रविवार, 11 नवंबर 2012

हमारा पाखण्ड [ सच सच ]


हमारा पाखण्ड [ सच सच ] हमारा जीवन तमाम तरह के पाखण्डों से घिरा हैं, और हम उसे सच मान कर प्रसन्न हैं | ईश्वर , धर्म-अर्थ -काम -मोक्ष इन पाखंडों के बड़े सराय हैं | सेक्स - संस्कृति - भाषा , सामाजिक - पारिवारिक सम्बन्ध कुछ भी तो अछूता नहीं है इस झूठ से ! राजनीति तो मानो महासागर ही है इस प्रवृत्ति का ! ज़ाहिर है हमें इसे मिटाना चाहिए , इससे मुक्ति पाने के प्रयास करने चाहिए | लेकिन इससे किंचित भी बाहर निकलना तो तब संभव होगा जब हम जानें कि हमारे छ्द्माचरण हैं क्या ? कितने , कितनी मात्रा में हैं , कितने लाभदायक कितने हानिकारक हैं, कितने त्याज्य तो कितने अपरिहार्य हैं ? इसलिए ,चलिए नास्तिक मंडली सम्प्रति इसी की चर्चा करती है | इस समूह का नाम अभी तक ' नास्तिक मंडली ' था | क्या आप को नहीं लगता कि हमारी नास्तिकता भी एक प्रकार का पाखंड , एक फरेब ही है जैसे आस्तिकों की आस्था , जिसके हम विरोध में हैं ?

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