी जैसे वरिष्ट नेताओ की अव्ह्र्लना कर रहे हैं । और दल के बाहर अपने राज्य में अपनी मनमानी कर रहे हैं । अपने खिलाफ के गवाह भट्ट को जे भेज रहे हैं । जनता क्या समझ नहीं रही है ? पर जनता के महात्मा अन्ना जी क्या कर रहे हैं । वह कुछ नहीं करेंगे क्योंकि यहाँ पैसे का भ्रष्टाचार तो है नहीं ! जब की मैंने अन्ना के आन्दोलन के समय ही लिखा था कि यदि धन गया तो कुछ नहीं गया , लेकिन चरित्र खो गया तो जानो सब खो गया । नरेंद्र मोदी ने गुजरात में राष्ट्र का चरित्र खोया था और उसे वे लगातार मिटते जा रहे हैं पर अन्ना न अयोध्या अपराध पर सामने आये थे , न अब मोदी के विरोध में आ रहे हैं । इसीलिये उनकी निष्ठां संदेहास्पद है । #

मंहगाई है ?

* कौन कहता है कि मंहगाई है ? मंदिरों में भीड़ चढ़ावा देखिये ,दुर्गा पूजा के पंडाल देख लीजिये , बाजारों में खरीदारी देखियेऔर यह कहना तो भ्रम होगा कि सब बड़े लोगों का खेल हैइसमें छोटे - बड़े सब शामिल हैंकोई गणित लगा कर देखे कि वह भोजन -पानी की वस्तुओं पर कितना खर्च करता है । गरीब तो सादगी का जीवन बिताता है , उसके पास फ़िज़ूल खर्ची के लिए समय कहाँ , पैसा कहाँ ? यह यूँ ही नहीं है कि ३२ रु तक की आमदनी वाले को ही बी पी एल से नीचे मानने की पेशकश की गयी है७०-७५ प्रतिशत जनता की आय फिर २५ रु रोज़ क्यों मानी गयी ?[सच्चर कमेटी ] । तब तो कोई हल्ला नहीं हुआउलटे उसे सच्चा आधार मानकर उनकी दशा सुधारने की मांग की गयीसब संदेह के घेरे में हैं । #

* कोई नेता कोई दल छोड़कर दूसरे दल में जाता है और वह फ़ौरन स्वीकार कर लिया जाता हैयह बहुत बड़ी राजनीतिक बुराई हैइससे सभी दल प्रभावित हैं पर म्याऊँ का ठौर कोई नहीं पकड़ताउसका सख्त इंटरव्यू लिया जाना चाहिएक्यों भाई तुम क्यों उस दल को छोड़ रहे हो ? हमारे दल में क्या विशिष्ट देखकर तुम शामिल होना चाहते हो ? तुम्हारी सत्य निष्ठां का भरोसा क्या हैयह इसलिए चल रहा क्योंकि किसी दल की कोई नीति नहीं है [वाम को छोड़कर] । सब राजनीति की दुकानें भर हैंकोई कहीं से भी खरीदेसबका माल एक ही हैइसलिए कोई नेता आज इस दूकान में है , कल उस माल में । #
########

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

गीत संभव

गीत संभव :-
* क्या कहने को रहा ?
धरती ने तो तेरी खातिर लाखों कष्ट सहे ,
किसी के लिए क्या तुमने भी कोई कष्ट सहा ? --
-----
* मैंने पाया :-
तन -मन को सारा उधेड़ , मैंने पाया ;
बैठा एक बालक अधेड़ , मैंने पाया । ---
-------
* देखा जायेगा :-
जो हुआ , उसे तो देख लिया ;
अब जो हो , देखा जायेगा । - - -

हाइकु कवितायेँ

* समझदार
है हमारी संतानें
हमसे ज्यादा ।

* सब स्वार्थी हैं
स्वार्थी ही निकलेंगें
सब के सब ।

* देखना है तो
चश्मा साफ़ कर लो
साफ़ दिखेगा ।

* मर जायेंगे
मार - मार करके
यही सभ्यता ।

* व्यतीत हुआ
लड़ते - झगड़ते
एक जीवन ।

* किसी से कुछ
कहने योग्य नहीं
सब स्वच्छंद ।

* बेअसर है
चीखना - चिल्लाना भी
इस समय ।

* अनगिनत
आवाजें बुलाती हैं
इधर आओ ,
किधर जाऊं
बुलाती हैं आवाजें
अनेकानेक ।

* मेरे मन में
सवाल यह है कि
हल कैसे हो ?

साधारण कवितायेँ

* बस
पढ़ता जाता हूँ,
बस ,
लिखता जाता हूँ । #

* अपना मज़ाक
न बनवाइए
चुप हो जाइये । #

* पीड़ा कर्तत्व बहुत थी
दर्द था बदन में
लिखने के आगे
सब भूल गया । #

* तुम अपना काम करो
वही मेरा काम होगा ।
ध्यान रहे , लेकिन
वह तुम्हारा ही
काम होना चाहिए
दूसरे का नहीं ,
तभी वह मेरा काम होगा । #

* किसी भी श्रोता के
गले नहीं उतरी
मेरी कविता क्या ? #
###########

हिन्दू हिन्दुस्तान

* नक्सलवादी और उनके समर्थक बुद्धिवादी जो कथित रूप से आदिवासियों -जनजातियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं , क्या उसी तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया करेंगे , यदि हिन्दू हिन्दुस्तान में अपने अधिकारों के लिए लादे ? [हिन्दू लड़ता दिखता है तो उसकी तो ये आलोचना करते हैं , कहते हैं ,यह बहुसंख्यक आतंकवाद है । ] अरुंधती राय भी जिस प्रकार अलगाववादी कश्मीरियों के पक्ष में हैं , उसी प्रकार हिन्दू के हिन्दू राष्ट्र वादी आन्दोलन का समर्थन करेंगी ? मुझे तो मुश्किल दिख रहा है । #

* मैंने गुजरात में मोदी की सद्भावना' पर लिखा था कि यह "सम्भावना " की धमकी हैवह दिख गयी संजीव भट्ट की गिरफ्तारी सेअपने चाल -ढाल से ही मुझे तो मोदी जी बिल्कुल गुंडा जैसे लगते हैं , बिल्कुल बकैत । #

नागरिक उवाच

* कुछ साल बाद दो अक्तूबर को गाँधी पर लिखने बोलने को कुछ रह ही नहीं जायगा । #

*किसी भी संत को या व्यक्ति को अपने ऊपर इतनी महानता नहीं ओढ़ लेनी चाहिए कि जिससे साधारण व्यक्तियों में महानता की आशा धूमिल दिखने लगे । #

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मेरी स्थिति

* मेरी स्थिति एकदम स्पष्ट है
प्रथम तो यह कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है , इसका सांस्कृतिक जीवन मूलतः और व्यापक तार पर हिन्दू है । ( हिन्दू की
परिभाषा में किसी को कोई उलझन हो तो वह वही मान ले जो संविधान में है -यानी जो मुस्लिम ईसाई यहूदी पारसी नहीं है,वह क़ानून की नज़र में हिन्दू है । ) लेकिन राज्य हिन्दू नहीं हैवह लिखित रूप में सेकुलर हैयद्यपि यह कोई चिंता की बात नहीं हैवस्तुतः सेकुलर अर्थ प्रगतिशीलता , वैज्ञानिकता है की धर्म निरपेक्षता / विहीनताअलबत्ता इसमें धर्मों का अंधविश्वास अंश खारिज हैऐसा सेकुलर तो कोई भी धार्मिक जन भी हो सकता हैइसलिए सेकुलर राज्य को भी हम हिन्दू राज्य के रूप में देख सकते हैंइसके तहत हम पाकिस्तान में , कश्मीर में हिन्दुओं की तरह भारत से मुसलमानों निष्कासन नहीं चाह सकतेहिन्दू राज्य में हम उन्हें सम्मानित अतिथि का दर्ज़ा देंगेथोड़ा आप मनोरंजन कर सकते हैं इस तर्क पर की ऐसा तो हम कर ही रहे हैंहिन्दू तो यूँ भी अपने लिए कठोर है और दूसरो के प्रति दयावानवह जानवरों पर दया करेगा पर अपने दलितों पर अत्याचारवह दधीच की तरह अपना अंग - प्रत्यंग काट कर खिला सकता है , तो मुसलमानों को खिला रहा हैलोग तुष्टिकरण कह कर नाराज़ होते हैं , पर ध्यान दें तो यह भी एक तरह से हिन्दू स्वभाव के अनुकूल ही हैजो तुष्टिकरण कर रहे हैं वे हिन्दू ही हैं और हिन्दू धर्मानुकूल ही आचरण कर रहे हैं । [तिस पर भी मैं उनकी व्यथा समझता हूँ ,इसीलिये यह मांग कर्ता हूँ कि भारत को हिन्दू राज्य घोषित कर दिया जाय , फिर चाहें जो मालपुवा खिलाया जाय , हिन्दू को यह संतोष तो हो जाय , उसका भी अहम् तुष्ट तो हो कि हिन्दू ऐसा दानवीर हो सकता है ] । अब प्रश्न यह है कि बिना संविधान संशोधन के क्या हिन्दू परोक्ष रूप में इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकतामेरी दिक्कत यह है कि मैं स्वेच्छा से भारत को हिन्दू राज्य स्वीकार करता हूँइसलिए जब कोई मोदी , कोई मठाधिकारी हिन्दू धर्म की महानता के विपरीत आचरण करता है तो मुझे असंतोष होता हैराज्य को अपनी पूरी हिन्दू दक्षता का परिचय देना चाहिए कि देखो हिन्दू राज्य ऐसा होता है , उदहारण प्रस्तुत करना चाहिए कि हिन्दू राज्य एक आधुनिक मानव वादी , सर्व कल्याण वादी , सर्वे भवन्तु सुखिना वादी सुशासन प्रदान कर सकता है , और वह यह हैमुसलमानों का घर भले आकिस्तान -पाकिस्तान हो पर वे हमारे अतिथि देवो भव

* दूसरी बात इस हिन्दू राज्य में दलितों की स्थिति के सम्बन्ध में हैविस्तार फिर कभीसारांशतः [अन्तर्निहित -व्यक्त- अकथनीय तर्कों के साथ ] यह कि ऐसे हिन्दू राज्य की प्राप्ति और स्थापना हेतु सचमुच इसके लिए चिंतित लोगों को इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए कि भारत का राज्य चुपके से दलितों [आदि हिन्दुओं ] को सौंप देंजातिवाद हटाने के चक्कर में समय गवाएं [ कम से कम राजनीतिक रूप से ] । अपना कोई भी वोट केवल दलित को दें सवर्ण को , मुसलमान को , सिख को , ईसाई कोयदि दलित उपलब्ध हो तो किसी महिला को चन्ने में ही देश की भलाई हैयह ऐसा मुद्दा है जिसे मै ज्यादा स्पष्ट नहीं कर सकता , इसलिए कृपया स्वयं सोचकर देखें

* तीसरी बात अंतर राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों में टकराव को लेकर हैजैसे भारत में कोई भी आये तो वह मानकर आये कि वह भारतीय सांस्कृतिक वातावरण में रहा है , और इसे उसको स्वीकार करना चाहिएउसे अपनी संस्कृति भारत पर थोपने का मंसूबा नहीं करना चाहिएइसी प्रकार यदि भारतीय अरब देश , अमरीका , ब्रिटेन जाय तो उसे यह मान कर चलना चाहिए कि उसे वहाँ मुस्लिम या अंग्रेजी संस्कृति के अधीन रहना होगा जो कि वहाँ की प्रमुखता -प्रधानता -विशिष्टता है । उन पर उसे हिंदुत्व आरोपित नहीं करना चाहिएइसी से सांस्कृतिक - साम्प्रदायिक शांति कायम हो सकती है
ज़ाहिर है , मैं ज़्यादातर ख्याली पुलाव पकाता हूँ ।

दो कवितायेँ

* किसी दिन कोई एक गुंडा
एक झापड़ लगाएगा ,
तो बत्तीस में से कोई दाँत
बचे तो नहीं हैं
जो बाहर आ जाएँ
लेकिन मेरी सारी तर्क शक्ति ,
विचारणा पर भरोसा
आदर्शों पर अडिगता
निकलकर बाहर आ जायेंगें ।
सारा नैतिक बल
ठिकाने लग जायगा । #

* कोई तुम्ही
सुंदर नहीं हो
बहुत सी हैं लडकियाँ
बहुत बहुत सुंदर
भले उन्हें मैंने
अभी देखा नहीं है ।

कोई मैं ही पुरुष
नहीं हूँ दुनिया में
बहुत से लोग हैं
मुझसे अधिक बलिष्ठ
भले तुमने उन्हें
पाया नहीं है । #
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