सोमवार, 19 नवंबर 2012

दलित हो ? ज़रा उधर खिसको |


Notes for a Lekh :
 दलित हो ? ज़रा उधर खिसको |
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 * यह सारी लड़ाई झूठी है और हवा में लड़ी जा रही है |

* तुम ब्राह्मण को श्रेष्ठ , अपने को निम्न क्यों समझते हो ? इस से तो तुम अपने को नीच बनाते / बनाते हो | यह ठीक नहीं है , ऐसा कब तक चलेगा ?

* दलित कार्यक्रम में तुम सवर्ण विरोध के अलावा कुछ नहीं बोलते , तो सवर्णों से क्यों और कैसे आशा करते हो कि वे तुम्हारे पक्ष में बोलें ? सवर्ण भी मनुष्य हैं कोई देवता नहीं , और तुम तो किसी देवता को भी नहीं मानते , उन्हें भी अपशब्दों से सुशोभित करने से नहीं बख्शते ?

‎* दलित इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के शीर्ष क्यों नहीं बनते ? लिखें नया मनुस्मृति , पढ़ें शास्त्र ! बनायें जन्मकुंडली , कराएँ मुंडन - विवाह संस्कार , गढ़ें उनके मन्त्र ! कौन ब्राह्मण रोक लेगा ?

* मैं दलितों से सहमत नहीं हूँ, पर भारत की राज्य सत्ता पर दावेदारी का पूर्ण समर्थन करता हूँ | दूसरी तरफ मैं मुसलमानों में घुलमिल कर रहता हूँ,पर भारत की सत्ता में उनकी हिस्सेदारी खारिज करता हूँ |

* अपना सारा दलितपन का मैला भरे प्लास्टिक बैग को हर समय अपनी जेबों में डाले घूमते हो कि कब कोई ब्राह्मण रूपी उचित स्थान मिले  और  तुम उस पर डालो !

* ब्राह्मण लडे न लड़े , जब तुम उसकी मूर्ति बना कर लड़ रहे हो तो वह तो तुम्हारे विपक्ष में अनायास ही आ जाता है , भले वह विपक्ष में न हो |

* मैं जाति प्रथा नहीं मानता | लेकिन सोचता हूँ ब्राह्मण वादी हो जाऊँ | फर्क अर्थात अंतर का दर्शन स्वीकार करूँ - अंतर ज्ञानी बनूँ | श्रेष्ठता और नीचता को जानूँ |  मैं क्यों न श्रेष्ठ बनूँ / बनना चाहूँ ? यह कंपटीशन, प्रतियोगिता का युग है भी तो !  तुम निम्न रहना चाहते हो तो रहो , श्रेष्ठता अधिग्रहण नहीं करना चाहते तो न करो , कुछ ख़ास न बनो |तब तो तुम दलित ही रहोगे |

* लोग आपत्ति करते हैं दलितों की भाषा पर | उन्हें इसे स्वाभाविक मानकर सहन करना चाहिए | जिसका स्वभाव , जिसका भाषा - संस्कार जैसा होगा वह वैसा ही तो बर्ताव करेगा ?

* एतदद्वारा  मैं दलित आन्दोलन इन पंक्तियों से उकसावा देकर तेज कर रहा हूँ | ठीक कर रहा हूँ , क्योंकि एक नेता का कहना है इसे इतना फेंटो , इतना फेंटो  - - कि - - |

* सवर्ण जाति में जन्म लेना हमारा भी कोई चुनाव न था | तुम मुझे गाली दोगे तो मैं भी तुमसे घृणा करूँगा | मैं जातिवादी हूँ या नहीं पर तुम्हारे मुहिम के चलते मुझे भी जातिवादी बनना पड़ेगा |

* एक विचार , मार्क्सवाद , सफल नहीं हुआ | तब भी विचारधारा के लोग उसका समर्थन छोड़ नहीं रहे हैं | ऐसे ही गांधीवाद के साथ हुआ , तो भी कोई उसे मानता है तो तुम्हे परेशानी क्यों होती है ? अब ब्राह्मणवाद यदि सफल है , या कहें - विफल नहीं हो रहा है तो तुम इसे क्यों नहीं मान रहे हो ?

* इसीलिये मैं कोई चीख चिल्लाहट नहीं पैदा करता जब कोई आरोप लगाता है - मायावती ब्राह्मणवादी हैं | पैर छुआती हैं , सबको नीचे बिठाती हैं | या सपा के कार्यकर्ता शारीरिक रूप से इतने प्रबल और सक्रिय क्यों हैं ? जिन्हें दुविधा हो , उन्हें हो | मैं तो जानता हूँ कि ऐसा ही होगा, ऐसा होगा ही | ब्राह्मणवाद ऐसा ही कहता है | माना जाना चाहिए, फिर भी लोग , वही लोग जो इसमें शामिल हैं , नहीं मानना चाहते तो क्या किया जाय कि ब्राह्मणवाद ही एक महान सफलतम सामाजिक वाद है | अमरीकी ब्राह्मणवाद , उसकी दादागिरी बराबर देखते , पर वामपंथी भी इस सत्य से मुँह चुराते हैं | ऐसी अज्ञानता को क्या कहा जाय ? और जब तक ब्राह्मणवाद को समझा नहीं जायगा , इसे अन्दर - बाहर से ठीक से पहचाना नहीं जायगा , तब तक इसे मिटाने कि हर कोशिश व्यर्थ ही तो जानी है ?

* और आरक्षण ? यदि किसी साझी संपत्ति से किसी को ज्यादा हिस्सा दिया जायगा तो तुम्हे भी तकलीफ होगी | फिर मिल तो रहा है ! लीजिये उपयोग कीजिये , उपभोग कीजिये | ऊपर से गाली क्यों देते हैं , जबकि पाने वाले को तो विनम्र होना ही चाहिए ?

* मैं आन्दोलनों में बिल्कुल विश्वास नहीं करता | इसके ज़रिये लोग न्याय संगत ही नहीं , गलत मांगें भी पूरी करा ले जाते हैं |

* तो , अब भी तुम दलित हो ? अपने को दलित समझते हो ? लेकिन मैं दलित नहीं हूँ | तब तो स्वाभाविक और अनिवार्य रूप से मैं ब्राह्मण हो गया | ज़रा उधर खिसक कर बैठो भाई !

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