रविवार, 25 नवंबर 2012

ब्राह्मणवाद का उलट है समता

ब्राह्मणवाद का उलट है समता / समानता वाद | तो , अपने बाप को भी [ बड़ा तो क्या ] बराबर न मानने वाले जब ब्राह्मणवाद के खिलाफ कैंची की तरह जुबानें चलाते हैं तो अचरज ही नहीं गुस्सा भी आता है | ऐसे लोगों से मेरा स्थायी प्रश्न होता है - किसी को आप अपने बराबर समझते हैं क्या ? इसे समझते हुए ही हम मायावती की आलोचना नहीं करते | इसमें दलित की बेटी का क्या दोष ? सारा दोष तो ब्राह्मणवाद का है , जिसकी आलोचना वह स्वयं करती तो हैं  ? तो ज़ुबानी ज़मा खर्च करने में क्या हर्ज़ ? इसमें किसी का जाता ही क्या है ? और समता / समानता की दिशा में कुछ करने की ज़रुरत क्या है ? कठिन काम है यह | इसके लिए व्यक्ति को समाज के सम्मुख विनम्र होना पड़ता है, उसके प्रति प्रेम या आदरभाव से आप्लावित होना पड़ता है , जो इस आन्दोलनकारी पीढ़ी के वश का नहीं | उसके पास उपलब्ध नहीं हैं ये चारित्रिक गुण |

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