शनिवार, 30 नवंबर 2013

[ नागरिक पत्रिका ] 1 से 30 नवम्बर , 2013


* मूर्ख ही नहीं
बेवकूफ भी तो हैं
क्या समझाएँ !

* सारा बाज़ार
बनियों का जाल है
बच लीजिए |

* अफवाह हैं
चुनाव सर्वेक्षण
विश्वास न दें |

* काम की चीज़
लिखिए तो हाइकु
नहीं तो नहीं |

* दिखाते भी हैं
फिर शिकायत भी
देखते क्यों हो ?

* प्रेम करता ?
झूठ बोलता वह
बचना बाबा !

* धैर्य तो रखो
कोई लाभ नहीं है
घबराने से |

* तुम नहीं हो
मन नहीं लगता
किसी काम में |

* चलते रहो
कोई साथ न देगा
अकेले चलो |

* ताड़ सोचता
तिल भर लिखता
सूक्ष्म देखता |

* मन में पाप
जाति सम्प्रदाय का
न लाना चाहूँ |

* किसी ने कहा
हमने जैसे सुना
फौरन लिखा |

* मेरा महत्त्व
मुझमें निहित है
कोई क्या जाने !

* जो है ही नहीं 
दुनिया पागल है 
उसके पीछे |

* भागना ही है 
तो भागो , जल्दी भागो 

ज्ञान के पीछे |

धर्म तब भी अप्रासंगिक हैं हमारे लिए यदि वे अच्छी बातें सिखाते हैं | इन बुरे वक्तों में अच्छी , चिकनी चुपड़ी बातों का क्या महत्त्व ?

* चेहरा अलग
मनुष्य का चेहरा ही उन्हें अन्य मनुष्यों से अलग करता है |चेहरे न होते तो सब मनुष्य , स्त्री और पुरुष एक से दिखते , एक ही होते !

* " पशुता " को एक अवसर दो |

* अच्छी तरह जान लीजिये , जान नहीं देना है किसी के लिए | न नास्तिकता के लिये , न आस्तिकता के लिए | नास्तिक नहीं हो पा रहे हैं तो कोई बात नहीं | या जितना हो पा रहे हैं उतना बहुत है | शेष आस्तिक बने रहिये कोई दिक्कत नहीं है |
इसी प्रकार यदि यदि पूर्ण आस्तिक नहीं बन पा रहे है तो भी कोई समस्या नहीं है | जितना आस्तिक हैं उतना बहुत है | उतने से संतोष कीजिये क्योंकि आप जैसा और जितना आस्तिक भी बहुत कम हैं | और आस्तिकता के जितने पाखण्ड आप पचा नहीं पा रहे हैं , उसे छोड़ दीजिये | वाही पर्याप्त नास्तिकता है | जल्दबाजी न कीजिये | हीन भावना न पालिए | जान न दीजिये | जीवन महत्वपूर्ण है |

* हिन्दू तो ईसाई या मुसलमान हो सकता है ( तभी तो होता है ) | लेकिन क्या मुसलमान और ईसाई भी हिन्दू होते हैं ? कारण कोई हिन्दू में अनाकर्षण का होना तो नहीं हो सकता ( यह बहुत ही रोचक है ) , बल्कि उन धर्मों में बन्धनों की कठोरता है , जिससे वे नहीं निकल पाते , जितनी आसानी से हिन्दू निकल कर धर्म परिवर्तन कर लेता है | लेकिन यह भी है कि वहां भी बहुत सारे लोग निकलने की छटपटाहट में हैं , वज्ञानिक सोच के और सेक्युलर हैं | उनकी मुक्ति का मार्ग है हिन्दू होना | यद्यपि वे जैसे हैं वैसे भी रह सकते हैं , लेकिन कठिनाई यह है की उनकी कुल मिला कर संख्या इतनी कम होती  है कि उनके कोई असर समाज और देश की राजनीति पर दृष्टव्य नहीं हो पाता , जैसी ताक़त वे हिन्दू के समुदाय बनकर बटोर सकते हैं | अब प्रश्न उठता है कि हिन्दू होकर वे किस जाति में माने जायेंगे ? उत्तर आसान है - " है न " शुद्र " वर्ण " ? शुद्र होने में ब्राह्मण - दलितों को एतराज़ हो सकता है , लेकिन बुद्धिवादी का टी यह अहोभाग्य जो वह शुद्र होकर शूद्रों का साथी बन सके | फिर स्वाभाविक शुद्र तो हिन्दू का बगावती गुट है ? फिर तो समझिये शुद्र होना एक तरह से हिन्दू से भी मुक्त होना हो गया | इस तरह पूरी धार्मिक आज़ादी मिल गे |

* मेरा घर है मेरा राष्ट्र -
राष्ट्रवाद एक अत्यंत छुई मुई विषय हो गया है | कुछ संगठनों द्वारा इसके कट्टर इस्तेमाल के कारण यह अनावश्यक बदनाम हुआ और इसके चलते ईमानदार देशप्रेमी भी संदेह की दृष्टि में आ जाते हैं | लेकिन चूँकि मैं अपने कारणों से राष्ट्र से लगाव रखता हूँ इसलिए इसलिए इस पर अलोकप्रियता का खतरा उठा कर मुझे बोलना तो होगा | किसी पर असर हो , न हो | अव्वल बात तो यह तथ्य कि राष्ट्रवाद के तमाम विरोधी, कथित अंतर राष्ट्रवादी अभी तक तो विश्ववाद का कोई कोना हासिल करके नहीं दिखा पाए | बिना वीजा पासपोर्ट अमरीका ( ज्यादातर ये वहीँ जाते हैं ) नहीं जा पाए , न ब्रिटेन में ( यहाँ भी जाते हैं ) हिन्दुस्तानी गाँधी मार्का सौ - पांच सौ का नोट ही भुना पाए | दरअसल इस्लामी और साम्यवादी अंतर राष्ट्रवाद इस कुत्सित इरादे के तहत मात्र है की एक दिन ये पूरे संसार के शासक हो जायेंगे | छलावे में जी रहे हैं ये और इस अभियान में विश्व शांति का विनाश ही कर रहे हैं | दुसरे इसके चलते अपने हकीकतन मुल्क या देश को हेय दृष्टि से देखते हैं | उसकी सेवा , और उसके ज़रिये मानवता की सेवा जो ये कर सकते थे वह तो नहीं कर पाते , उलटे राष्ट्र विरोधी कुकृत्यों में लिप्त हो जाते हैं |
बहरहाल , उनकी वे जानें , मैं अपने राष्ट्र का मतलब खुद अपने तरीके से लगता हूँ | मेरा गाँव में कुछ ज़मीन और एक रिहाइश है | लखनऊ में 450 वर्गफीट में एक LIG आवास आवंटित है | अब मैं क्या चाहता हूँ ? यह कि मेरे घर सलामत रहें , जिसमे रहने वाला मेरा परिवार , मेरे बच्चे सुरक्षित रहें | न मैं किसी के निजी घर में घुसूं न कोई मेरे कमरे पर हमला कर मेरे बच्चों को मारे | तो मैं क्या गलत चाहता हूँ ? इसी को अब बढ़ा कर देखते हैं | मेरा घर तभी सुरक्षित रहेगा जब मेरा अलीगंज मोहल्ला बचेगा | अलीगंज लखनऊ शहर के बचना से बचेगा , लखनऊ , यू पी के बचने से और यू पी की सलामती भारत नामक एक ऊबड़ खाबड़ देश की सुरक्षा पर निर्भर है | इसलिए मैं इसके लिए हाथ पाऊँ मारता रहता हूँ | बहुत पढ़ा लिखा विद्वान् नहीं हूँ कि इसकी आलोचना में इतनी दुर्गति कर दूँ कि मेरा घर , मेरा पनाह मुझसे छिन जाए |
दूसरा तर्क मेरा बिलकुल देहाती किसनई का है | तीन एकड़ का एक चक है मेरा | उसे मेरी पूरी धरती मान लीजिये | फिर भी उसे मेंड बाँध कर कई टुकड़ों में बांटते है | इससे एक तो सिंचाई में आसानी होती है , दूसरे कई किस्म की फसलें अलग अलग खेतों में उगाई - पैदा की जा सकती हैं | इसे देश की सान्स्क्रित्क विविधता से जोड़ सकते हैं | एक और हँसी की बात ! खेत के एक एक टुकड़े को भी पूरा एक एक खेत ही कहते हैं | मानो एक एक देश अपने में एक पूर्ण विश्व हो | लेकिन कोई इसे ऐसा समझे तो ! सब अपने को अधूरा ही समझते हैं और अपने देश की सीमा फैलाना ही चाहते हैं | क्या इसे अपूर्ण - अतृप्त राष्ट्रवाद कहें ? हा हा हा |
तो इस प्रकार मेरा तो घर - ज़र - ज़मीन ही मेरा राष्ट्र है , और मैं इसी तरह का राष्ट्रवादी हूँ |

* तीसरी बार टला संस्कृत संस्थान का पुरस्कार वितरण समारोह " - समाचार ( N BT - ३/११/२०१३ )
# क्यों नहीं टलेगा ? उर्दू , अरबी , फ़ारसी का समारोह करो | दौड़े आएँगे मुख्यमंत्री , मुख्यमंत्री  क्या मुख्यमंत्री के पिताजी भी | चाचा जी भी , ताऊ जी भी |

* मैं अंग्रेजी पढ़ने की वकालत इसलिए करता हूँ कि जिससे आदमी कम से कम पोस्टमैन की नौकरी तो पाने लायक हो जाय !

* मैं ईश्वर के खिलाफ नहीं , उसके रूढ़ होने के खिलाफ हूँ |

* मान लीजिये मैं "आसा वादी "हूँ | तो क्या मुझे आस्तिक मान लिया जायगा ? 

* कोऊ नृप होय हमें का हानी ( या लाभा भी कह सकते हैं ) | यह स्थिति कहने वाले के मुंह से कैसे निकलती होगी , उसे कैसा अनुभव होता होगा ,वह मैं अभी से महसूस हो रहा है | जो और जैसा माहौल बनाया जा रहा है , उसके चलते यदि मोदी कहीं सचमुच पी एम बन गए तो मेरी वही दशा होगी  , और मैं भी यही दोहा दुहराऊँगा |

* बड़े लोगों से तुलना छोटे लोगों के लिए हमेशा नुकसानदेह होती है | तमाम हाथ पावं मारे मोदी जी ने पटेल के समकक्ष अपने को मनवाने के लिए | लेकिन एक ही बयान में धराशायी हो गए कि - " यदि पटेल होते तो मोदी को हरगिज़ अपना उत्तराधिकारी न बनाते " |

* हिसाब किताब का न मिलना भ्रष्टाचार ही हो , ज़रूरी नहीं |

* जो दोनों वक़्त खाना खाते हैं वे भारत जैसे गरीब मुल्क के कम्युनिस्ट नहीं हो सकते |

* खुल गया - खुल गया -खुल गया
" आस्था इंजीनियरिंग वर्कशाप " -
by - Er Ugra nath
[ Aastha Engineer ( A.E.)]

* खानदानी हों तो टेढ़े, ऐंचे, भेंगे, काने एक्टर भी फ़िल्मी हीरो बन जाते हैं |

* तुम न आओगे तो सड़ जाए मेरी लाश ,
इतने भी कम नहीं हैं मेरे चाहने वाले |

* देखिये भाई , हमें नीति पर कायम रहना ही होगा , रहना ही चाहिए | हम किसी भी देश , जाति , धर्म , लिंग के व्यक्ति हों | व्यक्तिगत रूप से ही सही |

क्या आपने गौर किया सारे नियम - कानून व्यक्ति के लिए होते हैं | इसीलिए तो गलती या अपराध के लिए व्यक्ति को ही सजा होती है | किसी पूरे समाज - सम्प्रदाय को नहीं | इसलिए मैं तो व्यक्ति को समाज से ऊपर महत्त्व देता हूँ | व्यक्ति भला तो समाज भला |

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

[ नागरिक पत्रिका ] 27 से 31 अक्टूबर , 2013

* अपना पक्ष तो हर किसी का कुछ न कुछ होता ही है | लेकिन जो दूसरे का पक्ष जान -सुन - समझ कर  अपनी राय बनाने - बदलने को तैयार होता है , उसे 'निष्पक्ष ' कहा जाता है |

* कहते हैं धर्म तो एक है - मानव धर्म | तो धर्म की भाँति राजनीति भी तो एक हो - जन सेवा की नीति ! अतः पार्टी भी एक ही हो , नाम कांग्रेस ही हो सकता है ( मानो JP की दलविहीनता की तरह ) | उसके भीतर ही वैचारिक विविधता वाले गुट - समूह हो ( जैसे स्वयं भारत देश ) | लोकतांत्रिक चुनाव आयोग तो पार्तितों पर रोक लगा नहीं सकता | लेकिन कुकुरमुत्तों से नुक्सान भी बहुत हो रहा है | अतः वोटर यदि यह मन बना ले कि वह केवल एक ही पार्टी को रखेगा | और यदि उसमे उसके पसंद का उम्मीदवार खड़ा किया गया है { जैसे मेरे लिए हिन्दू - दलित } तब वह वोट देगा , अन्यथा रिजेक्ट करेगा | यह विषय नया है , गंभीर और लम्बा | वोटर तय करेंगे | अभी हमारी वोटिंग राईट की ताकत अनेक दलों में बाँट कर  बेअसर हो रही है |

* Walking while talking , is what mobile phone is meant for !

* विवाह या सहजीवन प्रस्ताव के लिए न सही , मैं यूँ ही बताता हूँ कि मैं मानसिक - वैचारिक स्तर पर एकल , अकेला हूँ | मैं Single हूँ | इस मायने में कि मैं दोगला नहीं हूँ | मैं विचारों में दोगलापन नहीं करता | तो single ही तो हुआ ?

* तेरा द्वार खटखटाए क्यों ?
कोई तेरे पास जाए क्यों ?
तमाम बंदिशें हैं तेरे दर /
तुझे देवता बनाए क्यों ?

* कवियों की दशा देखी ,
कविता का नशा छूटा |
#    #

[कविता ? ]
* आगे देखना ,
दायें बाएं का
ख्याल रखना
उनका काम |
मेरा काम , केवल
उन्हें देखना |
#   #

* आस्तिक होने के लिए कोई ज़रूरी तो नहीं कि अपनी सारी बुद्धि को गिरवी रख दिया जाय ? जैसे मैं राष्ट्र में विश्वास रखता हूँ तो भी यह क्यों समझूं और कहूँ कि 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ' ?

* मरहूम राजेन्द्र यादव ने यह दिखा दिया कि वह दलितों के अतिरिक्त नवयौवना लेखिकाओं से भी कुछ आत्मकथाएँ बुनवाकर उन्हें कहानीकार बना सकते हैं | अब उन्हें प्रोत्साहन कौन देगा ? निश्चय ही श्री यादव एक सकर्मक साहित्यकार, या नहीं तो, सम्पादक थे |

* स्वतंत्रता पूर्व मुसलमानों को लगा होगा कि अलग पाकिस्तान बनने से उनका फायदा होगा | इसलिए  देश बंटा | अपनी सुविधा के लिए वहां से उन्होंने हिन्दुओं से छुटकारा पाने की भी जुर्रत की | और अब , ज़ाहिर है पाक देश को भारत से दुश्मनी करने में लाभ नज़र आ रहा होगा , इसलिए वह हर संभव सामरिक तरीके हिन्दुस्तान के विरुद्ध अपना रहा है |
अब इतना यदि अब इस तरीके से समझ लें तो यह रास्ता भारत के लिए ईजाद करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि पाकिस्तान का सही, सटीक, प्रतिरक्षात्मक उत्तर यह होना चाहिए कि पाकिस्तान से शेष बचे भारत के मुसलामानों को यह निश्चित आभास दिया जाय कि " पाकिस्तान का बनना उनके लिए फायदेमंद नहीं हुआ " | उन्हें इसका खामियाजा स्वयं भुगतना चाहिए, भुगतने का आफर करना चाहिए | उन्हें नैतिक साहस करके यह कहना चाहिए कि चूँकि पकिस्तान भारत से तकसीम होकर बना | मुसलमानों का इस्लामी देश बना, बांगला देश भी कोई सेक्युलर शासन नहीं बना | और वह उस भारत से दुश्मनी निभा रहा है जिसमे हम रह रहे हैं | तो ऐसे में एक नैतिक , ईमानदार मुसलमान की हैसियत से हिन्दुस्तान पर राज करने, राज करने वालों की श्रेणी से अपना अधिकार हम विद्ड्रा करते हैं , वापस लेते हैं | निश्चय ही यह भारत के सेक्युलरवाद और लोकतंत्र की कृपा है कि हम सत्ता में इस प्रकार भागिदार हैं कि हम वोट दे सकते हैं | लेकिन हम शासक नहीं होंगे | हम किसी चुनाव में खड़े नहीं होंगे | तभी वे पाकिस्तान के खिलाफ भारत की लडाई को मजबूती दे सकेंगे |
यह कुछ अति दिख सकता है , लेकिन यदि हम देवता बनने की महत्वाकांक्षा न पालें , तो यह मानना होगा कि इतिहास का फल वर्तमान को भुगतना पड़ता है | ब्राह्मणों को दलितों के लिए आरक्षण स्वीकार करना पड़ता है | बाप का किया या क़र्ज़ सन्तान को भरना होता है | तो यह ठीक है कि सर्कार बनाने की प्रक्रिया में वे भाग लें , वोट दें | लेकिन सरकार न बनें, MLA , MP, मंत्री वगैरह | देश के संसाधनों पर 'पहला हक ' भी लें , अच्छी से अच्छी , बड़ी से बड़ी नौकरियाँ करें , लेकिन देश के विधाता बनने का सत्यशः उनका हक तो नहीं बनता | कहे कोई कुछ भी | अन्यथा वे यह तो बताएं कि कश्मीर मुद्दे और भारत पर होते रहते आतंवादी तो छोड़ दीजिये , सरकारी हमलों के मुद्दे पर भारतीय मुसलमान कहाँ खड़ा है ? कितना सक्रीय और उत्तेजित है पाकिस्तान के खिलाफ ? तो क्या साड़ी सदाशयता केवल हिन्दुस्तान के ही जिम्मे है या होना चाहिए ? यह तो सरासर और सीधे सीधे अत्याचार है भारत पर , मानसिक रूप से | इसलिए पाक से भारत की राजनय कुछ अलग ढंग की होनी चाहिए | ध्यान देना होगा कि इनकी उत्पत्ति और विकास की कथा अलग है | पाकिस्तान में भी कुछ हिन्दुस्तान शेष है तो हिन्दुस्तान में कुछ ज्यादा ही पाकिस्तान भी है | ये दोनों अभी कुछ ही समय पहले तक एक ही थे , और यह विभाजन वृहद् भारत अभी भुला नहीं पाया है |      
सही है मुसलमान भारत के द्रोही नहीं , लेकिन न्याय होना ही तो काफी नहीं है | न्याय होते कुछ साफ़ , स्पष्ट और कड़क दिखना भी तो चाहिए |
आखिर उनके अपने तमाम किस्म के राजनीतिक आन्दोलन हो रहे हैं , तो अत्यंत राष्ट्रीय महत्व के इस मुद्दे पर क्यों नहीं , जिस पर कि भारत में मुसलामानों का भविष्य निर्भर है ? या वे यहाँ अपनी स्थिति के प्रति बिलकुल मुतमईन हैं , कि हिन्दू भारत उनका कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा | ऐसे में यह शक होता है कहीं वे इस आशंका में तो नहीं हैं कि वे तो भारत को इस्लामी राज्य देर - सवेर बना ही लेंगे ? देखा नहीं आपने AMU के अल्पसंख्यक चरित्र के उन्होंने ज़मीन आसमान एक किया , उर्दू के लिए , मदरसों के लिए , इत्यादि | यहाँ यह बात भी उठती है कि अल्पसंख्यक के मायने क्या हैं ? अल्पसंख्यक हो तो उसी तरह रहो | बहुसंख्यक पर शासन क्यों करना चाहते हो, उन्हें परेशान क्यों करते हो दबंगई द्वारा ? अन्य और भी तो समुदाय अल्पसंख्यक हैं , वे तो इतना उत्पात नहीं मचाते |

* " बच्चे ईश्वर की देन नहीं हैं | "
[ चाहे एक हों या एक दर्जन | आज अमर उजाला में एक खबर है - ' पोषक तत्व न मिलने से अपंग हो रहे हैं गर्भस्थ शिशु ' | अब चाहे संघ की सलाह मानिए या अपने स्वयं के विवेक की ]

* " दिल्ली दूर नहीं है "| यह मुहावरा उनके लिए तो ठीक जो दिल्ली से दूर हैं, और दिल्ली फ़तेह करना चाहते हैं | लेकिन यदि " आप " का  कार्यक्षेत्र ही दिल्ली है, तो आपको क्या खा जाय ? यही तो कि " दिल्ली भारतवर्ष नहीं है " |

* मैं इस कथन के लिए पूरी तरह से मुआफी मांगता हूँ , लेकिन जो मैं महसूस करता हूँ उसे कहने से बचना नहीं चाहिए | कि इस्लाम ने वैश्विक अध्यात्म का बड़ा नुकसान किया | आदमी के दिमाग को ऐसा बाँध दिया की उसकी आत्मा खुल कर बाहर आ ही नहीं पाती | कहीं बंधे , बने बनाये तरीके से पूजा करने नमाज़ पढ़ने से रूहानी तरक्की होती है ? निश्चय ही इससे निकलने का प्रयास हुआ , शायरों ने किया | लेकिन वह बस शेरो शायरी में गम हो गयी | चिन्तन में , निबंध में , दर्शन में इसके कोई परिवर्तन नहीं हुआ | और होता भी कैसे , जब इसे अपनी कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं | और नए प्रयोगों का तो कोई सवाल ही नहीं उठता ! क्या कुछ हुआ इतने वर्षों में ? बस यह हुआ कि बहत्तर फिरकों में बंट गए , लेकिन मूल विशवास , अंधविश्वास वही रहे | मेरी तरफ से किसी परायेपन का भाव नहीं , हमारी चिंता मनुष्य का नैसर्गिक विकास है | भारत में तमाम गड़बड़ियां हुयीं , वह आलोच्य हो सकते हैं पर मानना होगा कि यहाँ इसकी गुंजाईश तो है ? विविध , विरोधी विचार धाराएं पनप तो सकती हैं | यहीं यह भी तो संभव हुआ कि जे कृष्णामूर्ति order of star तक को फेंक कर किनारे हो जाते हैं !

* खाप पंचायत की भूमिका -
एक गोत्र में शादी नहीं हो सकती , या लड़का लड़की अपनी मर्ज़ी से विवाह नहीं कर सकते | ये बातें अब आधुनिक युग में नहीं चलेंगी | फिर भी सत्ता के विकेंद्रीकरण और सामजिक दबाव के तहत पंचायतों की भूमिका से तो इन्कार नहीं किया जा सकता | तो फिर इन्हें भी अपनी मानसिकता प्रगतिशील समय के साथ बदलना होगा | अब इन्हें यह भूमिका ऐडा करनी पड़ेगी कि इनकी लडकियां  जो अन्य जाती व धर्म में विवाह करके गयी हैं , उन्हें उनके ससुराल वाले किसी प्रकार तंग - परेशान न कर सकें | और यदि वे ऐसा कुछ करने की हिमाकत करें तो इनकी खाप पंचायतें वही करें जो आज ये अपने ही मासूम संतानों के खिलाफ करते हैं |

* धर्म तब मज़हब होता है , जब कोई किताब किसी की होती है किन्तु वह दूसरे की नहीं होती | जब कुरआन हिन्दू नहीं पढ़ता , गीता मुसलमान की पुस्तक नहीं नहीं होती | लेकिन इतनी भर परिभाषा मज़हब के लिए काफी नहीं है | अब पारी आती है इस बात की , कि धर्म धर्म तब बनता है , जब उसके लिए कोई मर मिटता है , उसकी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता | यदि कोई हुसैन के चित्र नहीं देख सकता तो समझिये वह हिन्दू है | हिन्दू तब धर्म न होकर मज़हब हो जाता है | और मुसलमान है वह जो मोहम्मद के कार्टून बर्दाश्त नहीं कर सकता |

* Logic Machine : by : [ er.ugranath.nagrik@gmail.com ]
प्रवचन (sb) Tungston
बीरबल (युक्ति न्याय)

* बल जो है तो
बलात्कार करेंगे ?
अजीब बात !

* सोचिये कुछ
कुछ सोचिये भाई
लक्ष्य पूरा हो |

* काँटे ही काँटे
चुने अपने लिए
पुष्प तुम लो |

* जाने क्या बात
मन नहीं लगता
चकाचौंध में |

* जाल हटाओ 
पंछी उड़े न उड़े 
उसका काम !

* शिक्षा तो मात्र 
समानता का पाठ 
पढ़ाया जाए |

* कहानी वह 
जो जिया न जा सका 
जीवन भर |

* कुछ न कुछ 
न कुछ है न कुछ 

न कुछ कुछ |

* चाय गुमटी 
औरत चलाती है 
मर्द खाता है | 

(गीत )
* मन के भ्रम 
हम सब जीते हैं 
विष पीते हैं |
+ + + + + 

* भगवानों की 
मूर्तियाँ जो हैं वही 
रह जायेंगी |

* हर औरत 
सुंदर दिखती है 
फोटोग्राफी में |

* होली अथवा 
दीवाली , मतलब 
छुट्टियाँ , बस !

* कहाँ हम हैं
और कहाँ हो तुम
क्या मुकाबला ?

* Little touch
Makes strong connect
Lifelong .

* To make up
Your mind , some
Go behind .
(मात्रा नागरी में गिनें )

[ नागरिक पत्रिका ] 16 से 26 अक्टूबर , 2013

* श्रद्धेय स्व अमृत लाल नागर की 97 वीं जयंती 19 अक्तूबर को जयशंकर प्रसाद सभागार में संपन्न |

[ कविता ]    " चश्मा "

* चश्मा मुझे
अखबार - किताब पढ़ाता है ,
चश्मा मुझे
देश - दुनिया दिखाता है ,
लेकिन चश्मे को मैं
कहाँ देख पाता हूँ ?
वह अपने को मुझसे छिपाता है |
#  #

* मैं ही क्यों आऊँ
तुम्हारे पास ?
तुम क्यों न आओं
हमारे पास ?
#  #

* ग़ालिब के भी अशआर अब गालिबन हुए ,
कोई असर करते नहीं उजड़े दयार में |
[ कैसी रही by - ugranath ]

* " जैसा मेरा मन कहता है , वैसा मेरा ईश्वर कहता है ."

* सेक्युलर सरकार वह जो देश के धर्मों के आचरणों पर भी निगाह रखे, उनमे दखल दे और उन्हें नियंत्रण में रखे | [मजहबों]

* " देवा में दबे पाँव "
मैंने देवा मेले गया था | पीछे से से एक एम्बेसडर काफिला हूटर बजाते प्रवेश द्वार से मेले में घुसा | अच्छा नहीं लगा | It was a shear disgrace to the Holy soul , a Blasphemy ?

  • दलित और पिछड़े जब ब्राह्मणवादी काम करने लगते हैं, तब वे हिंदुत्व का बड़ा नुक्सान करते हैं | उदाहरणार्थ कल्याण सिंह का बाबरी मस्जिद ध्वन्सीकरण का कार्य देख लीजिये |




  • अन्यथा न लेंगे , सचमुच मैं अपने भीतर एक शीर्ष नेता का अनुभव कर रहा हूँ , सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक |

* " हिन्दू कोई धर्म नहीं किताबों का ढेर है | लाइब्रेरी है | तमाम लाइब्रेरियन हैं |"
[ आप भी एक लिख दो | वह भी हिन्दू हो जायगा | मसलन ' लज्जा ' ही ]

* सार्वजनिक चेहरों पर चंदन टीका [ Personal Identity Mark ] कुछ अच्छे नहीं लगते , शोभा नहीं देते | मुझे नहीं लगता इससे कोई राजनीतिक लाभ मिलने का !

* जैसे मैं कहता हूँ कि धर्म को बस धर्म होना चाहिए , जैसे हिन्दू , जिसका कोई धर्म नहीं | जब जैसा बनाना मानना चाहो , यह हाज़िर | उसी प्रकार पार्टी भी एक , यथा कांग्रेस होनी चाहिए | उसी के अंदर  तमाम विचारधाराओं के गुट - समूह हों , और अपना प्रभाव , दबाव पार्टी पर डालें | जो सशक्त होगा उसी का पी एम बने | * मुझे कोई एक व्यक्ति ढंग का नहीं मिल रहा है , जो व्यक्ति भी बेहतरीन हो और सामाजिक सोच में भी उम्दा हो | वर्ना मैं अभी एक पार्टी बनाकर उसे PM घोषित कर देता | फिर भी मैं एक "गरीब नवाज़ "  पार्टी बनाना चाहता हूँ | पटना के बुद्धिवादी मित्र डा रमेन्द्र का एक लेख ( किताब ) प्राप्त - पीटर सिंगर के विचार पर उनकी समीक्षा |
जो पढ़ना चाहें वे अपना ईमेल ID भेजें |

* यह अनुभव यूँ तो काफी पुराना है ,लेकिन इसमें नया अध्याय आज जुडा तो लिखना पड़ रहा है | मैं अपने एक समृद्ध मित्र के घर पर था | देखा बात बात पर पूरा घर छोटे से नौकर के भरोसे था | रामू , एक गिलास पानी / रामू , मेरा जूता लाना / रामू , मेरा क्रिकेट बैट / रामू , ये कपड़े फैला / रामू यह , रामू वह | तब मेरे मन में विचार कौंधा की असल मालिक कौन है और कौन असली गुलाम ?
अब पलटकर आता हूँ हिन्दुओं पर निरंतर डाले जा रहे लांछनों पर | सारांशतः हिन्दू कौम इतनी लिद्धड और नालायक है , यह दकियानूस है अन्धविश्वासी, डरपोक, राजनीति में फिसड्डी , धन दौलत से अरुचि पैदा करते इनके संत , इस दुनिया से ज्यादा स्वर्ग की चिंता करता राष्ट्र ! हुंह, इसे तो गुलाम होना ही था , शासित | कभी इनकी , कभी उनकी |
लेकिन क्या यह सच है ? मैं अपना पुराना अनुभव प्रयोग में लाता हूँ | मेरा मित्र मालिक था या उनका नौकर रामू ? दार्शनिक दिमाग लगाईये तो रामू मालिक हुआ | लेकिन सच्चाई तो यह है कि रामू नौकर था और मित्र के टुकड़ों पर पल रहा था | वह उसे गाँव से ले आये थे | इसी तरह मैं उपमा लगता हूँ कि हमारे शासक हमारे नौकर थे , हमारे सेवक जिन्हें हमने इस काम पर लगाया था | इसका मतलब यह नहीं कि वह हमारे मालिक हो गये और हम गुलामी झेलने के लिए अभिशप्त हो गये | गलत आरोप लगते हैं हिंदुत्व पर | वह जो है, जैसा है वह है | वह हिन्दू ही रहेगा | क्या वह अंग्रेजों की तरह लालची हो जाय और आक्रान्तों की भाँति हिंसक ? नहीं , यह जिनका काम है उन्ही को मुबारक | ऐसे काम मैं उन्ही से लेता हूँ | मैं शासन करने की ड्यूटी पर किन्ही को लगाऊँ , इससे मैं उनका गुलाम नहीं हो जाता | हिन्दू कौम को इसके लिए अपमानित करना , किया जाना बंद होना चाहिए |

* साहित्यकार की व्यथा =
कैसे कहूँ कि यह सचमुच एक साहित्यकार की व्यथा ही व्यथा है , लेकिन जरूर है यह मेरी दशा | भले मैं परंपरागत रूप से साहित्यकार की श्रेणी में नहीं आता | कहा जाता है साहित्यकार के कुछ सरोकार , सामाजिक दायित्व होते हैं , जिसके तहत वह लिखता है | ज़रूर होता होगा , और ऐसे साहित्यकार अनेकानेक हैं | वे पत्र - पत्रिकाओं में छपते हैं , पैसा - नाम और पुरस्कार पाते हैं | मैं इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता | मेरा लेखक अपने मन और बुद्धि के सरोकार और उत्पाद लिखता है | मैं किसी अन्य की नहीं लिखता | और यदि किसी को यह लगता है की मेरी बात तो सृष्टि और समूची मानव संस्कृति को संबोधित है तो ऐसा इसलिए होता है की वह सृष्टि वह दुनिया  मेरे भीतर होती है , वह स्वयं मैं होता हूँ |
मेरे विचार से साहित्यकार समकालीन समाज को चित्रित नहीं करता | या होते होंगे ऐसे भी साहित्य और साहित्यकार ] | साहित्यकार तो वह जो अपने समय के सीने पर पैर रखकर आगे की और छलांग लगा देता है | वह लिखता तो आज है , लेकिन कल की, भावी समय लिखता है | आज का लेखन तो पत्रकार , नेता और लेखक चिंतक जन करते हैं | लेकिन वे साहित्यकार नहीं होते | उन्हें साहित्यकार समझने की भूल की जाती है , लेकिन यह सच नहीं होता | साहित्यकार के लेखन पर तो कल का समय निर्मित होता है , क्योंकि वह आगे की पीढ़ियों के लिए होता | आगे की पीढ़ी ही उसे ठीक से समझ पाती है | इसीलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि किसी भी साहित्य को उसका सृजन काल में समझा नहीं जा पाता , और भविष्य उन्हें पलक पांवड़े उठा लेता है | मैं वैसा लिखता हूँ इसलिए मैं वस्तुतः साहित्कार हूँ यह कहना मेरा आशय नहीं है | बल्कि मैं यह कहना चाहता हूँ कि ऐसी ही रचनाओं को मैं साहित्य मानता हूँ , और इन्हें लिखने वालों को ही साहित्यकार | ज़ाहिर है , साहित्यकार एक दुर्लभ जीव है |
मेरे समसामयिक साहित्यकार न हो सकने का एक संकट और है | सामयिक जीवन को चूँकि अभी , इसी वक्त जीना होता है , इसलिए उसके साथ मैं तालमेल , सामंजस्य स्थापित कर लेता हूँ | अधिकाँश द्वंद्व तो समाप्त हो जाते हैं | तो बिना विसंगति के साहित्य कैसे रचा जा सकता है ? विसंगति तो साहित्यकार अपने भावी इच्छित , आदर्श या मनचाही स्थिति के साथ पैदा करता है, बनाता है | जिसे जीने की उसे बाध्यता -विवशता नहीं होती , और तब वह उसे खुल कर लिख पाता है | इसीलिए कहा गया है कि साहित्यकार आगे की लिखता है , अभी की नहीं |और यह भी कि जहां न जाए रवि वहाँ जाए कवि | अभी का लेखन तो जिलाधिकारी के नाम प्रार्थनापत्र अथवा पुलिस को दी जाने वाली यफ़ आई आर ही हो सकती है | और यही कारण है कि जो साहित्यकार जीते भी इसी समय को हैं और लिखते भी इसी समय को हैं ,उसे कितना भी सामाजिक सरोकारों से युक्त बता उसका गुणगान करें ,वह निम्न स्तर का ही होकर रह जाता है | फिर भी तुर्रा यह की उसे वे कालजयी कहे जाने का हठ पाल लेते हैं | कोशिश पैरवी से पुरस्कार - सम्मान पा तो लेते हैं लेकिन चूँकि वह उसे डिज़र्व नहीं करते , तो एक अतिरिक्त , अनावश्यक दंभ और घमंड से भरे हुए वे बड़ी आसानी से समाज में देखे जा सकते हैं |
#    #

कोफ़्त [agony]
संतों के सपनों में अब ईश्वर तो आते नहीं | आता है तो सोना , स्वर्ण , सुवर्ण | वह भी तोला - दस तोला नहीं, कई कई कुन्तल | और ईमानदार इतने कि खुद नहीं खोद पाए, भले इनके बताये अन्य स्थानों पर चोर बदमाश खुदाई करने लगे | लेकिन ये कोई वो तो नहीं ! इसलिए इन्होने सरकार को चिट्ठी लिखी, सपना बताया | अब पूरे देश में वैज्ञानिक दृष्टि  फ़ैलाने की ज़िम्मेदारी की तहत सरकार ने भी फौरन अपने वैज्ञानिक अंग को खुदायी पर लगा दिया | अरे नहीं नहीं,सोने के लिए नहीं भाई , पुरातात्विक अन्वेषण के लिए | अब पीटा करें माथा अपना हम जैसे लोग !
कहना था सरकार को - " संत जी सोना है तो उसे 'सोने ' दीजिये | आप का सपना हमने सुन लिया यही बहुत है | अब हम इसे अपने ढंग से देखेंगे | और अब आप सोने का सपना देखना बंद कर कुछ ईश चिन्तन कीजिये | आप के लिए स्वर्ण का दर्शन आपकी भाषा में 'पाप ' है | देखिये एक बाबा का हश्र , जो " सुवर्णा " के चक्कर में पड़े थे |"
हमें कहना पड़ेगा कि डोभालकर की हत्या का दोषी उनके हत्यारे नहीं , स्वयं यह बेपेंदी का लोटा सरकार है |
[ सपनो का भी एक विज्ञान है | घोर अवचेतन में दबी छिपी कामना , -- - ]

* मैं सोच रहा था कि चलो मोदी तो पी एम् तो हो गए | लेकिन अन्य मंत्री कौन होंगे ? क्या एम् एम् जोशी मंत्रिमंडल से बाहर होंगे ? और तब कए होगा ? मोदी राम मंदिर को हवा नहीं देते , पर अन्य जन तो उसे जीवन मरण का प्रश्न बनाये हुए हैं | तब क्या सरकार चल पाएगी ?

* You said ," that's good ". So ,  that's good . आप खुश हो सकते हैं कि आपने एक नास्तिक के कार्य की तारीफ़ की और साथ में अपने धार्मिक कार्यों की सूची भी थमा दी | लेकिन फर्क है और बहुत बड़ा है | नाज़ शहनाज़ का छोटा सा भी काम आपके बड़े बड़े कार्यों से श्रेष्ठतर है क्योंकि उसने जो भी किया अपनी मानवीय प्रेरणा से किया | जबकि धार्मिक जन जो जन हितैषी कार्य करते हैं वह स्वर्ग - जन्नत की चाह में, अपने भगवान् को खुश करने , उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए करता है | इसलिए उसका कार्य दोयम और दूषित हो जाता है, क्योंकि वह स्वार्थ प्रेरित होता है | उधर नाज़ को कुछ मिलना नहीं, पाना नहीं है | फिर भी वह कर रही है, थोडा भुत, जो भी उससे बन पड़ रहा है | इसलिए उसका पलड़ा भारी है | इसलिए अपना धार्मिक कार्यों पर गुरूर न कीजिये, बावजूद इसके कि हम आपकी प्रशसा करते हैं | दो बातें और = पहला तो यह कि नाज़ की जगह पर यदि आपने मुझसे पूछा होता तो मैं गीता के प्रभाव में आपसे कहता ," जी नहीं, मैं कुछ नहीं करता, कोई सेवा मनुष्य की नहीं कर पाता " | और इस तरह मैं अपने कर्मों को दरिया में डाल देता, भले तब आपकी प्रशंसा का पात्र न होता | दुसरे यह कि मित्र, आखिर यह कौन सोचेगा कि वह कौन सा खुदा और ईश्वर है कि जिसके होते आप इतना सब दान करने की स्थिति में हैं और इतने सारे लोग आपके सामने हाथ फ़ैलाने की दशा में हैं ? इस स्तर तक सोचेंगे तब आप नास्तिक हो जायेंगे और ऐसा समाज बनाने की सोचेंगे जहाँ दान पूण्य जैसे कार्यों की ज़रूरत न हो |   आमीन !


* कह तो दिया
भूखा तो हूँ लेकिन
भेड़िया नहीं |

* मैं कुछ बोला
सुनकर हो गए
आग बबूला |

* लोग कहते
मैं सुनता रहता
सिर धुनता |

* सद्दःस्नात हूँ
विचारों से मैं कोई
व्यक्ति नहीं हूँ |

* स्वार्थ विहीन
पीड़ा से परिपूर्ण
पार्टी है मेरी |

* पैदा होना तो
एक दुर्घटना है
हिन्दू - मुस्लिम |

* छोटे से हाथ
छोटे छोटे लुकमे
फिर भी भूखे |

* अशुभ न हो
पर कुछ तो है जो
शुभ नहीं है |

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

मेरा रावण [ नागरिक पत्रिका ] 9 से 15 अक्टूबर , 2013

* मेरा रावण
अधिक विशाल है
(अधिक बड़ा है रे )
तेरे वाले से |

* एक दिन में
कहाँ से कहाँ आये
एक जन्म में ?

* सच नहीं हैं
संतोष के साधन
सब के सब
आत्मा हो परमात्मा
जन्म, पुनर्जन्म वा
स्वयं ईश्वर |

* छोड़ो , जाने दो
अंगूर खट्टे नहीं ,
स्तर के नहीं |

* उन्हें मिलना
बहुत आसान है -
चाहो ही नहीं |

* प्यार तो करो
मुझे अपने प्यारे
देश की भांति !

* कविता लिखूं
कहानियाँ लिखता
क्या क्या लिखता !

* आत्मकथा ही
सुनता सुनाता हूँ
मैं तो अपनी |

* है तो ज़रूर
कुछ खराब स्वास्थ्य
लेकिन क्या करूँ !

* गालियाँ न दें
काम चल जाता है
तिस पर भी |

* व्यवहार से
बदल भी जाता है
सौन्दर्यबोध |

* मुसलमान
हमारे मेहमान
आदरणीय |

* मेरे देश में
अतिथि देवो भव
देव विदेशी |

* सभी स्वच्छ हैं
अपने हिसाब से
ब्राह्मण म्लेच्छ |

* उन्हें देखते
हिरन हो जाती हैं
सारी इच्छाएँ |

* तुमने कहा
हमने मान लिया -
यह पाप है |

* स्वार्थ ही नहीं
आवश्यकता भी तो
बनाती भ्रष्ट !

* खूबसूरती
निहित समझिये
नयापन में |


* Don't expect / डोंट एक्स्पेक्ट
Anything for you / एनीथिंग फार यू
From others / फ्रॉम अदर्स |

* Where we are / व्हेर वी आर
Where we had been / व्हेर वी हैड बीन
Where we were / व्हेर वी व्येर ?
-----------------

[कविता ]

* मेरा हाथ छोड़ो
मुझे अपना पैर
खुजलाना है |

[कविता ]

* हाँ , मैंने तुम्हे मारा
और अभी फिर मारूंगा ,
यह लो एक झापड़ और दिया |
मैंने मारा तो सही ,
लेकिन इसलिए नहीं
कि तुम हिन्दू - मुसलमान हो ,
मैंने तुम्हे इसलिए मारा क्योंकि
तुमने मुझे गाली दी ,
तुमने मेरा नमक चुराया
झूठ बोला, धोखाधड़ी की |
क्या तुम मेरी मार खाने के नाते
हिन्दू - मुसलमान हो गये ?

और यदि मुझे आतंकवादी कहते हो
तो चलो , जसे तुम कहते थे -
आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता
वैसे मैं कहता हूँ -
मार खाने वाले का भी कोई धर्म नहीं होता
न तुम्हारा कोई धर्म ,
न मेरा कोई धर्म !
#    #

[कविता ]
-------------
हारता गया
जंग ,
बोलता गया -
जय श्री राम !
#  #
 ----------------------

* इतने करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भारत देश की रक्षा नहीं हो पा रही है | क्या इससे अच्छा यह न होता कि इतने या कुछ कम ही मनुष्यों पर देश रक्षा का भार छोड़ दिया जाता ?

* शायद अब ईश्वर भी नहीं चाहता कि लोग धार्मिक पाखण्ड का पालन करें ! देखिये किस तरह श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों को धडाधड मृत्यु के घाट उतार रहा है ?

* दुर्गा पूजा की धूम है | क्या यही दुर्गा पूजा है ? हे माता , इन्हें तो बाद में बचाना , पहले तुम तो बचो इनके वार - व्यवहार से !
* जैसे राजनीति अपने निम्नतम स्तर पर है , उसी प्रकार धर्म भी गहन हानिग्रस्त है | किंवा , जीवन और सभ्यता के सभी क्षेत्र अपनी अधोगति के शीर्ष पर हैं | कोई भी क्षेत्र सडांध और गंगी से मुक्त नहीं है |
* इतने लोग तो मांगने वाले हैं | क्या समझते हैं माता जी सबकी झोली भर देंगीं ?
* दशम दुर्गा - नव दुर्गा के क्रम में यदि देवी ने फिर अवतार लिया तो वह इस बार एक चमार - चमारिन के घर जन्म लेंगी | दशम चमारिनम | वही हिन्दुस्तान के राक्षसों का संहार करके देश को बचाएंगी | जय माता दी |
* इससे पहले कि हिन्दू धर्म नेस्तनाबूद ही हो जाय , इसे लुहेड़ई से बचाइए |

* एक दिन मैंने यह घोषणा करने की जिद बना ली (और नास्तिक ग्रुप में तो लगभग ऐसा लागू भी है ) कि हम इस्लाम (और तदर्थ मुसलमान) की कोई बात नहीं करें / करेंगे | लेकिन जैसे ही बोलना शुरू करता हूँ कि भारत इस्लामिक या मुसलमानों का देश नहीं है, यह हिन्दू राष्ट्र है | वैसे ही सेक्युलर ही नहीं अच्छे भले धार्मिक और राष्ट्रवादी हिन्दू मेरे ऊपर पिल पड़ते हैं - " यह क्या बोला तू ?" और मैं चुप हो जाता हूँ | फिर भी बात तो है | हम, अर्थात हिन्दू अपने से ज्यादा उनकी फिक्र में रहते हैं | कभी - कभी तो संदेह होता है कि यदि इस्लाम और मुस्लिम न होते तो क्या हिन्दू धर्म कुछ होता ? और तब क्या होता /  होना चाहिए होता हिन्दू को ? उसकी चिंता में मैं हूँ |

* आप की समस्या है कि लोगों मे एकता क्यों नहीं स्थापित हो रही है , और मेरी परेशानी है कि लोग अलग क्यों नही हो रहे हैं - भिन्न , विभिन्न -पृथक ? हर कोई किसी दुसरे जैसा बन रहा है | नेता अधिकारी बन रहे हैं , अधिकारी नेता बन रहे हैं , संत व्यापारी बन रहे हैं , टुच्चे धनवान बन रहे हैं , धनवान टुच्चई क्र रहे हैं , इत्यादि | किसी का कोई निजत्व , कोई अस्मिता पूर्ण जीवन बन ही नहीं रहा है | कोई सबसे अलग हो ही नहीं रहा है , जब कि पृथकत्व ही प्राकृतिक - नैसर्गिक दर्शन है | किसी मनुष्य की आकृति , चेहरा मोहरा , उसकी आवाज़ किसी अन्य से मेल नहीं खाती |
[ इस पोस्ट के लिए पृथक बटोही को अपवाद समझा जाय , जैसा मैंने उनके वाल से जाना ]

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

नागरिक पत्रिका 6 से 8 अक्टूबर

* हमें मुसलमान प्यारा है , इस्लाम नहीं |

* मजबूरी में ही सही | अब तो सिर्फ गाँधीवादी रास्ता ही बचता है | मारो , कितने मारोगे ?

* खादी बहुत बड़ा हथियार था | अब भी बन सकता है | और वही अंतिम उपाय होगा , गरीबी मिटाने का |

* यदि जातिवाद में कोई दम होता , तो कथित अछूत जाति की लड़कियाँ गज़ब की सुन्दर न होतीं !

* नास्तिक धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
_ ग्रुप का About पढ़ें तो पता चल जायगा | फिर भी संक्षेपतः - नास्तिकता आधारित धर्मनिरपेक्षता , न कि धर्मों की लीपापोती और इन्हें - उन्हें खुश करने की राजनीतिक खेलबाजी | जिज्ञासा के लिए धन्यवाद |

* आस्तिक हैं | चलिए ठीक ! लेकिन यदि पूजा पाठी भी हैं तो समझ लीजिये गहराई में नास्तिको की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही स्वार्थी होंगे | धर्म स्वार्थपरक बल-बुद्धि तो बढ़ाता ही है ! आस्तिक जन सही कहते हैं की पूजा आराधना से निर्भीक स्वार्थ शक्ति बढ़ती है - हनुमान चालीसा पढ़कर देखिये | बल बुधि विद्या देउ मोंहि - - - :)

* लेकिन धर्म समाप्त कैसे हो सकता है ? वह भी उस मुल्क में जहां औरतों की प्राकृतिक मासिक को भी मासिक धर्म कहते हैं |

* कितने मशीन ?
गांधी ने हिन्द स्वराज में मशीनों के खिलाफ क्या लिख दिया की लोग गांधी से ही नाराज़ हो गए | लेकिन वह व्यक्ति भारत को समझता था | जैसे भारत के किसान फसल खेतों में कुछ ही समय काम करते हैं | शेष समय खाली रहते हैं | अब दो उपाय हैं - एक तो रोज़गार के लिए उन्हें उतने दिन के लिए शहर बुलाया जाय या उनके लिए रोज़गार गाँव में लाया जाय | पहला तो प्रयोग हो रहा है | नतीजा मलिन बस्ती , गाँव से शहरों की और पलायन, फिर गाँव का समाप्त होना | लेकिन इसके निराकरण के लिए फैक्ट्रियों को तो गाँव में शिफ्ट नहीं किया जा सकता | तब काम आता है गांधी | यदि खादी को लाया जाय | ऐसा चरण सिंह ने भी कहा था कि आंतरिक प्रयोग के लिए खादी और निर्यात के लिए फाइन कपड़े | इससे अर्थव्यवस्था सुधरती | लेकिन यहाँ तो कपडे क्या , पापड़ अचार आलू चिप्स , सब फक्ट्री निर्मित हो रहे हैं | और बड़े सहकारिता संस्थानों में | रोज़गार का विकेंद्रीकरण घर घर तक नहीं हो रहा है | ठीक है मशीनें ज़रूरी हैं लेकिन उसकी कोई सीमा है ? आखिर कितनी मशीने चाहिए ? अब तो सुना है हस्त मैथुन के लिए भी मशीन है ! तो फिर देश आत्म निर्भर कैसे हो सकता है ?

* हम खयाल -
Sex education के बारे में मैं रूसी शिक्षा क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारी पावेल अस्ताकोव से सहमत हूँ | वह स्कूलों में इसके कट्टर विरोधी हैं | उनका कहना है कि इससे बच्चे बिगड़ सकते हैं | {ज़ाहिर है इसपर उनकी बड़ी आलोचना हो रही है , इधर मेरे बारे में एक मित्र ने कमेन्ट किया ही है कि उग्रनाथ बूढ़ा हो गया है :) } | लेकिन पावेल का कहना है कि कण्डोम और गर्भ निरोधक गोलियों को भुला कर अगर हम चेखव, टॉलस्टॉयऔर गोगोल की शरण लें तो बेहतर होगा | रूसी साहित्य में युवाओं के लिए बेहतरीन यौन शिक्षण के तत्व मौजूद हैं | कोई चाहे तो रूसी साहित्य से प्रेम और सेक्स के सभी पाठ पढ़ सकता है |"
[जब रूसी साहित्य का यह हाल है, फिर भारतीय वांग्मय का तो कहना ही क्या ! ]  

* [कथा नुमा ]
एक मुस्लिम औरत तहेदिल से खुदा से दुआ मान रही थी - " इन जेहादियों को अक्ल दे मौला , इन्हें सही रास्ता दिखा |"
नास्तिक ने कहा - " फिर वही गलती कर रही हो प्यारी अम्मा , उसी से मांग रही हो जो कहीं है ही नहीं ! उसी की तुम भी प्रार्थना कर रही हो जिसे सर्वमान्य मानकर,सम्मान्य स्वीकार कर वे आतंकवादी भी अपना काम कर रहे हैं, अपना मज़हबी फर्ज़ निभा रहे हैं ? "

* U. P. में अब तक बाल आयोग नहीं " - (NBT 6 /10 )
यह भी बन जाएगा ,जैसे अन्य आयोग वजूद में हैं | महिला आयोग , अल्पसंख्यक आयोग , दलित / पिछड़ा वगैरह | मेरे मस्तिष्क के अनुसार यह मांग भी उठनी चाहिए कि देश में एक " राष्ट्रीय सेक्युलर आयोग " भी बने | जो निरन्तर देश - प्रदेश की सरकारों पर नज़र रखे कि उनका कौन सा काम इस वसूल के खिलाफ है | मैं इसका अध्यक्ष बनने के लिए यह सुझाव नहीं दे रहा हूँ | यह सचमुच एक ज़रूरी मांग है , और राष्ट्र की आवश्यकता |

* जनरल वी के सिंह का कहना है सरकार सेना को मुक्त काम नहीं करने देती , तमाम बंदिशें लगाती है |
- भाई साहब अभी तो गनीमत है , गाँधी जी की चलती तो भारत की कोई सेना ही नहीं होती ( तो आप कहाँ होते) | फिर भी आपका दुःख समझ मी आता है | हो सके तो किसी प्रकार पड़ोस में पाकिस्तान चले जायँ | इससे एक तो आपकी फौज को वहां ज्यादा ताकत मिल जायेगी , दूसरे इस प्रकार प्रकारांतर से आपके मित्र नमो की सेकुलर छवि पक्की हो जायगी |

* ईश्वर इस देश के सबसे बड़ा भ्रष्टाचार :
आप लोग कुछ भी कहें कि भारत की दारुण दशा के यह - वह कारण हैं , लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आता | कुछ लोग इसके लिए नैतिक , राजनैतिक , प्रशासनिक , आर्थिक भ्रष्टाचार को दोषी मानते हैं | वह भी मुझे सही नहीं लगता | मुझे तो बस एक ही बात समझ में आती है | यह कि ईश्वर इस भारत महादेश के सबसे बड़ा भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचार का स्रोत है |

भारत एक सोमनाथ मंदिर :
इसलिए यदि भारत कभी भारतीयों के हाथ से जाता है तो उसका कारण इसका ईश्वर , इसकी ईश्वर के प्रति अंध भक्ति ही होगा | सोमनाथ मंदिर में भी ईश्वर जी ही तो लटके थे , और उनके पास अकूत संपत्ति थी , जिसके कारण लूटे गए ? और हुआ गुलामी का श्री गणेश !

मुझसे मित्रता के लिए कृपया कम से कम तीन कौड़ी के व्यक्ति ही निवेदन करें | धन्यवाद !

क्षमा याचना सहित अपना संदेह व्यक्त कर रहा हूँ | इस्लामी संगठन कश्मीर को भी ले जायेंगे | फिर तो हिन्दुस्तान अपने अंदरूनी विभाजनों , मतभेदों , स्वार्थ के झगड़ों से इतना कमज़ोर है कि  आश्चर्य नहीं यदि वे इसे भी ले जायँ ? पहले रहा नहीं क्या यह ? और यह गुमान उनको निस्संदेह अभी तक खाए जा रहा है |
अलबत्ता मुझे शक हुआ करे कि जब हज़ार वर्ष उनका राज्य चला तो फिर कोई मुसलमान क्यों गरीब रह गया , इतने समतावादी धर्म के अंतर्गत ? जिसके बारे में कहा जाता है कि हिन्दुओं में विषमता के चलते लोग धर्मान्तरित होकर मुसलमान बने | फिर आज इसका औचित्य क्या कि सच्चर कमिटी , कम्युनिस्ट और सेक्युलर कम्युनिटी को " हाय गरीब मुसलमान !" मुसलमान कहना पड़ रहा है ? PM को " राष्ट्र के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का " कहना पड़ गया | सपा सरकार को सिर्फ मुस्लिम लड़कियों के लिए तीस हज़ार का प्रबंध करना पड़ रहा है ?
बड़े मुश्किल प्रश्न हैं और मैं व्यथित हूँ |

आज के स्वप्न में आया विचार =
Walky Military , गश्ती फौज़ का गठन | पुलिस की ड्यूटी , फौज की शक्ति |
* यदि गर्भ धारण और उससे जुडी समस्याएं न हों तो मैं निर्भय , निश्चिन्त अपनी पुत्री को भी पुत्र की तरह ही आज़ादी दे दूँ !

* यह लो जी अब | मेरे प्रश्न मेरे सपनों में घुस आये | आज सपने में अंग्रेजी - हिंदी से इतर भाषाओं  के विकास का तरीका सोच रहा था | निदान निकला इन्हें भी आरक्षण मिलना चाहिए | इस तरीके से कि सेवाओं में भरती के लिए ज्ञात भाषाओँ की संख्या का भी वेटेज दिया जाय , अकादमिक प्राप्तांक से अलग | जैसे हमारे समय में पूछा जाता था - स्काउटिंग , NCC , खेलकूद में भागीदारी ? और इनसे नौकरी पाने की उम्मीद बढ़ जाती थी | इसी प्रकार उम्मीदवार जितनी अधिक भारतीय भाषाएं पढ़ना लिखना बोलना जाने उसे नौकरी में वरीयता दी जाय | तो काम बन सकता है | लेकिन इसे तो मैंने सपने में सोचा था | यथार्थ में कितना feasible ?

मेरे विचार से कोई सहमत हो या न हो........कोई फर्क नहीं पड़ता
"सेक्स और ईश्वर की भक्ति एकांत में करने की क्रियाएं हैं इनका किसी भी रुप से सार्वजनिक प्रदर्शन...अश्लीलता और व्यापार मानती हूं मैं" .....
 — feeling लाउडस्पीकर भक्ति नहीं बल्कि आपकी हैसियत का परिचायक है.
  • Ugra Nath यह तो आपने गज़ब की बात कह दी रंजना जी ! पूर्ण सहमति 

  • Ugra Nath और आश्चर्य नहीं , जब से धर्म सड़कों पर आया , उसी प्रकार तब से सड़क छाप प्यार भी बढ़ा | सार्वजनिक चिपटा - चिपटी , चूमा - चाटी ! आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं


* आसाराम बापू और उनके पुत्र पर दो लड़कियों ने 2002 के आसपास बलात्कार का आरोप लगाया है | तब वे लडकियां अपनी वर्तमान आयु से 11 वर्ष छोटी थीं | अब इस पर कुछ अंट शंट बोल दूंगा तो ठीक नहीं होगा न !

मेरा पसंदीदा दो अशआर = 
अगर मानव नहीं बदला , नयी दुनिया पुरानी है ;
कहीं शैली बदलने से नयी होती कहानी है ?

प्रगति के हेतु कोई एक पागलपन ज़रूरी है ,
तुम्हारे मार्ग में बाधक तुम्हारी सावधानी है |

* मेरा रावण
अधिक विशाल है
तेरे वाले से |

* कुछ छूटेगा
सभी संस्कृतियों का
कुछ बचेगा |

* दूरी रखना
एक ज़रूरी कला
प्रेमाचार में |

* मेरा शगल
निरुद्देश्य घूमना
चुप बैठना |

* तुम अपना
दिल चेक कर लो
बचा या गया ?

* जाना कहाँ है 
रहना तो यहीं है 
हर हाल में ! 

* फँसाने चली 
मकड़ी अपनी ही 
जाल में फँसी |

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

नागरिक पत्रिका 1 से 5 अक्टूबर

* पराये लोगों का झूठ तो पकड़ में आ जाता है , लेकिन अपनों का छद्म समझ में नहीं आता |

* साबुन कभी गन्दा नहीं होता |

* मम्मी ने राहुल गाँधी से कहा बेटा, तुम्हारी नीयत सही थी लेकिन तुमने गलत शब्दों का प्रयोग किया |
- तो मम्मी के बेटा जी, जब मम्मी का हाथ पकड़े बिना सही बोलना सीख लेना तब आना पार्टी में , और प्रधान मंत्री बनने |

* रामदेव बोले , पी एम नामर्द |
तब तो तलाक का पुख्ता मामला बनता है | रामदेव की खीज स्वाभाविक है | पी एम को वही सलवार कुरता भेंट में दे दें रामदेव | नमो से डेटिंग का कारण समझ में आ रहा है |

* ईश्वर रो रहा है , और इन्हें भजन कीर्तन की सूझी है | घंटे घड़ियालों की शोर में ये सुन ही नहीं पा रहे हैं उसकी सिसकियाँ | वह दुखी है अपने संतों और भक्तों के कर्मों - व्यवहारों से | और निदान यह कि उसे मनुष्य के कर्मों से ही प्रसन्न किया जा सकता है , उसकी पूजा - पाठ से नहीं | इसलिए बुद्धा को हंसाने , ईश्वर को खिलखिलाने के ज़रूरी है कि हम मनुष्य उसके (व्यक्ति ) के प्रति नास्तिक , और (उसके मूल्यों ) अपने कर्तव्यों के प्रति आस्तिक बने , अपने विचार शुद्ध और सुव्यवस्थित करें , मनुष्य के प्रति |
ईश्वर के रोने का हम नास्तिक मज़ाक नहीं उड़ाते , उसके दुखी होने से हम खुश नहीं होते | क्योंकि हम ईश्वर
को वस्तुतः सांगोपांग जानते हैं |

* वैसे आपके अनुभव के लिए निवदन कर दूँ, कि नास्तिक - मानववादी - तार्किक लोग बेहतर इंसान होते हैं , और बहुत बुरे तो बिल्कुल नहीं होते | चाहे आजमाकर देख लीजिये | और क्या चाहिए ? क्योंकि वे थोडा दो चार इंच आगे की सोच लेते हैं कि वह जो व्यवहार कर रहे हैं या करेंगे उसका क्या असर होगा | राज्यों और सरकारों पर न जाइए |

* इस ग्रुप में दो संयोग additions किया जा रहे हैं | एक तो सुश्री दीपा अग्रवाल को Admin बनाया जा रहा है | इनका बुद्धि पक्ष प्रबल है | दूसरे इन्ही के साथ एक विद्वतविचारक ब्योमकेश मिश्रा जी को भी प्रशासक बनाया जा रहा है | इनका भाव पक्ष सुदृढ़ है और विवेक से कसा हुआ | ये केवल नास्तिकता ही नहीं, आस्तिकता को भी पुनर्परिभाषित करने में समर्थ हैं | आशा है ह्रदय और बुद्धि का समन्वय नास्तिकता को , ईश्वरविहीन नैतिकता को अधिकाधिक तर्कसंगत और ग्राह्य बनाएगा | स्वागत !

* मैं सोचता हूँ , यह सब क्या लिखता हूँ मैं ? तो पाता हूँ कि सारा का सारा यह तो आत्मकथा है | सब आत्मकथा लिखता हूँ मैं | लेकिन ग्रुप का नाम इस प्रकार नहीं बदलूँगा | यह यही रहेगा " लकीरों के बाहर " | सब व्यक्तिगत है , तो व्यक्ति तो हर एक कुछ न कुछ अलग होता ही है किन्ही भी लकीरों से !

* नास्तिक वह है जो ईश्वर को जानता है | उसके सारे भेद , सारे गुणावगुण |

* गहरी आध्यात्मिक चेतना से नास्तिकता पैदा होती है !

* हम एक पंथ चलाना चाहते हैं | कमीना पंथ कैसा रहेगा ?

* मुझे कहने दीजिये कि लोहिया के अनुयायी अथवा सपा सरकार सर्वथा धर्म का काम अंजाम दे रहे हैं | लोहिया ने कहा नहीं था कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है , short term religion ?
और यह तो मैं भी मित्रों को याद दिलाता रहता हूँ , जब वह धर्म पर बात करते हैं - कि दोस्तों मत भूलो धर्म दीर्घकालिक राजनीति है, long term politics .

* मेरे आने से कितना खुश है वह ,
मेरा ईश्वर मुगालते में है |
- [नास्मि (न मैं हूँ, न ईश्वर है )]

* क्या बात है भगवान जी बड़े खुश नज़र आ रहे हो ? भक्तगण खूब रूपये , फल फूल, मिठाईयाँ लेकर आ रहे हैं , इसीलिए न ? गफलत में न रहो गुरू जी,  कि ये तुम पर आस्था - विश्वास रखते हैं, तुमसे प्रेम करते हैं | ये सबके सब नितांत स्वार्थी जीव हैं | ये मेहनत और ईमानदारी से कमाकर खाने वाले लोग नहीं हैं | दया प्रेम इंसानियत इनके ह्रदय में नहीं है | गलत पैसे कमा रहे हैं, और समझते हैं कि उन्हें यह सब तुम दे रहो हो, तुम उनकी रक्षा कर रहे हो | जिस दिन इन्हें यह पता चल जायगा, सोच जागृत हो जायगी कि यह सब तुम्हारा काम नहीं है, तुम्हारा सृजन तो बृहत्तर उद्देश्य के निमित्त है , तुम्हारे निवास की यह भीड़ शून्य हो जायगी | हाँ, हम रह जायेंगे यही तुम्हारे पास , तुम्हारे शुभचिंतक, मानवता के हितैषी | लेकिन सम्प्रति तो तुम भी मुगालते में हो और तुम्हारे भक्त भी गफलत में हैं |

* लोग Live- in- relationship की मान्यता का लिए मरे जा रहे हैं | जिसे हमने कब का कर दिखाया | हमने सम्बन्ध का नाम तो विवाह भले दिया, लेकिन वह Live- in- relationship ही होकर रह गया !

* अब लीजिये एक और भाषा -
अभी तक हम लोग समझते थे कि हिन्दी आम व्यवहार में और अंग्रेजी रोज़ी के लिए हम लोग काम में लेते हैं | लेकिन नहीं , अब इस कथन को ठीक करना होगा | हम तीन भाषाएं प्रयोग करते हैं | पढ़ने -लिखने के लिए हिंदी , रोज़गार के लिए अंग्रेजी , और  बोलचाल के लिए उर्दू |
यह ठीक है |

* सुनो सबकी
अपनी यह नीति
धुनों अपनी |

* खाना खाता हूँ
फिर दवा खाता हूँ
फिर सोता हूँ |

* मरना है क्या ?
हाँ , मरना तो है ही
अभी तो नहीं |

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

नागरिक पत्रिका 27 से 30 सितम्बर तक

* जातिवादी होने का ही तो आरोप है ? वह तो मैं तब भी बना रह सकता हूँ | लेकिन मुझे अपने नाम से जातिगत उपनाम हटाने दीजिये | बड़ी घुटन होती है इसके साथ |

* मै यदि नेता हूँगा तो अपनी कुर्सी के पीछे गांधी जी का चित्र नहीं लगाऊँगा | वह तो मैं अपने ध्यान कक्ष में रख सकता हूँ | लेकिन कार्यालय में तो सुभाष चन्द्र बोस का चित्र लगेगा | अहिंसा परमो धर्मः ' धर्म की भाँति मन में रखने का आध्यात्मिक मन्त्र है , व्यक्तिगत धारणा और गुण, निजी व्यवहार | वह राज धर्म बनने लायक नहीं होता | राज्य का काम काज तो शक्ति , सख्ती और अनुशासन से चलता है |

* भारत - पाक एक नहीं हो सकते तो न हों | लेकिन भाई चारे में एक नवल समझौता तो कर सकते हैं , जो अन्य किन्ही राष्ट्रीय सीमाओं के बीच नहीं होता | वह यह कि यदि किसी देश में आतंक की घटना होती है , तो वह आतकी को पकड़ने , धर दबोचने के लिए दूसरे देश में बिना किसी अनुमति के घुस सकता है , और इस दबिश की प्रक्रिया में उसका इनकाउंटर भी कर सकते हैं |

* चलो दलितों के घर में जो कुछ रहा सहा अनाज खाद्यान्न है , हम भी रोटी - भात - पकोड़ियाँ खाकर समाप्त करें , जिससे उनकी आत्महत्या का मार्ग प्रशस्त हो | हमारे युवा नेता राहुल बाबा खा ही रहे हैं !

* [ सोद्देश्य Objective नास्तिकता ] * हमसे यह कहा जा रहा है कि यदि आपकी नास्तिकता मनुष्य को उच्चतर बनाने के उद्देश्य से है तब तो हम ( मित्र ) आपके साथ हैं | लेकिन यदि आपका उद्देश्य केवल ईश्वर के न होने का प्रचार मात्र है तो हम आपके साथ नहीं हैं आप चाहें तो हमें ब्लाक कर सकते हैं | इसपर मैं सोच रहा हूँ मुझे / हमें अपनी सीमाएं पहचान लेनी चाहिए , और स्वीकार कर लेनी चाहिए की हम इतना ही कर सकते हैं | संक्षेप में कहूँगा - मनीषियों ने ईश्वर गढ़े कि इससे इंसानियत बढ़ेगी , फैलेगी | तो इन्सानियत तो आई नहीं लेकिन श्रीमान ईश्वर महोदयान जमें रह गये | अब ठीक है कि हमारी भी नीयत यह है , कि मनुष्य - समाज और दुनिया बेहतरीन और नैतिक बने, लेकिन हमारी सीमा यह है की हम भगवान् विश्वकर्मा नहीं हैं जो संसार को दो चार दिन में अपने मानचित्र के अनुसार निर्मित कर दें | कोशिश भले करते हैं | लेकिन हमें इतना भर काम भी कुछ कमतर और कम महत्वपूर्ण नहीं लगता कि इंसानियत के पिरामिड तो इंसान बनाएगा - बनता रहेगा , किन्तु अभी तो हम ईश्वर महाशय के भ्रमजाल से निकलने का प्रयास कर रहे हैं , सप्रेम आपका - उग्रनाथ नागरिक

सही कहते हैं लोग , कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता , क्योंकि -
१ - आतंकवादी लोगों के धर्म पूछकर उन्हें मारते हैं |
२ - जिनका कोई धर्म होता है वे हमेशा अच्छे काम करते हैं ,
उदाहरण मुझसे न पूछिए , मैं न बता पाऊँगा |

* योजना -
वर पक्ष {श्रेष्ठ पार्टी } :)

* क्या मनुष्यों की निर्मितियाँ कम आश्चर्यजनक हैं , जो ईश्वर ईश्वर चिल्लाये जा रहे हो ?

* देखिये हम राजनीति से बाहर नहीं है | लेकिन बताएं हम इसे बुरा या गन्दा क्यों कहते हैं ? क्योंकि राजनीति करने वाले Political करेक्टनेस का जो ख्याल रखकर व्यवहार करने लगते हैं , वह बुरा है | क्योंकि इससे सत्य की हत्या न कहें तो ह्रास तो बहुत होता है |

* लड़कियों का बॉयफ्रेंड के मोटर साईकिल के पीछे बैठकर उसे दोनों हाथों से लपेटना |
मैं इसे उनकी परनिर्भरता , उनकी कमजोरी के रूप में देखता हूँ , न कि उनके प्यार के रूप में !

* आज एक रूसी लेखक व्लादिमीर नबोकोव के बारे में NBT में पढ़ने को मिला जिसके स्वभाव से मेरा स्वभाव कुछ मिलता है | वह कहते हैं - ' जीनियस की तरह सोचता हूँ , बच्चों की तरह बोलता हूँ ' | वह अपना इंटरव्यू भी लिखकर देते हैं |
अब न तो मई उतना जिनिअस की तरह लिखता हूँ , न उतना बोलने में असमर्थ हूँ | हाँ लेकिन अपने आप को बही मुखर करने में संकोच तो मेरा भी वैसा है |

* कभी मुझे संदेह होता था कि जो मैं कह रहा हूँ , वह शायद गलत हो | लेकिन आज तवलीन सिंह ने अमर उजाला में लिखा है :-
- कहना मै यह चाह रही हूँ कि पाकिस्तान से बातचीत करने या न करने से जेहादी हमले रुकने वाले नहीं | जेहाद वैश्विक स्तर पर हो रहा है और भारत ख़ास निशाना है जेहादियों का | पर आज तक सरकार ने जेहादियों को हराने की स्पष्ट रणनीति नहीं बनायीं है , क्योंकि हमारे सेक्युलर राजनेता डरते हैं की अगर कहीं उनके मुँह से जेहाद शब्द निकल गया , तो मुस्लिम मतदाता नाराज़ हो जायेंगे | "
[ अजीब संयोग है , मैंने अपने एक मित्र से यह कहकर नाराजी मोल ली थी की 'आप लोग मुसलामानों से डरते हैं ' :) ]

* आस्तिकता एक भटकाव है , और कुल मिलाकर भक्त ( आदमी ) का बड़ा नुकसांन करती है |

* हाँ , नागाओं या दिगम्बर जैनियों का नग्नावरण एक विचार है , वस्त्र नहीं  | जैसे खादी के बारे में भी यही कहा जाता है | यह किसी एक व्यक्ति की हसरत नहीं , जीवन शैली की बात है | और इसमें कोई अश्लीलता नहीं है |

* हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं है तो नहीं है | गलत या सही यह नाम तो पड ही गया है , एक कौम, एक जनसमूह के लिए | किसी का नाम वह नहीं होता जो वह होता है | कोठे पर बैठी सावित्री का नाम सावित्री ही होता है |

* किसी खूसट महिला से अगर 'प्रेम' बोल दो तो वह बड़ा खुश होती है !

* प्रेस सम्मेलन में अब तो यह भी बोल दो राहुल बाबा , कि देश ( पार्टी ) एक व्यक्ति चला सकता है !
[ अभी तक तो नहीं मानते थे , कहते थे देश व्यक्ति से नहीं चलता | और अभी खुद साकार के अध्यादेश को अकेले पलट दिया ?]

* मैं भी देख आया | दीपा ( अग्रवाल ) साहसी हैं जो इतनी आलोचना कर पायीं | मेरी हिम्मत नहीं है | क्योंकि सिनेमा आरभ होता है हनुमान जी की तस्वीर और गायत्री मन्त्र से | कुछ लिखूंगा तो ईशनिंदा , Blasphemy में धर लिया जाऊँगा :) | + यह प्रौढ़ों की नहीं बचकानी फिल्म है | 'A ' का मतलब प्रौढ़ की , प्रौढ़ों के द्वारा , प्रौढ़ों के लिए प्रौढ़ों की ख़ास समस्याओं पर आधारित होना होता है | ऐसा कुछ नहीं इसमें | एक पौराणिक या गढ़ी हुई कथा सुनाता हूँ | इंद्र दरबार में ऐसा ही कैबरे हो रहा था | संत ऋषि मुनि सब बैठे थे | नर्तकी एक एक कर सारे कपड़े उतारती गयी | ( बीच में टपक कर बता दूँ कि इस कथा ने मेरे जीवन और सोच को बहुत प्रभावित किया और मैं इसके माध्यम से प्रौढ़ बना | इसका विम्ब मेरे अन्य ,अनेक चिन्तन में भी देखा जा सक ता है ) | जब शरीर के सारे कपड़े उतर गए तब मुनि बोले - और उतारो बेटी , अभी तो तुमने तमाम और भरी कपड़े लाद रखे हैं { उनका आशय आत्मा से था / मुझे आंसू आ रहे हैं यह लिखते }| तो हम तो वह लोग  हैं | ज्ञान की पराकाष्ठा तक जाने को उत्सुक ! इतनी नग्नता क्या है ? इतना और इससे भी ज्यादा तो हम पहले से जानते थे | हाँ , निश्चय ही कुछ लौकिक ( सेक्सिस्ट भी ) समस्याएं होती हैं एडल्ट्स की | बननी चाहिए वैसी फिल्म , फिर देखेंगे [ Ref - Grand Masti ]

* करो ज्ञान से प्रेम (ज्ञान भक्ति )
यूँ समझें मानो दो कोठरियां ( निकाय, faculties ) हैं
ज्ञान - तर्कविचार और भक्ति भावना - प्रेम -अनुराग की
तो दोनों भरी होनी चाहियें
अन्यथा तर्क की कोठरी अंधभक्ति भर जायगी
( surface tension, पृष्ठ तनाव का नियम जानते हैं न ? इसी से जलेबी में चासनी जाती है )
और भावना के कक्ष में भर जायेंगे कुतर्क |
फिर दोनों में विरोध कहाँ है
अंतर अवश्य है , तो अंतर तो बेटा बेटी में भी है
तो क्या उनका बराबर भरण - पोषण नहीं करते ?
अतः ज्ञान से प्रेम करो , और
प्रेम के दुवरिया पर ज्ञान का सिपाही बैठाओ
तभी दोनों बचेंगे और ज़रूरत दोनों की है संतुलित जीवन के लिए |
प्रेम का मार्ग है तो यह ज्ञान तो होना ही चाहिए कि
तुम्हारा प्रेमपात्र कौन है , किस दिशा में है ?
किस मंजिल पर किस नम्बर के फ़्लैट में रहता है वह ?
या मैं कुछ गलत बोल रहा हूँ ?
#    #

* जाने क्या हुआ था
कुछ ठीक याद नहीं ,
लेकिन कुछ तो हुआ था
और वह अभी तक
हुआ ही है |
#   #

* अहं ब्राह्मण
अहं शूद्रवर्णं च
अहं मनुष्यं |

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 24 से 26 सितम्बर तक

* प्यार का नाटक होता है सेक्स के लिए | इसलिए यदि इसे सीधे सेक्स कहा जाय , और प्यार के नाटक का चेप्टर हटा दिया जाय तो प्यार के नाम पर होने , खाए और खिलाये जाने वाले वाले धोखे समाप्त हो जायँ |

* भारत के चितकों का भारत में होना , न होना बराबर है | वे भारत का कुछ नहीं सोचते |
( ये भारत की चिंता नहीं करते )

* चलो, हुसैन तो हिन्दू बदमाशों के कारण देश में नहीं रह पाए | लेकिन तसलीमा नसरीन भारत में क्यों नहीं रह पायीं ? सलमान रुश्दी क्यों नहीं बोल पाए ?
मेरा तो यह ख्याल है कि जब तक तसलीमा को भारत में शरण नहीं मिलती तब तक मैं सच्चर कोमेती लागू नहीं होने दूंगा | तसलीमा का भारत में रहना - न रहना ही इसके सेक्युलर होने या न होने का पैमाना है मेरे लिए |और मैं ऐसे हर MLA -MP उम्मीदवार का बहिष्कार करूँगा जो इसके पक्ष में होगा | चाहे वह प. बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी का हो , चाहे भारतीय जनता पार्टी का |

* पता नहीं क्या
विश्वास है , और क्या
अंधविश्वास ?

* पोंगा पंथ है
जन्मसिद्ध आधार
कार्ड देश का !

* ईश्वर नहीं
ईश्वर का 'लोगो' है ( Logo )
यह तो यार !

* हिंदुस्तान है
पाकिस्तान नहीं है
यह भारत !
(बस तुलना के लिए कभी कभी | जैसे हम यह भी कहते है - भारत अमरीका ब्रिटेन नहीं है / न बनाओ )

* तो क्या भाइयो , अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? और साथ में तब तो कुरआन, बाईबल इत्यादि भी ? :)

* अप्रिय संवाद :-
1 - भाइयो, सुनने में आ रहा है कि अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? लेकिन कुरआन, बाईबल वगैरह के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है |
2 - इतनी कमी है भारत में नेतृत्वकर्ताओं की, कि दागियों और अपराधियों के अलावा कोई और मिलता ही नहीं चुनाव लड़ने के लिए !
3 - जनरल वी के सिंह कुछ भी कहते , सजाई देते रहें | इनके काम तब भी तब भी संदिग्ध थे | इनके लक्षण अब भी दुरुस्त नहीं हैं |
4 - केवल मुस्लिम, केवल मुस्लिम खेलकर सपा सरकार सांप्रदायिक सद्भाव को स्वयं बड़ा नुक्सान पहुंचा रही हे | और दोष दूसरों पर लगा रही है |
5 - यह सरकार हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष भावना भर रही है जिसके परिणाम अशुभ संभावित है |
6 - भोले बालक मुख्य मंत्री का कहना बचकाना है कि मामूली मारपीट और छेड़ छाड को सांप्रदायिक बना दिया जाता है | कवाल जैसी छोटी घटना को क्या तब तक नज़र अंदाज़ किया जाय जब तक वह दामिनी काण्ड न बन जाय ?
7 - सामजिक राजनीतिक चिन्तन तुलात्मकता कि अपेक्षा रखती है , इसके पक्ष में मुझे एक अनुभव मिला | किसी से किसी ने आसाराम की आलोचना की तो उसने पलट कर पूछा - आपको पता है मौलाना बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक ( उसने तो बलात्कार शब्द का भी इस्तेमाल किया ,लेकिन सच्चाई क्या है वही जाने ) | क्या आपको पता है उत्तर ? मुझे भी नहीं पता | मैंने तो इतना समझा कि आसाराम को आप एकल रूप से अनैतिकता का पर्याय नहीं बना सकते समाज में | समाज के अन्य सम्प्रदायों की नैतिकता के साथ ही उनकी तुलना करनी पड़ेगी |
( अभी बस )

अप्रिय संवाद :
1 - महिलाओं की रक्षा के लिए महिला सिपाहियों की नियुक्ति हुयी | अब इनकी रक्षा के लिए किनको लगाया जाए ?
2 - " नहीं रोक सकते धार्मिक कार्य " = दुर्गा पूजा पर हाईकोर्ट |
- तो अब तय रहा कि दुर्गा पूजा एक " धार्मिक कार्य " है | न ' परहित सरिस ' , न नैतिक आचरण , न सेवा , न दान , न प्रेम , न दया ?
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* आज के काम की संस्था :
" मर्यादा "
इसका अग्रेज़ी में अर्थ बताया गया है - Limit , और यही मैं चाहता था | मेरी मूल theory ही है - Limitation (सीमांकन) की | इसके लिए मर्यादा एक अच्छा शब्द है |
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* हम साहित्यकार नहीं , साधारण जनता हैं | दुष्ट राजनीतिक जन ( दुर्जन पार्टी ) :)
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* भक्ति -प्रेम का मार्ग हो या ज्ञान का | उसे तुम इसलिए मानते हो क्योंकि वैसा तुम्हे बताया गया है { गीताप्रेस में दोनों पक्षों के साहित्य प्रचुर हैं } | कोई अपना मार्ग निकालो , अपना बनाओ , उसे चुनो , उस पर चलो | तब तो वह हो कोई मार्ग ! उसे ही हम मानववाद , बल्कि मैं तो स्पष्टता के लिए ' एकल मानववाद ' , Individual Humanism कहना prefer करता हूँ | क्योंकि उसे मानने वाला केवल एक व्यक्ति होगा , और वह होगे 'तुम' | मैं सम्पूर्ण मानवीय धार्मिक स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ | यह क्या कि किसी ने लकीर बनायी और सब , या तमाम लोग चल दिए | क्यों न आज़ाद रहा जाय कुछ भी मानने , कुछ भी न मानने को ; कोई विश्वास करने या न करने के लिए  ! कोई दूसरा उसमे दखल क्यों दे , जब कि कहा जाता है कि ' धर्म ' आदमी का निजी मामला है ?
ऐसे में गांधी का एक लाजवाब शेर याद आता है - " There are as many religions as there are minds ."
और यह मेरी अक्षमता हो सकती है , लेकिन ज्ञान और भक्ति का अन्तर मेरी समझ में नहीं आता  | क्या भक्ति विवेक पूर्वक नहीं की जा सकती ? प्रेम में अँधा होना अनिवार्य है क्या ? और क्या ज्ञान का रास्ता ज्ञान के प्रति एक अटूट आस्था, अप्रतिम भूख - प्यास, निस्सन्देह- विश्वासपरक प्रेम और अपरिहार्य समर्पण के बगैर तय किया जा सकता है ?
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Hate humans - Save Humanism -
यह मेरे मुंह से गलत बात निकलने जा रही है | बहुत सुना - ' पाप से घृणा करो , पापी से नहीं ' | लेकिन ऐसा हो नहीं पाया | पापी से प्रेम करो तो पाप को भी सुरक्षा मिल जाती है उसी के साथ | पापी जब बहिष्कृत होगा तो उसके अंदर का पाप भी कुछ शर्मिंदा होगा | मैं तो इसलिए, इस कदर दुष्ट जनों के प्रेम में घायल नहीं होता | यह नहीं कि उनकी हर वक्त अवमानना ही करता फिरता हूँ , चाहूँ भी तो सामजिक जीवन में ऐसा नहीं कर सकता | लेकिन उनसे थोडा दूरी बनाने , बहुत आत्मीय न होने की रणनीति अपनाता हूँ | और उसे यदा कदा यह अहसास भी करा देता हूँ | क्या आश्चर्य कि मेरे मित्रों की संख्या अत्यल्प है , क्योंकि आप जानते है कि आदमी क्या है ! कोई मेरे तराजू पर आता ही नहीं | तराजू थोड़ा ऊपर तो नहीं टंग गयी है - -  देखना है
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कहा गया कि छोटी मारपीट या छेड़खानी को साम्परादायिक झगड़ा बना दिया जाता है | इस पर दो एक वाक्य कहने का मन है | कोई भी झगडा या समस्या , मूलतः दो जनों के ही मध्य | और मान लीजिये वह सुलझ नहीं रहा या सुलझाया नहीं गया | तो आखिर बात आगे तो बढ़ेगी |  ऐसे में दोनों पक्षों के यदि उनके परिवार वाले या रिश्तेदार साथ न दें तो इसे आप क्या उचित कहेंगे ? और फिर उनके मित्र , मोहल्ले वाले ? आगे बढ़िये तो उनकी जाति बिरादरी वालों को उनका साथ सहयोग नहीं देना चाहिए ? क्या तब इसे आप उनकी बेरुखी नहीं कहेंगे ? हो सकता है आप इसे इंसानियत के भी विपरीत बताएं | अब इसी भावना को उठाकर तनिक सम्प्रदाय पर रख दीजिये | यदि जाति समप्रदाय व्यक्ति के काम न आये तो उनमे व्यक्ति शामिल ही क्यों रहे ? फिर इनकी उपयोगिता और ज़रूरत ही क्या रह जायगी | लेकिन तब तो आप कहते हो यह सांप्रदायिक दंगा हो गया !
जैसे एक उदाहरन और है दिमाग में | सीमा पर एक जवान का सर दुश्मन देश का जवान काट दे तो आप कहिये यह दोनों देशों के बीच का दुश्मनी का मामला क्यों बने ? आखिर एक आदमी ही की तो हत्या हुयी ? लेकिन मैं कहूँगा - तब देश के होने का मतलब ही क्या है ?
यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि सांप्रदायिक मसलों को भी गंभीरता से लिया जाय , उनका न्याय पूर्ण हल निकाला जाय | वरना इससे छुटकारा यह कहकर नहीं पाया जा सकता कि साम्प्रदायिकता गलत है जब कि सम्प्रदाय तो यथार्थ हैं !

* मैं जानता हूँ
मेरी बात सुन, तुम
नाराज़ हो जाओगे ,
मैं तुम्हे
नाराज़ करना
नहीं चाहता |
#  #

खुले अशआर -

* क्या ज़रूरत है ज़ुर्म करने की ,
ज़ुर्म खुद मेरे हाथ हो लेगा |

#   #
* राष्ट्र की गद्दी की होड़ में वे हैं ,
जिन्हें कुछ राष्ट्र से मोहब्बत ना |


सोमवार, 23 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 21 से -23 सितम्बर तक

धर्म व्यक्तिगत ?
1 - चूँकि धर्म व्यक्तिगत मामला है , इसलिए होना तो यह चाहिए कि राज्य केवल जाति पूछे और जनता केवल अपनी जाति बताये | वह भी कुछ सीमित वर्गीकरण में | जैसे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र ( हिन्दू का वैशिष्ट्य ) | इसके अतिरिक्त जो जातियां हों, वे मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि जिन्हें वे धर्म कहते हैं भारत में जाति के रूप में माने जाएँ , और इनका अंकन व्यक्ति के परिचय के साथ उसके जाति के कालम में लिखा जाय | धर्म , कोई किसी का नहीं |
2 - लेकिन चूँकि व्यवहार में धर्म व्यक्तिगत नहीं रहा, इसलिए दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि फिर जाति नाम कोई न हो | जाति ही जनता का धर्म हो | धर्म के कालम में  व्यक्ति अपनी जाति का उल्लेख करे |
आखिर कोई तो जाय , धर्म या जाति ?      
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अप्रिय संवाद :--
भारत में हिन्दू राज्य का आशय केवल यह कि हिन्दुस्तान में अब हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं होने चाहिए | न इसके दलितों पर, न औरतों पर, न ब्राह्मणों पर | विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा जैसा कि भूतकाल में हुआ | चाहे कोई अल्पसंख्यक या अतिअल्पसंख्यक , सबको मालूम होना चाहिए कि भारतवर्ष पाकिस्तान नहीं है जहाँ हिन्दू और हिन्दू लड़कियों पर अत्याचार हुए , फलस्वरूप उनका पलायन हुआ और वे बस गिनती के रह गये| हमारे हिन्दू राज्य का मतलब यह नहीं कि कियाहान का राजा ब्राह्मण या क्षत्रिय हिन्दू हो | वह कोई हो लेकिन उपरोक्त शर्त और पाबंदी के साथ |
इस हेतु  दलितों पिछड़ों को आरक्षण की भांति पूरे हिन्दू समाज को आरक्षण मिलना तय किया जाना चाहिए , संविधान संशोधन द्वारा , इसके " सेक्युलर " होने के बावजूद | यह लिखित होना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में अब हिन्दू इसका मूल अधिकारी निवासी है और यही उसकी मूल संस्कृति | यहाँ का सेक्युलरवाद इसी के अंतर्गत चलेगा |
क्यों नहीं हो सकता ऐसा ? जब इसी संविधान के तहत ज़मीदारी उन्मूलन हुआ, दलित आरक्षण हुआ, पिछड़ों को अरक्ष्ण मिला और अब मुसलमानों कि बारी है | तो फिर सेक्युलर के साथ साथ यह मुल्क हिन्दू प्रमुख सांस्कृतिक देश , राष्ट्र और राज्य , क्यों नहीं माना जा सकता ?
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ईश्वर हो कोई , तो उसे अपने मन में ही रखना
ईश्वर तुम्हारे मन से बाहर गे नहीं
कि हुआ वह प्रदूषित
इन्फेक्शन ,
ठण्ड बयार , जूडी बुखार सब धर लेगा
डेंगू मच्छर भी काट सकता है
एड्स भी असंभावित नही ,
और जब बीमारी कंट्रोल के बाहर हो जायगी
तब लोग उसके मरने की कामना करने लगेंगे |
सार्त्र जैसे लोग घोंषणा कर देंगे -
God ? God is dead !
ईश्वर ? ईश्वर तो मर गया |
इसलिए हिंदुस्तान की आध्यात्मिक आत्मा
का सन्देश सुनो -
अपने भगवान् को अपने मन में रखो
यदि उसे जिंदा रखना है तो !
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" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
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किन्ही शायद राशिद साहेब का एक लाजवाब शेर है -
" दीन को मान कर जो खतरे हैं ,
दीन को जानकर नहीं होते | "
इसे समझना कभी कभी मुश्किल हो जाता है | क्योंकि दीन एक बड़ी चीज़ है जिसमे धर्म , मजहब , कर्तव्य , ईमान सभी आ जाते हैं | इससे जानने - मानने में भ्रम हो जाता है | जैसे यदि मानें नहीं तो जानकर ही क्या कर लेंगे | लेकिन शेर तो गहरा है | मैं सोचता हूँ अपनी आसानी के लिए इसे इस प्रकार समझूं -
" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
ईश को जानकर नहीं होते | "
- क्योकि ईश को मानने से पहले और उसके प्रति अन्धविश्वासी होने का बजाय हम यह तो जान ही लें , जान ही सकते हैं कि वह वास्तविक नहीं , मनुष्य की कल्पना की उपज है !
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 वैसे एक तरह से देखा जाय तो Sanjay Grover जी की बात सही है - " अब मैं इस ग्रुप को ख़त्म करना चाहता हूं। " मैं एक नास्तिक गुप चलता हूँ , मैं उनकी पीड़ा समझ सकता हूँ |
चलिए इसकी आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर के खिलाफ जमकर प्रचार किया जाय | लेकिन कभी कभी एक रट , एक धुन से  ऊब सी होने लगती लगती है | किसी ग्रुप में इससे आगे जाने कि भी तो बात होनी चाहिए
तय है कि ईश्वर नहीं है | तो आदमी तो है ? आदमी को तो होना चाहिए ? कहाँ है वह आदमी ? क्या वही , जो ईश्वर नहीं की रट लगा रहा है ? जैसे एकनाम संकीर्तन ? उधर देखिये आस्तिकों को | ईश्वर है इस पर वह रुकते नहीं | आगे बढ़ते जाते हैं - रीति रिवाज़ , संस्कृति , शिक्षा , कला , साहित्य , राज्य , अंतरराष्ट्रीय राजनीति तक |
इधर हम अधर में हैं | यही तय नहीं हमारे जन्म ,विवाह , मृत्यु संस्कार कैसे हों | या यही कि पैदायशी संस्कृति के तरीके से हो | तब यह तय करना होगा पुराने धर्मों / संस्कृतियों से हमारा क्या रिश्ता हो ?इत्यादि --
तमाम कौमें अपने सरवाईवल या शक्ति के लिए मारा मारी कर रही हैं | डेनमार्क - म्यांमार में कुछ हो तो हिंदुस्तान समेत सारी दुनिया हिला दी जाती है | मरते रहें हमारे दोभाल्कर , क्या कर लेंगे हम ?
नास्तिकों की कोई रूचि नहीं है समाज कर्म में | कितने ही संस्था संगठन अपने पर्चे लिए घोमते हैं और हम सौ दो सौ कि सदस्यता नहीं लेते | उधर ढोगी बाबाओं के पास अकूत धन क्यों हो जाता है ? एक समुदाय में अपनी आमदनी का निश्चित हिस्सा देय होता है | हम एक सेमिनार नहीं करा सकते | क्या खाकर मुकाबला करेंगे उनका | यह तो कहिये वे हमे तवज्जो नहीं देते वर्ना हम गिनती के लोग एक घंटे के अंदर साफ़ हो जाएँ |
एक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर के आन्दोलन, कई राजनीतिक दल बन रहे हैं | उनमे शामिल होने की बात मैं नहीं करता | पर क्या नास्तिक का नैतिकता का कोई अजेंडा है | क्या यह तय हुआ कि नास्तिक भ्रष्टाचार में रत न हों ?
फिर चलिए एक प्रचार कि ही बात ! हम इसके प्रचार प्रसार के
 लिए ही क्या कर रहे हैं फेसबुक के बाहर ?
#     #

* स्थितियों , परिस्थितियों को देख समझकर मनुष्य के मन में ईश्वर का न होना अपने आप सिद्ध हो जाय तब तो मज़ा ! हम किसी को क्या और क्यों बताते फिरें ? हमारे पास भी तो उतना ही दिमाग है जितना उनके पास ?

* हम मौसम नहीं देखते, आंधी तूफान की परवाह नहीं करते , जाड़ा गर्मी बरसात हमारा रास्ता नहीं रोक सकता | हम समय का इंतज़ार नहीं करते | हम कुत्ते नहीं हैं !

* आस्तिकों के मोहल्ले में हम नास्तिक नहीं हो सकते | यूँ कीड़ों की तरह जीना न हो तो हमें भी आस्तिक होना होना पड़ेगा - नास्तिकता के साथ जीवन मूल्यों के प्रति 'आस्तिक' | विचार वायवीय , केवल सब्जेक्टिव तक सीमित नहीं होने चाहिए सरवाईवल के लिए | हमे व्यावहारिक , ओब्जेक्तिव होना चाहिए | वैज्ञानिक निष्कर्ष तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होते हैं , अकेले एक चावल कि खिचड़ी पकाने से नहीं |
इस प्रकार हम अपनी आस्तिकता की नज़र खोलें , तो हमें देखने होगा हमारे बीच उपस्थित अन्य धार्मिक जन, समूह , संस्थाएं , संगठन , उनके राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं ?
ज़ाहिर है अभी कोई नास्तिक नास्तिक में पैदा नहीं होता | अभी सब किन्ही पुराने धर्म से ही निकले हैं | ऐसे में यदि कोई जन्मना है तो स्वाभाविक है हिन्दू और हिंदुत्व के प्रति ज्यादा कटु और आक्रामक होगा | कई नास्तिक हिन्दू धर्म को समाप्त करने का झंडा आक्रोश में उठाये हुए हैं | स्वागत है उनका | लेकिन उनसे यह देखने का आग्रह तो हो ही सकता है कि - तब कौनसा तीर मार लेंगे वह ? [ मैं हिंदुत्व नहीं हिन्दू समूह की बात कर रहा हूँ ] | थोड़ा आगा पीछा सोच लें | यही तो बुद्धिवाद का तकाज़ा है ? तब क्या वह जिंदा रह पाएंगे ? राजनीति भी यही कहती है कि जहां सभी आपके दुश्मन हों वहां उस दुश्मन से दोती रखो जो आपका सबसे छोटा ( कम से कम ) दुश्मन हो | यह भी गौर कीजिये कि इतनी वैश्विक छीछालेदर के वावजूद क्या किसी इस्लामी बौद्धिक गुट ने यह कहा , या कहने का साहस कर पाया कि इस्लाम का नाश होना चाहिए ? हाँ हिन्दू को कह सकते हैं , क्योंकि आसान है यह | लेकिन क्या आसान काम करके आप सफल हो पायेंगे | आज तो बुद्धि का तकाजा यह है कि नास्तिक मुस्लिम भी हिन्दू कौम को जिंदा रखने की मुहीम में घुसें | वर्ना नास्तिकों का कोई सम्प्रदाय तो बनेगा नहीं , नरम हिन्दू की अनुपस्थिति में वे नेस्तनाबूद कर दिए जायेंगे | नास्तिकता या इस -उस ईश्वर में आस्था एक बात है और राजनीतिक मानव चाटने दूसरी बात | और दुनिया में अस्तित्व , और अस्तित्व का प्रकार राजनीति से तय होता है , इतना तो समझते ही होगे ?

* No doubt Modi is looking like a sole alternative . But sorry , we can not accept him . Rather, we should wait for other alternative to evolve . We can't spoil our nation and give a bad name to it . Because , once this " dictatoriat" is throned and given the seat , he will gain ( अभी तो अपनी पार्टी और गुजरात तक सीमित हैं ) thatso called " Absolute Power " , which , as the saying goes , will corrupt him " Absolutely ".
And why to lose heart ? BSP is very much in the contest ? Also , if I could feel your anxiety about Hindu Rajya, yes Mayavati is best suited to carry it over . She is more hindu than modi .
मैं यह नहीं समझ पाया कि धार्मिक हिन्दुस्तान में सड़क , बिजली और कार की फैक्ट्री कैसे विकास के मापदंड हो गए | यदि हिन्दू की ही बात करें तो इसकी प्रगति तो आध्यात्मिक , सामाजिक , शक्षिक , समतावादी न्याय के मूल्यों में निहित होना चाहिए ( यदि इसके think टैंक स्वयं को धोखा न दें और हमे भ्रम में रखने कि कोशिश न करें तो ) | ऐसी दशा में मायावती का शासन ही असली हिन्दू राज्य होगा | और जोड़ दे तो तमाम तनाओं की विनाशक भी !
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* तब तक बंद नहीं होगा
हमारा हमला
जब तक नहीं बंद होते
ड्रोन हमले ,
और जब ड्रोन हमले रुकेंगे
तब हमारे शुरू होंगे
हमले | "
कुछ इस तरह बन सकती है कविता |
कई सवाल हैं | एक तो अपने नास्तिक मित्रों से | मरने वालों ने कोई खता नहीं की थी | इस्लाम का कुरान का , पैगम्बर का कोई अपमान नहीं किया था | बस गैर मुस्लिम थे , यही उनका दोष था | और शायद इस कुकर्म - कुपंथ के दोषी तो नास्तिक जन भी हैं !
दोनों हाथों संभालिये दस्तार (पगड़ी )
मीर साहेब ,  ज़माना नाजुक है |
अब कोई कहे कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता , तो क्या उसे दो झापड़ रसीद करने का मन नहीं होता ?
जी हाँ , नहीं होती पिटाई और आतंकवादियों का हौसला बढ़ता जाता है ( वैसे भी वे इनके भरोसे नहीं हैं )
और कहिये कि बलात्कारियों का , हत्यारों का कोई धर्म नहीं होता ! कहते जाईये | कम्युनिस्टों का, नक्सलियों का या किसी का कोई धर्म नहीं होता ! फिर तो यह हमारी ही बात की पुष्टि हुयी ! फिर ज़रूरत क्या है धर्मो की , ईश्वरों कि , किताबों की ? अनैतिक ही होना है तो हमारी नास्तिकता ही भली !
अंतिम संबोधन दलित ब्राह्मण विरुद्ध आन्दोलन को | कल्पना कीजिये , ऐसे व्यवहार पर यदि कोई समुदाय यह तय कर ले कि वह मुसलमानों का बहिष्कार करेगा | उठाना बैठना , खाना पीना , छुवा छोट , शादी व्याह नहीं करेगा तो क्या वह अनुचित होगा ? असंभव नहीं ऐसा ही कुछ उनकेसाथ भी कभी हुआ हो | लेकिन अब बुद्धिमत्ता इसी में है कि वह " ब्राह्मण वाद " पर कब्ज़ा ( Occupy Wall ) कर लें , और हिन्दू राज्य को अपने हाथों में ले लें | हीनभावना से मुक्त हो घोषित कर दें पुराने ब्राह्मणों और मुसलमानों से कि अब हम है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र सब और हम ही है मुग़ल सल्तनत के उत्तराधिकारी | अब मनुवाद का रोना लेकर बैठने से काम नहीं चलेगा  , उससे कुछ नहीं होगा सिवा आरक्षण के कुछ टुकड़ों के | अब उन्हें राजा की भूमिका में आना होगा पुरे आत्मविश्वास के साथ पूर्ण हिन्दू पहचान के साथ | तब न कोई दलित , न कोई हिन्दू , न कोई नास्तिक , न कोई मुसल्मान इन आतंकवादियों के हाथों मारा जाएगा | सिंहासन खाली होगा यदि तुम आते हो !
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* किसके लिए मरे जा रहे हो , लोगों को मारे जा रहे हो ?
उसके लिए , जो कहीं है ही नहीं ?

* वैसे उग्रनाथ जी , बुरा न मानो तो तुम्हे एक बात समझाऊँ | तुम हो पक्के मूर्ख , कहते भले हो कि तुम बुद्धिमान हो | असली बुद्धि तो मुस्लिम परस्त बुद्धिजीवियों के पास है, इसीलिए ही तो उन्हें बुद्धिजीवी की संज्ञा और सम्मान प्राप्त है | वे जानते हैं कि आखिर ति इस्लाम को ही आना है , दुनिया पर छाना है | उन्ही में है हर तरह की काबलियत शासन करने की | तो अभी से चढ़ते सूरज को क्यों न अर्घ्य चढ़ाते रहा जाय ? पूर्ण हिन्दू चतुर हैं वह ! इसीलिए वे हर बात पर अमेरिका का विरोध भी करते हैं , भले अपने बाल बच्चों , बिटिया दमाद को वहाँ भेज दें , पर खुद कटे रहते हैं | कटे रहना ज़रूरी जो है मुस्लिम मैत्री के लिए ! तुम भी इनमें शामिल क्यों नहीं हो जाते ?

* दुनिया भर में मुसलमान गैरमुस्लिमों के प्रति असहिष्णु हो रहे हैं , और उन्हें रोक्न्र , बरजने के लिए कोई भी पारंपरिक या प्रगतिशील विचारधारा जुमान तक खोलने को तैयार नहीं है | यह दुखद स्थिति है | नास्तिक प्रगतिशील , कम्युनिस्ट , मानव अधिकारवादी किसी की भी हिम्मत नहीं पड रही है | जो कबीर की कभी तब थी जब विचार और विज्ञान 5 - 6 सौ वर्ष पीछे थे , इतना आगे नहीं बढ़े थे जितना कि आज | अब तो हमने मारक अस्त्रों में इतना विकास और विस्तार कर लिया है कि कबीर भी नहीं कह पाते कि इस्लाम एक अमानवीय, निहायत बर्बर, दकियानूसी धार्मिक धारणा है, ईश्वर के प्रति अपराध है इनके कृत्य | फिर हमारी आप की क्या औकात ?

* क्या मतलब ?
आज अपने राष्ट्रपति श्री प्रणब जी का बयान आया है कि , मानवता और सभ्यता को बचाने लक्ष्य " सिर्फ कानून की मदद से हासिल नहीं किया जा सकता | इसके लिए समाज को मिलकर कोशिश करनी होगी " |बात लगती तो साधारण आह्वान जैसी है लेकिन आइये ज़रा इसे इससे सेक्युलरवाद के दार्शनिक धरातल को समझने कि कोशिश करते हैं | हर सेक्युलर चिन्तक, प्रोफेसर भाँय - भाँय  भाषण देता चला जाता है सेमिनार - सभाओं में अखबार - पत्रिकाओं के लेखों में , कि यह ( सेक्युलरवाद ) व्यक्ति नहीं राज्य का विषय है | और हम बराबर कहते रहे हैं - कि जनता को वैसा ही शासन मिलता है , जिसका वह पात्र होता है ; दूसरे तरीके से - यथा राजा तथा प्रजा | दोनों अन्योन्याश्रित हैं | इसीलिए धार्मिक अन्धविश्वासी भारत में लोकवाद आधारित लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सका | अजीब बात , यह साधारण तथ्य लोगों की समझ में नहीं आता कि जनता तो कट्टर मुसलमान होगी और राज्य सेक्युलर हो जायगा ? या यह कैसे संभव होगा कि वोटर कट्टर हिन्दू होगी , लेकिन अपने लिए सेक्युलर राज्य चुन लेगी ? नहीं राष्ट्रपति जी का भी आशय यही है कि जनता और समाज को भी सेक्युलर ( नास्तिक ) होना चाहिए |
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* हिन्दुस्तानी तहजीब की सफाई और सौन्दर्य ही नहीं , इसकी कुरूपता और गन्दगी भी मुझे प्यारी लगती है |

* जो मेरा है
वह तो ज़रूर है ,
लेकिन तुम्हारा जो
वह कहीं भी नहीं है -
कोई ईश्वर !
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* छोटा ही सही
अपने पैरों पर
खड़ा तो सही !

* संभालो यार !
अपने पास जो है
दिल दिमाग |

*  कला संकाय
है कोई तेरे पास ?
बचा रखना !

* छिछोरापन
कहीं बैठा हुआ है
गहराई में |

* सत्य मार्ग में
अपनी आस्था तो है
लागी लगन |

* कुछ लोगों को
मारो और मरो भी
कैसी है नीति ?

* मैं जानता हूँ
तू है तो नहीं तो भी
क्यों इंतज़ार ?

आनंद देती
झूठी उपस्थिति भी
हाय ! उसकी |