* अब आदमी की पहचान
उसके कपडे जूते , मोटर गाड़ी से
होने लगी है ,
और प्यार की मात्रा नपने लगी
इस बात से कि वैलेंटाइन दिवस का
कार्ड कितना लम्बा था, या आपने
कितना मँहगा तोहफा दिया |
क्या कहा जाय कि -
दुनिया अब सचमुच
" दुनिया " हो गई है , और
इसमें दुनिया से अलग
अब कुछ भी नहीं है ?
# # #
[ यह कविता नहीं है ]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें