शनिवार, 25 अगस्त 2012

07-07-2012


To Sri Pramod Joshi   7/7/12
अंतर्विरोध 
अब इसे लिखना बहुत ज़रूरी हो गया है , confession ( of a human citizen-poet and poetical activist )करना | काफ़ी हॉउस में बहुत पहले प्रमोद जोशी जी ने एक प्रश्न उठाया था - क्या हम अपने अंतर्द्वंद्व पहचानते हैं ? यद्यपि वह माओ से सम्बंधित था जिसका सन्दर्भ मुझे  नहीं पता , लेकिन मुझे लगा कि इन्होने तो मेरे चोर की दाढ़ी में तिनका पकड़ लिया | मैंने प्रश्न को व्यक्तिगत स्तर पर ले लिया और अंतर्वीक्षण में जुट गया | मैंने पाया कि मैं तो अंतर्विरोधों का ढेर हूँ | जैसे मैं किसी का नाक में उँगली करना पसंद नहीं करता पर स्वयं करता हूँ , सी डी तिवारी जी से  भीख न देने के मुद्दे पर सहमत था पर भीख देता हूँ , राजनीति से घृणा करते हुए भी उसमे पूर्णतः लिप्त हूँ , पत्नी -परिवार से कोई लगाव नहीं है पर घर की ज़िम्मेदारियाँ पूरी निभाता हूँ , साहित्य में छंद का महत्व स्वीकारता हूँ पर छंदबद्ध कवितायेँ मुझे दो कौड़ी की लगती हैं , भीतर क्रोध का पारावार है पर लोगों से प्रेमपूर्वक  मिलता हूँ , मनुष्य में जन्म से आये व्यवहार की निम्नता को पूर्णतः लक्षित करता हूँ पर उन्हें सत्ता सौंपना चाहता हूँ , स्त्रियों का पूरा आदर -सम्मान करता हूँ पर औरतों के बारे में मेरी कोई अच्छी राय नहीं है , मैं बिलकुल गफलत में नहीं रहता सत्य को ठीक पहचानता हूँ पर अज्ञानी होने  की मासूमियत प्रदर्शित करता हूँ , " नहि मानुषात श्रेष्ठतरं हि किञ्चित " मेरे जीवन का साध्य-मन्त्र है लेकिन मनुष्यों से बेहिसाब घृणा करता हूँ , हर क्षण मैं ईश्वर की आराधना में लीन रहता हूँ पर ईश्वर का विरोध करता हूँ , सांगोपांग धार्मिक हूँ पर धर्मों के नाश की रणनीतियाँ बनाता हूँ , अति लोकवादी हूँ पर लोकहित में ही सख्त शासन प्रशासन की ज़रुरत समझता हूँ , घनघोर मानववादी- समतावादी हूँ पर चीज़ों में विभेद , मनुष्य -मनुष्य तक में अंतर समझता हूँ ,विज्ञानं , तर्क बुद्धिवादी हूँ पर इसे जीवन के लिए अपर्याप्त मानता हूँ , जातिवादी नहीं -जन्मना छोड़कर शेष किसी प्रकार हिन्दू नहीं पर भारत के लिए दलित हिन्दू या गैर इस्लामी राज्य उचित समझता हूँ , मन में क्रोध बहुत है पर किसी का नुक्सान नहीं करता-अहिंसा आवश्यक मानता हूँ , निशदिन हलचल में रहता हूँ पर बाहर किसी आन्दोलन में भाग नहीं लेता -उसे ज़रूरी नहीं समझता -उल्टे विरोध करता हूँ , मैं निहायत अनुशासित हूँ पर संगठन में रहना / बनाना मेरी प्रवृत्ति में नहीं , राजनीति में गंभीरता से संलिप्त हूँ पर किसी दल में नहीं हूँ , पागलपन भी है सावधानी भी है , इहलोकवादी (secular) हूँ दुनिया में मन भी नहीं रमता , कविता करता हूँ पर उन्हें कविता मानने - मनवाने की ज़िद नहीं करता , झूठ को सुंदर लोकव्यवहार के लिए उपयोगी मानता हूँ पर झूठ बोल नहीं पाता , अपने मन के भाव बाह्य नहीं करना चाहता पर उन्हें छिपा नहीं पाता, खुलकर सोचता हूँ बोलने में संकोच करता हूँ ,  |  
  इसकी सूची बड़ी लम्बी है , पर ऐसा मैं हूँ | इसका अपराध मैं स्वीकार करता हूँ | अच्छा हुआ प्रमोद जी मिल गए जिनसे मैं यह कह सका , वरना मैं आत्मग्लानि से पीड़ित रहता | अब इसकी सफाई मैं अपनी खुशी के लिए यह देता , अपने मन को समझाता हूँ कि मेरा अंतर तो ठीक ही है पर उसके अनुकूल बाह्य जगत में कुछ नहीं मिलता तो वह विरोधाभास का कारण बनता है | बल्कि मैं तो तो कहता हूँ ये विरोधाभास ही मेरी उपलब्धियाँ हैं | इसलिए मैं शांत - संयत और स्थितप्रज्ञ रहता हूँ | सत्यतः , मुझे कोई भी शोक विचलित नहीं करता , कोई भी उत्सव मुझे आह्लाद नहीं देता | और फिर अंतर्विरोध- कि इसका विलोम भी फलित होता है | आपको धन्यवाद यदि आपने इसको पूरा पढ़ा | देखता हूँ , और अच्छा ही करते हैं कि आप फेसबुक पर अनावश्यक हम लोगों की तरह सक्रिय होकर समय नहीं गवाँते , इसलिए इस पोस्ट पर भी आपके कमेन्ट की चाह मुझे नहीं करनी चाहिए | मैं तो इसे आपके पास send करके ही पापमुक्त हो गया |   
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God Partcle ?
Oh ! I mistook as -
Good Particle .
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(short poem) 9/7/12
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(हाइकु )
* लेकिन है तो
होना नहीं चाहिए
जाति विभेद |

* अपनी कोई
जाति न मिटाओ
दलित बनो |
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उवाच =
१ –  इसे कोई साम्यवादी नहीं बताएगा :- " किसी और के लिए जीने से साम्यवाद आएगा " |
२ - परिवार को उतना ही दो जितना उसे देय है , नहीं तो परिवार बिगड़ जायगा | ज्यादा समाज को दो |
३ - यह कोई मल्लयुद्ध नहीं है | हम विचार युद्ध में किसी को गिराने पटकने का इरादा नहीं रखते | हम तो चाहते हैं वह (विरोधी) किस प्रकार हमारे ज्यादा करीब आ जाय , हमारे सीने से लग जाय !
4 - २४ घंटे मेरे पास हैं मैं फेसबुक पर उत्पात किये रहता हूँ | २४ घंटे न्यूज़ चैनेल्स के भी पास हैं तो वे उत्पात न करें तो कैसे समय बिताएँ ?
5 - हिंदुस्तान और मार्क्स को नकार दे ? कभी इसने किसी के साथ ऐसा किया क्या ?
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मनोरंजनार्थ =
२४ घंटे मेरे पास हैं मैं फेसबुक पर उत्पात किये रहता हूँ | २४ घंटे न्यूज़ चैनेल्स के भी पास हैं तो वे उत्पात न करें तो कैसे समय बिताएँ ?

 * मेरा जीवन
लेखन के कारण
खतरे में है |

* 'बुराई' शब्द
कहाँ से आया , 'हंस
पढ़ो तो जानो |

* - पार कर लो
सावधानी पूर्वक
जीवन नैया |



* मेरा मशीन
कभी स्टार्ट होता तो
कभी नहीं भी
इन्टरनेट पर
लिखूं तो कैसे ?

  
बालकीय (Childlike)
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* - गाड है नहीं
भाषा का एक शब्द
बन गया है |

* - थोड़ी बुराई
तो होनी ही चाहिए
आदमी है तो !

* - रहना तो है
आखिर मनुष्य ही
नाम कुछ भी |

* कोई तो बताये
कुछ भी तो बताये
मैं करूँ तो क्या ?

* क्या बताऊँ मैं
इतना लिखना है
कितना लिखूँ ?

* बहुत ज्यादा
दूर नहीं जाता मैं
पास रहता |

* जब किताब
पूरी हो जाय, तब
दिखाना मुझे |

* आँखें गड्ढे में
चली गयीं , लेकिन
देखना जारी |

* बाज़ार में ही
' कबिरा ' भी खड़ा था
हरिश्चंद्र भी |

* मैं कमीना हूँ
आप मानेंगे नहीं
मान जाइए |

* बात यह है -
मैं रोता बहुत हूँ
बात पुरानी |

* मारना क्या है
नहले पे दहला
लग जाता है |

* वाह , क्या बात
बड़ी अच्छी कविता
फिर सुनाओ |

* जोर से बोल
सुनाओ तो सुनें भी
शोर बहुत
ऐसे में सुने कौन
मौन की भाषा ?
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अरे सचमुच ! सूचना मिली है कि अजय बाबू , आचार्य नरेंद्र देव के सचिव और तिवारी जी के हमउम्र मित्र , का देहांत हो गया है | इनकी थोड़ी याद कर लें | इन्हें फोन करो तो ये हेलो नहीं " फरमाइए " कहते थे | नाटे कद के अत्यंत सीधे और सरल व्यक्ति थे वह , कम से कम तिवारी जी से तो कहीं ज्यादा | पजामा कुरता ही पहनते थे | इनकी दो पुत्रियाँ भी अति प्रतिभावान हैं | छोटी पुत्री रूचि कुमार शायद STAR NEWS में है और दामाद हैं कमाल खान जो NDTV में हैं | जब तक जिंदा रहे आचार्य जी की समाधि पर हर वर्ष पुष्पांजलि कार्यक्रम और विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में व्याख्यान अपने बल - बूते कराते रहे |
उन्हें हमारी सादर श्रद्धांजलि |
फोने की बात उठी तो चन्द्र दत्त तिवारी जी का भी स्मरण हो आया | किसी का फोन आने पर वह हेलो -हाय में समय और पैसा न व्यय न हो इसलिए वह सीधे जवाब देते थे अपना नाम बोलकर - " चन्द्र दत्त तिवारी ", और बात शुरू हो जाती | उन्हें भी प्रणाम |  
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जयप्रकाश की चाय , हरजिंदर की चीनी , उग्रनाथ की ज़िन्दगी =
तिवारी स्कूल की बात शुरू करने से पहले ज़रूरी है कि गणेश वंदना कर ली जाय -विघ्नहरण -दुःखनाशक  की | सचमुच वह ऐसे ही थे [हैं] | कहीं नल ख़राब है ,पाइप लीक कर रहा है , बिजली का स्विच काम नहीं कर रहा है , तिवारी जी का फोन जयप्रकाश के पास जाता और वह हरवा हथियार -रिंच पेंचकस लेकर हाज़िर हो जाते | व्यक्तिगत तौर पर जितनी सेवा जेपी ने तिवारी जी की की उतनी किसी और ने की हो मुझे पता नहीं | लोगों को याद कम आएगा क्योंकि वह बहस कम करते थे [उसके लिए मैं फालतू रिज़र्व जो था उनके लिए] पर उनकी पढ़ाईके प्रति रूचि ,स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आदर और सेवा भाव बहुत था जिसे उन्होंने अंत तक निभाया | यद्यपि वह एलआईसी में बड़े ' हगा ' [HGA] पद पर थे और उनकी लखनऊ में कोठी और ज़मीन है , गाँव से भी तंदुरुस्त हैं लेकिन भाव में विनम्र हैं
तो वह लगभग सबसे पहले केंद्र पहुँचते | फिर ज्यादातर होते हरजिंदर, आलोक और मैं भी | चाय से शुरू , तो यह ज़िम्मा स्वयं तिवारी जी का या जयप्रकाश का | अंग्रेजीनुमा चाय बनती| पाट में चाय , उस पर टोपी चढ़ती | ब्रू होने दो यार , जे पी कहते | दूध अलग | प्यालियों , सॉरी, शीशे के गिलास में चाय ढाली जाती, दूध डाला जाता | पर उसके पहले 'चीनी कितनी' पूछा जाता | तब हरजिंदर कहते - थ्री एंड ए हाफ एंड ए लिटिल मोर , और हँसी की बरसात से गोष्ठी की शुरुआत होती |
अब इसके आगे प्रबुद्ध , या जो बहुत बुद्धिमान पाठक हों कृपया लेख को स्किप कर जायं क्योंकि इसके बहाने मैं स्वान्तःसुखाय व्यक्तिगत जीवन के सूत्र निकालने जा रहा हूँ |
इस संवाद ने मेरे जीवन पर इतना प्रभाव डाला कि आज भी जब मैं अपने लिए एक कप चाय बनाता हूँ तो चीनी डालता तो एक ही चम्मच हूँ पर उसे इतने टुकड़ों में डालता हूँ कि लगे वह ' थ्री एंड ए हाफ एंड  ए लिटिल मोर ' हो जाय और मैं मुस्करा देता हूँ | खुशियों से भर जाती है मेरी चाय की प्याली और उसके बाद के तमाम क्षण | सचमुच यह मेरे जीवन दर्शन के समान हो गया है | आखिर और होता ही क्या है दर्शन , और मैं इसे इसी तरह परिभाषित भी करता हूँ -" जो जीवन को सरल और सुखमय बनाये " | मुझे मुंह लटकाए विचारक अच्छे नहीं लगते - खुद दुखी हैं तो सुख क्या देंगे ? मैंने पाया कि जीवन में तो दुःख ही दुःख है, सुख को तो छीनना पड़ता है | इसलिए मैं  ऐसा  कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देता जिस पर थोड़ी देर हँसा जा सके | कभी कभी तो मैं ऐसी स्थितियों का सायास आविष्कार भी करता हूँ | जैसे मैंने प्रमोद ,राजीव और मैडम  रूपरेखा जी से भी किसी यात्रा में रास्ते में ठुनक कर कहा कि मुझे कोल्ड्रिंक पिलाओ नहीं तो मैं आगे नहीं जाऊँगा | अब सोचता हूँ ,क्या बदतमीजी थी , पर मेरे लिए अमानत | उसी के बल पर अभी लिखते समय मेरे आँखों में प्रसन्नता के आँसू छलके | किस धनवान को उपलब्ध है यह ,जो मुझे है | इसे कुछ मैंने ओशो से भी सीखा , जीवन को हल्का रखना | और मैं नहीं समझता कि इस नाते जो मैं सोचता -लिखता हूँ वह कहीं भी हल्का हो जाता है | मेरी नीति है , दिमाग हल्का रखो सोच गंभीर हो जायगी | इसलिए जगह जगह जैसे absolute nonsense etc  में हल्का फुल्का लिखता रहता हूँ | भले कोई यही तो सोचता होगा कि नागरिक कितना अगंभीर हल्का आदमी है , तो सोचा करे | जब मेरी ख़ुशी ही मेरे पास नहीं रहेगी तो मैं वीर बहादुर महाराणा प्रताप बनकर क्या करूँगा ? मस्त रहता हूँ कोई चाह - आकांक्षा विहीन | जो मन में आता हूँ लिखता हूँ छपे न छपे | प्रमोद जोशी जी ने मुझे साप्ताहिक कालम में छापना शुरू किया , यह उनकी सुबुद्धि -गुणग्राहकता थी ,पर मैं इसके लिए कभी उनके दफ्तर नहीं गया | किसी संपादक या महत्वपूर्ण व्यक्ति के इर्द गिर्द नहीं गया मैं कि कहीं वह गलतफहमी में न पड़ जाय इस स्वभाव ने मुझे यह संपत्ति मुहैया करायी कि छोटे बच्चों से लेकर सामान्य रिक्शा-सब्जी वाले , और किसी भी स्तर के स्त्री पुरुष मुझसे घुलने में संकोच नहीं करते | इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है | यहीं उफ़क़ लखनवी का एक शेर है =
  " मुझे वह प्यार से 'तू' कहता है ,
     मैं 'खिताब' लेकर क्या करूँगा ?
     मैं 'हुज़ूर' लेकर क्या करूँगा ,
     मैं 'जनाब' लेकर क्या करूँगा ? "
  और हाँ , जिस बात से बात शुरू हुई थी वह चाय वाली अपनी कविता तो मैंने सुनाई ही नहीं =
     " तुम जीवन में ऐसे आये , जैसे सुब्ह की पहली चाए " |
हरजिंदर का बहुत शुक्रगुजार हूँ मैं , भले उनके लिए यह बात / घटना बहुत छोटी रही हो |
 8/7/12   

* ढूँढ जो पाते
मनुष्य पार्टिकल
तब जानते !   8/7/12

* विचार बहुत हो चुका , तैयारी पूरी हो चुकी | मैं सोचता हूँ " कर्मवादी दल " बनाऊँ |

End kwt|