उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 14 नवंबर 2012
थोड़ा विरत
* मैं हिन्दू धर्म से क्यों थोड़ा विरत रहता हूँ ? ज्यादा कुछ तो नहीं जानता , पर हमारे बहुत से बन्धु इसकी बड़ी आलोचना करते , बुराई बताते हैं | सो , मानना ही पड़ता है कि यह कोई अच्छा धर्म नहीं होगा | भले मैं पैदा इसमें हो गया , जैसे वे दलित भाई लोग |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें