मैं तो कसाब की फाँसी के विरोध में रहा हूँ शुरू से ही | हम जब सिद्धांततः ही फाँसी की सजा के विरोधी हैं तो हैं | इसमें छद्म क्या करना ? चाहे वह कसाब का हो या अफज़ल गुरु का | [ हाँ एक मित्र बता रहे थे कि देखिएगा, गुरु को फाँसी नहीं होगी क्योंकि इसका वोट बैंक है | कसाब को सूली पर चढ़ा दिया गया क्योंकि उसका वोट बैंक नहीं था | {अब इस विचार की सत्यता / असत्यता की ज़िम्मेदारी कोई मुझ पर न डाले }]
बाल जी ठाकरे के बारे में स्पष्ट कर दूँ कि किसी को हुआ हो या होता हो, पर यद् नहीं आता मुझे कभी किसी नेता के मरने पर दुःख हुआ हो | न जन्म की ख़ुशी , न मृत्यु का शोक | अतः मैंने शोक नहीं मनाया | अब इसे कोई अपनी ख़ुशी के लिए ख़ुशी मनाना समझ ले तो इसमें मेरी कोई त्रुटि तो नहीं है |
और मेरा कोई दोष तब भी नहीं होगा , जब कसाब की फाँसी से आतंकवाद के खात्मे या इसमें कमी का उद्देश्य पूरा नहीं होगा |
एक विकल्प मैंने दिया था उसे नक्सलवादियों के क्षेत्र में छोड़ देने का | तब या तो वह माओ का अनुयायी होता , या उसके प्रभाव से माओवादी तब आतंकवादी के आरोप में आ जाते |
Rajendra Singh सहमत आपसे दुनिया के ११० देश फांसी की सजा के विरोध में खड़े हे ..होना ये था कसाब को जेल में आजीवन सड़ा देना था ..तिल तिल कर वो मरता ..हा,हमने उसे आजाद कर दिया |
Sandeep Verma कसाब को प्रायश्चित करने का मौका देकर आतंकवाद के खिलाफ प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था . अपने अंतिम समय में अपने किये पर उसे पछतावा था . एक नए और बड़े राजनितिक कदम की शुरुआत हो सकती थी .
अब इतनी क्रिएटिव बुद्धि हमारी राजनीति में कहाँ ? इसके लिए ही तो प्रिय समाज [ नई राजनीति ] है !
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