धनतेरस के दिन मोटर , मोटर साईकिल , साईकिल [ अचर्चित ] खरीदने की बात तो चलो समझ में आती है , लेकिन सुना है कोई कोई हज़ार हज़ार , दो दो हज़ार के पटाखे फोड़ डालते हैं , तब आश्चर्य होता है | कौन है ये लोग , इतना पैसा उड़ा रहे हैं , कहाँ से हैं इनके पास इतना ? और है भी तो व्यर्थ क्यों कर रहे हैं ? तब मन को समझाता हूँ - हे नागरिक , तुम नहीं समझ पाओगे | यह समझ लो कि तुम्हारी दुनिया और है , और इनकी दुनिया और है | सिने तारकों- तारिकाओं, व्यापारियों , सटोरियों से आम जनता की तुलना न करो भाई !
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