गुरुवार, 26 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 24 से 26 सितम्बर तक

* प्यार का नाटक होता है सेक्स के लिए | इसलिए यदि इसे सीधे सेक्स कहा जाय , और प्यार के नाटक का चेप्टर हटा दिया जाय तो प्यार के नाम पर होने , खाए और खिलाये जाने वाले वाले धोखे समाप्त हो जायँ |

* भारत के चितकों का भारत में होना , न होना बराबर है | वे भारत का कुछ नहीं सोचते |
( ये भारत की चिंता नहीं करते )

* चलो, हुसैन तो हिन्दू बदमाशों के कारण देश में नहीं रह पाए | लेकिन तसलीमा नसरीन भारत में क्यों नहीं रह पायीं ? सलमान रुश्दी क्यों नहीं बोल पाए ?
मेरा तो यह ख्याल है कि जब तक तसलीमा को भारत में शरण नहीं मिलती तब तक मैं सच्चर कोमेती लागू नहीं होने दूंगा | तसलीमा का भारत में रहना - न रहना ही इसके सेक्युलर होने या न होने का पैमाना है मेरे लिए |और मैं ऐसे हर MLA -MP उम्मीदवार का बहिष्कार करूँगा जो इसके पक्ष में होगा | चाहे वह प. बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी का हो , चाहे भारतीय जनता पार्टी का |

* पता नहीं क्या
विश्वास है , और क्या
अंधविश्वास ?

* पोंगा पंथ है
जन्मसिद्ध आधार
कार्ड देश का !

* ईश्वर नहीं
ईश्वर का 'लोगो' है ( Logo )
यह तो यार !

* हिंदुस्तान है
पाकिस्तान नहीं है
यह भारत !
(बस तुलना के लिए कभी कभी | जैसे हम यह भी कहते है - भारत अमरीका ब्रिटेन नहीं है / न बनाओ )

* तो क्या भाइयो , अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? और साथ में तब तो कुरआन, बाईबल इत्यादि भी ? :)

* अप्रिय संवाद :-
1 - भाइयो, सुनने में आ रहा है कि अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? लेकिन कुरआन, बाईबल वगैरह के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है |
2 - इतनी कमी है भारत में नेतृत्वकर्ताओं की, कि दागियों और अपराधियों के अलावा कोई और मिलता ही नहीं चुनाव लड़ने के लिए !
3 - जनरल वी के सिंह कुछ भी कहते , सजाई देते रहें | इनके काम तब भी तब भी संदिग्ध थे | इनके लक्षण अब भी दुरुस्त नहीं हैं |
4 - केवल मुस्लिम, केवल मुस्लिम खेलकर सपा सरकार सांप्रदायिक सद्भाव को स्वयं बड़ा नुक्सान पहुंचा रही हे | और दोष दूसरों पर लगा रही है |
5 - यह सरकार हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष भावना भर रही है जिसके परिणाम अशुभ संभावित है |
6 - भोले बालक मुख्य मंत्री का कहना बचकाना है कि मामूली मारपीट और छेड़ छाड को सांप्रदायिक बना दिया जाता है | कवाल जैसी छोटी घटना को क्या तब तक नज़र अंदाज़ किया जाय जब तक वह दामिनी काण्ड न बन जाय ?
7 - सामजिक राजनीतिक चिन्तन तुलात्मकता कि अपेक्षा रखती है , इसके पक्ष में मुझे एक अनुभव मिला | किसी से किसी ने आसाराम की आलोचना की तो उसने पलट कर पूछा - आपको पता है मौलाना बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक ( उसने तो बलात्कार शब्द का भी इस्तेमाल किया ,लेकिन सच्चाई क्या है वही जाने ) | क्या आपको पता है उत्तर ? मुझे भी नहीं पता | मैंने तो इतना समझा कि आसाराम को आप एकल रूप से अनैतिकता का पर्याय नहीं बना सकते समाज में | समाज के अन्य सम्प्रदायों की नैतिकता के साथ ही उनकी तुलना करनी पड़ेगी |
( अभी बस )

अप्रिय संवाद :
1 - महिलाओं की रक्षा के लिए महिला सिपाहियों की नियुक्ति हुयी | अब इनकी रक्षा के लिए किनको लगाया जाए ?
2 - " नहीं रोक सकते धार्मिक कार्य " = दुर्गा पूजा पर हाईकोर्ट |
- तो अब तय रहा कि दुर्गा पूजा एक " धार्मिक कार्य " है | न ' परहित सरिस ' , न नैतिक आचरण , न सेवा , न दान , न प्रेम , न दया ?
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* आज के काम की संस्था :
" मर्यादा "
इसका अग्रेज़ी में अर्थ बताया गया है - Limit , और यही मैं चाहता था | मेरी मूल theory ही है - Limitation (सीमांकन) की | इसके लिए मर्यादा एक अच्छा शब्द है |
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* हम साहित्यकार नहीं , साधारण जनता हैं | दुष्ट राजनीतिक जन ( दुर्जन पार्टी ) :)
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* भक्ति -प्रेम का मार्ग हो या ज्ञान का | उसे तुम इसलिए मानते हो क्योंकि वैसा तुम्हे बताया गया है { गीताप्रेस में दोनों पक्षों के साहित्य प्रचुर हैं } | कोई अपना मार्ग निकालो , अपना बनाओ , उसे चुनो , उस पर चलो | तब तो वह हो कोई मार्ग ! उसे ही हम मानववाद , बल्कि मैं तो स्पष्टता के लिए ' एकल मानववाद ' , Individual Humanism कहना prefer करता हूँ | क्योंकि उसे मानने वाला केवल एक व्यक्ति होगा , और वह होगे 'तुम' | मैं सम्पूर्ण मानवीय धार्मिक स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ | यह क्या कि किसी ने लकीर बनायी और सब , या तमाम लोग चल दिए | क्यों न आज़ाद रहा जाय कुछ भी मानने , कुछ भी न मानने को ; कोई विश्वास करने या न करने के लिए  ! कोई दूसरा उसमे दखल क्यों दे , जब कि कहा जाता है कि ' धर्म ' आदमी का निजी मामला है ?
ऐसे में गांधी का एक लाजवाब शेर याद आता है - " There are as many religions as there are minds ."
और यह मेरी अक्षमता हो सकती है , लेकिन ज्ञान और भक्ति का अन्तर मेरी समझ में नहीं आता  | क्या भक्ति विवेक पूर्वक नहीं की जा सकती ? प्रेम में अँधा होना अनिवार्य है क्या ? और क्या ज्ञान का रास्ता ज्ञान के प्रति एक अटूट आस्था, अप्रतिम भूख - प्यास, निस्सन्देह- विश्वासपरक प्रेम और अपरिहार्य समर्पण के बगैर तय किया जा सकता है ?
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Hate humans - Save Humanism -
यह मेरे मुंह से गलत बात निकलने जा रही है | बहुत सुना - ' पाप से घृणा करो , पापी से नहीं ' | लेकिन ऐसा हो नहीं पाया | पापी से प्रेम करो तो पाप को भी सुरक्षा मिल जाती है उसी के साथ | पापी जब बहिष्कृत होगा तो उसके अंदर का पाप भी कुछ शर्मिंदा होगा | मैं तो इसलिए, इस कदर दुष्ट जनों के प्रेम में घायल नहीं होता | यह नहीं कि उनकी हर वक्त अवमानना ही करता फिरता हूँ , चाहूँ भी तो सामजिक जीवन में ऐसा नहीं कर सकता | लेकिन उनसे थोडा दूरी बनाने , बहुत आत्मीय न होने की रणनीति अपनाता हूँ | और उसे यदा कदा यह अहसास भी करा देता हूँ | क्या आश्चर्य कि मेरे मित्रों की संख्या अत्यल्प है , क्योंकि आप जानते है कि आदमी क्या है ! कोई मेरे तराजू पर आता ही नहीं | तराजू थोड़ा ऊपर तो नहीं टंग गयी है - -  देखना है
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कहा गया कि छोटी मारपीट या छेड़खानी को साम्परादायिक झगड़ा बना दिया जाता है | इस पर दो एक वाक्य कहने का मन है | कोई भी झगडा या समस्या , मूलतः दो जनों के ही मध्य | और मान लीजिये वह सुलझ नहीं रहा या सुलझाया नहीं गया | तो आखिर बात आगे तो बढ़ेगी |  ऐसे में दोनों पक्षों के यदि उनके परिवार वाले या रिश्तेदार साथ न दें तो इसे आप क्या उचित कहेंगे ? और फिर उनके मित्र , मोहल्ले वाले ? आगे बढ़िये तो उनकी जाति बिरादरी वालों को उनका साथ सहयोग नहीं देना चाहिए ? क्या तब इसे आप उनकी बेरुखी नहीं कहेंगे ? हो सकता है आप इसे इंसानियत के भी विपरीत बताएं | अब इसी भावना को उठाकर तनिक सम्प्रदाय पर रख दीजिये | यदि जाति समप्रदाय व्यक्ति के काम न आये तो उनमे व्यक्ति शामिल ही क्यों रहे ? फिर इनकी उपयोगिता और ज़रूरत ही क्या रह जायगी | लेकिन तब तो आप कहते हो यह सांप्रदायिक दंगा हो गया !
जैसे एक उदाहरन और है दिमाग में | सीमा पर एक जवान का सर दुश्मन देश का जवान काट दे तो आप कहिये यह दोनों देशों के बीच का दुश्मनी का मामला क्यों बने ? आखिर एक आदमी ही की तो हत्या हुयी ? लेकिन मैं कहूँगा - तब देश के होने का मतलब ही क्या है ?
यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि सांप्रदायिक मसलों को भी गंभीरता से लिया जाय , उनका न्याय पूर्ण हल निकाला जाय | वरना इससे छुटकारा यह कहकर नहीं पाया जा सकता कि साम्प्रदायिकता गलत है जब कि सम्प्रदाय तो यथार्थ हैं !

* मैं जानता हूँ
मेरी बात सुन, तुम
नाराज़ हो जाओगे ,
मैं तुम्हे
नाराज़ करना
नहीं चाहता |
#  #

खुले अशआर -

* क्या ज़रूरत है ज़ुर्म करने की ,
ज़ुर्म खुद मेरे हाथ हो लेगा |

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* राष्ट्र की गद्दी की होड़ में वे हैं ,
जिन्हें कुछ राष्ट्र से मोहब्बत ना |


सोमवार, 23 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 21 से -23 सितम्बर तक

धर्म व्यक्तिगत ?
1 - चूँकि धर्म व्यक्तिगत मामला है , इसलिए होना तो यह चाहिए कि राज्य केवल जाति पूछे और जनता केवल अपनी जाति बताये | वह भी कुछ सीमित वर्गीकरण में | जैसे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र ( हिन्दू का वैशिष्ट्य ) | इसके अतिरिक्त जो जातियां हों, वे मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि जिन्हें वे धर्म कहते हैं भारत में जाति के रूप में माने जाएँ , और इनका अंकन व्यक्ति के परिचय के साथ उसके जाति के कालम में लिखा जाय | धर्म , कोई किसी का नहीं |
2 - लेकिन चूँकि व्यवहार में धर्म व्यक्तिगत नहीं रहा, इसलिए दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि फिर जाति नाम कोई न हो | जाति ही जनता का धर्म हो | धर्म के कालम में  व्यक्ति अपनी जाति का उल्लेख करे |
आखिर कोई तो जाय , धर्म या जाति ?      
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अप्रिय संवाद :--
भारत में हिन्दू राज्य का आशय केवल यह कि हिन्दुस्तान में अब हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं होने चाहिए | न इसके दलितों पर, न औरतों पर, न ब्राह्मणों पर | विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा जैसा कि भूतकाल में हुआ | चाहे कोई अल्पसंख्यक या अतिअल्पसंख्यक , सबको मालूम होना चाहिए कि भारतवर्ष पाकिस्तान नहीं है जहाँ हिन्दू और हिन्दू लड़कियों पर अत्याचार हुए , फलस्वरूप उनका पलायन हुआ और वे बस गिनती के रह गये| हमारे हिन्दू राज्य का मतलब यह नहीं कि कियाहान का राजा ब्राह्मण या क्षत्रिय हिन्दू हो | वह कोई हो लेकिन उपरोक्त शर्त और पाबंदी के साथ |
इस हेतु  दलितों पिछड़ों को आरक्षण की भांति पूरे हिन्दू समाज को आरक्षण मिलना तय किया जाना चाहिए , संविधान संशोधन द्वारा , इसके " सेक्युलर " होने के बावजूद | यह लिखित होना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में अब हिन्दू इसका मूल अधिकारी निवासी है और यही उसकी मूल संस्कृति | यहाँ का सेक्युलरवाद इसी के अंतर्गत चलेगा |
क्यों नहीं हो सकता ऐसा ? जब इसी संविधान के तहत ज़मीदारी उन्मूलन हुआ, दलित आरक्षण हुआ, पिछड़ों को अरक्ष्ण मिला और अब मुसलमानों कि बारी है | तो फिर सेक्युलर के साथ साथ यह मुल्क हिन्दू प्रमुख सांस्कृतिक देश , राष्ट्र और राज्य , क्यों नहीं माना जा सकता ?
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ईश्वर हो कोई , तो उसे अपने मन में ही रखना
ईश्वर तुम्हारे मन से बाहर गे नहीं
कि हुआ वह प्रदूषित
इन्फेक्शन ,
ठण्ड बयार , जूडी बुखार सब धर लेगा
डेंगू मच्छर भी काट सकता है
एड्स भी असंभावित नही ,
और जब बीमारी कंट्रोल के बाहर हो जायगी
तब लोग उसके मरने की कामना करने लगेंगे |
सार्त्र जैसे लोग घोंषणा कर देंगे -
God ? God is dead !
ईश्वर ? ईश्वर तो मर गया |
इसलिए हिंदुस्तान की आध्यात्मिक आत्मा
का सन्देश सुनो -
अपने भगवान् को अपने मन में रखो
यदि उसे जिंदा रखना है तो !
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" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
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किन्ही शायद राशिद साहेब का एक लाजवाब शेर है -
" दीन को मान कर जो खतरे हैं ,
दीन को जानकर नहीं होते | "
इसे समझना कभी कभी मुश्किल हो जाता है | क्योंकि दीन एक बड़ी चीज़ है जिसमे धर्म , मजहब , कर्तव्य , ईमान सभी आ जाते हैं | इससे जानने - मानने में भ्रम हो जाता है | जैसे यदि मानें नहीं तो जानकर ही क्या कर लेंगे | लेकिन शेर तो गहरा है | मैं सोचता हूँ अपनी आसानी के लिए इसे इस प्रकार समझूं -
" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
ईश को जानकर नहीं होते | "
- क्योकि ईश को मानने से पहले और उसके प्रति अन्धविश्वासी होने का बजाय हम यह तो जान ही लें , जान ही सकते हैं कि वह वास्तविक नहीं , मनुष्य की कल्पना की उपज है !
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 वैसे एक तरह से देखा जाय तो Sanjay Grover जी की बात सही है - " अब मैं इस ग्रुप को ख़त्म करना चाहता हूं। " मैं एक नास्तिक गुप चलता हूँ , मैं उनकी पीड़ा समझ सकता हूँ |
चलिए इसकी आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर के खिलाफ जमकर प्रचार किया जाय | लेकिन कभी कभी एक रट , एक धुन से  ऊब सी होने लगती लगती है | किसी ग्रुप में इससे आगे जाने कि भी तो बात होनी चाहिए
तय है कि ईश्वर नहीं है | तो आदमी तो है ? आदमी को तो होना चाहिए ? कहाँ है वह आदमी ? क्या वही , जो ईश्वर नहीं की रट लगा रहा है ? जैसे एकनाम संकीर्तन ? उधर देखिये आस्तिकों को | ईश्वर है इस पर वह रुकते नहीं | आगे बढ़ते जाते हैं - रीति रिवाज़ , संस्कृति , शिक्षा , कला , साहित्य , राज्य , अंतरराष्ट्रीय राजनीति तक |
इधर हम अधर में हैं | यही तय नहीं हमारे जन्म ,विवाह , मृत्यु संस्कार कैसे हों | या यही कि पैदायशी संस्कृति के तरीके से हो | तब यह तय करना होगा पुराने धर्मों / संस्कृतियों से हमारा क्या रिश्ता हो ?इत्यादि --
तमाम कौमें अपने सरवाईवल या शक्ति के लिए मारा मारी कर रही हैं | डेनमार्क - म्यांमार में कुछ हो तो हिंदुस्तान समेत सारी दुनिया हिला दी जाती है | मरते रहें हमारे दोभाल्कर , क्या कर लेंगे हम ?
नास्तिकों की कोई रूचि नहीं है समाज कर्म में | कितने ही संस्था संगठन अपने पर्चे लिए घोमते हैं और हम सौ दो सौ कि सदस्यता नहीं लेते | उधर ढोगी बाबाओं के पास अकूत धन क्यों हो जाता है ? एक समुदाय में अपनी आमदनी का निश्चित हिस्सा देय होता है | हम एक सेमिनार नहीं करा सकते | क्या खाकर मुकाबला करेंगे उनका | यह तो कहिये वे हमे तवज्जो नहीं देते वर्ना हम गिनती के लोग एक घंटे के अंदर साफ़ हो जाएँ |
एक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर के आन्दोलन, कई राजनीतिक दल बन रहे हैं | उनमे शामिल होने की बात मैं नहीं करता | पर क्या नास्तिक का नैतिकता का कोई अजेंडा है | क्या यह तय हुआ कि नास्तिक भ्रष्टाचार में रत न हों ?
फिर चलिए एक प्रचार कि ही बात ! हम इसके प्रचार प्रसार के
 लिए ही क्या कर रहे हैं फेसबुक के बाहर ?
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* स्थितियों , परिस्थितियों को देख समझकर मनुष्य के मन में ईश्वर का न होना अपने आप सिद्ध हो जाय तब तो मज़ा ! हम किसी को क्या और क्यों बताते फिरें ? हमारे पास भी तो उतना ही दिमाग है जितना उनके पास ?

* हम मौसम नहीं देखते, आंधी तूफान की परवाह नहीं करते , जाड़ा गर्मी बरसात हमारा रास्ता नहीं रोक सकता | हम समय का इंतज़ार नहीं करते | हम कुत्ते नहीं हैं !

* आस्तिकों के मोहल्ले में हम नास्तिक नहीं हो सकते | यूँ कीड़ों की तरह जीना न हो तो हमें भी आस्तिक होना होना पड़ेगा - नास्तिकता के साथ जीवन मूल्यों के प्रति 'आस्तिक' | विचार वायवीय , केवल सब्जेक्टिव तक सीमित नहीं होने चाहिए सरवाईवल के लिए | हमे व्यावहारिक , ओब्जेक्तिव होना चाहिए | वैज्ञानिक निष्कर्ष तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होते हैं , अकेले एक चावल कि खिचड़ी पकाने से नहीं |
इस प्रकार हम अपनी आस्तिकता की नज़र खोलें , तो हमें देखने होगा हमारे बीच उपस्थित अन्य धार्मिक जन, समूह , संस्थाएं , संगठन , उनके राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं ?
ज़ाहिर है अभी कोई नास्तिक नास्तिक में पैदा नहीं होता | अभी सब किन्ही पुराने धर्म से ही निकले हैं | ऐसे में यदि कोई जन्मना है तो स्वाभाविक है हिन्दू और हिंदुत्व के प्रति ज्यादा कटु और आक्रामक होगा | कई नास्तिक हिन्दू धर्म को समाप्त करने का झंडा आक्रोश में उठाये हुए हैं | स्वागत है उनका | लेकिन उनसे यह देखने का आग्रह तो हो ही सकता है कि - तब कौनसा तीर मार लेंगे वह ? [ मैं हिंदुत्व नहीं हिन्दू समूह की बात कर रहा हूँ ] | थोड़ा आगा पीछा सोच लें | यही तो बुद्धिवाद का तकाज़ा है ? तब क्या वह जिंदा रह पाएंगे ? राजनीति भी यही कहती है कि जहां सभी आपके दुश्मन हों वहां उस दुश्मन से दोती रखो जो आपका सबसे छोटा ( कम से कम ) दुश्मन हो | यह भी गौर कीजिये कि इतनी वैश्विक छीछालेदर के वावजूद क्या किसी इस्लामी बौद्धिक गुट ने यह कहा , या कहने का साहस कर पाया कि इस्लाम का नाश होना चाहिए ? हाँ हिन्दू को कह सकते हैं , क्योंकि आसान है यह | लेकिन क्या आसान काम करके आप सफल हो पायेंगे | आज तो बुद्धि का तकाजा यह है कि नास्तिक मुस्लिम भी हिन्दू कौम को जिंदा रखने की मुहीम में घुसें | वर्ना नास्तिकों का कोई सम्प्रदाय तो बनेगा नहीं , नरम हिन्दू की अनुपस्थिति में वे नेस्तनाबूद कर दिए जायेंगे | नास्तिकता या इस -उस ईश्वर में आस्था एक बात है और राजनीतिक मानव चाटने दूसरी बात | और दुनिया में अस्तित्व , और अस्तित्व का प्रकार राजनीति से तय होता है , इतना तो समझते ही होगे ?

* No doubt Modi is looking like a sole alternative . But sorry , we can not accept him . Rather, we should wait for other alternative to evolve . We can't spoil our nation and give a bad name to it . Because , once this " dictatoriat" is throned and given the seat , he will gain ( अभी तो अपनी पार्टी और गुजरात तक सीमित हैं ) thatso called " Absolute Power " , which , as the saying goes , will corrupt him " Absolutely ".
And why to lose heart ? BSP is very much in the contest ? Also , if I could feel your anxiety about Hindu Rajya, yes Mayavati is best suited to carry it over . She is more hindu than modi .
मैं यह नहीं समझ पाया कि धार्मिक हिन्दुस्तान में सड़क , बिजली और कार की फैक्ट्री कैसे विकास के मापदंड हो गए | यदि हिन्दू की ही बात करें तो इसकी प्रगति तो आध्यात्मिक , सामाजिक , शक्षिक , समतावादी न्याय के मूल्यों में निहित होना चाहिए ( यदि इसके think टैंक स्वयं को धोखा न दें और हमे भ्रम में रखने कि कोशिश न करें तो ) | ऐसी दशा में मायावती का शासन ही असली हिन्दू राज्य होगा | और जोड़ दे तो तमाम तनाओं की विनाशक भी !
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* तब तक बंद नहीं होगा
हमारा हमला
जब तक नहीं बंद होते
ड्रोन हमले ,
और जब ड्रोन हमले रुकेंगे
तब हमारे शुरू होंगे
हमले | "
कुछ इस तरह बन सकती है कविता |
कई सवाल हैं | एक तो अपने नास्तिक मित्रों से | मरने वालों ने कोई खता नहीं की थी | इस्लाम का कुरान का , पैगम्बर का कोई अपमान नहीं किया था | बस गैर मुस्लिम थे , यही उनका दोष था | और शायद इस कुकर्म - कुपंथ के दोषी तो नास्तिक जन भी हैं !
दोनों हाथों संभालिये दस्तार (पगड़ी )
मीर साहेब ,  ज़माना नाजुक है |
अब कोई कहे कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता , तो क्या उसे दो झापड़ रसीद करने का मन नहीं होता ?
जी हाँ , नहीं होती पिटाई और आतंकवादियों का हौसला बढ़ता जाता है ( वैसे भी वे इनके भरोसे नहीं हैं )
और कहिये कि बलात्कारियों का , हत्यारों का कोई धर्म नहीं होता ! कहते जाईये | कम्युनिस्टों का, नक्सलियों का या किसी का कोई धर्म नहीं होता ! फिर तो यह हमारी ही बात की पुष्टि हुयी ! फिर ज़रूरत क्या है धर्मो की , ईश्वरों कि , किताबों की ? अनैतिक ही होना है तो हमारी नास्तिकता ही भली !
अंतिम संबोधन दलित ब्राह्मण विरुद्ध आन्दोलन को | कल्पना कीजिये , ऐसे व्यवहार पर यदि कोई समुदाय यह तय कर ले कि वह मुसलमानों का बहिष्कार करेगा | उठाना बैठना , खाना पीना , छुवा छोट , शादी व्याह नहीं करेगा तो क्या वह अनुचित होगा ? असंभव नहीं ऐसा ही कुछ उनकेसाथ भी कभी हुआ हो | लेकिन अब बुद्धिमत्ता इसी में है कि वह " ब्राह्मण वाद " पर कब्ज़ा ( Occupy Wall ) कर लें , और हिन्दू राज्य को अपने हाथों में ले लें | हीनभावना से मुक्त हो घोषित कर दें पुराने ब्राह्मणों और मुसलमानों से कि अब हम है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र सब और हम ही है मुग़ल सल्तनत के उत्तराधिकारी | अब मनुवाद का रोना लेकर बैठने से काम नहीं चलेगा  , उससे कुछ नहीं होगा सिवा आरक्षण के कुछ टुकड़ों के | अब उन्हें राजा की भूमिका में आना होगा पुरे आत्मविश्वास के साथ पूर्ण हिन्दू पहचान के साथ | तब न कोई दलित , न कोई हिन्दू , न कोई नास्तिक , न कोई मुसल्मान इन आतंकवादियों के हाथों मारा जाएगा | सिंहासन खाली होगा यदि तुम आते हो !
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* किसके लिए मरे जा रहे हो , लोगों को मारे जा रहे हो ?
उसके लिए , जो कहीं है ही नहीं ?

* वैसे उग्रनाथ जी , बुरा न मानो तो तुम्हे एक बात समझाऊँ | तुम हो पक्के मूर्ख , कहते भले हो कि तुम बुद्धिमान हो | असली बुद्धि तो मुस्लिम परस्त बुद्धिजीवियों के पास है, इसीलिए ही तो उन्हें बुद्धिजीवी की संज्ञा और सम्मान प्राप्त है | वे जानते हैं कि आखिर ति इस्लाम को ही आना है , दुनिया पर छाना है | उन्ही में है हर तरह की काबलियत शासन करने की | तो अभी से चढ़ते सूरज को क्यों न अर्घ्य चढ़ाते रहा जाय ? पूर्ण हिन्दू चतुर हैं वह ! इसीलिए वे हर बात पर अमेरिका का विरोध भी करते हैं , भले अपने बाल बच्चों , बिटिया दमाद को वहाँ भेज दें , पर खुद कटे रहते हैं | कटे रहना ज़रूरी जो है मुस्लिम मैत्री के लिए ! तुम भी इनमें शामिल क्यों नहीं हो जाते ?

* दुनिया भर में मुसलमान गैरमुस्लिमों के प्रति असहिष्णु हो रहे हैं , और उन्हें रोक्न्र , बरजने के लिए कोई भी पारंपरिक या प्रगतिशील विचारधारा जुमान तक खोलने को तैयार नहीं है | यह दुखद स्थिति है | नास्तिक प्रगतिशील , कम्युनिस्ट , मानव अधिकारवादी किसी की भी हिम्मत नहीं पड रही है | जो कबीर की कभी तब थी जब विचार और विज्ञान 5 - 6 सौ वर्ष पीछे थे , इतना आगे नहीं बढ़े थे जितना कि आज | अब तो हमने मारक अस्त्रों में इतना विकास और विस्तार कर लिया है कि कबीर भी नहीं कह पाते कि इस्लाम एक अमानवीय, निहायत बर्बर, दकियानूसी धार्मिक धारणा है, ईश्वर के प्रति अपराध है इनके कृत्य | फिर हमारी आप की क्या औकात ?

* क्या मतलब ?
आज अपने राष्ट्रपति श्री प्रणब जी का बयान आया है कि , मानवता और सभ्यता को बचाने लक्ष्य " सिर्फ कानून की मदद से हासिल नहीं किया जा सकता | इसके लिए समाज को मिलकर कोशिश करनी होगी " |बात लगती तो साधारण आह्वान जैसी है लेकिन आइये ज़रा इसे इससे सेक्युलरवाद के दार्शनिक धरातल को समझने कि कोशिश करते हैं | हर सेक्युलर चिन्तक, प्रोफेसर भाँय - भाँय  भाषण देता चला जाता है सेमिनार - सभाओं में अखबार - पत्रिकाओं के लेखों में , कि यह ( सेक्युलरवाद ) व्यक्ति नहीं राज्य का विषय है | और हम बराबर कहते रहे हैं - कि जनता को वैसा ही शासन मिलता है , जिसका वह पात्र होता है ; दूसरे तरीके से - यथा राजा तथा प्रजा | दोनों अन्योन्याश्रित हैं | इसीलिए धार्मिक अन्धविश्वासी भारत में लोकवाद आधारित लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सका | अजीब बात , यह साधारण तथ्य लोगों की समझ में नहीं आता कि जनता तो कट्टर मुसलमान होगी और राज्य सेक्युलर हो जायगा ? या यह कैसे संभव होगा कि वोटर कट्टर हिन्दू होगी , लेकिन अपने लिए सेक्युलर राज्य चुन लेगी ? नहीं राष्ट्रपति जी का भी आशय यही है कि जनता और समाज को भी सेक्युलर ( नास्तिक ) होना चाहिए |
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* हिन्दुस्तानी तहजीब की सफाई और सौन्दर्य ही नहीं , इसकी कुरूपता और गन्दगी भी मुझे प्यारी लगती है |

* जो मेरा है
वह तो ज़रूर है ,
लेकिन तुम्हारा जो
वह कहीं भी नहीं है -
कोई ईश्वर !
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* छोटा ही सही
अपने पैरों पर
खड़ा तो सही !

* संभालो यार !
अपने पास जो है
दिल दिमाग |

*  कला संकाय
है कोई तेरे पास ?
बचा रखना !

* छिछोरापन
कहीं बैठा हुआ है
गहराई में |

* सत्य मार्ग में
अपनी आस्था तो है
लागी लगन |

* कुछ लोगों को
मारो और मरो भी
कैसी है नीति ?

* मैं जानता हूँ
तू है तो नहीं तो भी
क्यों इंतज़ार ?

आनंद देती
झूठी उपस्थिति भी
हाय ! उसकी |

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 16 से 20 सितम्बर तक

" नैतिकता ही ईश्वर है "

* जो भाषा जुबान को जितना तोडती है, वह उतनी ही अच्छी होती है |

* आंसू, रुदन, विलाप स्त्री कि कमजोरियां हैं | न हों तो भी , पुरुष इन्हें इसी तरह समझता है |

* धर्म क्या सिखाता है, हम जानते हैं | हमें न सिखाइए |

* संस्कृति का अर्थ है - हया , शर्म , पर्दा और बनावट | प्रकृति को छिपाना ही संस्कृति, तहजीब का आशय है | ( विवाद अस्वीकार्य, इस पर खुद सोचें )

* ईसाई धर्म आसान था | बस विश्वास, एक चर्च, एक पोप ! इसलिए वहाँ, यूरोप में सेक्युलरवाद उसे हटा कर राज्य पर आसीन होने में सफल हो गया | लेकिन हिन्दुस्तान में तो धर्म आदमी के पैर के नाखून, हस्त की रेखाओं से लेकर तारे सितारे, ग्रह नक्षत्र, अन्तरिक्ष, ब्रह्माण्ड तक व्याप्त है | क्या कर लेगा सेक्युलरवाद  इसका ? उलटे उसी को यह संस्क्रति पट्टी पढ़ा देगी | यहाँ का ईश्वर कहीं ऊपर, अन्य लोक में रहता ही नहीं, यहाँ तो रोम रोम में राम का वास है | तो " इहलौकिकता " की परिभाषा वाला सेक्युलरवाद इसे क्या लौकिक बनाएगा ? यहाँ तो सब कुछ लौकिक ही है | यहाँ के धार्मिक पदों का नाम ही श्लोक है - इसलोक ? ha ha ha        

* लोहे की रॉड का डाला जाना :
मैंने हर काण्ड के बाद यह लिखकर सुझाया कि बलात्कारियों के मनोविज्ञान का अध्ययन कर लिया जाना चाहिए, उनकी फांसी से पहले | हाँ लेखकों को भी उनके साथ कुछ समय रह , बिताकर तभी उनके ऊपर कथा - उपन्यास लिखना चाहिए | लेकिन हमारे लेखक इतनी मेहनत नहीं करना चाहते | और देखिएगा इसी विषय पर रचनाओं की मनगढ़ंत झाड़ लगा देंगे |
तो मेरे सुझाव का कोई असर विश्वविद्यालयों - शोध संस्थाओं पर कुछ हुआ इसकी कोई सूचना नहीं है | लेकिन मुझे एक पतला सा सूत्र मिला है =
कथाकार शिवमूर्ति जी की एक कहानी है ' तिरिया चरित्तर ' | उस पर किसी ख्यात कला फिल्म निर्देशक ने उम्दा फिल्म भी बनायीं है और उसमे नसीरउद्दीन शाह जैसे मंजे कलाकार ने काम किया है | कहानी यह है कि श्वसुर अपनी पुत्रबधू से सम्बन्ध बनाने में असफल होने पर उस पर छिनाली का आरोप जड़ देता है और फिर पंचायत से सजा का निर्णय कराकर उसकी योनी में लोहे का रॉड घुसेड देता है |
साहित्य में यूँ ही अतिशयोक्ति होता है, फिर कथाकार कुछ प्रगतिशील जैसे भी हैं | उन्होंने सोचा होगा कि नारी पर जितना वीभत्स अत्याचार पुरुष द्वारा किया जाते वह कहानी में दिखायेगा  , कहानी उतनी ही सफल होगी | और हुई भी | कहानीकार को बड़ी प्रसिद्धि और सम्मान मिले | फिल्म निर्माता को भी उसी अनुपात में प्रशंसा ज्ञापित हुई होगी | स्मरण तो नहीं , लेकिन शायद इस पर नाटक का भी सफल मंचन हुआ है |
लेकिन उन्हें क्या इल्म था कि इस कहानी को दिसम्बर माह में कुछ युवक एक रात चलती बस में साक्षात् एक लड़की के साथ करके दिखा देंगे ! अभी उन युवकों को फ़ासी की सजा हुई है |
कहते हैं साहित्य समाज का आईना होता है | इस दृष्टि से तो लेखक की दूरदृष्टि की सराहना ही करनी होगी | लेकिन यह भी तो कहा जाता है कि समाज साहित्य से सबक लेता है |
फिर भी लेखक को इस हेतु दोषी नहीं ठहराया जा सकता | संभव है उनका उद्देश्य समाज के परिमार्जन का रहा हो | उन्होंने सोचा हो कि इसे पढ़कर समाज स्त्रियों पर घिनौने अत्याचार करने से विरत होगा | और सचमुच एवं निश्चय ही जनमानस इसके विरोध में उमड़ पड़ा | मोमबत्तियां, जुलूस, धरना, घेराव कि बाढ़ आ गयी | नतीजा, पहले वर्मा आयोग बना, फिर त्वरित सुनवाई करके दोषियों को रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर दंड, मृत्युदंड दिया गया |
लेकिन एक बात तो दिमाग से उतर ही नहीं रही है | कि इस सब के लिए एक युवती को अपना प्राण गवाँना पड़ा | अब, उसे वीरता का कोई भी पुरस्कार इसके लिए दे दिया जाय अपनी ख़ुशी के लिए , उस कन्या के लिए इसकी क्या उपयोगिता ?

* पियजिया भी जानती है , वह इस्तेमाल की वस्तु है | इसलिए वह अपना भाव बढ़ा देती है |

* आदमी नग्न होना चाहता है , नग्न होता है | यह उसकी कुदरत का दबाव है | लेकिन जब वह नग्न होता है , उसे अश्लील कहकर अपमानित किया जाता है |

* राज्य धर्म से अलग नहीं रहेगा , असम्पृक्त, निस्पृह, | राज्य का अलग धर्म होगा | सारे धर्मों से अलग , सबसे सशक्त , सबसे ऊपर | वह होगा राजधर्म |

* ज्यादा प्रेम व्रेम के चक्कर में मत रहिये | और यह जानिये कि यदि आप नहीं चाहेंगे तो नहीं ही पड़ेंगे | और  दिक्कतों से बचेंगे, बदनामियों से छुटकारा पायेंगे | और यदि प्रेम , इश्क करना ही चाहते हैं , तो आपके लिए मुश्किलों का अम्बार, कठिनाईयों का साजोसामान, कैद जेलखाने का इंतजाम , या कहें जिंदगी के नर्क का द्वार तो सामने खुला ही हुआ है |

* मुझे अनुभव हो रहा है कि हमें अपने बाप दादा का कहना मान लेना चाहिए | तरुनाई युवावस्था में प्रगतिशीलता के प्रभाव में उस समय तो लगता है जैसे हम बहुत बड़ी तोप मार रहे हैं | लेकिन समय बीतने के साथ पता चलते है कि नहीं यार , उनकी बात सही थी , अनुभवजन्य | वह ठीक कहते थे | और बाद में पछताना पड़ता है | लेकिन मित्रो , बात यह भी है कि यदि उनकी सभी बातें याद की जाएँ तो मिलता है कि उनकी कुछ बातें निश्चय ही गलत थीं और उन्हें न मान कर हमने अच्छा ही किया | ऐसे में क्या किया जाय ? शत प्रतिशत कुछ भी, कोई भी सत्य नहीं !

* विस्तार में जाने का समय नहीं है लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि Secularism का भारतीय परिप्रेक्ष में आशय न धर्म निरपेक्षता है न पंथ निरपेक्षता | हो भी तो स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए , न यह चलेगा ही | क्योंकि कोई भी राज्य इन , फ़िज़ूल ही सही , कर्मकांडों से निरपेक्ष, अलग, कटा हुआ, विरक्त कैसे रह सकता है ? वह भी तब, जब ये समाज - समुदाय में पूरी तरह सक्रिय भूमिका में हों ? धर्म और पंथ दोनों में आध्यात्मिक पुट है, और राज्य उसे सँभालने में असफल होगा क्योंकि उसके पास इसके औजार, मशीनरी नहीं हैं |
इसलिए इसको बस एक अर्थ दीजिये - "" राजधर्म "" | राज्य अपने क्रियाकलाप , अपनी फंक्शनिंग स्वयं संविधान के अनुसार तय करेगा और उसे धार्मिक संस्थाओं पर भी लागू होना होगा | आँख मूंदने से काम नहीं चलेगा , वरना धर्म राज्य पर हावी होंगे | जब कि इसे स्पष्ट, सख्ती से घोषित करना होगा कि राज्य धर्म से ऊपर होगा | तभी राज्य काम कर पायेगा न्याय पूर्वक | यह त्रुटिपूर्ण चिन्तन होगा कि राज्य धर्म से अलग रहेगा और / अथवा राज्य धर्म में कोई दखल नहीं देगा | क्योंकि यह निश्चित है कि धर्म तो राज्य में पूरा प्रवेश करने का प्रयास करेगा | अतः भारतीय सेक्युलर वाद में राज्य की सुप्रिमेसी धर्म पर रखनी होगी | यदि आज़ादी और लोकतंत्र बचाना है तो ! नहीं तो धर्म राज्य को खा जायेंगे |    


* भारत में हिन्दू राज्य से मेरा मतलब यह है कि यहाँ केवल हिन्दू को ही पाखंडी , अन्धविश्वासी या जैसा भी, होने का अधिकार होगा | अन्य समुदायों को नहीं | जैसे वह अपने बच्चों को संस्कृत या वेद पढ़ाना चाहे , अथवा पुलिस लाईन में जन्माष्टमी मानना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है |

* स्त्री और पुरुष की, हर स्त्री और प्रत्येक पुरुष की आवाज़ों / कंठध्वनियों में अन्तर क्यों होता है, कैसे हो पाता है ? जिससे हर व्यक्ति उसकी आवाज़ से पहचाना जा सकता है , जैसे कि किसी भी व्यक्ति का चेहरा किसी अन्य व्यक्ति के चेहरे से पूर्णतः नहीं मिलता | आखिर इतनी बड़ी जनसंख्या बनाने वाली प्रकृति ऐसा कर कैसे लेती है और क्यों करती है | उसकी मंशा क्या होती है ? कहीं यह जताना तो नहीं कि हर व्यक्ति विलक्षण है , उसमे कुछ विशिष्ट गुण हैं ?

अनुचित बात : द्वारा अनुचित आदमी (अ आ)
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* शादी का मतलब है बिस्तर बिछौने में तो आधी, लेकिन सम्पात्ति में पूरी की पूरी हिस्सेदारी !

* दवा का पैसा इतना नहीं , जितना डाक्टर की फीस खल जाती है !

* ज्यादा पढ़े लिखे विद्वान लोग जाने क्यों साधारण - सामान्य बुद्धि से ज्यादातर हीन होते हैं !

* सॉरी मित्रो , यह समाज , यह दुनिया इतनी पाशविक हो चुकी है कि मुझे नहीं लगता हमारा कोई मानववादी काम इसमें कुछ प्रभावी हो पायेगा ! अब तो मैं इसे छोड़ने जा रहा हूँ | मुझमें ताक़त नहीं बची | सहमति - सहयोग भी उत्साहवर्द्धक नहीं | बस मनोरंजनार्थ करना रह गया है, क्योंकि इस काम में मुझे आनंद मिलता है | वरना मैं करता कुछ नहीं - - - -

* दुनिया के पापों में से कुछ की ज़िम्मेदारी औरतों को भी लेनी चाहिए | मसलन - शारीरिक संबंध !

* हम नहीं कहते | यह तो , आप ही तो एक स्पष्ट आतंकवादी को ' मुसलमान ' कहते हो !

* मार्क्स जी यहूदी थे | मार्क्सवादी यहूदियों के दुश्मन के दोस्त बने हुए हैं !

* बातों को एक बित्ता तूल तो दिया जा सकता है , लेकिन उसे एक योजन तक तो नहीं बढ़ाया जा सकता !

* जब तक लडकियाँ अपने मन के प्यार के लिए खुद आगे नहीं बढ़ेंगी , तब तक उनके साथ बलात्कार होता रहेगा | चाहे माँ बाप द्वारा विवाह बंधन में बाँधी जाकर, अथवा मनचलों द्वारा अगवा की जाकर | ठीक भी है | हम पुरुष औरतों के लिए सेक्स समाधान के उपाय करना अपनी ज़िम्मेदारी समझने लगते हैं |

* मेहनत का कोई विकल्प नहीं | न कभी था, न है, न कभी होगा | दुनिया कितनी भी तकनीकी तरक्की कर जाय !

* दुनिया की बुराइयों में से कुछ की ज़िम्मेदारी औरतों को भी लेनी चाहिए |

* यदि अविवाहित Sex & Progeny पर ऐसे ही प्रतिबन्ध रहा , तो मुझे संदेह है कि भारत में कोई दानवीर कर्ण और संसार में कोई ईसा मसीह पैदा होगा !!

* सिनेमा, कहानियों , उपन्यासों के छोटे छोटे सम्वादों पर रोने, टेसुयें बहाने वाला यह आदमी कब कैसे अपने अन्दर इतनी क्लिष्ट क्रांतियाँ पाल बैठा , कि कुछ कहा नहीं जा सकता ?

* हम आसाराम जी के आभारी हैं कि उन्होंने यह सिद्ध करने में हमारी सहायता कि, उदहारण प्रस्तुत किया कि कोई भगवान् नहीं होता , देवदूत या परा मानव | सारे कथित ढोंगी बाबा लोग साधारण इंसान ही होते हैं, अपनी इंसानी अच्छाईयों - बुराइयों के साथ | और यह भी कि इन पर अंधश्रद्धा और धर्म का धंधा बुरी चीज़ है |

* धार्मिक राजनीति ( धारा )धर्म, जाति, अध्यात्म का रिश्ता हिन्दुस्तान से समाप्त नहीं हो सकता | और इन सबका सामाजिक जीवन से, राजनीति से | वही है यह |

* अभी तक तो हम अंधविश्वास और निरीश्वरवाद आदि का हवाला देकर लोगों से अमरनाथ - केदारनाथ आदि जगहों पर जाने से मना करते थे | लेकिन अब किस मुंह से, किस बात का सन्दर्भ देकर , क्या कहकर मना करें कि हिन्दुओं मुजफ्फरनगर मत जाओ  ?

* मैं कुछ नहीं हूँ | तो बताइए मैं क्या हूँ यदि हिन्दू नहीं हूँ ? कुछ न होना ही हिन्दू होना है | और कुछ भी होना भी हिन्दू होना है | उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि व्यक्ति यदि हिन्दू है तो वह क्या होगा ? आस्तिक नास्तिक या किसका पूजक ! क्या मानता होगा क्या खाता पीता होगा ? कोई स्थायी गुण या अवगुण उस पर चस्पा नहीं किया जा सकता | लेकिन आखिर कुछ न होने को भी कोई नाम तो देना होना होता है पहचान के लिए ? बस यही है हिन्दू ! ऐसा ही माना जाना चाहिए हिन्दू को |

* हम वह लड़ाईयाँ लड़ते हैं जो धर्म और ईश्वर के समाप्त होने के बाद लड़ी जाती हैं | इसलिए जैसे ही हम अपनी कोई तलवार उठाते हैं , धर्म सामने आ जाता है | एक दो कदम आगे रखना चाहते हैं, ईश्वर राह रोक खड़ा हो जाता है | हम हैं न मियाँ, अभी तुम्हारे लड़ने के लिए ! आगे कहाँ जाते हो ? और हमारा सारा प्रयास  टायँ - टायँ फिस्स हो जाता है |

* दंगे की ही बात नहीं है | आज़म खां ने भाई - भतीजे के साथ सामान्य वफ़ादारी नहीं दिखाई | कि अखिलेश सरकार को चलने दें, सहयोग करके उनका नाम रोशन करें ! रास्ते में रोड़े और नखरे अटकते रहे | उनका यह कृत्य आलोच्य है , और शायद इस्लाम के भी बरखिलाफ !

* अब किया यह जाना चाहिए कि दंगे में जो मुस्लिम परिवार प्रभावित हुए हैं , उनकी मदद की जाय | और यदि कोई आरोपित पुरुष सदस्य मुसलमान होने के नाते गिरफ्तार किया गया हो तो फारूकी साहब के लिए भले " सोचने " की बात हो , हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि वह निर्दोष हैं और उन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए !
( हम विमूढ़ )

[कविता ]
* लड़की ने कहा - हाँ
लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - ना
पापा ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - हाँ
पापा ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
पापा ने कहा - हाँ
मम्मी ने कहा - ना | 

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी - पापा ने कहा - हाँ 
जाति - कुल - गोत्र ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - हाँ
पापा ने कहा - हाँ |
खाप पंचायत ने कहा - 
यह ले गोली , खा गंडासा 
स्वर्ग लोक को जा !
#  #  #

* कैसे मना करूँ ?
कोई झूठ ही
बोल रहा है
मैं तुमसे
प्यार करती हूँ !
#   #

* इतना नहीं
बिगड़ा है समाज
जितना हौव्वा !

* ऐसी की तैसी
गुमनाम मित्रो की
फेसबुक की !

* थोड़ी सी आड़
मिले तो प्यार करें
धर्म की सही !

* धर्म क्या तो है,
ज़िन्दगी की नीतियाँ
न कि पाखण्ड !

* सोचता तो हूँ
संभल कर चलूँ
चल न पाता |

* सोचता तो हूँ
गलतियाँ करता
फिर सोचता |

* या तो सोते हैं
हम जीवन भर
या जागते हैं |

* करते काम
सब स्वार्थ के लिए
अपने लिए |

* वापस लेता
आज अपनी बात -
मैं आदमी हूँ !

* दरअसल
सच कोई नहीं है
सब झूठे हैं |

* मेरा दुर्भाग्य
मेरा मित्र रूठा है
अब क्या करूँ ?

* दिखावा नहीं
फिजूलखर्ची नहीं
मने त्यौहार !

* कुछ तो हूँ ही
कुछ नहीं हूँ तो भी
आदमी तो हूँ !

* तुमने भी क्या
मतलब निकाला
मेरी बात का !

* उन्हें तो मैंने
अभी देखा ही नहीं
देखन जोगू !

* महामानव
होना ही है, तो है न
आम आदमी !

* हर समूह
मूर्खों का जमघट
फेसबुक का |

* मैं क्या करता
सड़क धँस गई
मैं गिर गया |

* मेरी, उनकी
अलग तलब है
सूखे लब हैं |

* घोषित हुआ
मैं तो सांप्रदायिक,
कोई बताये
वह तो नहीं है न !
मुस्कराइए नहीं |

* रह पायेगी
भारतीय संस्कृति
कैसे तो ज़िन्दा ?
या इस मायने में
कोई भी संस्कृति ?

नए युग में
बच नहीं सकतीं
बदलने से |
------------------

* उज्जवल जी बताते हैं कि किसी जनाब मार्क्स ने प्रसिद्ध पत्रिका Readers Digest में लिखा था - धर्म जनता कि अफीम है | लेकिन उलटे मुझे तो सारे मार्क्सवादी अफीमची ही दिखे !

* सेक्युलर व्यक्ति नास्तिक होता है | यदि इसे यूँ न भी मानें | तो तजुर्बा करके देखें , वह व्यक्ति अपने धर्म या मज़हब का उतना पाबन्द तो नहीं होता ! फिर उसे नास्तिकता तक जाने में कितनी देर लगती है ?

* अभी के मृत्यु दण्ड के फैसले के हवाले से हम जनजागरण की यह अपील तो कर ही सकते हैं, कि देखिये , आदमी किसी भी राक्षस, भूत -प्रेत से कम नहीं है | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पिशाच, चुड़ैल आदि पर विश्वास मत कीजिये | न उन्हें भगाने के लिए किसी ओझा - सोखा- बाबा - दाई के  तंत्र मन्त्र का सहारा लीजिये | हमारे डॉ डाभोलकर की बात मानिये |
- (हम सब डाभोलकर) संस्था |
और यह भी कि हो सकता है कोई नर पिशाच या नारी पिशाचिनी हमारे आपके अंदर भी हो | उसे भी भगाने के लिए पूजा -पाठ का नहीं आत्मबल पर भरोसा कीजिये |
वैसे नास्तिकता सारे पाखंडों का एकमुश्त आखिरी इलाज है |

* परेशानी तो होती ही है :
अपने घर से बाहर या जगह से काटने पर परेशानी सबको होती है , चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान | मुसलमान मार्क्सवादी या सेक्युलर भाई लोग सेक्युलर भारत को हिन्दू शासन कहकर इसकी आलोचना करते हैं कि यहाँ अल्पसंख्यक परेशानी में है | मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह दशा स्वाभाविक है | अरब संस्कृति का पूरा मज़ा तो अरब में ही मिल सकता है | क्या समझते हैं हिन्दुओं को परेशानी नहीं होती ? अभी देखिये हरिद्वार के ड्राई होने के कारण ही तो वहां सपा की सभा नहीं रखी गयी ? इस बात को ध्यान में रखते हुए कि सम्मिलित होने वाले प्रतिनिधियों को असुविधा होगी | इसी प्रकार अयोध्या में मांसाहार प्रतिबंधित होने वहां कोई 'खाता पीता ' व्यक्ति कहाँ 24 घंटे रुकता है ? बस दौड़ भाग दर्शन कर अपने समुचित स्थान चला जाता है | मैं स्वयं कभी गुरूद्वारे या जैन धर्मशाला में नहीं रुकता, क्योंकि मैं सिगरेट पीता हूँ | इस मामले में मेरे लिए जामा मस्जिद के पास होटल मुफीद पड़ते हैं | लेकिन वहां कुछ दूसरी दिक्कतें होती हैं | कहने का आशय - कि परेशानी तो हो ही  जाती है |

* कुछ चीज़ें सचमुच बदली नहीं जा सकतीं | जैसे माँ - बाप से प्राप्त जीन्स , अपने DNA !

* पुनर्संरचना [ Restructuring God and Religion

* यदि ज्यादा झाम न फैलाया जाय, अंधविश्वास न बढ़ाया जाय , तो हमारे लिए " In Nature We Trust " के रूप में - " In God we trust " भी चल सकता है | 

रविवार, 15 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 10 सितं से 15 सितम्बर तक

* ग्रह नक्षत्र तो मैं जानता नहीं | लेकिन सितारों को जानता हूँ | हमारे सितारे चड्ढी और चूरन का प्रचार  कर रहे हैं |

* इसे विडम्बना कहकर मैं टालना नहीं चाहता कि तमाम महापुरुषों का जन्म कुमारी माताओं की कोख से हुआ !

* सौ सौ चूहे खाय बिलाई हज को चली |
इसे अन्यथा न लें , यह कहावत है |

* Personally , I would, rather like to be called as - " Poetic Humanist " [ PH= फ ]

  • हाँ निवास जी , मैं हिंसा और सख्ती का अंध विरोधी नहीं हूँ ( इस शर्त के साथ कि उसका अधिकार सक्रिय राज्य के पास होना चाहिए , जिससे प्रत्येक नागरिक को इसका सहारा और कानून को हाथ में न लेना पड़े | हिंसा राज्य का विशेषाधिकार है ) | और आपने ठीक तो कहा कि न्याय तुरत होना चाहिए | पकडे जाने के 24 घंटे के अंदर , त्वरित सुनवाई द्वारा |
  • Ugra Nath और दूसरी बात यह कि यदि कानून बन सके तो यह कि पीड़ित पक्ष के दो या दस परिजनों का अपराधी - वध के समय उपस्थित होना अनिवार्य हो | तब तो सार्वजनिक मृत्युदंड की स्वीकार्यता बनती है | वर्ना पब्लिक इसे देखते देखते स्वयं अ -संवेदनशील हो जायगी | यह मनोवैज्ञानिक खतरा है |
  • Ugra Nath तीसरी बात , मैं आसाराम जी के मामले में लिख चूका हूँ , फिर दुहराता हूँ कि इनकी मौत के पहले विश्व विद्यालयों के मनोविज्ञान विभाग और अपराध अनुसंधान के शोधार्थियों को इनके ऐसे मानस के की तह में जाने के लिए जाना चाहिए और इनकी आपबीती , डायरी , सामाजिक -आर्थिक - सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आदि का पूरा विवरण लेकर शोध प्रबंध लिखना और प्रस्तुत करना चाहिए , जिससे मानव सभ्यता ऐसी मनोवृत्ति के पनपने के कारणों से अनभिज्ञ न रहे , और इससे निजात के उपाय सोचे , अमल में लाये | इतने मानव शरीरों के अंत के द्वारा मानवजाति कुछ सांस्कृतिक लाभ तो उठाये | इनकी हत्या निरर्थक न जाए | कृपया मृत्यु दंड को केवल राजनीतिक शब्दावली में तो न सोचें , इतना तो मेरा आग्रह सुना जा सकता है , यदि Capital Punishment मिटाया न जा सके तो |



  • * भाई , कहा कुछ भी जाय जब एक बार नीति बन गयी तो बन गयी | मैं मृत्यु दंड के पक्ष में तो नहीं जाऊँगा !


* अच्छा बहाना भी है राजनीति | कह दो सब राजनीति है , विरोधियों ने किया | बस छुट्टी, बच गए जिम्मेदार से | अरे भाई, लड़की से छेड़खानी हुयी थी या नहीं | उसका भाई जब विरोध करने गया था , तब माफ़ी ही मांग लेते | पर उससे उलटे मारपीट कि गयी या नहीं ? फिर उसके बाद तो किसने कम मारा , किसके ज्यादा मरे , यह हिसाब नहीं चलता | और इन हकीकत के झगड़ो में क्या चाहते हैं सम्प्रदाय को सामने नहीं आना चाहिए , वरना वह सांप्रदायिकता हो जायगी ? फिर जातियों - सम्प्रदायों का काम ही क्या रह जायगा ?

* सुना है, लखनऊ में कुछ सीनियर छात्र बड़े " मैनर " वाले हो गए हैं और नए, जूनियर छात्रों की रैगिंग करके  उन्हें सिखा रहे हैं | भले खुद एक फ्यूज़ वायर न बाँध पायें | ऐसे लड़कों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए क्योंकि ये नए छात्रों को आतंकित करते हैं | भय की प्रतिष्ठा होना अत्यंत आपत्तिजनक बात है | यह तो सरासर गुंडागर्दी हैं | खबर है, किसी लड़की ने आत्महत्या कार ली ति किसी ने कोशिश की | संस्थान परिचय सम्मेलन स्वयं आयोजित करे और उसके अतिरिक्त जो छात्र किसी छात्र को अनुचित परेशान करे उन्हें फ़ौरन निष्काषित कर दिया जाय | स्कूल में उन्ही को रखा जाय जिनकी इच्छा और उद्देश्य पढ़ना हो | जिन्हें बकैती करनी हो, मैनर सिखाना हो, वे पुलिस विभाग में जायँ, या फिर किसी संत के आश्रम में | सचमुच पढ़ने कि चाह रखने वाले छात्रो कि कोई कमी नहीं है, जो इन्हें इनकी बदतमीजियों के बावजूद भी स्कूल में रखा जाय ! मेरा अनुमान है रैगिंग करने वाले सवर्ण श्रेणी से होंगे |  

* कुछ मौतें मुझे तनिक भी पीड़ा नहीं देतीं | आज एक युवक मोबाईल से बात करते करते रेलवे फाटक पर शहीद हो गया | तो ठीक ही हुआ | भाई बात करने का अधिकार है तो उसके लिए जान देने का भी उन्हें हक है | ऐसे ही रेलवे ट्रैक पर भी दुर्घटना हुयी थी | उन्हें तो लाखों के मुआवज़े भी दिए गए | क्यों भला ? दुर्घटना न हो , इसकी व्यवस्था तो सरकार को करन चाहिए | लेकिन जो मरना ही चाहे, उन्हें कौन रोक सकता है | इसलिए उन्हें मुआवजा न देकर, उलटे उसके परिवार से जुर्माना वसूल किया जाना चाहिए |

* तमाम संगीत -नृत्य के शिक्षक लड़कियों को संगीत -नृत्य सिखाते हैं, लेकिन उन्क्के बारे में ऐसा कुछ सुनने में नहीं आता | और उनकी आयु ७० - ७२ से ज्यादा होती हो , ऐसा भी नहीं !

* कोई मनोविज्ञान का विभाग, किसी भी विश्व विद्यालय का, या सरकारी विभाग - संस्थान आसाराम बापू के पास उनके मानस का अध्ययन करने उनके पास नहीं गया | जाना चाहिए | एक एक केस हिस्ट्री पर शोधप्रबंध आयोजित किये जाने चाहिए !

* यह हिन्दुस्तान है प्यारे ! दिखाइए, और देखिये - पीड़ितों के माता पिता ही हाय ! न कह दें तो कहिये ! यह बदला लेकर - खून का बदला खून, आँख के बदले आँख लेकर खुश होना वाला समाज नहीं है | हम तो चाहते हैं आप संगसारी दिखाएँ, फांसी चढ़ाया जाते दिखाइए | काम हमारा सिद्ध हो जायगा - जनमानस मृत्युदंड के खिलाफ हो जायगा

* इतनी धार्मिक विविधताओं के बीच नास्तिक [ धर्मों से असम्बद्ध / निर्मोही ] कारकुन, पुलिस कर्मी, अधिकारी, न्यायाधिकारी, राजनेता ,शिक्षक ही, यहाँ तक कि चपरासी और सफाईकर्मी भी  सेक्युलर राज्य के सही संवाहक हो सकते हैं | वर्ना यह मंत्री लाखों की भीड़ में पहले स्नान करेगा (भीड़ कुचल कर मरे तो मरे ), राज्य में नरसंहार करेगा या वह मंत्री हज के लिए विदेश यात्रा कर लेगा | कोई क्या कर लेगा उनका ? कौन समझाए , कौन रोकेगा उन्हें ? आखिर वह व्यक्ति हैं अपनी धार्मिक आस्था के साथ और साथ ही राज्य के सूबेदार भी हैं | हम कौन है और आप कौन हैं ? पलटते रहिये शब्दों की किताबी परिभाषाएं ! तब तक तो वह बहुत कुछ अंजाम दे चूका होगा | आधी सदी से अधिक तो ले ही लिया इसने ! मित्र , बाहरी शब्दों को अपनी ज़मीनी यथार्थ से जोड़ कर सोचना होगा | तभी सटीक परिभाषा निकलेगी | मच्छिका स्थाने मच्छिका बैठाने से नहीं |  

* मैं दो तीन निवेदन सार में रखकर दो तीन दिन के लिए गाँव जाऊँगा - ऑफलाइन |यह धृष्टता मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरी इसमें हार्दिक रूचि है, और मैं इसका एक्टिविस्ट भी हूँ ( तथापि विवाद खींचना मेरी फितरत में नहीं ) |  पहला - सेक्युलर सरकार का यह संवैधानिक कर्तव्य भी है कि वह जनता में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करे और सामाजिक स्वास्थ्य और नैतिकता के विरुद्ध कुछ न होने दे | तो - - ? दूसरे - व्यक्ति का प्रिथक्करण यदि संभव नहीं तो जो लोग उच्च पदस्थ अधिकारी - नेता - देश निर्माता हैं उन्हें तो चाहिए कि घरके अंदर और बाहर की सार्वजनिक स्वरुप को अलग अलग करें ! उन्हें इसकी समझ तो हो कि बस , यहाँ मेरी आस्था की सीमा समाप्त होती है और सेक्युलारिस्म (की मारो गोली ), समता और सामान्य न्याय कि दृष्टि से अपनी आस्था को समेट लेना चाहिए | एक लघुतम उदहारण = माथे पर लंबा गहरा टीका लगाना आपकी आध्यात्मिक आवश्यकता और धार्मिक आस्था हो सकती है | लेकिन इसका सार्वजनिक प्रदर्शन ? बहुत झीना , महीन भेद है | लेकिन उसे समझना,  पालन करना तो  होगा , कम से कम राज्य कि संस्थाओं और उनसे जुड़े व्यक्तियों को ? या नहीं तो फिर सारा राज्य PSU को दे दीजिये | क्या सोचा आपने - - - ? तीसरे - secular की ही धाराएँ, भाई पडोसी हैं  Secular morality (Religious  morality- as said  for Gandhi ), Humanism, Rationalism, Anti-superstitions, Godlessness , Non theist , anti -theist, Atheist etc etc | इन्हें आप धर्म कह सकते हैं - धारणीय अवश्य | तो हैं तो हैं , जैसे अन्य धार्मिक हैं | उनसे बड़ी सहानुभूति है तो थोड़ी हमसे क्यों नहीं ? हम तो विज्ञानं के अनुचर व्यक्ति - समाज है , जब कि वे कहीं ऊपर स्वर्ग से संचलित होते हैं | इसलिए हम तो नहीं कह सकते कि हम आसाराम की भांति   नैतिक और इन्द्र के स्वर्ग की स्थापना कर देंगे ! हम सिर्फ मनुष्य हैं और मनुष्य जितना कर पायेगा करेगा | ज़ाहिर है तब भी द्वन्द्व होगा, तनाव, लडाई झगड़े होंगे , पर ईश्वर, उसकी किताब - देवदूत को लेकर तो नहीं | वे दुनियावी होंगे | बोलिए अस्वीकार है - - - ? और अंतिम - Secularism की व्यावहारिक परिभाषा Charles Bradlaugh से निकलती है | याद कीजिये , हम कृतग्य हैं उन्होंने God का स्थान पर सत्यनिष्ठा की शपथ को मान्यता दिलाई | उनसे कुछ मुलायम Holyoke साहब के साथ उनके द्वन्द्व को याद कीजिये और फिर बताइए हम उनके मुकाबले कहाँ खड़े हैं आज , इतने अरसा बाद - - -  ?          


* लखनऊ में कुछ विज्ञानं मिजाजी लोग अन्धविश्वास के विरुद्ध " हम सब दाभोलकर " नाम से संस्था / कार्यक्रम बना रहे हैं | वह तो बनायेंगे लेकिन उससे पहले कुछ बुढ़भस लोग " हम सब आसाराम " बोल रहे हैं | वह बयान जारी करने को हैं | यार उतने देर तक कन्या आसाराम के साथ रही | यद्यपि कानूनी तौर पर वह नाबालिग होगी लेकिन इतनी भोली और छोटी भी तो नहीं ! वह तनिक सी हरकत पर भी उनका हाथ झिड़क देती , बूढ़े में इतनी ताकत तो नहीं कि वह इतना जबरदस्ती कर पाता | बाहर तो अन्य लोग , माता पिता भी थे शायद  | कोई जंगल नहीं था वह | चीख पुकार करती तो लोग  सुन लेते | दरवाज़ा खोल कर वह भाग भी सकती थी | अंदर से बंद दरवाजे कि सिटकिनी इतनी ऊंची तो न रही होगी ? वह भी क़द में लगभग आसाराम के बराबर ही होगी ? यार यह तो ठीक कि संत रसिक हैं , लेकिन यह भी बलात कैसे हुआ | कहीं ऐसा तो नहीं कि सब कुछ हो जाने देने के बाद - - - - ? ?

* - क्या देख रहे हो ? - महिला ने पूछा |
- तुम्हारी साड़ी का रंग और डिजाईन | मेरी पत्नी पर खूब फबेगा !

* शायद दीपा ने ही लिखा था - महिलाओं की दो समस्याओं पर | एक तो पहनने को कुछ नहीं है , और दुसरे रखने कि जगह नहीं है |
मेरे विचार से दो ऐसी ही और समस्याएँ हैं उनके साथ | एक तो यह कि वह आदमी मुझे देख क्यों रहा है ? दुसरे यह कि वह आदमी मुझे देख क्यों नहीं रहा है ?

* आदमी से हमेशा प्रेम से बतियाना नहीं , कभी कडाई से भी बोलना चाहिए | बेरुखी से भी पेश आना चाहिए | ज़रुरत ही पड़ जाती है इसकी |यह दुनियादारी कि बात है | पुराणी विनम्रता कि सीख अब हर वक़्त काम नहीं करती |

* आश्चर्य की बात है जो एक संस्था बनाने के लिए सात व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती है ! हर आदमी स्वयं एक संस्था क्यों नहीं होता ?

* Corruption is not as much great an issue as Poverty is .

* औरतें इसलिए परेशान हैं क्योंकि वह मेरी बात नहीं मानतीं | वे मानती ही नहीं कि नहीं कि कुछ ही मामलों में सही , उनमे और मर्दों में अन्तर है ! समानता का भूत सवार है उन पर , तो भुगतें ! मैंने तो देखा है बिटिया की बिदाई और बेटे के गुडगाँव जाते समय माएँ बहुत रोती हैं , बाप बहुत कम ! पर वह मानेंगी नहीं कि उनका दिल अपेक्षाकृत कमज़ोर होता है | नहीं मानतीं तो भुगतें | हम क्या करें ?

* हम इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि औरत कहे तब हम उसका काम करें | नहीं हम सेवा भावी  इन्सान हैं | वह आदमी ही क्या जो कहने पर मदद करे ? हम तो बिना उसके कहे ही उसकी मदद को तत्पर रहते हैं |
तब तक , जब तक वह यह कहना सीख न जाय कि नहीं , मुझे तुम्हारी सेवा कि अभी आवश्यकता नहीं है | और यह भी कि जब उसे आवश्यकता हो तो बेझिझक हमारी सेवा मांग ले !

* इतना सत्य
कैसे बोल देता मैं
उन्हें दुखाता !

* किसी से नहीं
न तन, न धन से
मन से हारा |

* फिर भी कुछ
तो है ही जीवन में
जो सुंदर है !

* पहले डुबो
फिर तो पानी पियो
गहराई का !

* थोड़ी बहुत
ऊर्जा बचा रखूँगा
अंत के लिए |

* सितम तेरे
कौन याद रखता
मैं भूल गया |

* शायद नहीं
लेकिन शायद हाँ
हो सकता है |

* देर हो गई
दुर दुर करते
पाप न भागा |

* तुमने कहा
" भुला देना मुझको "
लो , भुला दिया |

* अब भला क्यों
चेहरे ढाँपती हैं
ये लडकियाँ ?

* नहीं पसन्द
मेरे हाइकु तुझे
तेरे मुझको !

* बहुत अच्छे
देखता हूँ स्वप्न मैं
जागरण में |

* यह क्या किया ?
तुमने जगा दिया
मैं स्वप्न में था !

* देखो तब भी /
नाराज़ हो जाते हैं /
न देखो तो भी |
 :)



रविवार, 8 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 5 सितं से 9 सितम्बर तक

* " लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चार्ल्स डार्विन लम्बे समय तक खुद यही मानते थे कि हर जीव को ईश्वर ने बनाया है | इस सोच को बाद में उन्होंने अपनी गलती माना - -- ?
( कात्यायनी उप्रेती - एक लेख में - nbt 4 सितम्बर )
-- लेकिन हम तो अभी भी इस गलती को नहीं मान रहे हैं , और ईश्वर के चक्कर में अपना अमूल्य समय गवां रहे हैं !

* एक प्रश्न और बहुत कुलबुला रहा है | सोचता हूँ शिक्षक दिवस पर पूछ ही लूँ Vandita जी भी आ गयी हैं | और उज्जवल जी तो उपसंहार करेंगे ही |
नैतिक - आध्यात्मिक चिन्तक इसका उपाय बताएं | पुराने संत तो घपले में डाल गए हैं | एक तरफ कहते हैं - चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग | दूसरी तरफ सावधान करते हैं - कुसंग से दूर रहो और सत्संग करो | अब आप बताइए हमारे लिए कौन सी नीति उचित है ? अपनी तरफ से बता दूँ  कि - हमें दुष्टों से दो गज दूर ही रहना चाहिए | लेकिन जैसा आप लोग कहें , हम वही मानेंगे |

* हमारे लिए -
हमारे लिए न वह तब पूज्य थे , हमारे लिए न वह अब घृणित हैं | हमारे लिए वह तब भी निन्दनीय थे , हमारे लिए वह अब भी निन्दनीय हैं |

* चलिए अब आसाराम के भक्त तो भाजपा को वोट देने से रहे ? उन्होंने आसाराम को बचाया जो नहीं !

* सब कीजिये | लेकिन थोड़ी गुंजाइश रखिये कि पुरुष वर्ग नपुंसक तो न होने पाए !

* मैं आसाराम बापू से छः साल लहुरा हूँ

* ध्यान रखियेगा ! नास्तिक हैं तो आपको ' वास्तविक ' मनुष्य होना होगा |

* यदि Juvenile लड़कों को Adult मानने का आग्रह है , तो नाबालिग लड़कियों को क्यों नहीं ?

* बंटवारा हो तो चूका है , हमारे नेता उसे पूरा  नहीं होने दे रहे हैं |

* अरे हाँ , तो जब मैं कोई सांप्रदायिक दंगा करूँ तब न प्रगतिशील साहित्यकार लिखें कहानियां, कवितायेँ, उपन्यास ?

* शासक वह जो दूसरों को शरण - संरक्षण देता है | वह नहीं , जो अपने लिए आरक्षण लेता है |

* ( नाटक सम्वाद अंश )
" यह ठीक है कि आप न ढोल हैं, न शूद्र, न पशु, न ही नारी ! लेकिन बाबा तो गँवार को भी ताडन का अधिकारी बता गए हैं ! वह तो आप हैं | "

* बहुत से लोग बाहें चढ़ाए मार पीट , युद्ध, बदला आदि की बातें करते हैं | वे एक किताबी प्रश्न का उत्तर बताये तो हम भी मानें वे बड़े लड़ाका हैं  -
" अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है ? " :)
Naveen Mishra शस्त्र हाथ में लेकर लड़ते है जैसे तलवार ,अस्त्र फेंक कर मारते है जैसे भाला

Right to information = RTI = Right to Inform
Right to education = RTE = Right to Express
हाँ याद आया | RTE में लड़कियों ( और दलितों ) को ज़बरदस्ती आरक्षण क्यों न दिया जाय ?
अजीब स्थिति है | रेग्युलर पढ़ने जाते ही नहीं | वजीफा मिलना होता है तब बन ठन कर जाते हैं | अभिभावकों में भी , पढ़ाने की अभिलाषा ही नहीं दिखती |

* ब्राह्मणों से बड़ा गुरेज़ है तो यदि दलितों को शनैः शनैः ब्राह्मण बनाने कि प्रक्रिया शुरू कर दी जाय तो क्या हर्ज़ है ?
जो लोग क्लास 4th की नौकरी में आ जाएँ , उनकी जाति वैश्य कर दी जाय . जो 3rd श्रेणी में आयें उन्हें क्षत्रिय , और क्लास प्रथम एवं द्वितीय कि नौकरी पाने वालों को ब्राह्मण करार दिया जाय |
लेकिन दिक्कत यह है कि इन्हें ब्राह्मण बनना स्वीकार भी तो नहीं है , अविरल आरक्षण की लालच में  | तो प्रक्रिया को पलट दिया जाय | जाति व्यवस्था के प्रतिकूल अब ब्राह्मण - क्षत्रिय - वैश्य - शुद्र को क्रमशः चार - तीन -दो - प्रथम श्रेणी का राजकीय स्तर दिया जाय |

* धर्म का नाम - जाति का नाम
-----------------------------
एक और बड़ी समस्या है | न धर्म का कालम छूट रहा है , न जाति का | मनुवाद को ही यदि मानें या दोष दें , तो इसके अनुसार भी चार ही तो श्रेणियां हैं - ब्राह्मण - क्षत्रिय - वैश्य -शुद्र , ब्रह्मा के कथित चार अंगों से उपजे ? फिर ये इतने जाति - नाम कहाँ से आ गए ? हम उन्हें क्यों स्वीकार करें | तो नामकरण केवल इन्ही चारों में से हो, इतर कोई जाति न हो | इसे भी निर्मूल करने या धीरे धीरे फेड आउट करने के लिए व्यवस्था यह हो कि जो जाति प्रथा न माने उसे सच्चा ब्रह्म ज्ञानी अर्थात ब्राह्मण लिखा जाय , उसे कोई आरक्षण न मिले | इस प्रकार सारी जातियों को समेट कर केवल मौलिक चार में सीमित कर दिया जाय |

और धर्म को मिटने का काम तो चुटकियों में हो सकता है ( कमल पाशा याद आ गए ) | इसे हमारे एक युवा मित्र ने बड़ी बुद्धिमत्ता पूर्वक सुलझाया और सुझाया | जाति का कालम मिटा दिया जाय और धर्म के कालम में जाति [ उन्ही चार में से ] लिखी जाय | या इसका पलट भी हो सकता है |
और यह तो कहना रह ही गया | कि इन सब श्रेणी बद्धताओं में व्यक्ति के नाम से कोई सम्बन्ध न रखा जाय | वह किसी भी भाषा में हो |
बात कुछ जम तो रही है !


* गुजरात के राज्यपाल , और उनके बहाने राज्यपाल की प्रविधा को ही , उसे केंद्र का एजेन्ट , वायसराय कहकर समाप्त करने की बात की जा रही है |
अरे कतई न मानियेगा | केंद्र के वायसराय सही, ये हैं तो राष्ट्र का राज्यों पर कुछ अंकुश है | वरना आश्चर्य नहीं कोई राज्य USA में शामिल होने का निर्णय ले ले ! तबाह हो जायगा देश !

* " पार्टी हाई कमांड "
राज्यपाल के पद को कायम रखने के पक्ष में है |

* क्या यह आँकड़ा सही है , या होना चाहिए ,कि भारत में केवल दो सम्प्रदाय हैं - हिन्दू और मुसलमान ?

* " मैं अपनी जायदाद किसके नाम करूँ ? "

विज्ञानं हो | तो कुछ भी हो - साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, कला, खेलकूद, सिनेमा, मनोरंजन, कुछ भी | चलेगा | विज्ञानं न हो तो विज्ञानं भी स्वीकार नहीं

" ज्ञान उत्सव "
किसी पार्क में लगाया जाए | लोहिया जी ने रामायण मेला लगवा कर जो गुड गोबर किया , उसे पलटा  जाए |
बस मेला | Fanfare , पुस्तकों कि दुकानें , rational बातचीत , सभा-सम्मेलन , परिचय - युवा युवतियों के , बूढ़ों के , अधार्मिक जीवन के साथी संगती मिलें | इसमें  विज्ञानं  के क्रिया कलाप तो हों , पर इसका नाम विज्ञानं उत्सव न रखें , वरना यह स्थूल हो जायगा | इसे संस्कृतिक नाच गाना बजाना ही रखें मनमोहक , आकर्षक | खुला सबके लिए रखें , संचालक नास्तिक वैज्ञानिक चेतना वाला संगठन हो |
#  #

* भजन गीत =  " मैं हुशियारी सीख गया हूँ "
दुनिया में रहने के नाते दुनियादारी सीख गया हूँ |

तन मेरा चाहे जैसा हो मन मेरा अब भी चन्दन है ,
ह्रदय नहीं मेरा बदला है, कोमल भावों का नंदन है 
लेकिन अभिनय करते करते, मैं  हुशियारी सीख गया हूँ |
                       
मन मेरा कब यह कहता है किन्चित मन को दुःख पहुँचाऊँ 
ह्रदय भला कब अनुमति देता किसी हृदय को ठेस लगाऊँ ,
पर जंगल में रहते रहते, मैं वटमारी सीख गया हूँ  |

पावन मन से जब सच बोला, घर बाहर सब धोखे खाया 
आखिर जग में रहना था ही, मैंने भी यह पथ अपनाया -
मन में छूरी, मुंह से कहना - " कृष्णमुरारी" सीख गया हूँ ||
#  # 

हम दुनिया को 
नहीं बना सकते ,
हम दुनिया को बिगड़ने से 
नहीं बचा सकते |
----------- Feeling sorry 

* गर्ल फ्रेंड को रिझाने में बना लुटेरा =
गर्ल फ्रेंड को मंहगे गिफ्ट देने के लिए लूट करने वाला , चेन स्नेचिंग कर भाग रहा युवक धरा गया |
[NBT 6 सितं]
* मेरी डिमांड है कि उस गर्ल फ्रेंड को भी पकड़ा जाय | यह क्या है कि मीठा मीठा गप कड़वा कड़वा थू ? कुछ वह भी भुगतें |

* ख़ुशी कि खबर -
भटकल पर बयान देने वाले जनाब कमाल फारुकी साहेब कि सपा कि राष्ट्रीय सचिव की कुर्सी छिनी |


* अहमद हसन , स्वास्थ्य एवें कल्याण मंत्री साहेब ! पहले प्रदेश में डेंगू की बीमारी का हाल लीजिये , महिला अफसरों के 
अहंकार कि खबर बाद में दीजियेगा |

*श्री अहमद हसन साहेब , स्वास्थ्य मंत्री जी ! आप के मरीज़ को मिला वेंटिलेटर , जिसके चलते सुम्बुल को मिली मौत ?
 - क्या यह मंत्रि पद का अहंकार नहीं है ?

* दंगे यदि दंगाई करते हैं , तो फिर ये हिन्दू मुसलमान भला क्या करते हैं ? जो इतनी जगह छेकाए हुए हैं ? फिर इनकी ज़रूरत क्या है ?

Trial of Errors में रेहान का नाटक { 7 सितं } तो हुआ | लेकिन मलाला , सुष्मिता पर कब नाटक कारों की कृपादृष्टि  जायेगी ? हाँ , इनमे कोई Errors अलबत्ता नहीं हैं :)

आज आसाराम के दिन खराब हैं तो सभी उनके पीछे हाथ धोकर पड़े हैं | सारे गड़े मुरदे अब उखाड़ने लगे | अन्यथा अभी ट यही लोग उनकी सेवा में लगे थे | वे सब उनके नादाँ दोस्त हैं |लेकिन हम उनके दानादार ( बुद्धिमान / मानववादी ) दुश्मन हैं ? एक कैदी को देय सुविधाओं के लिए हम उनकी वकालत करेंगे, वह जो भी हों | हम वह मानवाधिकारवादी नहीं हैं जो केवल नक्सलियों / आतंकियों के लिए झंडा उठाते हैं | आसाराम को भी उनकी आयु और स्वास्थ्य के अनुकूल ही व्यवहार किया जाना चाहिए | मेरा ख्याल है लोगों को पसंद शायद न आये यह सोचकर कि मैं तो नास्तिक आदमी हूँ , ढोंग पाखंड विरोधी , और आसाराम वह सब करते थे !
क्योंकि हमारे यहाँ मनुष्य का शारीरिक मूल्य भी है |)

दो तरीके =
1 - पहले स्वीकार करो ( मानो )
     फिर संदेह करो ,
     फिर इन्कार करो ( न मानो )

2 - पहले इन्कार करो ( न मानो )
     फिर संदेह करो ,
     फिर स्वीकार करो ( मानो )

#  #

* रामदेव ने कहा  - साधू संतों के लिए बने आचार संहिता |
  - यूँ है तो यह हास्यास्पद और भारत का दुर्भाग्य | क्योंकि जो साधू संत जनता के लिए आचार संहिता बनाते और उन्हें पढ़ाते हैं , स्थिति ऐसी आ गयी है कि उनके लिए आचार संहिता बनानी बनानी पड़ रही है ! 

लेकिन फिर भी यदि बनानी ही पड़ रही है , तो उसे बनाएगी जनता | अर्थात भारत का संविधान , और उसके तहत चल रही सेक्युलर सरकार |

* ईश्वर तो वह जिसका अपमान ( Blasphemy ) असंभव हो !

सारा दोष राजनीति, सपा बसपा, भाजपा को ही न दें | कुछ अपने लिए भी बचा  कर रखें  जो धर्म को   बड़ा महत्व , अत्यंत महिमामंडित करते हैं | अरे बहुत ज़रूरी है धर्म मनुष्य के लिए - धारयति सः धर्मः ! अन्यथा मानव तो दानव हो जायगा | तो भुगतिए अब अपने देवताओं को !

क्या यह कहावत सच है कि मूर्खों के सींग - पूंछ नहीं होते ? मेरा तो ख्याल है कि, होते हैं हमें दिखाई नहीं देते |

* सुष्मिता बंद्योपाध्याय ! यूँ तो सजातीय, सधार्मिक विवाह में भी कुछ भी हो सकता है | लेकिन अंतरधार्मिक विवाह से ही क्या सुख हासिल हो गया ? शान्ति सुनिश्चित हो गयी ? - - - - 

आखिर " इस बात का भी क्यों नहीं कुछ मायने हो पाया कि वह इस्लाम स्वीकार करके साहब कमाल हो गयी थीं, और लोगों की सेवा कर जिंदगियां बचा रही थीं " ?

* तालिब कहते हैं शिक्षार्थी को , शिक्षा की तलब, प्यास रखने वाले को | तालिबानी का अर्थ भी कुछ इसी के आसपास होना चाहिए !


* हिन्दुओं के साथ बैठकर खाना जायज़ " = दारुल उलूम |

- - चलिए अब मेरा चिकन बिरयानी पक्का हो गया !


* इस जग का ईश्वर है मालिक 
तुम मानो हम नहीं मानते ,
धरती का इकलौता मालिक
तुम मानो हम नहीं मानते | 

* ईश्वर = अदृश्य सत्ता का एहसास ,

* धर्म  = स्व अर्जित नैतिकता |

* हम नास्तिक इसलिए हैं , क्योंकि आस्तिक लोग आस्तिक नहीं रह गए | इसलिए हम अपनी आस्तिकता का नाम नास्तिकता कहते हैं !

" धर्म की हानी " इसलिए हो रही है क्योंकि ' धार्मिक ' जनानि के आध्यात्मिक ' दूध के दाँत ' टूटते ही नहीं | उनके माथे से ' छाप तिलक ' बुढ़ापे तक भी नहीं छूटता , तो कैसे मिलें ' नैना ' उस समग्र - समष्टि से ? वही प्राइमरी स्कूल में प्रार्थना में ताउम्र शामिल , मूर्तियाँ, घंटे घड़ियाल बजाते आरती हवं करते ! अरे भाई , गोलियों की ज़रूरत तो बच्चों को गिनती - पहाड़ा सिखाने के लिए पड़ती है ! क्या वही जिंदगी भर लिए रहेंगे ? फिर कहेंगे , हाय मैं तो एमएससी में फेल हो गया | अरे, वार्धक्य के बल पर अध्यात्म के सोपान नहीं चढ़े जाते मित्र ! छोडो सब छोडो , गोरख गुरु तो कहते हैं - मरो , मरो रे जोगी मरो ! 

यात्रा का आनन्द लेने का अपना तरीका मैं आप को बता रहा हूँ , बिना पैसा व धन बरबाद किये | बैंक खाते में दो तीन हज़ार हर हाल में पड़ा रहने देता हूँ | हर महीने irctc से कहीं जाने और वहाँ से लौटने का टिकट बुक करा लेता हूँ , स्लीपर में , ए सी में | कहीं का भी , कभी दिल्ली, कभी कोलकाता नहीं तो कभी गोरखपुर अपने घर तक का ही | जहां भी कन्फर्म मिले | बिना पक्के टिकट के मैं यात्रा नहीं करता | फिर क्या करता हूँ कि यात्रा प्रारंभ होने के 24 घंटे पहले उन्हें कैंसिल कर देता हूँ | है न घर बैठे यात्रा के आनंद का नायाब तरीका ? :)


* इतनी धार्मिक विविधताओं के बीच नास्तिक [ धर्मों से असम्बद्ध / निर्मोही ] कारकुन, पुलिस कर्मी, अधिकारी, न्यायाधिकारी, राजनेता ,शिक्षक ही, यहाँ तक कि चपरासी और सफाईकर्मी भी  सेक्युलर राज्य के सही संवाहक हो सकते हैं | वर्ना यह मंत्री लाखों की भीड़ में पहले स्नान करेगा (भीड़ कुचल कर मरे तो मरे ), राज्य में नरसंहार करेगा या वह मंत्री हज के लिए विदेश यात्रा कर लेगा | कोई क्या कर लेगा उनका ? कौन समझाए , कौन रोकेगा उन्हें ? आखिर वह व्यक्ति हैं अपनी धार्मिक आस्था के साथ और साथ ही राज्य के सूबेदार भी हैं | हम कौन है और आप कौन हैं ? पलटते रहिये शब्दों की किताबी परिभाषाएं ! तब तक तो वह बहुत कुछ अंजाम दे चूका होगा | आधी सदी से अधिक तो ले ही लिया इसने ! मित्र , बाहरी शब्दों को अपनी ज़मीनी यथार्थ से जोड़ कर सोचना होगा | तभी सटीक परिभाषा निकलेगी | मच्छिका स्थाने मच्छिका बैठाने से नहीं     

* हिन्दू हिन्दुई 
दंगा करें दंगाई 
तुर्क तुर्कई |

* मैं पूछता हूँ -
इतनी लम्बी तो है 

कविता कहाँ ?

* लस्त पस्त हो 
सुरसती का पापा 
घर आता है |

* कोई तो मिथ 
काम नहीं करता 
छद्म युग में |

* होगा क्यों नहीं 
इतना पैसा है तो 
धूम धड़ाका ?

* आत्म अलग 
अध्यात्म अलग है ?
फिर से सोचूँ  |

* क्या होगा कुछ 
कहने सुनने से 
हो तो बताओ !

* इतनी जल्दी 
प्यार के प्रतिमान 
मत बदलो !

  अजीब बात !
हर समय व्यस्त 
रहता हूँ मैं |

लक्ष्य इतने 
कर्तव्य कुछ नहीं 
क्या सफलता ?

अच्छा जीवन 
मुश्किल से बनता 
शीघ्र टूटता |

साहित्य चर्या 
है सम्पूर्ण अध्यात्म 
हृदयान्तर !