रविवार, 18 नवंबर 2012

बाल ठाकरे की मौत

* आयु में कमी आड़े आ रही होगी , वरना जो लोग बाल ठाकरे की मौत पर ख़ुशी मना रहे हैं , वे जिन्ना की मौत पर तो ज़रूए रोये होते |

* मौत का जश्न मनाया या अपने मन का भय भगाया ?

* विद्रोही विचारकों की बातों से ऐसा लगता है कि भारत के हिन्दू धर्म को छोड़ बाक़ी दुनिया जाति वंश आदि समस्त बुराइयों से विमुक्त है | तिस पर भी , लेकिन इसकी एक खूबी तो माननी पड़ेगी , कि इसे छोड़ना बहुत आसान है | एक शनीचर देवता की बाधा थी तो वह बाल ठाकरे भी अब नहीं रहे | खुशियाँ और काहे के लिए मनाई गयीं ? उपयोग कीजिये आज़ादी , प्रयोग कीजिये लोकतान्त्रिक अधिकार |

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