बुधवार, 14 नवंबर 2012

गोबर्धन पहाड़

इस घटना की एक और काल्पनिक [ हाँ काल्पनिक ही , पर सत्य के अधिक निकट ] हो सकती है | गावों में गोबर - धन को उपलों [ गोबर के सुखाये गए चिपटे ,कहीं कंडे भी कहे  जाते  हैं ]  के रूप में भी रखा जाता है, ईंधन के लिए | बड़े बड़े उपलों को एक दूसरे के ऊपर रखते हुए पिरमिड  के आकार में | वह ढेर पहाड़ जैसा ही लगता है | संभव है , उन्ही उपलों को सबने अपने हाथों पर एक एक उठा लिया हो और करीब करीब खड़े हो गए हों | गोबर का पहाड़ ऐसे ही उठा होगा | जैसे वह किस्सा याद कीजिये एक व्यक्ति ने एकता का पाठ सिखाने के लिए लकड़ी के गट्ठर को तोड़ने को कहा था , जिसे वे नहीं तोड़ पाए | और जब लकड़ियों को अलग अलग करके दिया तो उन्होंने आसानी से तोड़ लिया | गोबर के एक एक उपलों [ ये बड़े आकार में भी बनाये जा सकते हैं छाते की तरह ] से गोबर्धन पहाड़ बन गया , जिसके एक एक उपले उठा कर बृजवासियों ने मनो गोबर्धन पहाड़ ही उठा लिया | अन्यथा मान ले कि सब फिक्शन है |

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