प्रिय सिद्धार्थनागरियों की खिदमत में खास तौर पर कुछ प्रतिनिधि कविताएँ : -
(1) कफ़न
मैं एक कफ़न हूँ
ज़िंदा ही जला दिया जाता हूँ
एक मुर्दा लाश के साथ
गोया मैं एक ज़िंदा लाश हूँ |
फिर भी मुझे गर्व है कि मैं
शव का देता हूँ क़ब्र तक साथ
और उसके राख होने तक
उसकी लाज ढके रहता हूँ ,
और खाक होकर भी
तन से लगा रहता हूँ |
लेकिन मुझे खेद है -
कोई मुझे जीवन में
प्यार नहीं करता ,
आख़िरी साँस तक
स्वीकार नहीं करता
बस चंद शहीदों के सिवा
वही तो मुझे अपनाते हैं जीते जी
तो मैं भी उन्हें
कभी मरने नहीं देता |
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(2) शहीद ?
मर गए , चिरायु हैं
वे गिद्ध नहीं
जटायु हैं |
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(3) सारे योद्धा
अ-योध्या में ?
डरपोक कहीं के !
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(4) जब मैंने तुमसे
प्यार किया था ,
विश्वास करो
मैं कोई किताब
पढ़कर नहीं गया था |
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(5) नमाज़ ?
सिर्फ पाँच वक्त !
यह तो बहुत
कम है भाई |
(6) ईद का चाँद
और शिव जी के माथे पर ?
भाई वाह !
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(7) ठीक है तुम
घृणा के बीज बोओ
मैं इधर प्रेम फैलाता हूँ ,
देखता हूँ तुम
कहाँ तक जीतते हो
देखता हूँ
मैं कहाँ तक
हारता हूँ |
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[ शेष फिर ]
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