शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

वामपंथ को अक्षत योनि


प्रकारांतर से मैं उज्जवल जी से असहमत होने का नाटक करना चाहता हूँ | मैं इस बात के पक्ष में हूँ कि इस्लाम की किताबों की भाँति वामपंथ को भी अक्षत योनि रहने दिया जाय | इनके साथ कोई छेड़ छाड़, कोई परिवर्तन-संवर्धन - संशोधन न किया जाय, न इनके पुनर्परिभाषित करने की कोई दुश्चेष्टा | क्योंकि इससे इनकी शुद्धता - पवित्रता नष्ट होने का खतरा है | फिर तो कोई भी इनकी मनमानी व्याख्या कर सकता है , जो उचित नहीं | इसलिए जिस तरह इस्लाम की किताब के पन्नों के बाहर क्या हो रहा है किसी मौलाना से न पूछिए , उसी प्रकार वामपंथियों से भी प्रश्न न कीजिये कि ऐसा क्यों हुआ कि इसका सारा चटख लाल रंग बैंक और बीमा कर्मचारियों के धवल सफ़ेद कालरों में फँस गया ? या फिर जे एन यू के जीन्स के पाकेटों में ? मत पूछिए कि ये बनतू कम्युनिस्ट स्वयं कुछ सर्वहारा की ज़िन्दगी जीकर क्यों नहीं दिखाते ?
और यह विडम्बना, कि जो सादा जीवन जीते है वे दुर्भाग्यवश अधिकांश गाँधी से प्रभावित क्यों होते हैं ? हमने रमेश सिन्हा और चंदर तिवारी की जिंदगियां देखी हैं और अनेकों की देख रहे हैं | अब गांधीवाद तो गया कूड़े में , तो वामपंथ को तो शुद्ध रहने दिया जाय | जिसको होना हो वह पूरा हो, अन्यथा न हो | इस स्पष्टता के साथ मैं गांधीवादियों से तमाम दूरियों और वाम मित्रों से नजदीकियों के बावजूद इनके कार्यक्रमों से भरसक परहेज़ करके शायद उचित ही करता हूँ |      

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