शनिवार, 10 नवंबर 2012

दलित बड़ी गहराई से हिन्दू


आभासी किताब पढ़कर मन कसैला तो होता है | पर उससे उबार कर मैं शांति पूर्वक विचार करता हूँ कि  इसका क्या कारण हो सकता है कि दलित लेखक पानी पी पी कर हिन्दू धर्म कि बखिया उधेड़ते हैं , उसे गालियाँ देते हैं , और खोज खोज कर ऐसी उद्ध्रितियाँ सामने लाते हैं, जो स्पष्टतः अनैतिक और घटिया होता है , और जो पर्याप्त होता है किसी सभ्यता और संस्कृति को शर्मसार करने के लिए ? तो मैं पाता हूँ कि इसके दो कारण हो सकते हैं | (यह विवेचक हिन्दू भले पैदा हुआ है , और इस पर उसे कोई शर्म या गर्व नहीं है , यह मात्र एक घटना भर है, इसलिए यह निष्पक्ष है  ) | एक तो यह कि दलित सचमुच हिन्दू धर्म को अपमानित करना और अपमानित होना देखना चाहते हैं , इसमें उन्हें आनंद  आता है , एक मनोवैज्ञानिक सुख प्राप्त होता है , जिससे ये सदियों से वंचित रखे गए थे | लेकिन इससे परे मुझे एक और कारण संभावित समझ में आता है ,और वह सच के ज्यादा करीब लगता है | वह यह कि इन्हें हिन्दू धर्म से इतना प्रेम , इतना लगाव है कि इसमें कोई कमी , कोई प्रदूषण , कोई अनैतिकता बर्दाश्त नहीं होती , जिसे वे पुराणों में तमाम पा जाते हैं | इससे वे पीड़ित होते हैं , इसलिए इनकी सशक्त - सतर्क -सटीक आलोचना आलोचना करते हैं || तभी इन्हें राम का चरित्र , ब्रह्मा का कुकर्म , नारी के साथ  देवता का रमण बुरा लगता है | अन्या किसी को भले वे सब काल्पनिक कथाएं लगें , पर इन्हें सारा सर्वथा सत्य लगता है , और वे इन्हें ऐसा ही मानकर चलते हैं |कुछ क्या तमाम उदहारण हैं किताबों में जो इनके ह्रदय को सालता है | यह इनकी संवेदनशीलता का प्रतीक और परिचायक हैं | अतः इनके द्वारा हिन्दू धर्म कीनिंदा को इसी परिप्रेक्ष में लिया जाना चाहिए , न कि उलटे इन्ही की आलोचना , भले ये लोग  बर्दाश्त की सीमा से काफी आगे निकल जाते हैं | इससे हासिल क्या होता है यह तो यही जाने , लेकिन ऐसा करने का इन्हें पूरा हक है | उस बाप को गाली देने का , जिसने इनका उचित हक नहीं दिया | हिन्दू इतना तो सहिष्णु है ही कि वह अन्दर बाहर की सारी गालियाँ खा - पचा लेता है | इसलिए आलोचक निश्चिन्त हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा | वर्ना वे यह भी जानते हैं कि ऐसी ही बातें ज़रा माओवाद या इस्लाम के विरुद्ध तो कह कर देखते  , भले ये विचार भी कोई हर समय के लिए दूध के धुले हुए नहीं हैं |
अब हम मूल निष्कर्ष पर आते हैं कि अविरल अपशाब्दिक दलित गण मूलतः बड़ी गहराई से हिन्दू ही हैं तभी वे इसके बारे में इतना बोलते हैं | वर्ना यदि ये अपने को हिन्दू न कहते , हिन्दू होने में शर्म खाकर इसे छोड़ दिए होते , तो भला ईनसे क्या मतलब था कि सीता राम ने क्या किया , रावण को क्यों जलाया , ब्रह्मा ने बलात्कार किया ? सुबूत है कि कोई मुसलमान  तो हिन्दू धर्म की इतनी चिंता नहीं करता ! दलित ऐसा करके प्रकारान्तर  से हिदू धर्म के प्रति अपना प्रेम और आस्था ही व्यक्त करते हैं |

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