बुधवार, 7 नवंबर 2012

सामंत हैं कहाँ ?


[ गलतबयानी ]
* जातिवाद समाप्त करने का तरीका - जातीय संस्कृति का परित्याग !

* अभी बेईमान नेताओं से देश परेशान है | आगे , ईमानदार नेताओं से देश को ऊब होने लगेगी |

* आंबेडकर वादियों को जितनी परेशानी गांधी से होती है , उतनी दिक्कत गाँधी वादियों को आंबेडकर से तो नहीं होती !

* न्याय व्यवस्था की दशा इसलिए भी लद्धड़ होने का अंदेशा है , क्योंकि यह ज्यादातर वकीलों के ऊपर निर्भर है | और वकील , पढ़ाई में सबसे लिद्धड़ छात्र होते हैं |

* सामंत हैं कहाँ ? मुझे तो सब सेल चोट्टे - उचक्के लगते हैं |

* हम जन्म जात पराधीन हैं | क्योंकि हमारी लाश का ठिकाना कोई और ही लगाएगा |  

* और तो छोड़िये | जगह जगह की टोपियाँ ही अलग हैं | कैसे कायम करेंगे सांस्कृतिक एकता ?

* एक मित्र का कहना है कि भारत के गाँव  और किसान समाप्त हो जाने चाहिए , तभी सामंतवाद का खात्मा होगा | ऐसे में , अब तो सोचना पड़ेगा कि फिर सामंत वाद जाये ही क्यों , जससे भारत के किसान और गाँव सुरक्षित बच जायँ , अपने अस्तित्व , अस्मिता और जिजीविषा के साथ ?

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