सोमवार, 19 नवंबर 2012

गीतों के टुकड़े टुकड़े


[ कुछ गीतों के टुकड़े टुकड़े ]
१ - मैं कभी हूँ घास का तिनका ,
मैं कभी हूँ ताड़ सा ऊँचा ,
मैं कभी वट वृक्ष सा फैला ,
मैं कभी हूँ प्याज का छिलका |
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२ - बिलावजह तू अपने हुस्न पर इतराए है ,
कोई नहीं जाता मरा तेरे ऊपर |   / or
तू अपने हुस्न पर इतना न ऐंठ ,
कोई मरता नहीं तेरे बगैर |
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३ - आसान है हँसना अगर हँसने की इजाज़त हो |  
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४ - मनई मानुख, सब बेकार ,
ईश्वर अल्ला , सब बेकार ,
अच्छे तो बस गोंजर साँप ,
उनके कान न इनके आँख |
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५ - लोग कहते हैं क्या ज़माना था ,
एक रूपये में सोलह आना था |
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६ - " आयेंगे , उनको आना है "
सोच सोच कर रह जाना है |
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७ - कुछ प्रश्न कठिन होते ही हैं ,
कुछ सवालात आसाँ होते |
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८ - यह जो कौंध नयन में आई ,
क्या कहते हैं इसको भाई ?
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