शनिवार, 27 नवंबर 2010

तुम्हारे लिए [ short poems ] 60



1 तुम्हारे लिए

मैं इससे ज्यादा कुछ
कर ही नहीं सकता था
जितना मैंने किया
तुम्हारे लिए|
मैं ज्यादा से ज्यादा
सायकिल ले कर-
जहाँ तुम कहती
भाग दौड़ कर सकता था,
दूध अंडा ब्रेड
फ़ौरन ला सकता था;
या जल्दी से थोड़ी हरी धनिया|
तुम्हारे लिए रिक्शा बुला सकता था,
गैस की लाइन में खड़ा हो सकता था,
कपड़े  प्रेस कर सकता था
तुम्हारी किताबें झाड़ पोछ सकता था
कुर्सी मेज़ इधर से उधर कर सकता था 
बस, जो कर सकता था , किया
वह तुम जानती हो
मुझे इस का  कोई
मलाल भी  नहीं है  के
में तुम्हे होंडा से शहर नहीं घुमा सका
और तुम सायकिल पर
बैठ नहीं सकती थी
मुझे कोई शिकायत नहीं
बहुत था जितना तुमसे मिला
मुझे, तुम्हारा नैकट्य तुम्हारा  सान्निध्य
इस से ज्यादा मुझे
तुमसे मिल भी नहीं सकता था
क्योंकि इससे ज्यादा मैं
कुछ कर ही नहीं सकता था
जितना मैंने किया
तुम्हारे लिए | |

२  दो  मिनट 
मैं तुमसे 
छीन ही लूँगा
तुम्हारा
दो मिनट का मौन
अपनी मृत्यु के पश्चात्|
३ स्थायी  कद 
आज मेरे बेटे ने
अपना कद नापा
वह अन्दर से दौड़ कर आया 
पापा, मैं मम्मी के
 दूध बराबर हो गया हूँ
अब आप से नापूं
वह मेरे कलेजे तक था
और बड़ी बहन के 
चश्मे के बराबर|
मैंने कहा, बेटे 
यह तो तुम्हारा स्थायी कद है
इससे छोटे तो तुम कभी न थे
इससे बड़े तो तुम 
कभी न हो पाओगे


४ धोबी
कभी एक धोबी होता था
उसका एक घर होता था
उसका एक घाट होता था|
उसका एक कुत्ता भी होता था 
जो न घर का होता था 
 न घाट का होता था| 
अब सिर्फ कुत्ते होते हैं
उन्ही के घर होते हैं
उन्ही के घाट होते  हैं
और विडम्बना
उनका कोई धोबी नहीं होता


५  चिराग 
जब मैं किसी बच्चे को 
सर पर रोशनी का हंडा रखे
बारात में शामिल देखता हूँ
तो मुझे अजीब अनुभूति होती है
आहा! दीपक के सर पर चिराग!
चलो इसी बहाने सही 
एक बिना तेल के चिराग 
की लौ जगमगा उठी
मैं चिराग तले अँधेरे में छिपे
चिराग को ढूंढ़ निकालता हूँ
फिर तो मुझे सेहरा बांधे
घोड़े पर सवार दूल्हा
अदृश्य लगने लगता है
और मेरी आँखों  में
चमकने लगता है
एक नन्हा चिराग
चिराग के नीचे चिराग|


६ प्रयास 
मुझसे 
प्रार्थना करने के लिए 
कहा गया था,
मैं मूरख
प्रयास करने लग गया


७ गणेश
मैं जीवन भर
भगवान को भोग लगता रहा
उन्हें फल फूल 
मेवा मिष्ठान्न खिलाता रहा
उन्होंने कभी  कुछ नहीं खाया
मेरी आस्था बनी रही,
लेकिन मित्रों,
आज उन्होंने
मेरे हाथ से 
एक चम्मच दूध पी लिया
मेरा विश्वास डगमगा रहा है


८ कुत्ता
देखो युधिष्ठिर देखो
तुम्हारे पीछे एक
कुत्ता लगा हुआ है

धर्म नाम है उसका


९ शुक्रगुजार
किसी के घर
एक वक़्त खा लेता हूँ
उसका शुक्रगुजार हो जाता हूँ
देश का तो रोज़ ही खाता हूँ|


१० कफ़न 
मैं एक कफ़न हूँ
जिंदा ही जला दिया जाता हूँ
एक मुर्दा लाश के साथ
गोया मैं  एक जिंदा लाश हूँ|
लेकिन मुझे गर्व है की
मैं शव का  देता हूँ कब्र तक साथ 
और उसके खाक होने तक
उसकी लाज ढके रहता हूँ
तथा रख बन कर भी
तन से लगा रहता हूँ|
फिर भी मुझे खेद है
कोई मुझे जीवन में
प्यार नहीं करता
आखिरी साँस तक
स्वीकार नहीं करता
बस चंद शहीदों के सिवा|
वही तो मुझे 
अपनाते हैं जीते जी
और मैं भी उन्हें 
कभी मरने नहीं देता| 


११ अयोध्या
सारे योद्धा 
अयोध्या में!
डरपोक कहीं के|


१२ तोड़ो तनिक 
मस्जिद 
तो  तोड़ दी 
तोड़ो तनिक
अपनी जाति
तो जानें|


१३ कहाँ तक हारता हूँ 
ठीक है तुम 
घृणा के बीज बोओ
 मैं तो 
प्रेम बिखराता हूँ
देखता हूँ तुम 
कहाँ तक जीतते ho 
देखता हुनमें
कहाँ तक हारता हूँ!


१४ कविता होना 
मैं कविता करना 
नहीं जानता
कविता होना 
जानता हूँ.


१५ खजूर 
मैं गिरूंगा तो
ये खजूर मुझको रोकेगा
मैं गिरूंगा तो
ये खजूर मुझको रोकेंगे
तो फिर मैं
क्यों न आसमान
की खबर लूँ?


१६ लूपहोल
मैं एक 
आकाश जीता हूँ 
और उस आकाश में
 कोई छेद नहीं है 


१७ दोस्तों को सुनाता हूँ 
मैं जानता हूँ हँसेंगे लोग
सुनकर मेरी पीड़ा
फिर भी
मैं अपने दोस्तों को 
अपना दुःख
तार तार करके सुनाता हूँ
थोड़ा हंस ले बेचारे
इसी बहाने
आखिर दोस्त अहिं मेरे 
वरना उन्हें ही
 कहाँ  हँसी नसीब|


१८ चुहिया 
सुख के दिन 
एक चुहिया 
दुखों की रात
 एक पहाड़  
और हम सब 
एक चुहिया  के लिए 
खोदते जाते हैं 
सारा पहाड़


१९ दुखों का नेता 
 दुःख मेरा पीछा
नहीं छोड़ते,
तो क्या मुझे 
नहीं कहने देंगे आप
की मैं दुखों का
 नेता हो गया हूँ?


२० किराये पर 
घर बनवाया था
सोचा था
फ़ैल कर रहेंगे,

नहीं हो पाया 
किराये पर उठाना पड़ा


२१ विकास
यदि आप ने
अपनी दोनों चप्पलें
गलत पांव में 
पहन रखी हैं 
तो फिर उन्हें
 ठीक करने के  लिए
कम से कम 
एक पाँव
 'ज़मीन" पर रखना होगा  |


२२ अहंकार 
जब सूर्य मेरे 
पीठ पीछे होता है
मेरी परछाई मुझे  
बड़ी लम्बी दिखाती है 
लेकिन जब ज्ञान का उजाला
मेरे सामने होता है 
मेरा वह अहं
कहीं नहीं होता|


२३ बुरी दशा 
जिनके  चार लड़के हैं 
उनकी बुरी दशा है 
जिनके चार लड़कियां हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके तीन लड़के एक लड़की है
उनकी बुरी दशा है 
जिनके एक लड़का तीन लड़कियां हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके दो लडकियाँ, दो लड़के  हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके दो लड़के , दो लड़कियां हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके दो लड़के , एक  लड़की  हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके एक  लड़का  , दो लड़कियां हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके एक  लड़का  , एक  लड़की  हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके कोई  लड़का- लड़की नहीं  हैं
उनकी बुरी दशा है 
जिनके कई बीवियां हैं 
उनकी बुरी दशा है 
जिनकी कोई बीवी नहीं
उनकी बुरी दशा है 
सबकी बुरी दशा है


२४ अनपढ़ 
जब मैंने तुमसे 
प्यार किया था
विश्वास करो
मैं  कोई किताब
पढकर नहीं गया था


२५ इस उम्र में प्यार 
 अब इस उम्र में
प्यार एक और 
मोड़ लेता है|
मैं उसके 
गठिया के दर्द  का 
हाल पूछता हूँ|
वह मेरी
 दमा की दवा 
तलाश करती है|


२६ महत्वपूर्ण भूमिका
मैं तुम्हारी जिंदगी में 
महत्वपूर्ण भूमिका 
अदा करुँगी
उसने मुझसे कहा था
विदा होते समय,
अब वह कहाँ है?
कैसी है?
है, या नहीं है?
मुझे नहीं मालूम|
मुझे पता है तो बस
यह कि 
वह मेरी ज़िन्दगी में
महत्वपूर्ण भूमिका 
अदा कर रही है|


२७ बिल्ली के ख़ानदान 
ज़रूर होगे तुम
शेर, बबर शेर अपने आप में 
लेकिन मैंने 
जीव विज्ञान से जाना 
उसे तुम भी जन लो
तुम दरअसल
बिल्ली के खानदान के हो 


२८ तारे दूर के 
कुछ लोग हमें
बहुत छोटे दिखाई देते हैं
तारों कि तरह |
कुछ लोग हमें 
बहुत बड़े और प्रकाशवान 
लगते हैं
ठीक सूरज कि तरह |
अब किसी 
कक्षा छह के छात्र से भी पूछो
तो जानो कि
बहुत से तारे 
सूर्य से लाखों गुना बड़े हैं |


२९ वह जो औरत 
वह जो औरत 
सड़क पर अकेली
जा रही है
वह मेरी 
माँ बहन थोड़े  ही है|


३० माँ के पास 
मैं मरूँगा नहीं
मैं तो अपनी
स्वर्गवासी   माँ के पास जाऊंगा 
चुपके से पीछे जा कर
उसका आँचल खींच   लूँगा
वह चौंक कर मुझे देखेगी
और अपने 
सीने से चिपका लेगी


३१  हाल-चाल 
शुभचिंतक 
हाल पूछते  हैं-
बेटी कि शादी हुई?
बेटा काम से लगा?
कोई नहीं पूछता
बेतेका ब्याह हुआ?
बेटी किस शहर में नौकरी करती है?


३२  रस्सी कूदती लड़कियां 
रस्सी कूदती हैं लड़कियां
 रस्सी कूदती ही  हैं लड़कियां
 रस्सी कूद जाती   हैं लड़कियां 
रस्सी कूदती  जाती हैं लड़कियां 
रस्सी कूद जाती रही  हैं लड़कियां 
रस्सी कूदती  जाती रही हैं लड़कियां 
फिर विश्वास नहीं होता 
कैसे इन रस्सियों  में 
बंध जाती है लड़कियां 


३३  लड़की लेखिका 
लड़की ने कहा - मैं लेखिका बनुब्गी 
डायरी, आत्मकथा, उपन्यास लिखूंगी,
मामा लोग डर गए
चाचा सब थर थर कांपे 
गुरुजन परिजन गिड़गिड़ाने  लगे 
वृद्धजन हाथ जोड़ कर खड़े हुए 
पडोसी माफ़ी मांगने लगे
माँ समझाने लगी
भाई चींखने लगा
बाप चिल्लाने लगा-
नहीं लड़की नहीं 
तुम लेखिका नहीं बनो |
प्रकाशकों ने 
एडवांस  उड़ेल दिए|


३४  बाएं 
मैं बाएं मुड़ा
फिर और बाएं
थोड़ा और बाएं
अरे! यह तो 
दक्षिणपंथ का इलाका है!


३५  बाएं
इंडिकेटर
 बाएं का
 दिखा रहें है 
मुड़ने को जा रहे हैं 
 दायें कि ओर 


३६  ज़माना बदलेगा 
कोई कहता 
ज़माना यूँ न बदलेगा
कोई कहता 
ज़माना यूँ भी   न बदलेगा
मैं कहता हूँ
ज़माना यूँ तो  बदलेगा
आखिर 
ज़माना क्यूँ न   बदलेगा?
जब काफ्का का 
कायांतरण हो सकता है
तो फिर समाज का 
रूपांतरण क्योंकर नहीं होगा?
३७  अन्याय के विरुद्ध 

मैं जानता हूँ इससे 
कुछ भी होने हवाने वाला नहीं है
लेकिन फिर भी
कुछ हो सकने कि संभावना का गला
मैं हाथ पे हाथ रख कर क्यों घोटूं?
मैं चीखना चिल्लाना बंद कर के
अनीति को मूक समर्थन क्यों दे दूँ?
हाथ पाँव पटकना रोककर 
निरंकुशता को
क्यों निरापद कर दूँ?
मैं उस चिंगारी को क्यों बुझाऊँ 
जो कल आग बनने वाली है?
और मेरे दोस्तों!
हर व्यवस्था मूंज का वह थाला है
जिसे खाद के रूप में चाहिए
आग, और आग|
३८  पहले वे आये
पहले वे यहूदियों के लिए आये 
तब मैं  बोला
जब कि मैं यहूदी नहीं था
फिर वे पारी पारी से
ईसाइयों, हिन्दुओं, मुसलमानों
 के लिए आये 

मैं हर बार सब के लिए बोला
जब कि मैं ईसाई,
हिन्दू या मुसलमान नहीं था|

अब वे मेरे लिए आ रहे हैं
तब देखना, मेरे लिए 
किसी की भी  बोल नहीं फूटेगी
क्योंकि मैं सेकुलर हूँ 
३९  कमोड 
कमोड साफ करता हूँ 
चमक जाता है
खुशी होती है|
४०  शहीद 
शहीद 
मर गए 
चिरायु हैं
वे गिद्ध नहीं
जटायु हैं |
४१  केले के पत्ते 
केले के पत्ते सा विशाल 
मेरी माँ का ह्रदय 
केले का  तना 
मेरे बाप की बांह 
और इन के बिच 
छीमियों के समान
पलते पुसते 
हम उनकी सन्तान 
४२   पीली पत्ती
पीली  पत्ती सी 
पड़ी लडकी
सूख कर कांटा हुई,
मैंने उससे कुछ नहीं  कहा
छूने की हिम्मत नहीं हुई,
मुझे रोटी की पोटली 
खोलते देख, 
वह हरी हो गयी 


हरीतिमा नाम है लडकी का
हरियाली काम है रोटी का |
४३ ढक्कन
गलत जो बंद हो 
शीशी का ढक्कन 
बड़ी मुश्किल से खुलता है
दिमागें  बंद हैं!

४४  चिड़िये की नज़र 
निस्संदेह, मेरी नज़र
चिड़िये की आँख पर थी 
लेकिन
तीर कैसे  चलाता
चिड़िये की नज़र  जो
मेरी आँख पर थी 
४५  चुम्बक 
यह दुनिया 
चुम्बक के सिद्धांत पर 
और चुम्बन के मार्फ़त 
चाल रही है|
प्रश्न है -
क्या अश्लील?
प्रेम या युद्ध?
उत्तर  निर्विवाद
युद्ध
४६   बच्चे धूल 

 बच्चे धूल  उड़ाते चलते हैं 
हम धूल से बचते
बच्चे 
 बड़े होते जाते हैं 
४७  बेटी
उन्हें बेटी 
चाहिए नहीं
और बेटा
 किसी काम 
आयेगा नहीं 
४८   इबारत 
मैं हिंदी अच्छी तरह जानता हूँ
संस्कृत समझ सकता हूँ
अंग्रेजी का
पर्याप्त ज्ञान है मुझको
उर्दू को उसी की लिपि में
पढ़ लेता हूँ,
लेकिन मैं   आज तक 
किसी  के माथे पर लिखी 
यह इबारत नहीं पढ़ पाया 
की वह किस जाति का है !
४९  शुभ लाभ 
मैंने महाजनों के
घर देखे हैं 
और तिजोरियां भी.
यदि इनसे कुछ होता है
तो आओ, मेरे प्यारे
मजदूर- किसान- कामगार
तुम्हारे माथे पर लिख दूँ
'ऊँ शुभ  लाभ'
और तुम्हारे चेहरे पर 
बना दूँ एक बड़ा सा 
स्वस्तिक का निशान
पीठ पर गोद दूँ
श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय!
( और कहीं तुम्हारी   
भूल चूक  लेनी देनी )
५०  कवि कर्म 
आप के विरोध में उस सशस्त्र विद्रोह में
शुरू से अंत तक मैं कहीं शामिल नहीं था
आप मुझे नाहक पीट रहे हैं
बेवजह जेल में ठूंस रहे हैं


विश्वास कीजिए जब भीड़ ने 
आपके रंगमहल पर हमला बोला  था 
उसके कुछ देर पहले ही 
मैं अपनी कलम तोड़ बैठा था
और उस समय जब आपने
विद्रोह में शामिल अंतिम व्यक्ति का भी सर 
बुरी तरह कुचल दिया था
तब मैं तो बस उठ कर
नये सिरे से अपनी पेंसिलें 
छीलने में लग गया था
आप मुझे गलत  सजा दे रहे हैं
आप के विरोध में उस सशस्त्र विद्रोह में 
शुरू से अंत तक 
कहीं भी मैं शामिल नहीं था 
५१  शाबाशी  
मेरे हाथ  
मेरी पीठ   पर 
पहुँचते नहीं


मेरे हाथ मुझे
शाबाशी नहीं देते 
५२  तय रहा 
तो अब 
यह तय रहा 
कि  इस जिंदगी को
जीना है
५३   चिड़िया उड़ 
चिड़िया
 उड़ने जा रही है
चोंच में  
तुम्हारी याद  का
एक दाना  है
५४  औरतें पैदा
मुझे अच्छा लगता है
जब लड़कियां 
पैदा होती हैं
मुझे अच्छा लगता है
जब कोई औरत 
अपने प्रेमी के साथ 
भाग जाती  है
५५  बूढ़ा
अब मुझे 
घर के अंदर घुसते  समय
खांसने -खखारने की
ज़रूरत नहीं रही
बहू-बहूटियाँ, घूंघट की आड़ से 
बात कर लेती हैं
और नवयुवतियां 
मेरे पास, बिलकुल पास भी 
बैठने में नहीं हिचकती


समझ में नहीं आता 
मैं बूढ़ा हो चला हूँ 
या समय मुझे छोड़ कर 
आगे निकल गया है !
५६  झूठ 
सावधान रहना होगा 
अब हर झूठ 
सत्य का भेष  धर कर
सामने आ रहा है
५७  मेरे साथ
कविता तो क्या 
संवेदना की  दुनिया में
ले चलूँगा तुम्हें 
चलोगे न मेरे साथ...
५८  युद्ध 
आप मुझसे 
जीतेंगे कैसे?
जब मैं  आप से 
लडूंगा ही नहीं!
५९  तितली
 बहुत दिन हुए
एक दिन एक तितली 
उड़ कर आयी और
 मेरी आँखों में बैठ गयी
फिर धीरे धीरे
पलकों की पंखुड़ियों में 
बंद हो गयी|
तब से जान गया हूँ 
मुझमे भी पराग है 
६०  भवसागर  
एक पत्थर पर 
तुम्हारा नाम लिख लेता हूँ
उसे रस्सी से लपेटकर
गले में डाल  लेता हूँ
सोचता हूँ
भवसागर पार हो जाऊंगा
और यह देखो
पर हो भी जाता हूँ |
==================
THE END
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शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

हाइकु किताब [Two], 3 lines , 200 nos

१ -    आज़ादी होती
अपने राज्य के लिए
जन के नहीं  .


२ -    भूखो को भूख
बहुत लगती है
बहुत खाते .

३ -    छोड़ा तो छोड़ा
उन्हें , जिन्हें पकड़ा
उन्हें पकड़ा .

४ -    अच्चा लगता
सम्बन्ध बिगाड़ते
भला किसको .

५ -    आध्यात्मिकता
अन्दर से  बनाती
व्यक्ति को ठोस .

६ -  बुरानुभूति
भी एक अनुभूति
बुरी खबर .

७ -काम उठाया 
बजाय  उपदेश 
शक्तिशः किया .

८ - देखा तो नहीं
लेकिन देखने का
मन तो है  .

९ - मुश्किल होगा 
मुझको यूँ  जानना 
साधारणतः .

१० - क्या ज़रूरी है 
अच्छा ही लिखा जाए 
बुरा क्यों नहीं .

११ -  आप आयेंगे 
तो खड़े  हो जायेंगे 
हम कुर्सी से .

१२ -  क्या तड़पना 
भाग्य  में  ही नहीं था 
जब  मिलना .

१३ -  लिखते होंगे 
विचारते  नहीं हैं 
साहित्त्य कार .

१४ -  सोच में खोट 
पैदा  कर देती  है 
प्रशंसा - मोह  .

१५ -  नीचे गिराती 
महान  बनने का 
मोह  व्यक्ति  को  .

१६ -  विरोध में हैं 
समर्थन में नहीं 
हम आपके  .

१७ -  नेता में नेता 
एक  अमर  सिंह 
एक अजित  .

१८ -  मुझे  आदमी  
कोई  पसंद आता 
या नहीं आता .

१९ -  चकनाचूर 
करता मैं  महिमा 
वालों का दंभ  .

२० -  ज़रूरी भी है 
लेकिन थोड़ा दंभ 
मान  में लिए  .

२१ -  ढूंढता  हूँ मैं 
थोड़ा हंस  लेने का 
सुअवसर  .

२२ -  स्वामी  नहीं  मैं 
देश  की  जनता  का 
स्वामिभक्त   हूँ  .

२३ -  मैं ही देवता
हाँ , मैं ही राक्षस  हूँ
मैं आदमी हूँ .

२४ -  जानते  नहीं
वह संपादक हैं
नहीं  लिखेंगे .

२५ -  कम्बल नहीं
उन्हें छत  चाहिए
जाड़ों  के लिए .

२६ -  हम मूर्ख थे
हम मूर्ख हैं , हम
मूर्ख रहेंगे .

२७ -  भ्रष्टाचार के
बारे में हम बात
नहीं  करते .

२८ -  आकर्षक हैं 
रौवां  जी  के नितम्ब 
सुन्तहयीं न  !

२९ -     कोफ़्त  होती है 
        सिनेमा  देखकर 
        या  सीरियल   |                       
                        
३० -    मैं और प्रेम     
     किसी से कभी नहीं   
     अरे , कभी तो     !

३१ -    शादी  क्या  होती     
      निभाना भर होता     
      पूरी जिंदगी     |

३२ -   नहीं  दीखता    
     कोई  परिवर्तन     
     कल - आज  में   |

३३ -   नहीं आया जो
लिखना , लेकिन तो
घमंड आया   |

३४  -  होता है फ्यूज़
बल्ब फ्यूज़ होता है
उसने कहा   |


३५  -     वह है नहीं
      तो क्या न होने दें , जो

      होना चाहता  ?                       
३६  -     मूर्ख हैं  हम 
      कुछ नहीं जानते 
      दुनिया बड़ी 
      #
३७  -   नहीं छोड़ती
      कविता मेरा  पीछा 
      आगे बढ़ाती 
                              
३८ - प्रगतिशील
कितना भी हो बुड्ढा
बुड्ढा रहेगा

३९ -यही ज़िंदगी
 अच्छी भी है बुरी भी
जैसा इसे लो

४० - तंग आ गया
ज़िंदगी से अब तो
लेकिन तो क्या

४१ - करते सब
होता कुछ अन्हीं
पूजा पाठ से

४२ - हम जो हैं
हमारा दिल भी है
दिमाग भी

४३ - मैं   अभिज्ञता
महसूस करता
आप अपनी

४४ - यह चांस है
निरा मौके की बात है
कि ईश्वर है

४५ - हार जाओगे
प्यार का मामला है
कबड्डी नहीं

४६ - बेवकूफी से
 नफ़रत थी मुझे
वही मेरी है

४७ - बिना घूस भी
काम होना चाहिए
बिना जुगाड़

४८ - आई  हैव  टु 
लिव तू लॉन्ग, फॉर 
मैनी रीजंस 

 I have to
live too long for
many reasons

४९ - पानी तो गर्म
चाहिए उन्हें , पर
कमरा ठंडा

५० - कहाँ जीतोगे
लड़ाई करने से
नाश ही नाश

५१ - तुम्हारे बिना
एक दुनिया बसा
तो ली है मैंने

५२ - फैसला किया
तेरे मेरे बीच में
फासला रहे

५३ - न ज्यादा रोना
हर हाल में मस्त
न ज्यादा खुश

५४ - तुम्हारे श्याम
हो गए श्वेत-श्याम
हे राधा! कृष्ण

५५ - गुलामी आती
बिना कोई खबर
दिए कमबख्त

५६ - दुनिया खाक
ही होती , जो न होते
गुलमोहर

५७ - सत्य यह भी
थोड़ा घुमाओ इसे
सत्य वह भी

५८ - बहुत तेज़
रुदन हथियार
करता वार

५९ - व्यवसाय है
ज़िंदगी जीना  भी
मुझे न आया
न कुछ कर पाया
ज़िन्दगी भर

६० - सत्य से प्रेम
मुझको है तो कभी
परहेज भी

६१ - जातीय स्मृति 
आगे चल करती 
जातीय भूल

६२ - अपने से ही 
हो पता है सीखना 
पढ़ाई व्यर्थ 

६३ - हाथा पाई में
जिसने हार खाई
है धराशायी

६४ -  बहुत कम
पसंद  आ पाते हैं
मुझे आदमी

६५ - कोई भी व्यक्ति
मुझे पसंद नहीं
न मैं किसी को

६६ - छुट्टी ही छुट्टी
सरकारी नौकरी
मज़े ही मज़े

६७ - मन संन्यासी
हो गया अब मेरा
सम्बन्धहीन

६८ -शुक्र गुज़र 
बनूँ भी तो कैसे मैं 
किसी शख्श का 
किसी ने भी तो
ऐसी कोई मदद 
मेरी नहीं की

६९ - विवाहेतर प्रेम
ही होता सच्चा प्रेम
दरअसल

७० - शरीर है तो
शरीर ही नहीं है
तिस पर भी

७१ - वह जो था न
वह सम्बन्ध नहीं
व्यवसाय था
७२ - मिले नहीं कि 
आकर्षण समाप्त
हुआ समझो

७३ - पछताने से 
अच्छा है वह काम 
करें ही नहीं

७४ - बड़ी आँख से 
छोटी लगती सारी 
रिद्धि सिद्धियाँ 

७५ - अपनी स्थिति
से पूर्ण परिचय
ज्ञान संज्ञान 

७६ - खेल खिलाड़ी 
ही समझो हमको 
रेफरी नहीं

७७ - इस बात का
ज्यादा  टूल देना तो 
ठीक नहीं है

७८ - नानी को गाली 
अपमान जनक 
सबसे भारी

७९ - दूर रहिये 
कूलर की हवा से
सीधी  टक्कर 

८० - पक्ष न लूं तो 
मैं होऊँ धीरे धीरे
बे मशरफ

८१ - प्रेम करते 
लेकिन परवाह 
उतना (बिलकुल ) नहीं

८२ - हर आदमी 
सामान, वही फिर 
सौदागर है

८३ - नास्तिक होना 
जो अनासक्त होता 
भक्त आसक्त 

८४ - ईश्वर एक
दवा भर जानिए
मनोवैज्ञानिक 

८५ - नास्तिकता तो
बनाती अनासक्त
भक्ति आसक्त

८६ - बार बार तो 
आंसू आते  लिखते
क्या पढ़ पाते

८७ - बार बार तो 
आंसू आते , क्या पढ़े
कैसे तो लिखें?

८८ - जलावतन
से मेरा देश जला
जला वतन

८९ - जो  भी कारण
देश में अपने हैं
तो गड़बड़ी

९० -  इस अखाड़े
में मैं नहीं, तू चिंता
न कर भाई

९१ - यह अखाड़ा
तुम्हारे लिए नहीं
है नागरिक

९२ - तुमसे कहा
किसने कोई चीज़
बुरी होती है

९३ - अफीम होती
बड़ी दवा की चीज़
जन बचाती

९४ - प्यार के लिए
बेकार ही समय
गवांया मैंने

९५ - तन कापड़
तन के भीतर का
मन नंगा है

९६ - मीरा ने नचा
ज़माने को नचाया
राधा नाची थी

# राधा जो नाची
ज़माने को नचाया
मीरा भी नाची

९७ - धन है नहीं
जन न कोई साथ
मन अथाह

९८ - किसी को देखो
फिर कुछ न देखो
उसी को देखो

९९ - हाथ पाई में
जो हुआ धराशायी
मुंह की खाई

१०० - थिर समुद्र
का ध्यान करो तुम
धीरज पाओ

१०१ - अब सफ़र
समय की बर्बादी
लगे है मुझे

१०२ - हाँ मैं भूखा हूँ
जैसे वे, वैसा ही मैं
निश्चित प्यास

१०३ - जाने का अर्थ
समां जाना तो नहीं
ले आना भी है
(लौट आना भी)

१०४ - नहीं लगता
मन मेरा  उत्सवों
या पार्टियों में

१०५ - घर का पता
है म घर जहाँ
आती चिट्ठियां

१०६ - जल फेंकता
उसके पहले ही
मैं फंस जाता

१०७ - अनावश्यक
आराम हराम है
जन्मेजय

१०८ - एक वर्दी है
सिपाही तैयार है
हाथ में डंडा

१०९ - की तो प्रतीक्षा
ज़रूरत से ज्यादा
अब बेकार

११० - वासनाओं ने
बड़े तारे दिखाए
आसमानों में

१११ - अब कुछ तो
सोचना ही पड़ेगा
तेरे बारे में

११२ - अपना मॉल
उन्हें तो बेचना  है
कैसे भी बिके

११३ - मैं चाहता हूँ
कोई हो मेरे लिए
जो जन देदे

११४ - बहने देना
संस्कृति सरिता को
रोकना नहीं
उपेक्षा तो करना
धीरे ही धीरे
वह चली जाएगी
खुशो खुर्रम

११५ - कुछ न होगा
कुछ भी नहीं होता
सब हो जाता

११६ - तुम हो न हो
तुम्हारे बल तो हैनं
अति सुंदर

११७ - दिन का पता
न रत का संज्ञान
जीव प्रकृति

११८  - क्या संभव है
समुद्र में डूबना
बिना भीगे ही

११९ - प्यार करना
ज्यादा ज़रूरी है या
टट्टी पेशाब?

१२० - मृत्योपरांत
कुछ तो होता होगा
जीवन पूर्व

१२१ - आई थिंक सो
बट डोंट फोलो मी
डू योर सेल्फ

 १२२ - झाडू पोछे में
बीत गयी जिंदगी
कहाँ आराम?

१२३ - आता गया था
एक के बाद एक
काम क्रम से

१२४ - छुटकारा लें
धीरे धीरे इनसे
तीज त्यौहार

१२५ - विज्ञापन तो
निज भाषा  बोलेगा
आप अपनी

१२६ - जहन जब था
कहीं नहीं गया मैं
वहीँ  अब  हूँ

१२७ - अब भी याद
उस गाँव का रास्ता
उनका घर

१२८ - न्याय किसी के
अजेंडे पर नहीं
हमारे तो नहीं

१२९ - ऐसा करते
क्योंकि ऐसा होता है
सोचते नहीं

१३० - वह जो भी है
है तो है, ईश्वर भी
हो सकता

१३२ - सो सेंसिटिव
व्हाई आइ एम् सो
शार्प माइंड

१३३ - अपना काम
शरीर करता है
मन अपना

१३४ - मौलिक मूर्ख
आदमी बहुत है
समझदार

१३५ - मुझे शक है
की हूँ आदमी मैं भी
विश्वास नहीं

१३६ - शक जो  हुआ
कोई एक बार भी
पक्का समझो

१३७ - यह क्या हुआ
कैसे मेरा  सर्वांग
दर्द समाप्त

१३८ - कोई बनाता
नहीं मुझे शोषित
मैं खुद होता
१३९ - जो है, शायद
वही होना चाहिए
वही ठीक है

१४० - थोड़ा निर्मम
तो होना ही चाहिए
न्याय के लिए

१४१ - कुछ भी पूछो
हाँ ही होगा जवाब
न नहीं मेरा

१४२ - सब अच्छे हैं
सब भले मानुष
बुरा हूँ तो मैं

१४३ -बुखार आता
तो छू ही लेते मेरा
हाथ या माथा

१४४ - छू तो लेते वो
बुखार जो आ जाता
तो मेरा माथा

१४५  -  छू तो लेते वो
मेरा माथा जो मुझे
बुखार आता

१४६ - सब जगह
गरीबी एक सी है
कहीं भी जाओ

१४७ - न अपना है
मेरे बच्चों का घर
न पराया है

१४८  - सुन्दर होना
स्त्रैण  आवश्यकता
 या कातिलाना

१४९ - इन्ही बच्चों के
साथ रहना हमें
इन्ही लोगों के

१५० - गाँव पीछे हो
शरार में, गाँव में
शहर पीछे

१५१ - ब्राह्मणवाद
परफेक्ट वाद है
विकल्प हीन

१५२ - शादी जो लड़ी
प्यार पर, की प्यार
हुआ मुश्किल

१५३ - देख पाएंगीं
अनुभवी आँखें ही
नर या मादा

१५४ - सफल व्यक्ति
आरामतलब हो
संभव नहीं

१५५ - प्रेम नाम
किस तो  चिड़िया का 
कहीं देखा क्या?

१५६ - बहुत नहीं
फिर भी खुश ही  हूँ
आप लोगों से

१५७ - सबको जीना
अपना अजेंडा है
वही मरना

१५८ - धर्म जगत
अंजना संसार
ज्ञान बाहर

१५९ - आसान नहीं
भूलना, आसान है
उनकी याद

१६० - तुम्हारी इच्छा
तुम जानो, अपनी
मैं जानता हूँ

१६१ - दुःख के साथी
नहीं हैं भाई बन्धु
सुख के साथी

१६२ - अच्छे पुरुष
इस संघ के सदस्य
अच्छी नारियां

१६३ - याद करोगे
 तो आएंगे ही वह
याद आएंगे

१६४ -  कल्पना ख़त्म
तो ईश्वर भी ख़त्म
आदमी का क्या?

१६५ - बुरी लगनी
नहीं चाहिए बातें
लग जातीं हैं

१६६ - राज्य दर्शन
लेकर आते धर्म
सब के  सब

 १६७ - घटित होगा
ऐसे ही एक दिन
हार्ट अटैक

१६७  - अच्छी तो थी
वह दुनिया जिसे
छोड़ना पड़ा

१६८ - सबसे ज्यादा
दलित है प्रकृति
इंसानों द्वारा

१६९ - दिया ही  दिया
मैंने जिंदगी भर
लिया न कुछ

१७० - जो मेरी राय
औरत के बारे में
है तो बस

१७१ - संदेह नहीं
की वह प्यार ही था
जिसके लिए .....

१७२ - फैली हुई हैं
खुशियाँ चारों ओर
उसके हो लेन

१७३ - सत्य असत्य
का प्रश्न नहीं, सब
पक्ष विपक्ष

१७४ - प्रेम करते
परवाह  भी करें
ज़रूरी नहीं

१७५ - सारा उत्साह
हवा हो जाता, कुछ
समय बाद

१७६ - साढ़े दो बजे    
टेक्निकली सही है \
असांस्कृतिक

१७७ - क्या ज़रूरी है
अंतर्राष्ट्रीय होना
इतना ज्यादा ?

१७८ -  मैं बतियाता
खुद अपने से ही
अन्य से नहीं

१७९ - मौका मिले तो
पढ़ना इसे , फिर
कूड़ा फेंकना

१८० - मैंने अपना
मनो विज्ञान स्वयं
क्रियेट किया

१८०  - भरपाई की
की तो बड़ी कोशिशें
कर न पाया

१८१ - तुम्हारा द्वार
खींचने से खुलता/
ढ़केलने से ?

१८२ - वह इतनी
गृहस्थी  चलाने में
पटु नहीं है

१८३ - सामग्री देते
लिखकर , लिखने
वालों को हम

१८४ - सहारा कोई
दे तो नहीं पायेंगे
छीन  ही लेंगे

१८५ - सुरक्षित हैं
वेश्या मोहल्ले में
दूसरी स्त्रियाँ

१८६ - इसे मिटाना
चाहता भी नहीं हूँ
मुश्किल भी है

१८७ - कोलकाता भी
है तो हिन्दुस्तान में
बेंगलुरु भी

१८८ - दिखता तो हूँ
और कैसे बताऊँ
मैं दलित हूँ !

१८९ - अब टूटना
कुछ बाक़ी नहीं है
टूट जाना है

१९० - खबर होगी
ऐसे ही एक दिन
फलाने mar इ

१९१ - पानी पियो  तो
गहरे पैठ कर
खुलिस्ता नहीं

१९२ - पाओं के नीचे
बिल्कुल ज़मीन है
हवा नहीं है

१९३ - काम से गए
काम से चले आये
ऐसे ही यात्रा

१९४ - क्या कर लोगे
समय जान कर
चलते जाओ

१९५ - नंगी न रहो
कपड़े पहन लो
ठण्ड लगेगी

१९६ - तो ही  क्या होता
मिल भी  गए होते
मुझे तुम जो

१९७ - जबर दस्ती
नहीं होनी चाहिए
हो चाहें जो भी

१९८ - आदमी कौन
देखता है भडुवा
धन - दौलत
सब पैसा देखते
गुनहगार

१९९ - मानता हूँ मैं
निष्ठुर होना पड़ा
मुझे भी कभी

२०० - बंदूकें सब
आग उगलती हैं
जंगल जले
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~!@#$%^&*()_+    THE END




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THE END
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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

एक औरत

*क्लासिक कहानी -   वह समय 
        वह समय था | यही धरती  थी | तमाम लोग , युवा और युवती | खड़े , बैठे ,चलते , स्कूटर -कार चलाते ,खाते-पीते , सोते -जागते  | अपने सर दायें या बाएँ कंधे पर टिकाये रहते | ऐसी आदत ही पड़ गयी थी उनकी | जो उनके जीन्स में आ गयी थी | जैसे सभ्यता के प्रवाह में मनुष्यों के पूँछ समाप्त  हो गए थे | वैसे ही मोबाईल कान और कंधों के बीच दबाते -दबाते उनकी यह दशा हो गयी थी | भले तब उसे संवाद के लिए मोबाईल जैसे संयंत्र की ज़रुरत नहीं रह गयी थी |  संवाद के नए सूक्ष्म तरीके ईजाद हो चुके थे , और इस्तेमाल होने लगे थे |  
* -   एक औरत
            एक औरत ने अपने पति से किसी बात पर झगड़ कर उसे बिस्तर से अलग कर दिया | पुरुष ने
कोई प्रतिवाद नहीं किया | उसने बीवी से कोई लडाई नहीं की न कोई मारपीट किया | वह कहीं और सोने जाने लगा | सोचनार्थ बात यह है की यदि वह कुछ लड़ - झगड़ कर औरत के पास सोता , तो यह पत्नी के हक में अधिक अच्छा होता , या यह जो हुवा ?
                                                                           ===============

* -  पागल
               वह व्यक्ति बहुत व्यथित था | पूरे देश में देशद्रोह और राष्ट्रप्रेम के बीच चचाएँ चल रही थीं , और उसे कोई तरीका नज़र नहीं आ रहा था अपनी राष्ट्रभक्ति  प्रकट करने का |
          बड़े उधेड़बुन के बाद उसे एक रास्ता सूझा | उसने भारत माता की एक मिट्टी की मूर्ति बड़े मनोयोग से तैयार की और उसे अपने घर के सामने प्रतिष्ठित कर दिया |  फिर रोज़ प्रातःकाल वह एक लोटा जल उस पर चढ़ाता और फूल - पत्ती छिड़क कर उसकी आराधना करने लगा |
          उसके देशभक्ति की पुष्टि हो गयी | लेकिन उधर भारत माता की मूर्ति पानी की धार से गलने लगीं |
पहले चेहरा विकृत हुआ , फिर सर , फिर धड़---| लेकिन उसे इसकी कोई चिंता न थी | उसे तो बस अपनी देशभक्ति दिखने से मतलब थी |
        अब ऐसे दुर्बुद्धि देशभक्तों के चलते भला भारत माता कब तक जीवित रह पातीं !   

सोमवार, 22 नवंबर 2010

Me in Meetings +dalit -women-secular

कथा क्रम -११/२०१०
* गालियाँ तो लिखना चाहते हैं पर गालियाँ जिस भाषा के अंतर्गत दी जाती हैं , उस लोकभाषा में कोई संवाद नहीं करना चाहता |
सब खड़ी बोली में बात करते हैं | शिवमूर्ति थोड़ा रंग देते हैं  | या फिर वह हमारे और अवधेश मिश्र बाबू के बीच होती है |
और घर में तो हम देहाती अनिवार्य रूप से बोलते हैं जो कि अब देहाती पृष्टभूमि के परिवारों के यहाँ भी दुर्लभ है |
* राही मासूम रजा ने गालियाँ लिखीं | अब गालियाँ लिखकर लोग राही मासूम रजा बनना चाहते हैं |
* यदि बेडिनें जेवर  " किसी ख़ास अंग में छिपा लेती हैं , तो उस अंग का कोई नाम पता डाकखाना जिला तो होगा !
जब उसे [ सुश्री शरद सिंह ] अश्लील नहीं मानतीं तो फिर उसका नाम लेने में क्या हर्ज़ है ? लेकिन नहीं , यही वह बिंदु है
जहाँ से लिखने और बोलने की भाषा में अंतर आ जाता है | तथापि यदि खुलकर लिखना ही है तो अभी तमाम मंजिलें
आगे शेष हैं | लिखने वाले विचार करें , मेरे लिए कहना ,वह भी लिखकर देना संभव नहीं है |
*लेखक भाई कितनी चिट्ठियां ?
लोग उपन्यास पर उपन्यास लिखे जा रहे हैं | इससे उन्हें प्रेमचंद और चेखव के लाइन में बैठने की उम्मीद बनती है |
जब कि सरोकार तो  प्रकट होता है तुरत टिप्पणियों , फ़ौरन दखलंदाजी से | मैं इनसे पूछता हूँ उन्होंने अब तक कितनी
संपादक के नाम   चिट्ठियां लिखीं , जिन्होंने अपनी पैंतीस साल की उम्र में पांच -पांच उपन्यास लिख डाले हैं ? फिर भी
बातें करते हैं साहित्यकार के सरोकार की  | नहीं , वह भी नहीं , " साहित्य के सरोकार " की !
seminar = state religion and the marginalised - 20-21/11/2010
rajiv bhargav/alok rai /aditya nigam / jyoti punwani / sajid rasheed / badri narain / rajaram bhadu/ razia patel/ d m diwakar etc. and above all the organiser prof roop rekha verma .
* यदि दलितों को दलित नेताओं से छुटकारा मिल जाए तो  तो उनका ज्यादा कल्याण हो जाए | लेकिन ऐसा होगा नहीं |
यदि दलित अपनी स्थिति कुछ बदलना भी चाहेंगे तो नेता उन्हें बदलने नहीं देंगे ,और उन्हें दलित का दलित ही रहने
देंगे | वरना उनकी नेतागिरी कैसे चलेगी | मुझे आश्चर्य है कि दलित शब्द के अर्थ पर कोई गौर नहीं करता ,या फिर जानते हुए भी दलित कहलाना चाहते हैं | कहाँ गया सम्मान का सपना ? इससे ज्यादा सम्मानजनक तो चमार का नाम था जो कम से किसी काम से तो जुड़ा था , कोई कर्तव्य बोध का आदर भाव तो था ! और अब तो कोई काम छोटा -बड़ा नहीं रह गया |
समृद्ध -संपन्न होने के बाद भी लोग दलित कहलाना चाहते हैं तो इसका क्या मतलब है ? और यदि अल्प लाभ के लिए
ये दलित नाम से चिपके रहेंगे तो चिरकाल  तक दलित बने ही रहेंगे | और जाति-उन्मूलन के किसी प्रस्ताव  पर जिस तरह
इनकी असहमति होती है ,उसे देखते हुए यह लगता है कि ब्राह्मणवाद ही चलेगा अपने अंतर्वस्तु में | वर्ना कोई कारण नहीं कि
जिस तरह मनुस्मृति को गाली देकर दलितवाद परवान चढ़ा ,उसी के चपेट में स्वयं आ गया और उसकी  हुयी निम्न स्तरीयता
को वह मजबूती के साथ स्वीकार कर लेता नाम के लिए और व्यवहार में वह स्वयं ब्राह्मण हो गया |
* यदि हर वर्ग को उसके समुदाय में रखकर ही सोचना है तो फिर खाप पंचायतों से किसी बाहर के आदमी को कोई
परेशानी नहीं होनी चाहिए |
* मेरे अनुभव में नहीं है कि हिन्दू दरवाजों से मुस्लिम  फकीरों को वापस  कर दिया जाता   हो |
* भारत का किसान , यदि  उसे उकसाया न जाए तो , यह सोच ही नहीं सकता कि वह अनाज क्यों उगाये  ?
*  राजनीतिक चेतना का परिणाम भी हो सकती है साम्प्रदायिकता | तो क्या साम्प्रदायिकता विरोध के नाम पर राजनीतिक चेतना को दबाना उचित होगा ?
* अल्प संख्यक , बहुसंख्यक  साम्प्रदायिकता के बारे में गौर से विचार करना होगा और कई तरीकों से भी | एक तो
हिन्दू समाज का बहुत काम प्रतिशत साम्प्रदायिक है | मुस्लिम साम्प्रदायिकता रुई कि तरह फैली नहीं है पर वह लो भी है ,ठोस , भरी और वजनी है | इसलिए उसे अल्पसंख्यक या छोटी साम्प्रदायिकता कहकर उसे नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं |
* रज़िया पटेल ने अच्छा ध्यान खींचा कि संविधान में freedom of conscience है  ,न कि freedom of  religion . उनका आशय था कि अंतरात्मा निजी होती है , जब कि धर्म संस्थाबद्ध | सही बात है |
* सेमिनार का तरीका    गोष्ठी  में वक्ताओं के अतिरिक्त बहुत सारे लोग कहने से रह जाते हैं | हो यह कि मुख्य वक्ता तो एक घंटा बोले पर उसके बाद भी कुछ वक्ता केवल सवाल पूछने तक सीमित न रहे बल्कि वे भी दस पन्द्रह मिनट बोलेन |
इस तरीके में वे भी अपनी बात कह सकेंगे जो ज्यादा डिग्री संपन्न नहीं हैं , जो पी. एच डी नहीं हैं , किसी विश्वविद्यालय
के प्रोफ़ेसर नहीं है , जिनकी किताबें नहीं छपीं ,फिर भी वे विषय पर कुछ राय ,समझदारी और गंभीर रूचि रखते हैं |

* Rationalism should take the place of nationalism , and this nationalism should be the basis of  state .
*Not Indian , but humanist culture sould rule over the world .
* Dedication to the cause of nation is nationalism .
* 0ur civilisation should be told as not only 5000 years old .It is as old as the birth of first human being
over the earth .
* If the Indian  secular state can not do away with islamic power cult ,hindu citizenry may force the state
to be a hindu state and delete the word secular from the constitution .
* क्या किसी देश में इज्ज़त के साथ रहने के लिए अल्पसंख्यक - बहु संख्यक होना ज़रूरी है ?
*स्त्री आन्दोलन ने स्त्री- पुरुष संबंधों को समस्या जनक बना कर रख दिया है | इतना छुवो इतना न छुओं , इतना करो  इतना न करो  ,  इतना बोलो   इतना न बोलो |
* जब कुछ अनुभव प्राप्त हो जाता है , कुछ करने , लिखकर देने का वक्त आता है , तब तक बुढ़ापा आ जाता है | तब न आँख काम करते हैं , न हाथ -पाँव |
हाइकु   कवितायेँ
१ -  हिन्दुस्तान में
कुछ भी होना नहीं
है असंभव |
२ -  दिन में याद
रात में सपनों में
आते हो तुम  |
३ -  क्या कर लेगा
छोटी सी भूमिका में
कोई आदमी  |
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शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

बुरा न मानो

७ -
६ - अब किसी भी सभी मनुष्य को मानवता के लिए शहीद होने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी | कट्टर पंथीं ताकतें उन्हें उनके पास खुद जाकर मौत के घात उतारेंगी |

५ * [प्रति-यथा कविता]
       मुझे कुछ नहीं कहना
यदि आप इसी तरह खुश रहना चाहते हैं
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना
सरकारी वेतनभोगी ही सही ,
यदि आप चौराहे पर खड़े
पुलिस सिपाही को गोली मारकर
ठहाका लगा सकते हैं
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना ,
यदि आप भीड़ में खड़े 
कुछ जन - जंतुओं को जिंदा जलाकर 
अपना झंडा ऊंचा करना चाहते हैं 
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना |
                                     ===============
४ - * [कथावत]            वह  जवान लड़का -------------
   बस में वह इस स्थिति में था की उसका अंग -हाथ लड़की के अंगों से लग जा सकता था |
जाने कैसे उसे अपनी बहन की याद आ  गयी | वह भी तो इसी प्रकार अकेले आती -जाती  है  |
उसे भी तो देर हो जाती है | वह आश्वस्त नहीं हो पाया  कि उसकी बहन से कोई दुर्व्यवहार नहीं होता होगा ,
लेकिन उसने तय  कर लिया  कि इस घडी भर की  बहन के साथ कोई बदतमीजी  नहीं होने देगा , वह भी अपने द्वारा  |
 और  वह निश्चिन्त इत्मिनान से हो गया |
                                                =================
३ - [विचार -अभ्यास ]
 * अंतर्ज्ञान  नहीं  " अन्तरज्ञान " , knowledging  the  difference or distinction between the two or many .
We find that this the most scientific way of knowing anything . i.e. DISTINCTISM    KYA ?
                                  ===================
२ - [उवाच ]  * मैं हिंदी लिखना जानता हूँ | हिंदी पढ़ी है मैंने  | ऐसे में यदि मैं हिंदी में कुछ चिट्ठी ,
कविता , कहानी लिखता हूँ , तो क्या कृपा कर देता हूँ !
                                                   ===================
१ - [हाइकु ]
* मुझे न देखो
जैसा आप उचित
समझो , करो  |

*जहाँ आदमी
तहां नर्क समझो
बुरा न मानो  |
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गुरुवार, 18 नवंबर 2010

Ghalmel zindgi [raja,ayodhya]

कविता
औरंगजेब को याद करो
और फिर , 
अपने  मंत्री  से पूछो :
उसे टोपियाँ सिलनी
आती हैं या नहीं ?
                       ====
* धर्मनिरपेक्षता के चलते भारत में हिन्दू राज्य नहीं हो सकता | लेकिन इसी वजह से हिंदुस्तान में इस्लामी राज्य भी नहीं हो सकता |
                                                                                      ========
* मूर्ख हैं हिन्दू मुसलमान दोनों हिंदुस्तान के | अरे , अयोध्या में उन्हें एक -एक कमरा
एलोट हुआ था ,बगल में सीता रसोई थी जहाँ के बारे में कहा जाता है कि वहाँ भोजन
कभी समाप्त नहीं होता | क्या दिक्कत थी ? आराम से रहते | जैसे हिन्दू मुसलमान सामान्य जीवन में देश में साथ साथ रहते हैं | और खीर -पूड़ी , कबाब -बिरयानी खाते ! पर उन्हें 
कौन समझाए | मेरे जैसा कोई बुद्धिजीवी भी तो नहीं है उनके पास ! और मेरी आवाज़ उन तक 
पहुँचने का कोई साधन नहीं है | [ व्यंग्य वाणी ]
                                                    =========
* मुझे अब यह बड़ी शिद्दत  से से महसूस हो रहा है कि दुनिया में मूर्खता की प्रबलता है , और मूर्खता का ही साम्राज्य होना है | इसलिए अब कुछ बोलने का , किसी से बातें करने का मन नहीं होता | फ़िज़ूल 
हो जाती हैं सारी बातें |
                                           =====================
* बहुत शानदार , महान बनना  नागरिक के किसी काम नहीं आता | उसे रहना पड़ता है अपने जाति और समुदाय 
में ---  दफ्न होना  पड़ता है अपने धर्म के कब्रिस्तान में | फिर बातें करते रहिये world civil code की !
                                                                                                                                      =======================
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