रविवार, 28 जुलाई 2019

Urban Naxal Party

अन - UN - Urban Naxal Party
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नाम साभार भारतीय जनता पार्टी
हमें कुछ नहीं करना है । बस उनके हुक्म की तामील कर देनी है, आदेश का पालन कर देना है ।
Urban Naxal Party अर्बन नक्सल पार्टी should be formed. Without delay.
और देर हो ही किस बात की ? सब उन्होंने बना बनाया, पका पकाया दे दिया है, या रेसिपी बता दिया है । सब प्रचारित कर दिया है UN कौन होते हैं, क्या करते हैं, उनकी नीति क्या है ?
फिर तो केवल पार्टी की घोषणा कर देनी है और चुनाव की राजनीति में उतर, कूद पड़ना है ।
Urban means शहरी (उर्दू- सभ्य) अर्थात "नागरिक" (हिंदी) -- Citizen ( अँग्रेज़ी)
और यह citizen होती है वस्तुतः समझदार, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी चरित्र की जनता !
तो सचमुच वही तो हैं हम । भाजपा को धन्यवाद कि उन्होंने हमारा चरित्र तो देश को बता दिया ! अब उनके स्वप्न को हमें पूरा करना। है ।
(उग्रनाथ नागरिक)

नागरिक दर्शन

Philosophy दर्शन
Scientific Civilism
वैज्ञानिक नागरिकतावाद
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धर्म और राजनीति, वैज्ञानिक समाजवाद तथा
व्यक्तिमत्ता वाद (Individualism) का मिश्रण ।
Conbination of Scientific Socialism and Individualism
- - - - - - - - - - -  - - - - by :-  Ugranath "Nagrik"
                                Lucknow, 30 July 2019
उग्रनाथ नागरिक
लखनऊ
30 जुलाई 2019

Urban Naxal Party

https://m.facebook.com/groups/326674084040226?view=permalink&id=3074684852572455&sfnsn=mo

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

तुलसी रामायण

इसीलिये मैंने प्रस्ताव रखा है कि मनु के बजाय तुलसीदास को निशाने पर लिया । वह ज़्यादा लोकव्याप्त हैं और समाज को कलुषित करते हैं । उनकी रामायण घर घर में । अखंड रामायण आयोजन मुहल्ले मुहल्ले में । उसकी चौपाइयाँ मनुवाद ब्राह्मणवाद की असली वाहक ।मनु को तो कोई नहीं जानता । मनुस्मृति किसी के घर नहीं मिलेगा, न कहीं उसका पाठ आयोजित ।

सोमवार, 22 जुलाई 2019

अहंकार स मुक्ति

हमारे नास्तिक मित्रों के बीच अध्यात्म कुछ अरुचिकर विषय है, ऐसा कुछ मुझे उनके साथ बातचीत से लगा ।।
मैं भी कोई पारलौकिक पौराणिक आध्यात्मिक नहीं हूँ । लेकिन जीवन में इसकी उपयोगिता का स्वयंसेवी हूँ । बात ज़्यादा बढ़ाएँ नहीं, तो अपनी सम्पूर्ण हार्दिक और मानसिक शक्तियों द्वारा अपने अहंकार से लड़ना, उससे मुक्त होने को मैं अध्यात्म कहता हूँ । क्योंकि और कोई मेकेनिकल तरीका तो है नहीं उसे दूर भगाने का ? और इस गुण से तो दुनिया बदली बदली, और अपनी मुट्ठी में आई लगती है । शायद मार्क्सवाद में भी इसकी नकार नहीं है ।

रविवार, 21 जुलाई 2019

आह नहीं, चाह !

गच्चा खा गए न बाबा ?
वह और देशों की बात थी ।
धर्म भारत की चाह है, आह नहीं !

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

दावत कुबूल

Religion की दावत क़ुबूल करना उसकी Political Ideology को भी स्वीकार करना है । याद करें, पूज्य मोहम्मद sb Swa ने तमाम बादशाहों को इस्लाम कुबूल करने की दावत ही भेजी थी । सबने स्वीकार की । और आज देखिये इसकी सियासी ताक़त ! 👍

सहज साम्यवाद

असलियत यह है कि सामान्य संवेदनशील, समझदार हर व्यक्ति स्वाभाविक कम्युनिस्ट होता है । वह कहे भले नहीं, या इस गुण को इस वाद के नाम से न पुकार पाए । लेकिन वह प्रकृतितः शोषक हो ही नहीं सकता । वह जानता है साझा जीवन कैसे मिलजुल, मिलबाँट कर जिया जाय । इतना कठिन नहीं है समाजवाद । मार्क्स ने भी शायद इस शीर्षक से किताब लिखी - 'दर्शन कोई कठिन विषय नहीं' ! "शायद" जोड़ दिया है सुरक्षा के लिए । कोई अंतर हो किताब के नाम में तो मार्क्सवादी मित्र कृपया ठीक कर दें , मुझे लताड़ न दें !😢

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

कौवा हंकनी

माँ कौवा हँकनी, बाप !
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मेरे विचार से जो युवा अपने निर्णय लेने में समर्थ होते हैं वह ऐसी उद्घोषणा नहीं करते कि देखो मैं यह करने जा रहा हूँ और किसी साले बाप दादे से सलाह नहीं ली । समर्थ युवा बताते हैं कि मैंने घर वालों को विश्वास में के लिया है, जो सदस्य असहमत थे उन्हें विनम्रता पूर्वक अपना निर्णय बता दिया है । हेंकड़ी और बकैती नहीं दिखाते, यदि उनकी परवरिश ठीक हुई है तो ।

एक और महीन बात यहीं बता दें (इसीलिए पोस्ट लिख रहा हूँ) । यदि गौर करें तो माँ बाप शील्ड, बचाव का काम करते हैं (यह तो दकियानूसी कथन है)। लेकिन आधुनिक भी व्यवहारिक विचार यह है कि वह बचाव के किये तो इस्तेमाल किये ही जा सकते हैं । एक समस्या रखता हूँ (मैं हमेशा मित्रों से सिद्धातों को Numerical द्वारा जांचने का आग्रह करता हूँ, न कि हवाई हाँकने का)। मान लीजिए लड़की किसी से पिंड छुड़ाना चाहती है तो कह सकती है कि मेरी माँ नाराज़ होगी /मेरे घर वालों की यह पसन्द नहीं/मेरे पिता बहुत सख्त हैं,मुझे मार डालेंगे (सब बिल्कुल झूठ लेकिन)यह अस्त्र बच्चों के जीवन नाटक में बहुत काम आएगा । स्वतंत्र,स्वच्छंद हों, पर प्रदर्शित करें कि बहुत बंधन दबाव में हूँ । वरना आप देख लीजिये , देखते ही होंगे इस झूठे, चालबाज, धोखेबाज दुनिया वह निश्चय ही शोषण का शिकार होंगी । बच नहीं पाएंगी गिद्धों से । गिद्ध कौवों को डर दिखाना होगा कि माँ बाप एक छड़ी लेकर बैठे हैं , तुम मुझे चोंच न मार पाओगे । सही है , माँ बाप की भूमिका बस कौवा हाँकने भर की है । उनका उपयोग करने के लिए उनसे दुआ सलाम बनाये रखो । 👍

बाप पर कुछ आरोप तो लग भी सकता है, माँ बेचारी तो वैसे ही निरीह प्राणी है । (उसके अधिकार की कोई बात नहीं करता, न नारीवादी न नारावादी) । यही देखिये, पूरे साक्षी प्रकरण में उसकी माँ की जुबान खुलने की खबर नहीं आयी । जब कि उसी तरह की माँ साक्षी को या किसी भी लडक़ी को भी बनना है ! तो युवा लड़की को समस्त अधिकार है, वृद्ध माँ को कुछ भी नहीं ? यह आधुनिकता का न्याय है ।

मजदूर

हम सब मजदूर ! दुनिया के मजदूरों एक हो ! 👌
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मैं राजनीति में मार्क्सवाद का समर्थक हूँ, कुछ अकारण कुछ सकारण !
और धर्म को व्यक्तिगत अध्यात्म तक सीमित रखता हूँ । हिंदू मुस्लिम नामकरण से ही चिढ़ है मुझको ।
लेकिन यह जो देश हिंदुस्तान है न, वह आपसे कोई धर्म बताने को कहता है । धर्म के बिना यहाँ हवा नहीं चलती ।
ऐसी दशा में मैं कम्युनिस्टों को धार्मिक बनाना चाहता हूँ । मजदूर बन जायँ/बताएँ अपना धर्म सब । मजदूरी है कर्तव्य हम सबका । पेट पालने के लिए जो कर्तव्य हम धारण करते हैं, वही हमारा धर्म है । वह है मजदूरी । क्या नहीं ? 👍
(उग्रनाथ)

बुधवार, 17 जुलाई 2019

मजदूर

।। एक मजदूर का धर्म और कर्म।।
वैसे तो मजदूर कोई भी हो सकता है चाहे वह किसी भी जाति, समाज या राज्य का हो। एक मजदूर इन सभी के बंधनों से मुक्त होता है।
चाहे कोई हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिक्ख हो, ईसाई हो, दलित हो, सवर्ण हो, अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक हो सभी ने कभी न कभी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मजदूरी किया होगा। मजदूरी करने के लिए किसी विशेष जाति या मजहब, समाज या समुदाय को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती, एक मजदूर के लिए कर्म ही प्रधान होता है। निरंतर कर्म करते रहना ही एक मजदूर का परम कर्तव्य होता है, परंतु अक्सर यह देखा गया है कि निरंतरता हमेशा बनी नहीं रहती।
एक मजदूर अक्सर जाति- पांति, वर्तमान में व्याप्त तथाकथित धर्मों, वैचारिक, सामाजिक व आर्थिक असमानता के कारण अपने पथ से विमुख हो कर राजशाही के विषैले कुएं में डूब जाता है।
और इसका मुख्य कारण है कि मजदूर का कोई संवैधानिक, सर्वव्यापी धर्म के आस्तित्व का ना होना। यदि मजदूरों का भी कोई व्यापक धर्म होता और उस धर्म का पालन करने के लिए विशेष विचारधारा होती तो कोई मजदूर कभी पथभ्रष्ट नहीं होता और निरंतरता हमेशा बनी रहती।
आवश्यकता है एक ऐसी विचारधारा की जो व्यक्ति को मजदूर बनाए रखे और एक पहचान की जिससे कि विचारधारा को लागू किया जा सके। पहचान को बनाए रखने के लिए ही आज इतने धर्म आस्तित्व में आये हैं, या समझ लीजिए कि पहचान को बनाए रखने के लिए जो विधि कार्य करती है उसी को धर्म कहा जाता है।
    तो क्यों ना एक ऐसा सर्वव्यापी धर्म हो जिससे कि कर्म प्रधान व्यक्तियों का आस्तित्व कायम रह सके? क्यों ना एक एक नए धर्म को आस्तित्व में लाया जाये जिसे मजदूरों के धर्म की संज्ञा दी जा सके और एक पहचान मिल सके?

मजदूर आंदोलन

।। एक मजदूर का धर्म और कर्म।।
वैसे तो मजदूर कोई भी हो सकता है चाहे वह किसी भी जाति, समाज या राज्य का हो। एक मजदूर इन सभी के बंधनों से मुक्त होता है।
चाहे कोई हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिक्ख हो, ईसाई हो, दलित हो, सवर्ण हो, अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक हो सभी ने कभी न कभी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मजदूरी किया होगा। मजदूरी करने के लिए किसी विशेष जाति या मजहब, समाज या समुदाय को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती, एक मजदूर के लिए कर्म ही प्रधान होता है। निरंतर कर्म करते रहना ही एक मजदूर का परम कर्तव्य होता है, परंतु अक्सर यह देखा गया है कि निरंतरता हमेशा बनी नहीं रहती।
एक मजदूर अक्सर जाति- पांति, वर्तमान में व्याप्त तथाकथित धर्मों, वैचारिक, सामाजिक व आर्थिक असमानता के कारण अपने पथ से विमुख हो कर राजशाही के विषैले कुएं में डूब जाता है।
और इसका मुख्य कारण है कि मजदूर का कोई संवैधानिक, सर्वव्यापी धर्म के आस्तित्व का ना होना। यदि मजदूरों का भी कोई व्यापक धर्म होता और उस धर्म का पालन करने के लिए विशेष विचारधारा होती तो कोई मजदूर कभी पथभ्रष्ट नहीं होता और निरंतरता हमेशा बनी रहती।
आवश्यकता है एक ऐसी विचारधारा की जो व्यक्ति को मजदूर बनाए रखे और एक पहचान की जिससे कि विचारधारा को लागू किया जा सके। पहचान को बनाए रखने के लिए ही आज इतने धर्म आस्तित्व में आये हैं, या समझ लीजिए कि पहचान को बनाए रखने के लिए जो विधि कार्य करती है उसी को धर्म कहा जाता है।
    तो क्यों ना एक ऐसा सर्वव्यापी धर्म हो जिससे कि कर्म प्रधान व्यक्तियों का आस्तित्व कायम रह सके? क्यों ना एक एक नए धर्म को आस्तित्व में लाया जाये जिसे मजदूरों के धर्म की संज्ञा दी जा सके और एक पहचान मिल सके?