मंगलवार, 28 मई 2013

Nagrik Posts 28 May, 2013

* कहाँ कहाँ तक सिजदे करें ?
कब हम शीश उठाकर चलें ?

* अच्छा , एक और बात बताया जाय जो कभी कभी खुराकता है क्योंकि ताज़ा है | वर्ना हम तो कितना भूल गए | म्यामार विरोधी प्रदर्शन जो लखनऊ में हुआ बुद्धा पार्क को भी क्षति पहुँचाई गयी | उस हिसक उपद्रवी जुलूस के किसी एक भी अपराधी पर पुलिस हाथ दाल पायी ? उसकी हिम्मत ही नहीं है इस सरकारके अंतर्गत | क्या मुसलमानों की कोई माँग सरकार के पास गयी कि दोषी मुसलमानों को सजा दी जाय ? तो कैसे मान लिया जाय कि ये न्याय चाहते हैं | हाँ अपनी बात ज़रूर ऊपर रखना चाहते हैं | ठीक है कि जो पकडे जाते हैं कोर्ट से सजा पाने से पहले अपराधी न मने जायं | लेकिन भारतीय न्याय व्यवस्था में आप यह भी भरोसा नहीं दिल सकते कि जो छूट गए वे अपराधी नहीं थे | जनता सब समझती है | वह यह कि शक के आधार पर इन्हें पकड़ा जाय तो मानवाधिकार का हनन और यदि ये स्पष्ट रूप से दोषी हों तो वह उनका मज़हबी आस्था का मामला | क्या तसलीमा नसरीन और रुश्दी के साथ अपराध व्यवहार क्या कोई छिपी हुई चीज़ है ? ऐसे ही आतकी कार्यवाहियों पर जब इनके संगठन स्वयं उसका ज़िम्मा लेते हैं तो आप लीपा पोती क्यों करते हैं ? या अल्लाह पाक ने भेज ही इसी लिए है कि आप मुसलमानों कि रक्षा करो और मुसलमान अपने पैगम्बर और किताब कि हिफाज़त में जाने लेते देते रहें ?

* an old poem :--
* वह देखो कौआ
कंकडें कुछ चुन रहा है
कहीं पानी का स्तर
कम हुआ होगा !
[ugranath]

* धार्मिक होने का मैं कोई सहज, सार्थक, बोधगम्य मतलब या परिभाषा निकालना चाहता हूँ :--
कुछ उसूल का आदमी , किन्ही उसूलों वाली औरतें !
अर्थात, धर्म का अर्थ हुआ उसूल / सिद्धांत |

* दुनिया के नास्तिको , एक हो !

* आभासी संस्था -
असहमत
L - V - L /185 / L , Aliganj , Lucknow .
कुतर्क [ कुर्वन्तु तर्कः ]
अलग राय,
अलग दिशा ,
अपवाद ,
अनवाद , अनवादी [ Cantankerous ] = अनवाधी [ देहाती भाषा में झगडालू ANVADHI ]
कृपाण [ भी संस्था का अच्छा नाम हो सकता है ]
उल्टी दुनिया  
परलोक [ Other World ] , I feel , I do not belong to this world  .
उत्पादकता ,

* पाखंडी जीवन ( पाजी = Low, mean, wicked person ), लोकभाषा में - बदमाश |
" पाजी संस्थान "  / संचालक - उग्रनाथ नागरिक

* हनुमान जी हमारे कष्ट क्या निवारेंगे, उल्टे आज बड़े मंगल के दिन उनके वजह से लखनऊ का जनजीवन संकट में हो गया है |

* व्यापारिक अख़बारों का स्टाफ उस पात्र के प्रति वफादार- ईमानदार हो ही नहीं सकता | होना भी चाहे तो किसके प्रति सत्यनिष्ठ हो ? किस उसूल या किन सिद्धांतों के प्रति ? क्या विज्ञापन बटोरू नीति के प्रति ? वह तो वह हो नहीं सकता , यदि पत्रकार है वह ?

* मियां की  जूती, मियाँ का सर |
और थोडा अक्ल लगाओ तो कह सकते हो - तुम्हारा ही तो दोहा है -
उत्तम खेती माध्यम बान ,
निषिध चाकरी भीख निदान | ?
तो खेती जो उत्तम है, वह तो सदा से ही हमारे हिस्से में रही | मज़ाल है कोई सवर्ण हल के मूंठ पकड़ लेता ! तो नौकर तो सदा ही रहे हम | आप लोगों की सेवा करना तो हमारा धर्म है | आजकल उसी को service कहा जाता है | असली खेती तो वहीँ पर है | और उस पर हमारा हक है | वह हमारे लिए सनातन से आरक्षित रहा है | तो आज तो हमें 35 - 50 नहीं पूरा का पूरा कोटा हमें मिलना चाहिए | तुम लोग निषिध चाकरी [ हमारी ], मध्यम बान, और भीख निदान का पेशा करो  |  

जैसे इन्होने लिखा झूठ - यत्र नार्यस्तु - - - , तो तुम भी झूठ लिख दो - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते भगन्ते तत्र देवताः |
 

* प्यार तो हुआ लेकिन परवान नहीं चढ़ा |   [] kathan ]

* शादियाँ यदि बारातियों के लिए Tourism का हिस्सा न बने, तो शायद इस पर खर्च में कुछ कमी आये |

* फिक्सिंग पर कुछ लोग बवाल किये हुए हैं, मानो यह कुछ अनैतिक कर्म हो | मेरी समझ में तो जैसे यदि कोई Fixed Rate की दुकान हो, तो मैं तो इसे अच्छी बात ही समझता हूँ | या कोई औरत किसी पुरुष से, कोई पुरुष किसी औरत से फिक्स हो तो शादी इसी को तो कहते हैं ? और इसे तमाम लोग अच्छा रिवाज़ ही बताते हैं | फिर गड़बड़ कहाँ है ? Quickfix या इसी प्रयोजन से फेविकोल कितनी सारी तो खरीदी जाती है स्टेशनरी और हार्डवेयर की दुकानों से |
लगता है देश पर अन्ना- अरविन्द का इतना अन्धमोह छा गया है मुल्क पर कि यह अपने लालों -ललनाओं कि अच्छी कारगुजारियों को पहचान नहीं पा रहा है |  

* कुछ हँसना भी सीखो संजू | मुसलमानों की नक़ल मत करो | हिन्दू धर्म की तुलना कमज़ोर इस्लाम से मत करो जो अपनी रक्षा के लिए मनुष्यों का मोहताज हो | इसे कट्टरपंथी मत बनाओ | इस्लाम  बहुत पसंद हो तो उसे ग्रहण कर लो जो कि धर्म नहीं मज़हब है | इसे ऐसे ही रहने दो सारे मनुष्यों के लिए - पुरुषोत्तम राम के लिए तो औघड़ शंकर के लिए | हिन्दू मज़हब नहीं है, न इसे ऐसा बनाने की कोशिश करो |
कुछ हँसना भी सीखो संजू | मुसलमानों की नक़ल मत करो | हिन्दू धर्म की तुलना कमज़ोर इस्लाम से मत करो जो अपनी रक्षा के लिए मनुष्यों का मोहताज हो | इसे कट्टरपंथी मत बनाओ | इस्लाम  बहुत पसंद हो तो उसे ग्रहण कर लो जो कि धर्म नहीं मज़हब है | इसे ऐसे ही रहने दो सारे मनुष्यों के लिए - पुरुषोत्तम राम के लिए तो औघड़ शंकर के लिए | पवित्र पंडित के लिए तो गंदे भंगी के लिए समान रूप से स्वीकार्य | इसे शुद्ध और आर्य मत बनाओ | हाँ आपका ' मज़हब' हो सकता है आर्य लेकिन उसमें देवी देवता अवतार मूर्तियाँ कहाँ हैं ? किसकी रक्षा करने चले हो ? हमारा ईश्वर सबका रक्षक है तो अपनी भी रक्षा कर लेगा | 'हिन्दू कोई मज़हब नहीं है, न इसे ऐसा बनाने की कोशिश करो |
" सर्वे भवन्तु सुखिनः " का अर्थ मालूम है संजू ?
एक टीवी कार्यक्रम ' बहुत खूब ' पर एक कवी ने बताया :--
सर्वे हुआ , सभी लोग सुखी हैं |

* मैं किसी से झगडा करूँ यह तो मुझे अच्छा लगता है | लेकिन कोई मुझसे झगडा करे, यह मुझे अच्छा नहीं लगता |

* वैसे धर्म अफीम है नहीं | लेकिन धर्म अफीम भी है | ऐसा, कोई कहे या नहीं, किसी ने कहा हो या नहीं, यह तो धार्मिक जनों के उटपटांग बात व्यवहार से ही पता चल जाता है |    

* और देहाती महिला लोक गायन में भगवान् श्री राम के लिए पर्याप्त गालियाँ दिए जाने की व्यवस्था है | सीता को वनवास देने के कारण |

* बूढ़े न होते तो दादा दादी की मिजाजपुर्सी के बहाने कोई बात कैसे करता ? बात आगे कैसे बढ़ाता ?

* नास्तिकता का शोर तो क्या मुझे तो इसकी तूती के आवाज़ भी सुनाई नहीं देती | अतः हमारा कान फोडू स्वर जिसे सुनाई दे या दिया , उसके मुंह में घी - शक्कर ?

* वह मित्र ही क्या जिससे जब तब आये दिन झगडा न संपन्न हुआ करे ?
मेरे तो अनेक मित्र हैं |

* पति कभी कंजूस नहीं होते | उनकी पत्नियां उन्हें ऐसा बना देती हैं |

* बड़ा सुख है | अच्छा है जो हम दोनों में मोबाईल सम्बन्ध नहीं है |

* अख़बारों में लेखों के नीचे कोष्ठक में लिखा रहता है - [ ये लेखक के अपने विचार हैं ]
-- इससे ज्ञात होता है कि लेखकों के ' अपने विचार ' भी होते हैं | [ aur sampadakon ke nahi hote ]

* भारत की वाम पार्टियों को कुछ दिनों के लिए राजनीतिक क्षेत्र से हट जाना चाहिए, क्योंकि हम जैसे आम लोग दार्शनिक, विचारधारा स्तर पर इनमे और नक्सालियों में ज्यादा भेद नहीं करते और नक्सली काफी बदनाम हो चुके हैं | कोई किताब लेकर, बैठकर मार्क्सवाद और माओवाद में फर्क ढूंढ कर निकलने नहीं जाता | और यह देखा जा चुका है की वामपंथी सोच के लोग, संगठन, साहित्यिक मंच आदि ही अभी तक सभी नक्सलवादियों के लिए बोलते, उनके लिए आंदोलनरत होते रहे हैं | विनायक सेन आदि की सूची लम्बी है | इसलिए ये भी अब लोकतंत्र में अविश्वसनीय हो चुके हैं | दोनो भाई भाई हैं और कोई अंतर नहीं, जो है दिखावे का है दोनों में |    

* देशप्रेम देशभक्ति चलो खराब है , लेकिन देशविरोध , देश से दुश्मनी तो अच्छी चीज़ नहीं है ? या यह भी सही है ?

* पंडित का काम पंडित करता तो भी ठीक था | अब तो वह काम ठाकुर बनिया , लाला , अहीर कुर्मी सभी करने लगे हैं | देखिये उनके माथे का टीका और भजन कीर्तन मंदिरों में घंटे हिलाना ! यहाँ तक कि दलित भी इस शामिल हैं | अब यह न कह दीजियेगा कि यह भी ब्राह्मणों कि साज़िश है और आप लोग दोष मुक्त हैं ? कुछ ज़िम्मेदारी खुद भी उठाइए, अपनी कमजोरी स्वीकार कीजिये |  

* यह सत्ता और व्यवस्था का दलितपन, देहाती भाषा में चमरपन ही है जो भारत के शौचालय ठीक से नहीं चल रहे हैं, इनकी अव्यवस्था को ढीला और कमियों को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है | सुलभ शौचालयों के सन्दर्भ में बिन्देश्वरी पाठक जी की भूमिका अस्पष्ट है | बस इतना स्पष्ट है की उन्हें अंतर राष्ट्रीय पुरस्कार मिले | हाल यह है कि दबंगई से पांच रु प्रति शौच लिया जाता है और सफाई कुछ नहीं | कहीं तो साबुन,पाउडर भी नहीं दिया जाता | अटेंडेंट यात्री के सामान कि सुरक्षा तो नहीं लेते , पर दरवाज़ों पर एक लोहे की कील भी नहीं लगाते कि झोला टांगा जा सके | ज्यादातर तो दरवाजे ही नहीं होते | यह तो कहिये भारत की पब्लिक है, शेषन और मारकंडे काटजू कि नहीं सुनती और कहीं भी बैठ जाती है | कोई और देश होता तो शौचालय क्रांति हो जाती | भाई लोग बड़ी बड़ी व्यवस्था परिवर्तन की कारगुजारियों और आंदोलनों में लगे हैं | उन्हें फुर्सत और यहाँ तक सोच ही कहाँ ? और कहते हैं औरत का सम्मान हो | औरतों को सफ़र या बहार निकलने में कितनी परेशानी होती है |  कामोद स्वयं साफ़ कीजिये, पानी खुद भरकर ले जाइये, मुंशी बस कुर्सी पर बैठा रहता है | उसका काम केवल पैसा वसूलना है | वह पैसा जाता कहाँ है, जब इनकी साफ़ व्यवस्था के लिए कोई कर्मचारी ही नहीं होता ? इसके लिए जगह ज़मीन तो सरकार ही देती होगी ?

* मुस्लिम समाजवादी पार्टी [ मुलायम सिंह ]
का उ.प्र, में काम काज ठीक ही चल रहा है | ?

* मंदिर मस्जिद अध्यात्म मार्ग बतलाएँ या नहीं, लेकिन शहर के सड़क मार्ग के पहचान - पथ प्रदर्शक की भूमिका ज़रूर निभाते हैं | सीधे चले जाओ | एक मंदिर आएगा | वहाँ से बाएँ मुड़ जाना | सौ कदम चलने पर आपको एक मस्जिद मिलेगा | उसके सामने दायीं और की सड़क पर बस बीस कदम चलोगे तो एक गुरुद्वारा सामने दिखेगा | बस उसी के पीछे " उनका " घर है |

* आखिर इतना हंगामा क्यों है मुसलमानों और मौलवियों और "पीस" पार्टियों की और से ? आखिर वह आतंकवाद में आरोपित थाऔर वह निराधार तो न था ? उससे इतनी सहानुभूति क्यों ? ये तो कहते हैं ये वन्दे मातरम् भले न गायें पर इन्हें मुल्क प्यारा है | तो प्रथम दृष्टया तो वह नफरत का पात्र था, और प्रेम पात्र तो नहीं ही बनता है | वह कैसे मरा जांच चल रही है, लेकिन उसका इनकाउन्टर तो नहीं हुआ ? गौर करने की बात है अपने नाम के लोगों के मुआमलों में कितना त्वरित सक्रिय हो जाता है मुस्लिम समाज, वह मामला कोई भी हो ? और राजनीति उनका पूरा साथ देती है |    

* श्री मान फेसबुक महोदय
नमस्कार
आपसे निवेदन है कि अपने पढ़े लिखे बेरोजगार युवा सदस्यों को यह गोपनीय परामर्श [ सलाह ] दे दें कि जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू में जाएँ तो यदि कोई या कुछ तांत्रिक अंगूठियाँ पहनते हों तो उन्हें निकाल कर पेंट की बाएँ जेब में रख लें, या उन्हें घर पर ही छोड़ आएँ | टीका कुंकुम लगाकर, कलावा पहनकर न जाएँ | वरना यदि मेरे जैसा कोई परीक्षक हुआ तो वह आपकी पढ़ाई लिखाई डिग्री डिप्लोमा कुछ नहीं देखेगा और धीरे से आपको आउटकर देगा | आपकी सारी योग्यता धरी रह जायगी, और आप अपने घर बैठे रह जायेंगे | मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं है, बस उनकी भलाई के लिए बता दिया |      

 उन्हें न हो पर हमें तो अपनी चिंता है | वे स्टेट के खिलाफ , तो स्टेट क्यों न हो उनके खिलाफ ? और ऐसे ही दार्शनिक लाग लपेट के चलते तो ये मनबढ़ हुए हैं | क्योंकि इन्हें तमाम किताबी लोगों का समर्थन प्राप्त है | लाल किताबी उन्हें अपनी और बड़ी आसानी से पल्झा ले जाते हैं, जो नहीं चाहते कि उन्हें ज़रा भी कम विद्वान् मन जाय | हम देहातियों को उनकी बात समझना मुश्किल है | इसे आप क्या कहेंगे कि हम चुप हैं क्योंकि हमें अपनी जान बचानी है ? अब भी आप ऐसे दर्शन को बचने में लगे हैं जो समस्या को दूर करने के लिए समस्याग्रस्त लोगों कि ही जान लेती है | सारी समस्या केवल माओ प्रभावित क्षेत्रो में ही है, अन्य भारत क्या चैन से है | और इसके लिए क्या विशद हिंसा को उचित कहा जाय ? किन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है ? तर्क और औचित्य तो संघ के पास भी है, पर कभी नहीं सुना उनके पक्ष में बोलते ? मानो वे इस देश से सम्बद्ध ही न हों, उनका कोई सरोकार ही न हो | इसलिए कुछ न कहिये | निंदा करके चुप हो जाइये | हमने तो नहीं की निंदा प्रशंसा !  

* कंटक [Cantankerous ]
जो तोको काँटा बुवे ताहि बुए तू फूल |
इस संत सुझाव के पालन में मैं कांटे बोने वालों पर फूल ही बरसाता हूँ | वह भी झौवा भर भर पूरे पूरे गुलाब के, उनके डंठल समेत | गुलाब के पौधे |
     

[ कविता ]
* इतने तो बच्चे हैं
कितनों को प्यार करें ?
इतनी तो औरतें !
#  #

[ कविता ]
कभी दायाँ हाथ
खुजलाता है
कभी बायाँ हाथ ,
न बायाँ हाथ कुछ देता है
न दायाँ हाथ कुछ पाता है
फिर दायाँ - बायाँ हाथ
खुजलाने का
मतलब क्या है ?
#  #

[ कविता ]
* लुटेरे ?
कुछ लोग
चंगेज़ को कहते हैं ,
तो कुछ
अंग्रेजों को ,
मैं पूरे हिन्दुस्तान को
कहता हूँ |
#  #

[ कविता ]
* अरे, वह बात तो  
कहनी छूट ही गयी
चलो, छूट जाने दो |
#  #

[ उम्दा कविता ]

* पता नहीं
कोई कीड़ा है या
तुम्हारी उँगलियाँ ?

#   #
-   - - - - - - - - - -
( मेरा आज का दिन सार्थक हुआ )
- - - - - - - - - -

* अहं ब्रह्मास्मि
असत्य संभाषण
वयं ब्रह्मास्मि
आवाम ब्रह्मास्मि च
सत्य कथनं अस्ति |    

* राजद्रोह ही
प्रगतिशीलता है
एकसूत्रीय,
एकमात्र सिद्धांत  
उनका कार्यक्रम |  

* नमस्ते करो
ये तुम्हारे बाबा हैं
पहचान लो,
प्रणाम करो बेटा
तुम्हे आशीष देंगे |

* बिना कहे ही
मैं तो आपका हुआ
कहने से क्या ?

* मेरी मुस्कानें
तुम पर निर्भर
छीन न लेना |

* शहीद हो जाऊँ ?
इन्ही चोरों के लिए
आज़ादी लाऊँ ?

* जिसने दिया
मैं तो शुक्रगुजार
उसका हुआ |

* आदमी मूली,
आदमी है गाजर
काटते जाओ |

* नहीं बिगड़े
हम नहीं बिगाड़ें
यदि मामले |

* दिन ब दिन
बिगड़ेगी हालत
सुधर कर |

* कविजन तो
सत्य से साक्षात्कार
करवाते हैं |

* कँटीली आँखें
काली कलकत्ता की
नाक नुकीली |

* धर्म रक्षक ?
बन्धु, रहम खाओ
धर्म को बख्शो |

* मोबाईल क्या
इतना ज़रूरी था
जीने के लिए ?

* एक दिन तो
बहुत तेज़ धार
पानी बरसा |

* चला जाता था
बहुत दूर तक
अब दूभर |

* क्या दोगे मुझे
उर के बदले में
ह्रदय देना |

* कोई मुझसे
करता तो है प्यार
बताता नहीं ,
हिचकियाँ मुझको
मौनव्रत उनका |

मंगलवार, 21 मई 2013

Nagrik Posts 21 May 2013


* रंग महलों के 
बिस्तरों की सलवटें 
यदि जान ले लें तो ?
- - - - - -
[ Ambiguous / Gibberish ]

क्या करें भाई साहेब , कोई आता ही नहीं | न लिखता है न पढ़ता है | आलोक जी ने इकलौता पोस्ट डाला था | फिर बहुत दिन बाद टोह लेने के लिए मैंने उन्हें छेड़ा - Is there any suspended thought ,Alok ji ? कोई स्पंदन नहीं | गुरजीत जी का LIKE आया , बस | वस्तुतः वह एक समय की आवश्यकता थी  जो न रही , न वे लोग रहे | जो हैं उनकी नई प्राथमिकतायें हैं | हरजिंदर काम में हैं, मैं अपने कुछ ग्रुप्स मुर्गी के अंडे की तरह " से " रहा हूँ, प्रमोद जी के अपने आग्रह हैं | सुना है शहीद स्मारक में वह " शनिवार गोष्ठी " चला रहे हैं | अम्बरीश कॉफ़ी हॉउस आदि सबसे  विलग जनादेश पोर्टल चला रहे हैं | आपके भी विचार आ ही जाते हैं | तो काम तो चल ही रहा है | यह तो आलोक जी का इसके प्रति पुराना मोह था जिसके तहत उन्होंने यह ग्रुप बनाया | फिर जब वह स्वयं इसे छोड़ गए तो कैसे चले यह | एक बात और आप के संज्ञान में लाना चाहता हूँ | हम लोगों के वे दिन कुछ सीखने, जानने सुनने के थे | अब हम सब अपने विचारों पर दृढ़ नहीं तो कुछ स्थिर ज़रूर हुए हैं | कब तक भटकते ? पुराने members हमें हमारे पुराने चेहरों में पहचानते, जो कि हम अब नहीं रहे | परिचय बदल गए तो अपरिचय की स्थिति में वार्तालाप थोडा दुष्कर था | 
आप रेगुलर लिखे तो ! इसे आप अपना ग्रुप बना लें तो चल सकता तो है यह - प्रौढ़ विचारों से युक्त , बिना तू तू मैं मैं के | क्योंकि हम लोग स्वाभाविक रूप से पहले से ही मित्रता भाव से बंधे हैं, एक दूसरे के प्रति सहज स्नेह या कहें आदर - अनुशासन के साथ | ऐसे ही सदस्यों को भरती करें जो कम से कम वार्तालाप के संयम को तो जानें , प्रतिवाद / आन्दोलन उनके कैसे भी हों | चलाइए इसे, अच्छी परंपरा का स्कूल है / होगा यह | और प्रतिष्ठित भी खूब होगा, मुझे विश्वास है | यदि संपादन भारआप उठा लें |
एक तरीका और हो सकता है जैसा अज्ञेय जी ने " मत - सम्मत " स्तम्भ के लिए सुझाया था कि कुछ दिन पत्र अपने सम्पादकीय टीम से लिखायें | उसी प्रकार आप भी इधर उधर से समुचित सामग्री उठा कर इस पर पोस्ट कीजिये | फिर तो वही लोग स्वयं आपसे इसकी सदस्यता माँगेंगे और लिखेंगे | और यह एक उत्कृष्ट समूह बनकर उभरेगा | यह काम आप कीजिये भाई साहेब, बड़ा ही उत्तम venture, साहसिक कार्य होगा यह | अपने अनुभव और संपादन कला को फिर से एक मंच दीजिये | पुराना " हिंदुस्तान " पराने " लखनऊ स्कूल " में तब्दील हो जायगा | बड़ा मज़ा आएगा | मेरा भी स्वार्थ - " नागरिक उवाच " जिंदा हो जायगा यदि उचित हुआ | पंकज चतुर्वेदी को शामिल कीजिये, और भी अनेक हैं , आप उन्हें पकड़ लेंगे | पुरानों [संस्थापकों ] को चाहे बाहर करना पड़े | वैसे भी वे निष्क्रिय हैं | आप ने छेड़ा तो थोडा उत्साह बना | शेष निर्णय आपका - -
[ To Pramod Joshi]       


* Global Secular Humanist Movement  - SAYS =
 Humanists need to participate more and more.   [ AND QUOTED =
THOSE WHO REFUSE TO PARTICIPATE IN POLITICS SHALL BE GOVERNED BY THEIR INFERIORS ."    [ - PLATO  ]   

* अल्लाह - गॉड के बारे में तो कुछ कहना मुश्किल है | इतनी हिम्मत नहीं है मेरी, और हिम्मत हो भी तो कहना नहीं चाहिए, क्योंकि मैं इनकी मान्यता वाले समुदाय में नहीं हूँ | लेकिन ईश्वर-भगवान् के बारे में तो मैं जानता हूँ कि वह " नेति नेति (नहीं नहीं )" है |

* स्वर्ग का बोर्ड लगा है लेकिन स्वर्ग जैसा यहाँ कुछ तो नहीं है !
[ means - स्वर्ग अभिकल्पना मात्र , न की यथार्थ | [ Style of saying ]

* जरूरत है अंडा मित्र की 
मुझे आवश्यकता है मेरे साथ अंडा शेयर करने वाले साथी की |   
डॉक्टर ने मुझे अंडा खाने से मना तो नहीं किया है लेकिन केवल सफेदी वाला हिस्सा ही मेरे लिए prescribed है | अब बाज़ार में ऐसा अंडा तो उपलब्ध नहीं है जिसमे केवल सफेदी ही सफेदी हो | इसलिए एक भी अंडा पूरा ज़र्दी समेत खरीदना पड़ता है | ऐसे में यदि कोई साथी हो जो ज़र्दी खा ले तो मैं भी सफ़ेद भाग खा सकूँ |   

* कोई पैदायशी ब्राह्मण नहीं होता तो कोई पैदायशी दलित भी नहीं होता ,
अथवा  यूँ कहें =
कोई पैदायशी दलित नहीं होता तो कोई पैदायशी ब्राह्मण भी नहीं होता |
लेकिन दलित और ब्राह्मण होते तो हैं भले वे किसी खानदान में पैदा हुए हों | निश्चय ही कुछ लोग उच्च कोटि के तो स्पष्ट है कुछ निम्न कोटि के होते हैं समाज में | ऐसा वे किसी भी प्रकार बने हों, परवरिश के कारण या जींस डीएनए के प्रभाव से [यह शोध मेरे क्षेत्र में नहीं ] | लेकिन तथ्य से इनकार करना तो हठधर्मिता ही कही जायगी | अब दिल्ली या कहीं के बलात्कारियों को कोई उच्च कोटि का तो नहीं कहेगा ? यह अंतर हमें स्वीकार करना , अच्छे बुरे का भेद करना हमें सीखना चाहिए नहीं तो सब घाल मेल हो जायगा | कोई अच्छा क्यों बनना चाहेगा यदि उसकी कोई पहचान ही न होगी ? क्योंकि बुराई में तो बड़ा आनंद है न ? और ऊपर से इन्हें समान सम्मान दिया जाय तो फिर कहना क्या ? कोई आन्दोलन इसे नज़र अंदाज़ कर रहे हैं , इसलिए उनसे पृथक यह पोस्ट लिख रहा हूँ कि समाज में ब्राह्मण और दलित , ऊँच और नीच तो हैं ही | निर्विवाद 

* तो कुछ झूठ बोलना ही सीख लो ब्राह्मणों से , उन्ही की तरह लन्तरानियाँ उड़ाना | वह योग्यता मुझमे नहीं लेकिन मसलन द्रोण का अंगूठा कुत्ते ने काट खाया था इसलिए एकलव्य ने उन पर दया करके अपना अंगूठा काट कर उनकी हथेली पर लगा दिया था | पुष्पक विमान तो था पर उसका चालक दलित दुसाध था | शबरी प्रकरण तो नाटक था | शबरी, बूढ़ी ब्राह्मणी, ताज होटल की रिटायर्ड शेफ थी पाक कला में कुशल सिद्धहस्त | और वह बेर नहीं स्वादिष्ट नूडल्स थे जिसे उसने राम लखन को खिलाये | राम कुछ आधुनिक थे सो खा गए, लखन दकियानूसी थे इसलिए फेंक दिया | जब शबरी ने उन्हें देसी संजीवनी बनाकर दिया तब उन्होंने खाया | राम लखन के तीर धनुष दक्षिण टोला के रहमनिया लोहार ने बनाये थे तब वे युद्ध जीत पाए | पर्ण कुटी वास्तव में एस्बेस्टस शीट का था , उसका पूरा Fabrication & फिटिंग - फिक्सिंग Maya Structural Co . Ltd का था | इत्यादि इत्यादि | यारो जब ऐसे ही झूठ-झाठ अफवाह फैला कर इन्होने हजारो साल इतने मनुष्यों को गुलाम बनाया | तो क्या हम तुम सब मिलकर ऐसे हजारों झूठ ईजाद नहीं कर सकते जिससे ब्राह्मणों का साम्राज्य धराशायी हो जाय, और इतने लोग जो फेसबुक पर और इतर जगहों पर आंदोलनों में दिन रात लगे हैं वे कुछ अमन चैन सुख शांति से जी सकें | दुःख के दिन तो रे भैया   
और यह तो बहुत ज़रूरी है कहना कि पहले ब्राह्मण लोग ब्रह्मा के मुँह से पैदा होते थे | पर उन्होंने इतना पूजा पाठ यज्ञ हवन किया, देवी देवताओं, श्री राम चन्द्र के पाँव पखारे कि वे ब्रह्मा के पैर से पैदा होने लगे और जो दलित पहले पैर से जन्मते थे उनके मुँह से निकलने लगे | इसलिए अब दलित पूज्य हैं , ये ही विप्र हैं | सही है पूजहि विप्र सकल गुन हीना | दोहा चौपाई वही , उनका प्रभाव बदल जाय |         


* इतना लिखता हूँ तो डरा डरा सा रहता हूँ | कहीं मैं किसी का " मुंशी " न कह दिया जाऊँ ?

* हरि अनंत     
हरि कथा अनंता
सुनो न संता |  
[ अर्थात, इस विवाद का कोई अंत नहीं है,
इसलिए हे संत इसे मत सुनो ]
[सुनो प्रचंडा ]

* दूर हो तुम 
तो बहुत अच्छा है 
सर का दर्द !

* सोचता हूँ क्या 
पहनकर जाऊँ 
उनके द्वार ?   

सोमवार, 20 मई 2013

Nagrik Posts 20 May, 2013


* मुझे होने वाला था 
उनसे 'प्यार' ,
होते होते हो गया 
मुझे उनसे 'प्रेम' |

* आप अच्छे लगे तो 
आपका घर, आपका द्वार 
खिड़की दरवाज़ा सब 
अच्छा लगने लगा  
आपके हाथ का व्यंजन, 
आपकी चाय, सब 
आपकी झिड़की |
#   

* इसलिए मैं निष्कर्ष निकालता हूँ  मनुष्य के कल्याण के लिए भी किन्ही मनुष्यों की हत्या उचित नहीं है | इससे अच्छा है ऐसे कल्याण किये ही न जायँ, ऐसे कल्याण की बात सोची ही न जाए | 

* मैं जो कुछ भी कहता हूँ यह जान कर कहता हूँ कि उन्हें कोई मानने नहीं जा रहा है | 

* फिर , हर आदमी हर काम करे ही क्यों | जिसकी जैसी प्रेरणा हो करे | यह समझना  तो भूल होगी कि चिंतन कार्य कुछ फ़िज़ूल का काम है, इसमें कोई ऊर्जा नहीं लगती थकान नहीं होती, बड़े आराम का काम है यह | ज़नाब चिन्दियाँ उड़ जाती हैं, यदि ईमानदार हैं आप | फिर भी आयेंगे क्यों नहीं , किसी सार्थक काम में | यदि भरोसा दिल दें की उसमे आपका कोई नितांत निजी स्वार्थ निहित नहीं है ,और वह सचमुच सार्वजनिक कार्य है | व्यवधान तो होगा पर समय निकाला जा सकता है      [Shrinivas]

नर्सरी क्लास में छोटे बच्चों से पूछा गया-भगवान कहां है?
एक बच्चे ने हाथ उठाया, बोला- मुझे पता है!
टीचर ने कहा- अच्छा बताओ।
बच्चे ने बताया- हमारे बाथरूम में।
एक पल के लिए टीचर चुप! फिर संभलते हुएबोली, तुम्हें कैसे पता?
बच्चा बोला- रोज सुबह जब पापा उठते हैं,बाथरूम का दरवाजा पीटते हुए कहते हैं। हेभगवान! तुम अब तक अन्दर ही हो!

* कोई MBA है कोई ENGINEER है कोई डॉक्टर, IAS है , लेकिन कोई भी अपनी शादी करने में समर्थ नहीं है | यह उनके बाप दादा करते हैं | और उसी दकियानूसी तरीके से कि लगता ही नहीं ये देश के अग्रगामी लोग हैं |

* सरकारों को कम से कम हिंसा और न्यूनतम कर पर गुज़ारा करना चाहिए |   

[ विज्ञान के खिलाफ }
एक बार एक नागरिक जी छत से गिर गए | कुछ दुरुस्त होते ही नामज़द रिपोर्ट लिखवाने थाने पहुँच गए |
" मुझे पटकने में दोनों की सम्मिलित साज़िश थी | मैं छत पर चक्कर न्रत्य [सूफी] कर रहा था | इतने में Centrifugal Force [ केंद्र बाह्य बल ] ने मुझे बाहर फेंक दिया | फिर उसके साथी Law of Gravitation ने मुझे ज़मीन पर पटक दिया | "

* अनुमान [ही] है कि अब सभ्य लोग शादियों में सड़कों पर नाच गानों, बैंड बाजों, डी जे वगैरह से शीघ्र ही ऊब जायेंगे और इन्हें बंदकर देंगे | शायद हिन्दू विधि की रतजगा शादियों से भी इनका कुछ मन उचटे ?  

* जो भी काम है हमारा सब सरकार के विरोध में है | इसके अतिरिक्त तो कोई काम मुझे सूझ नहीं रहा है ! [ [ इस पंक्ति के कुछ गहरे व्यंग्यात्मक निहितार्थ हैं ]

*दाढ़ी बनाना आया नहीं, चले हैं दुनिया बदलने ! 
or ,
शेव करने का शऊर नहीं , चले हैं दुनिया बदलने !  


* तार्किक दृष्टि अलौकिक दृष्टि से अधिक ताक़तवर होती है और प्रामाणिक |
[ दरअसल , दृष्टि कोई अलौकिक नहीं होती | वह तो कहने और मूर्ख बनाने की बात है | [To Niranjan]

* हमसे और नीति की बात !
गधा - घास संप्रीति की बात ?        

* यह 'वाद ' वह वाद और तमाम वादियाँ ,
इन्ही के बीच से ही रास्ता निकले कोई |

* समाजवाद परिवारवाद के रास्ते गुज़रता है |

* घर में बिजली के करेंट मारने के कई सामान बाज़ार से आ गए हैं - हीटर , कूलर - - | मेरा तो सी पी यू भी मुझे करेंट मारता है | 

* संदीप वर्मा लखनऊ आये नहीं कि मेरी सिगरेट की डिब्बी डर से दुबक गयी | पिछली बार मुंबई से आकर उन्होंने उसे बहुत डाँटा था | आज सुबह से अभी 9 -40 पर मेरी पहली सिगरेट थी, जब कि अब तक तो चार पी चुका होता | सचमुच यह यदि मुझसे छूट जाय तो यह मेरे जीवन की नई शुरुआत होगी |   

* पार्टी कार्यकर्ता हैं | हाँ कविता - कहानी भी लिख लेते हैं |

* जैसे मुलायम सिंह समाजवादी , वैसे हम मार्क्सवादी |

* अमावट आ गया जब मार्केट में आम से पहले ,
तो क्यों मजदूर मजदूरी न माँगे काम से पहले ?
[ इसीलिये  लेखक = लेखन मजदूर लेखक संगठनों = ? ? का सदस्य होता है | विचारधारा को मारो गोली [ उसे कहीं नहीं देखा जाता, राजनीतिक पार्टियों में भी नहीं ] जहाँ से नाम संवर्धन - पिष्टपेषण प्राप्त हो तो उसका मंगल गान भला लेखक, वह भी भारतीय लेखक भला क्यूँ न करेगा ?]
संघवादी तो छोडिये, अब गाँधीवादी लेखक संघ में जाकर कोई क्या पायेगा ? चारो तरफ से लताड़ दुत्कार और दलितों की मार ?
लेकिन यह सब बड़े लोगों की बातें हैं | मैं कविकीय - लेखकीय दौड़ में नहीं हूँ | उनका एक कहना है कि जिस तरह का लेखन वे करते हैं उसमे बड़े खतरे हैं और संगठित न हों तो उन्हें लिखने ही न दिया जाय |पर इसे तो अभिवैयक्तिक मंच से भी लड़ा जा सकता है,लोकतंत्र के | असल बात " संघे शक्ति कलौयुगे " का है | अध्यक्ष - महामंत्री -सचिव आदि हैं तो ज़ाहिर है बड़े लेखक हैं फ़िराक , पन्त , महादेवी , या निर्मल वर्मा से | तो जब लिखने से पहले ही लेखक का रुतबा और राजनीतिक सत्ता के पथ प्रदर्शक होने का हनक मिलता हो तो क्यों न जाएँ संगठन में | संगठन की सदस्यता ही आपके लेखक होने का प्रमाणपत्र है | तो वही उर्दू का शेर :--
अमावट आ गया जब मार्केट में आम से पहले ,
तो क्यों मजदूर मजदूरी न माँगे काम से पहले ?
हाँ यह इसका ख़ास गुण है और उपलब्धि भी | यही क्रिया कर्म इसे जिंदा और गतिशील बनाये हुए है | लेकिन इनमे इतर स्वतंत्र लेखकों को अमान्य - दरकिनार क्यों किया जाता है ? यह पार्टी का कारकुन क्यों हो जाता है ? अंततः तानाशाही रवैये में क्यों ढल जाता है ? बटोही के सवाल का जवाब है - यहाँ निश्चय ही न सिर्फ कापियाँ जाँची जाती हैं बल्कि गतिविधियाँ भी आँकी जातीं , कैमरे के तले रहती हैं | उदय प्रकाश ने गोरखपुर में क्या किया ? मंगलेश डबराल ने राकेश सिन्हा आयोजन में भाषण क्यों दिया ? मित्र ! ऊपर से सब ठीक ठाक है, भीतर क्या है बहुत मुश्किल है जानना | [ Keshav Pandey]
मेरे निजी ख्याल से लेखक कभी बंधन में नही रह सकता | " प्रतिबद्ध " विशेषण से महिमामंडित करने से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता | यूँ भी सच्चा लेखक किसी का दुश्मन नई होता, और दोस्त तो किसी का नहीं | होता है तो मनुष्यता का मित्र और मूर्खता का शत्रु | इसे यूँ समझें कि यह भी क्या बात हुई कि यदि मैं आलोचना कर दूँ तो मैं आप का दुश्मन हो गया, और प्रशंसा कर दूँ तो दोस्त ? करनी तो नहीं चाहिए निजी बात सार्वजानिक मंच पर मैं वाम - दक्षिण -दलित -सवर्ण - गांधीवाद -राष्ट्रवाद सबमे मीन मेख खोद खोद कर निकाला करता हूँ, लेकिन मैं हूँ इनके अंश भर इनके परम मित्र | यहाँ तक कि नास्तिकता, जिसका मैं अपने को अलमबरदार कहता हूँ उसमे भी पेंच निकाला, खिल्ली उड़ाया करता हूँ | हाँ , याद आया लेखक मूलतः व्यंग्यकार होता है | ऐसा मेरा ख्याल है | लेकिन मैं लेखक नहीं हूँ | लिखता ज़रूर हूँ - अपनों को चिट्ठियाँ | [sri niwas rai shankar]
भूपट जी ! इससे इन्कार नहीं है | समूह संगठन के महत्व को मानना तो पड़ेगा, अन्यथा इतने बुद्धिमान, पढ़े लिखे लोग क्या निरे मूर्ख हैं जो संगठनों / पार्टियों में है ? हमेशा से रहे हैं | कुछ कुछ यह मुझे जींस/ डी एन ए / का मामला लगता है | जैसे मुझे व्यक्तिगत स्वातंत्र्य ज्यादा प्रिय है | इसमें मैं ज्यादा मुखर, भरपूर क्रियाशील हो पाता हूँ | संगठनों में हूँ, लेकिन जड़ीभूत सम | शायद पृथक जी का भी यही हाल है कुछ - उन पर उनके अध्ययन का मनोबल अतिरिक्त है |    


* जबसे बैल गए, बैलगाड़ी गयी, तब से यही नहीं याद रहा कि बैल " त ता " कहने पर किस ओर मुड़ते थे और " वो वो " कहने पर किस ओर ? कब दाहिने, कब बाएँ ?   

* किसी को गुरु बनाना, फिर उसका अन्धतः अनुकरण करना एक समस्या तो है ही, लेकिन इसके पीछे भी मूल में एक समस्या है - महानुभावों में गुरु बनने/कहलाने की चाह, शिष्यगण समूह बनाने की ललक, पाँव पुजवाने- गुरु दक्षिणा पाने की लालच | मैं बहुत दुखी हुआ यह देखकर कि ओशो जैसा नवीन प्रवाचक भी गुरु [ सदगुरु कह देते हैं अपना सर बचने के लिए ] की महिमा गाने से अपने को नहीं बचा पाया |            
[ मेरी निजी पूरी कोशिश है इन दोनों अवगुणों से अपने को बचाने की |]

* प्लान बनाया 
दिमाग खर्च किया 
तब तो हुआ ?

* कोई बताये 
खेल है या व्यापार 
आई पी एल ?

* जो भी हो जाय 
प्रेम के नाम पर 
वह कम है, 
ईश्वर के नाम से 
तो कुछ भी संभव |

* कब बनोगे 
ब्राह्मण , मेरे भाई -
दलित जन ?

* कभी इनके 
झाँसे में मत आना 
प्रतिमाएँ हैं |

* कितना सोचूँ
मन तडपत है 
जितना सोचूँ | 

* हुआ तो है ही 
होने वाला भी तो है 
हो ही रहा है !

* क्या फ़िज़ूल की 
बातें करते हो जी 
ऐसा नहीं है |

* कवितायेँ हैं 
संवाद का माध्यम  
बातें करतीं |

* टालते जाओ 
मिलने का समय 
प्रतीक्षानन्द ?

* आया रे आया 
हाइकु  जपान से 
लघु कविता,
और चटपटाता    
चाऊमिन चीन से |

* एक ब्राह्मण 
सबका किरकिरा 
दूजा मैकाले | 

* अपनी वाली 
तो हम हाँकेंगे ही 
सुनो न सुनो !

* बदनामी का 
सम्बन्ध बन जाय 
तो आनंद आये |

* उनका कहीं 
मन नहीं लगता 
मेरा भी नहीं |

* बनाया ? 
ठीक है ईश्वर ने तुमको 
और दुनिया को बनाया 
इसलिए उसकी पूजा करते हो,
गुण गाते हो, बहुत अच्छी बात है | 
लेकिन दुनिया में जिन लोगों ने 
तमाम कुछ उपयोगी चीज़ें बनायीं,  
जिन्हें तुम रोज़ इस्तेमाल करते हो, 
जिनके बगैर जीवन दूभर है तुम्हारा ,
बिजली, बल्ब, पंखा, कूलर, ए सी,
टी वी, फ्रिज, सायकिल, मोटर सायकिल, कार 
बनाने वालों को कभी प्रणाम किया, धन्यवाद दिया ?
टेलीफोन, जहाज़, हवाई जहाज़ का आविष्कार 
करने वालों के नाम तो तुम्हे पता ही नहीं होंगे ,
और दुनिया को सजाने- सँवारने वाले विचारकों 
दार्शनिकों, धरा के कर्मकारों चर्मकारों 
अरे हाँ, याद आया - जूते चप्पल बनाने वालों की 
कितनी पूजा की तुमने ?
धिक्कार है तुमको, ईश्वरप्रेमियों !
# # #                 

[ पाँच पतियों से चार पत्नियों तक की सभ्यता की यात्रा ]
सोचता हूँ कैसे हुआ होगा यह सब ? द्रोपदी का प्रकरण बताता है कि पहले औरतों को 5 पति रखने की सुविधा थी | फिर सभ्यता के चलते 4 फिर 3 फिर 2 फिर एक पर आये होंगे | फिर सभ्यता आगे बढ़ी [ नीचे गिरी या ऊपर चढ़ी, इसका निर्णायक मैं नहीं ], तो अब पुरुषों की बन आई होगी | पहले कहाँ एक बटे पाँच पत्नी का हिस्सा पाते थे, अब पूरी एक पत्नी पाने लगे होंगे | फिर सभ्यता आगे बढ़ी तो [ नीचे गिरी या ऊपर चढ़ी, इसका ज़िम्मेदार फिर भी मैं नहीं ] डबल पत्नी रखने लगे होंगे | आगे, दशरथ की तीन रानियाँ थीं | फिर इस्लाम के आते आते उसने अपने लिए चार बीवियां जायज़ कर लीं | [ सभ्यता नीचे गिरी या ऊपर चढ़ी, इसे क मैं नहीं जानता ] |   

* आज के हमारे नेता चाहे जितना ही राक्षसी प्रवृत्तियों से ग्रस्त हों, लेकिन वे कभी रावण कुम्भकरण की तरह ठठाकर राक्षसी हुंकार भरते नहीं देखे गए, जैसा कि हम राक्षसों को रामलीला या ऐसे सीरियलों में देखते हैं | कितने तो सौम्य, शालीन और सभ्यतापूर्ण आचरण करते हैं हमारे नेता ? 

* किसी संस्था का नाम = 
SANSTHA - संस्था =
Secular Atheist Nationalist Scholar and Tarkik Humanist Association .  

शुक्रवार, 17 मई 2013

Nagrik Blog 16 May 2013


[ कविताएँ ]
* मैं जानता नहीं 
और जो जानता हूँ 
उसे जानो 
भूल गया |
# # 

* पहने तो हैं कपडे 
सर से पाँव तक 
सिर पर टोपी 
पैर में जूते !
और कितने 
कपडे पहनें ?
# # 

[ टांका ]
* धूल उड़ेगा 
झाड़ू जो लगाओगे
दुर्गन्ध देगी 
नालियों की सफाई 
तो क्या करोगे नहीं ?

* यह कोई ज़रूरी नहीं है | जो जहाँ काम कर कर रहा है, वह वहीँ काम करे | इसमें कोई बुराई नहीं है | यह क्या बात हुई कि हर मीडिया वाले हर मीडिया में आयें | उन्हें अपने क्षेत्र की उपयोगिता पर भरोसा रखना चाहिए | यह आत्मविश्वास हटते ही पत्रकार जन राजनीति में आने लगते हैं,किंवा [ मानो ] पत्रकारिता कुछ छोटी चीज़ है |

* 6 लाख रूपये वार्षिक आमदनी वाले अब क्रीमी लेयर में नहीं आते | ढाई लाख से अधिक आमदनी वाले पेन्सन भोगी बाकायदा आयकर देंगे | ध्यातव्य है कि इनकम टैक्स देने वालों कि समाज में एक हैसियत होती है, उन्हें क्रीमी मलाईदार माना जाता है | ज़ाहिर है सरकार भी उन्हें अतिरिक्त समृद्ध मानती है तभी तो उनसे आयकर वसूलती है ?

* आजकल घर में अकेला हूँ | सन्नाटे का फायदा यह है कि फोन की घंटी बजती है तो सुन पाता हूँ |

* लोग ग्रुप बनाते हैं फेसबुक पर और मुझे Admin बना देते हैं | I follow lane driving / Absolute Nonsense / नोक झोंक | कहना न होगा इनके निर्माता [ नहीं, निर्मात्री ] स्त्रियाँ ही हैं | राकेश किरन / नीलाक्षी / श्रीमती राकेश | सब मुझे मूर्ख समझती हैं | तो मैंने बुद्धिमत्ता का मार्ग निकाल लिया | तुलना करता हूँ इनकी प्रकृति से | ऐसे ही प्रकृति भी दुनिया बनाती है और हम निरीह, बेचारे मनुष्यों के कमज़ोर [ अथवा सशक्त जैसे भी ] हाथों में सौंप देती है |    

* Close friend वे होते हैं जिनसे बातचीत " बंद " हो ?
 

* व्यापार चोखा 
आयुर्वेद का नाम 
संत का मान |

* रुक भी जाओ 
जब कह रहे हैं 
तो मान जाओ |

* आपने कहा 
बड़ी मंहगाई है 
बेईमानी है ,
बड़ा भ्रष्टाचार है 
हो गयी पोलिटिक्स | 

* कितनी देर 
पाले रहोगे गुस्सा ?
थूको इसको |

* गला खुलेगा 
रोने धोने से ही 
खूब चिल्लाओ |

* फेसबुकिया
दोस्त भी तो दोस्त हैं 
दुश्मन नहीं |

* वह प्रसन्न 
सारा जग प्रसन्न 
मैं भी प्रसन्न |

* बड़े तो हुए  
किताबें पढ़कर 
छोटा भी हुआ |

* अच्छी लगतीं 
जब खिलखिलातीं 
बच्चे बच्चियाँ |

* इष्ट छोडिये 
अनिष्ट नहीं हुआ  
खुदा का शुक्र |

* कोई भी नीति 
काम नहीं करती  
हर जगह |

* तर्क यह कि 
तर्क मत कीजिये 
हर जगह |

* तर्क यह कि 
प्रत्येक मुद्दे पर 
तर्क न करें |

* थोडा लिहाज़ 
करना ही होता है 
महिलाओं का |

* हारता नहीं 
मेहनती मनुष्य 
जीवन जंग ,
पर हार रहा है 
कारण क्या है |

* ब्राह्मणवाद 
आवश्यकता वश 
ज़रुरी हो तो  
मार्क्स-दलितवाद ,
वक़्त की माँग ?

* " कल मिलेंगे "
अभी कल ही कहा ,
आज भी वही |

* फूल पत्तियाँ
नहीं होता है वृक्ष  
जड़ में जाओ |

* सब सवर्ण 
हो जाते तो अच्छा था 
कुछ तो होता !

* तर्क यह कि
काम नहीं करता 
तर्क हमेशा |

* पास आने की 
काबलियत नहीं 
अन्यथा आता |

* दूरी ज़रूरी 
संबंधों में मिठास 
बनी तो रही ! 

* इस पर तो 
हाइकु बना लेना 
बड़ा आसान  -
" रूप तेरा मस्ताना "
टांका बन गया न !

सब उद्भूत 
होता है, नहीं हूँ मैं 
इसका कर्ता |  

सब उद्भूत 
होता है, अद्भुत मैं 
नहीं लिखता |

नहीं लिखता 
मैं कुछ भी अद्भुत 
उद्भूत सारा,
मेरा कुछ नहीं है 
इसमें योगदान |

कुछ किया क्या 
लीक से हटकर 
जो मैं दाद दूँ ?

* दृष्टि नहीं है 
पढ़ाई लिखाई है 
तो उससे क्या ! 

* हम आपके  
यकीनन जानिए 
दुःख के संगी | 

* बुरे दिनों में 
जाने कैसे आ जाता 
इतना धैर्य !

* चलोगे तुम 
जितनी दूर तक 
मैं भी चलूँगा |

* दिया न दिया 
तूने बोल तो दिया 
जी खोलकर |

* मैं तो मैं ही हूँ 
कोई दूसरा नहीं,
न होगा ऐसा | 

* कहानियाँ हैं 
मनुष्यों के तमाम 
पाप पुण्य की |  

* हाथ बढ़ाया 
सबकी ओर पर 
साथ न पाया |  

* हस्तलाघव 
हाइकु बनाना है 
हमारे लेखे |

* ऐसा होना था 
इसलिए हो गया 
ऐसा होना था 
नहीं तो नहीं होता 
ऐसा न होना होता |

* फ्यूज़ वायर 
जैसे होते हैं बच्चे 
माँ - बाप मध्य |

* ईमानदार 
हो ही नहीं सकते 
हम खुद से |

* प्यार के लिए 
क्या क्या करते लोग 
बिलावजह |

* तुमने कहने का मन बनाया है ,
मेरा भी मन है उसे सुनने का |

* मैं समझ नहीं पाता, बेवकूफ लड़के लड़कियों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं ? उन्हें तो उनके आगे पड़ना चाहिए |

* Next Shift = 
अनैतिक जन ( AGAR)
Anti God - Anti Religion

* Love marriage is no better than married Love .

* औरतों में कोई काबलियत नहीं होती | फिर भी मैं उनकी उच्च पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा करता हूँ |

* तो आइये / बुलाइए | मैंने भी तो चिट्ठियों की पत्रिका [ प्रिय संपादक ] जिन्दगी भर निकली | उसके लिए जिया = मरा | पत्र -पत्रकारिता को प्रतिष्ठित करने में लगा रहा | मेरे सारे मित्र पत्र मित्र ही हैं | पर अब ' ज्यादा ' लिखना नहीं हो पाता | फिर fb blog पर तो सार्वजनिक लिखता ही हूँ | निजी बातें फोन कर लेने में हर्ज़ क्या है, जब यह कपूत आ ही गया है ?  [ Sandeep]

शुक्रवार, 10 मई 2013

Nagrik Posts 10 May , 2013


* पांच अक्षर 
कोई बोल देता 
सात अक्षर 
मैं हाइकु बनाता
सुन्दर जोड़कर |

* तरबतर 
स्वेद से जिंदगानी 
जब भी पूरी     
पसीने से नहायी  
धूप खिलखिलाई |  

* सोचना हो तो 
कुछ सोचो ही मत 
सोच आएगा |

* आप हँसे तो 
बहुत अच्छा लगा ! 
फिर हँसो तो |

* क्या बिना खड्ग 
दे दी हमें आज़ादी ,
क्या बिना ढाल ?

* ईंट प्रश्न का 
पाषाण पत्थर से 
उत्तर न दें !

* जो भाव आये 
वही तो मैंने लिखा 
और क्या लिखूं ?

* आदमी बनें 
आदमी ही बनाएँ
जातियाँ नहीं  |

* हमारे बीच 
छत्तीस का आँकड़ा
कायम अभी |
* बाबा कहते -
सोलह दूनी आठ 
हो गयी शिक्षा |
* नौ गुणे नौ हो 
तो चूल्हे में लकड़ी 
जले = इक्यासी |
* नौ गुणे चार 
मतलब निकालो -
मुँह चूमना | 

* धर्म पालन 
सामूहिक चेतना 
अवचेतना |

* कौन साथी है 
धैर्य के अतिरिक्त 
दुःख पीड़ा में ?

* भारतवर्ष 
असह्य आपत्तियाँ
झेलता देश | 

* अत्यंत आश्चर्य और  शोध का विषय है कि ऐसा क्या है इस्लाम में जो अपने सदस्यों को ऐसी घुट्टी पिला देता है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे (?) लोग भी उसकी मान्यताओं पर संदेह नहीं कर पाते ? ऐसा तो नहीं हो सकता कि हर आदमी केवल भय से इस्लाम पर उँगली उठाने का साहस न कर पाए ? ज़रूर उसमे कोई मनोवैज्ञानिक रणनीति, दुआ की दवा, या पागलपन का नश्शा अन्तर्निहित है | उसी को शोध किये जाने कि बात है जिससे विज्ञानं भी मानव जाति को अपना गुलाम बना सके |   

* जो मुझे प्यार करेगा वह ईश्वर - अल्ला - भगवान् को प्यारा होगा |

* पैसा पानी की तरह बहाओ तो बहाओ | लेकिन पानी को पानी की तरह नहीं, पैसा की तरह बहाओ | 

* देश में बिजली की कमी Mobiles के charging के कारण हुई | बात तो बात , SMS Chat अलग से | ज़रा देर बैठे तो कानों में Plug और सुनना गाने | अब इनमें बिजली तो खर्च होती ही है !

* थोड़ी थोड़ी यात्रा
पिछले अप्रेल माह कोलकाता प्रवास के दौरान भाई मनबोध जी के साथ कुछ यात्रायें की | कुछ नोट्स ;-- * सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार | इसका जो अर्थ प्रचलित है वह सत्य नहीं है, ऐसा प्रकाशित पुस्तक से ज्ञात हुआ | इसका सही अर्थ यह है कि सारे तीर्थों की बार बार यात्रा करने में जितनी तरद्दुद - तकलीफें उठानी पड़ती हैं, उतनी तो परेशानियाँ गंगा सागर की एक बार की यात्रा में ही  उठानी पड़ जातीं हैं | किताब से ज्ञात हुआ कि पहले यह घने जंगलों से घिरा था, हिंसक पशु भी थे | रास्ता कठिन था और आज की भाँति आवागमन के साधन भी सुलभ नहीं थे | आज भी कोलकाता से सौ किमी दूर यह तीरथ एक दिन में जाकर लौट आना दुष्कर है | 
यहाँ कपिल मुनि का आश्रम है जिसका जीर्णोद्धार हो रहा है | कपिल मुनि सांख्य दर्शन के जनक थे, जो एक नास्तिक भारतीय दर्शन है | लेकिन उनके आश्रम में दुर्गा - हनुमान आदि समस्त देवी देवताओं -अवतारों की मूर्तियाँ एक लम्बी लाईन में लगा दिया गया है | इस पर अब कुछ क्या कहना !
* १८ अप्रेल को राजधानी से पुरी जाना हुआ | AC chair car थी , सो ठंडा तो होना था, लेकिन समझ में नहीं आता कि डिब्बे इतने ठन्डे क्यों कर दिए जाते हैं कि आदमी सिकुड़ जाय ? क्या सामान्य शीतलता यात्रियों को नहीं दी जा सकती ?               
* अब यहाँ एक टिप्पणी अप्रिय हो सकती है | मैंने यह अनुभव किया कि समाज में दलित कैसे बनते हैं, कल्पना किया कि दलित कैसे बने होंगे ? किसी किताब में लिखकर तो ऐसा नहीं किया जा सकता | हुआ यह कि वेज -नॉनवेज थालियाँ परोसने के बाद वेटर सौंफ- मिश्री लेकर आया | ज़ाहिर है होटलों की तरह बख्शीश लेने के लिए | यह मैं कई बार लिख चुका हूँ कियह प्रथा उन्हें नीचा दिखने के लिया पर्याप्त है | पहले पवनी परजा होली दीवाली की त्योहारी लेने आते थे | वही अब भी कायम है | वह व्यक्ति क्या यात्री के बराबर बैठ सकता हैं ? देने वाले का हाथ और स्थान ऊपर हो जाता है, और लेने वाले की स्थिति कथित दलित | वे अपनी मजदूरी और वेतन में सम्मान का अनुभव करें तो स्थिति बदलनी शुरू हो जाय |  

* खुन्नस , The Prejudice  
मेरा नाम = U.N.S.= उन्स
मेरी संस्था का नाम = खुन्नस

* हमारा सुंदर राष्ट्र गीत होना चाहिए =
" खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों "
अब इस पर भी खाप पंचायत वाले एतराज़ तो करेंगे !


* प्रश्न इनसे नहीं, उन प्रगतिशील तबकों से पूछो जो ऐसी सूरतेहाल में भी अपने को हिन्दू कहलाने कहे जाने में भी शर्म और निंदा समझते हैं ? मैं भी उन्ही में शामिल था | लेकिन मैं सोचता हूँ कि यदि मैं " ऐसा " मुसलमान नहीं हो सकता जो अपने मज़हब और किताब केप्रति इतना दृढ़ हो तो क्या मुझे ढीला ढाला हिन्दू होना स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए इनके बरक्स , इनके बरखिलाफ ? और मैं हो गया | हर गैर मुसलमान को अब हिन्दू हो जाना चाहिए पाकिस्तान बन जाने के बाद | आध्यात्मिक भले न सही , राजनीतिक रूप से तो ज़रूर ही |
 तिस पर लोग कहते हैं कि साम्प्रदायिकता तो कुछ कठमुल्लाओं की देन  है, साधारण मुसलमान तो बस - - -|  जब कि स्थिति यह है कि निश्चित मामलों में हर मुसलमान एक सा कट्टर होता है, उसे होना ही  होता है |  यह भी कहते हैं कि आतंकवाद कुछ सिरफिरों का काम है और आतंकी का कोई धर्म नहीं होता | जब कि सच यह है कि धर्म तो आतंकी का ही होता है | अहिंसक के धर्म कि कहाँ पूँछ होती है |
इसलिए इनसे बहस मत करो, इनकी बातों से इनका मन पकड़ो, नीयत पहचानो, सबक लो और तब अपने लिए कोई रास्ता कोई रणनीति बनाओ |   

बुधवार, 8 मई 2013

Nagrik Blog 8 May, 2013


[ कविता ]
कमर दर्द के कारण 
तुम्हारी याद कुछ 
कम तो हुई है,
फिर भी कभी 
आती तो है |
- - - - - - - - 
[ कविता ]
काँटा गुलाब में ही नहीं 
मछली में भी है,
गुलाब तो छोड़ भी दूँ |
- - - - - - - - - -  
[ कविता ]
* कभी तो मुझे 
आगे निकलने दो 
प्रणाम करने में, 
सलाम बोलने, या   
चरणस्पर्श में !
- - - - - - -  -
[ कविता ]
* यहाँ तो 
रास्ते पर  
चलने से पहले ही 
बिल्ली 
रास्ता काट जाती |
# #

* Famine [फेमीन] कहते हैं अकाल को | इस प्रकार Feminist का अर्थ निकलना चाहिए -  जिसके पास पौरुष का अकाल पड़ गया हो |

* गैरबराबरी के मंज़र तो यूँ ही समाज के बाज़ार में यत्र - तत्र - सर्वत्र है | e.g. दूल्हा दुल्हन बड़ी सी कर में चलेंगे और बाराती भले ट्रैक्टर ट्राली में | अब इसमें जाति, धर्म, नर-नारी का क्या भेद ? फिर पुराणी किताबों को ही हम क्यों कोसें ?

* नाक पर कपडा बाँधने से क्या दुर्गन्ध छन जाती है ?     

* असंभव शब्द डिक्शनरी में नहीं, रास्तों में होता है | चलने पर पता चलता है |

* यदि कुछ लोग इसकी सेवा बंद कर दें तो समाज का बड़ा कल्याण हो जाय |

* मान लीजिये वह है भी, तो भी यह तय है कि हम उसे जान नहीं सकते | फिर जानने का इतना ढिंढोरा क्यों ?

* - What do I do ?
= Poetry , personal poetry , practical poetry of life .

* सारी अच्छाई 
मेल मिलाप में है 
द्वेष में नहीं |

* दिल पसीजा 
उनका भी, जिनका 
पत्थर का था |
 
* क्रिकेट क्या है 
दौड़ने का बहाना 
फुटबाल भी |

* चाँदनी बस 
चार दिन ही ठीक 
फिर उबाऊ | 

* बस बात है 
प्यार नहीं करता 
मैं भी किसी को | 
 
* सारा संदेह 
सुबह होते होते 
दूर हो गया |

* खुल जाएगा 
सुबह होते होते 
सारा ही भ्रम |
 
* कह तो दिया 
न तुम हमें जानो 
बात झूठ थी | 

* मुल्ला से पूछो 
मस्जिद का महत्व 
मैं क्या बताऊँ ?

* तमाम पाया 
ज़िन्दगी का हिसाब 
कुछ दे दिया 
लेकर बराबर 
देकर बराबर |

* मुसलमान 
इस मामले में तो 
पक्के हैं हम |

* भारतीयों का 
है न एक इलाज 
अच्छा सा डंडा |

* जिया, जी लिया 
अच्छी ज़िन्दगी जिया 
संतोषप्रद |

* नागरिकता 
धर्म बना ले जो भी 
नागरिक है |   

* सवालाती  हैं   
सब, जवाब नहीं 
किसी के पास |

* छंदों में त्रुटि
अहसास दिलाती 
वृद्धावस्था की |  

* निपट गया 
आखिर तो यह भी  
दिन दुर्दिन |

* न ऊपर है
किधर गया पानी,  
न ही नीचे है |

* न रामायण 
महाभारत सही 
गोर्की की माँ ही !

* न रामायण 
महाभारत सही 
गोर्की की माँ ही ,  
कोई भी किताब हो    
भरती विश्वास ही |

* कोई विषय 
शायद ही बचा हो 
लिखा न हो 
जिस पर हमने 
हाइकु काव्य 
चुटकुला लेख या  
किसी विधा में कुछ |

* हाय रे दैय्या 
इतनी निष्पक्षता !
न्याय भी डरे ?

* मुझे पता है 
छूट जायँगे साथी 
अकेला हूँगा |  

* मेरी तो बातें 
कहने योग्य नहीं 
मैं कैसे बोलूं ?

* सब किताबी 
बातें हवा हवाई 
करते लोग |

* व्यवस्था होगी 
तो स्वतंत्रता कुछ 
सीमित होगी |

* झूठ नहीं था 
न अब, न तब भी  
मेरा कहना |

* सारी समस्या 
मनुष्य के मन में 
कैसे सुलझे 
बाहर बाहर से 
ऊपरी इलाज से ?

* उनसे हम 
प्रेम क्यों नहीं करें 
इसलिए कि
समाज ने बरजा
माँ बाप ने रोका है ?

* लर्न तो लिव [ Learn to live ]  
एंड वाइस वर्सा [ And vice-versa ]
लिव तो लर्न [ Live to learn ]  
 
* हाँ यह तो है 
बुरा लगा न लगा 
अच्छा न लगा  |

* जवाबदेह 
मैं हूँ तो ज़रूर 
पर उत्तर 
देने के मैं अयोग्य 
जवाब नहीं कोई |

* प्रायवेट है 
लेकिन पवित्र है 
काम संबंध |

* कुछ तो होगा 
जिसका परिणाम 
बलात्कार है !

* जो मिल गया 
जाने या अनजाने 
उसे छोड़ें क्यों 
चाहे या अनचाहे 
उसके साथ रहें |

  * जल्दी नहीं है 
बहुत समय है 
अभी सोच लो !

* जीवन स्वाहा 
हाँड़ तोड़ श्रम में 
सत्यनिष्ठा में |

* फोन तो नहीं 
फोन का इंतज़ार 
ज़रूर किया |

* तुम्हारी नहीं 
गलती हमारी थी 
जो दिल दिया |

* टूट जाती है 
जो परंपरा, फिर 
नहीं बनती |

* नहीं है कोई 
मेरे सरीखा दुष्ट 
इस जग में |

* यह गहना
- - -- - - - 
स्वर्ण गहना  
बेकार ही पहना 
फेंक बहना !  

[मूल भाव = 
किसी को हम 
ओवरटेक करते हैं 
कोई हमको |
[लेकिन यह तो गलत हाइकु हो गया | अब इसे दो तरह से लिखा जा  सकता है =] 
1 - किसी को हम 
ओवरटेक करें  
कोई हमको |
2 - किसी से हम 
आगे निकलते, तो 
कोई हमसे | 

* [ शायरी ]
मैंने तुमसे कह दिया था शाम को ही 
आज मेरे स्वप्न में तुम मत आना 
और तुम फिर आ गए ?

* यह शेर कुकुरनिदिया सोता है | सोता है, ज़रा सी आहट पर फिर भोंकने लगता है |   

* मई दिवस पूंजीवादी - साम्राज्यवादी अमेरिका के शिकागो शहर से आयातित है | कम्युनिस्ट भला इसे क्यों कर स्वीकार करेंगे ? 
वहाँ तो काम के घंटे कम करके आठ करने के लिए खून बहाए गए, हम कोशिश में हैं यह यहाँ लगभग 'शून्य' हो जाय |    

* मनुष्य की ज़िन्दगी को नर्क बना कर रख दिया है इस सभ्यता ने | बच्चों को पढ़ाओ तो कहाँ से इतना पैसा लाओ ? बिटिया की शादी में पैसा ही पैसा लगता है फिजूल | बीमारी हेरामी तो खेत बेचो | कहाँ से इतना इंतजाम कैसे करे कोई | भगवान् ने हमें नाहक  ही पैदा करके इस दुनिया में भेज दिया ! पता नहीं उसे क्या मिला | हमारे खाते में तो दुःख ही दुःख ही है |

* लेकिन यह मापदंड हिन्दू वांग्मय पर खरा नहीं उतरता | कई दलित विद्वान उसके अध्ययन का दावा करते हुए भी उसके प्रखर,बल्कि उग्र आलोचक हैं | [ Nilakshi ]

* इस्लाम डेढ़ हजार साल में ही " थक " गया | हिन्दू भले ही चोटिल हुआ, पर सनातन तो सनातन ! अभी तक चल रहा है | [ chachal bhu ]

* आपके इस पोस्ट पर 70 के दशक में लिखी एक कविता याद आई     ;--

[ धोबी का कुत्ता ]
* पहले एक धोबी होता था 
उसका एक घर होता था 
उसका एक घाट होता था ,
उसका एक कुत्ता भी होता था 
जो न घर का होता था 
न घाट का होता था | 
लेकिन अब, 
सिर्फ कुत्ते होते हैं    
उन्ही के घर भी होते हैं 
उन्ही के घाट भी होते हैं
और विडम्बना, 
उनका कोई कुत्ता नहीं होता |  
#  #  #

- और एक अत्यंत छोटी सी कविता जो मुझे बहुत पसंद है | इसे लिखकर मैं बहुत आनंदित हुआ था | लेकिन कुछ मित्र इसे अस्पष्ट [ambiguous ] बताते है | पूछते हैं - " इसका क्या अर्थ " ? पर यदि इसे यहाँ ससंदर्भ पढ़ा जाय तो सुधी मित्रो के लिए इसे समझना, इसमें डूबना लगाना मुश्किल नहीं है | यहाँ धोबी के स्थान पर भंगी है | 

" कमोड साफ़ करता हूँ 
चमक जाता है 
ख़ुशी होती है | " 
# # #

बुधवार, 1 मई 2013

Nagrik Blog 30 / 4/ 2013

* यदि आपने Top पहना हुआ है तो फिर Bottomless होने का अहसास जाता रहता है |

* अनुमानतः, कुछ लोग फेसबुक स्वयं स्वेच्छा से नहीं आये हैं | वे कहीं से भेजे या किन्ही द्वारा लाये गए हैं, उनके काम से | [ यथा सिमोन द बोउआ ]

* किसी भी पगड़ी धारी सिख को सरदार जी कहिये, नाम जानिए या नहीं | वह बोलेगा | अर्थात यहाँ व्यक्तिवाद तिरोहित होकर एक समूहवाद / किंवा समाजवाद में तब्दील हो जाता है | फिर पता नहीं क्यों लोग जातीय समूहों [ यादव अपवाद ] से चिढ़ते हैं ? उनके नाम तक उखाड़ फेंकना चाहते हैं, चाहे उखाड़ कुछ न पायें | यहाँ तक कि कम्यून [समूह ] वादी भी जब देखो तब जातिवाद के पीछे पड़े रहते हैं | यह गलत बात है कि नहीं ?     

* यही झकाझोरी में हेराय गए कँगना |
यह हम लोगों के यहाँ का देसी गीत है | किसी को यह अश्लील भी लग सकता है, क्योंकि मामला तो वही है | हमें भी लगता यदि इसका राग इतने प्यारा न होता | इसलिए मैं कभी मौज में अकेले खूब गता हूँ | आज इसकी याद दुसरे सन्दर्भ में आई | क्योंकि मेरा मिजाज कुछ पोयटिक भी है, इसलिए इसको जोड़ा मैंने फेसबुक पर चलने वाले बहसों विवादों से | कभी कभी यह झकाझोरी इतनी तेज हो जाती है की वार्ता का असली उद्देश्य, मंतव्य यानी जिसकी उपमा मैंने कँगना से दी वही हेराय, गायब हो जाता है |

* एक कोण से और देखना होगा | आज़म खान मुसलमान थे या नहीं, वह हमारे भारत देश के राज्य प्रतिनिधि थे | किसी भी कार्यवश वह गए हों मेज़बान मुल्क को उनकी हैसियत के मुताबिक उनसे ससम्मान ही पेश आना था | इस असम्मान का विरोध वाजिब था | इधर हम हैं कि आपसी इतर विवाद  में उलझ कर देश कि कमजोरी प्रकट करते हैं |

* प्रेमचंद सरीखे, और उनके समेत, लेखक दलित लेखन नहीं कर सकते | अतः इन्हें सवर्ण लेखक कहा जाना चाहिए | साधारण - सामान्य लेखक तो कोई होता नहीं |

* एक बात तो मुझे लगभग तय दिखाई देती है | मार्क्सवादी पैदायशी मूर्ख नहीं होते | वे बाद में बनाये जाते हैं |

* अभी तरुणाई में सुना एक पंडित जी का सुमधुर स्वर में गाया निर्गुण भजन याद आया तो उन्ही की लय में गाने लगा :--
*  यही अजरोरे बिछाई लेबा हो, अंधेरवा में ना बनिहैं राम | 
क्या यहाँ अजरोरे का अर्थ - प्रकाश [ enlightenment ] से है ?

*अरुण जी , आप तो सर न कहिये | किसी के लिए भी मैं यह रिवाज़ बंद करवाना चाहता हूँ | हम किन्ही professional school में नहीं हैं, न किसी के गुरु चेला | नाम के साथ ' जी ' या और कोई मित्रवत - भाई / साथी ठीक होगा | मेरे लिए उग्र जी चलता | वैसे मेरा उपनाम ' नागरिक ' है और मैं इसे '' कामरेड " की तरह सबके लिए इस्तेमाल कर सकता हूँ | " नागरिक धर्म " का प्रचारक रहा / हूँ मैं | [Rohela ]

* आप लोगों की घृणा का पात्र बनने का खतरा तो है लेकिन यह सच है कि मेरी वैचारिक पटरी लोगों से कम ही खाती है | मैं नालायक अपने आप में सरल किन्तु विरल हूँ | इसी को उस हाइकु कविता में व्यक्त किया है | लेकिन आप कविता पर न जाइए | संपर्क न तोडिये, स्नेह भाव बनाये रखियेगा | अंशुमान जी से पूछिए, इनसे मेरा प्रेम कितने झगड़ों के बाद हुआ, और आपसे कितने संकोच के साथ  | आभारी हूँ | इतना अवश्य है कि संस्कारवश मैं अधिक अशिष्टता बर्दाश्त नहीं कर पाता, जो कि अधिकतर विमर्शों में व्याप्त है | यद्यपि मैं स्वयं उग्र हूँ | अभी आप लोगों के कमेन्ट आ रहे थे तब मैं " जनमत निर्माण " की भूमिका लिख रहा था | क्षमा !   [ अंशुमन/वन्दिता  ]    

* सवर्ण राजनीति तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत में इस्लामी राज्य लेन कि और अग्रसर है | ऐसे में यदि राज्य दलितों के हाथ में नहीं दिया गया तो नतीजा बुरा होने वाला है | इनके वश का नहीं भारत में हिन्दू राज्य बनाना | देख लीजिये इनके झगड़े | अवर्ण हिन्दू राज्य ही एकमात्र विकल्प है |  

* यदि ब्राह्मण ही बनना है तो अब दलित बनेंगे ब्राह्मण | ये ही उनका स्थान लेंगे, उन्हें रिप्लेस करेंगे | नव / भव ब्राह्मण नहीं, वही पुराने वाले ब्राह्मण - कुछ भी नयापन नहीं | वही पूजे जायँगे, उन्ही का वचन ब्रह्मवाक्य होगा | अब लोकतांत्रिक व्यवस्था में वही सर्वोच्च होगे, शासक या शासक निर्माता | वाही चुनाव लड़ेंगे | और हम उन्ही को जितायेंगे | उनके ऊपर कोई कृपा करके नहीं | अपने स्वार्थवश, भारत में हिन्दू राज्य के लिए | इसे इस्लामी चंगुल से बचाने के लिए |     

*  आत्मरक्षा का भरोसेमंद कुदरती हथियार | बलात्कार से बचने के लिए अपने दाँत मजबूत कीजिये | अमुक वज्रदंती , फलाँ लौह्दंती मंजन इस्तेमाल कीजिये |

काहे चिल्लात हौ ? अबहीं चीन बहुत दूर है | हम तो लखनऊ में हन | बैंड बाजा बरात लेके आवत है, देखो कब तक पहुँचे | तब तनिक और पीछे खिसक लेब | काहे अब्बै से जान दिहे डारत हो ?


[त्रियक रेखाएँ ]
* एक रेखा हो 
तो उसे फोन करें 
इतनी सारी - - ?

* मैं राज्य की हिंसा का इसलिए समर्थक हूँ कि अन्यथा तो तमाम पहलवान लोग और संगठन हिंसा द्वारा समाज और मानव जीवन को अपने कब्ज़े में ले लेंगे | ध्यान से देखिये, भगत सिंह के समर्थक वे लोग हैं जो जीवन तो क्या, अपना एक कौड़ी भी त्यागने को तैयार नहीं | नारा ज़रूर ज़ोरदार लगायेंगे क्योंकि भगत,राजगुरु आदि ने इनके लिए अपनी जान दी | जिस प्रकार ईसा ने ईसाइयों के पापों के एवज में सूली पर चढ़ना स्वीकार किया | लेकिन स्वयं कोई ईसा, कोई भगत सिंह नहीं बनता | उधर अहिंसावादी गांधी के सींकिया चेले कम से कम अपना निजी जीवन तो थोडा बहुत जी जाते हैं !    

* लिखित दे रहा हूँ 
जुबानी नहीं है ,
समय पास करना 
जवानी नहीं है |

* जग में देखो, वह उतना ही लम्बरदार हुआ ;
जग में छोड़ी जिसने जितनी बदबूदार हवा |


एक बहुत अच्छा शेर हो गया है | सुनाकर फिर काम पर निकलूँगा | 
* नींद आ तो जा रही तेरे बगैर ,
अब तू आ या भाड़ या चूल्हे में जा | 

- - - - - - -- 
[ तो कैसा हो ? ]
* मैं सोचता हूँ 
शिक्षा का मतलब 
नैतिकता हो |

नैतिकता का [5]
नाम सार्वजनीन [7] 
नागरिकता [5]
मनुष्य केन्द्रीयता [7]
समता,सम्मान्यता [7]
{ हाइकू - ताँका, Poetry = 5 -7 -5 -7 -7 }

* तुम्हारी याद 
जैसे जलती हुई  
अगरबत्ती |

खुशबु भरी 
सुगन्धित करती 
धुआं उड़ाती  |

* कब आओगे 
मित्र, पड़ोसी चीन  
मेरे घर में ?   

* बच्चे हैं या हैं 
ये कोई पुष्पगुच्छ 
क्या अंतर है !

* बातें खूब हैं 
बातें हैं बातों का क्या 
खूब कीजिये |

* वही मेरा है 
जो मेरे काम आये 
शेष पराये |

* मार भगाओ 
विचार आ जाएँ तो 
ध्यान लगाओ |

* पाला पड़ता 
ऐसे ऐसे लोगों से 
जान बचाता 
कैसे कैसे लोगों से 
जैसे तैसे लोगों से |

* वह आयेंगे 
यदि विश्वास है तो 
वह आयेंगे |

* वह जानते 
जेब से निकालना 
हमारा पैसा  
बहुराष्ट्रीय हैं वे 
बड़े ताक़तवर |

* वह आये हैं 
विश्वास नहीं होता 
छूकर देखूँ !

* आप नेता हैं 
और मुझे चिढ़ है 
नेतागिरी से |

* क्या करता हूँ ?
बुद्धि का इस्तेमाल 
यथासंभव |

* समान होंगे 
आदमी से आदमी 
धर्म से धर्म 
नहीं, हिन्दू से तुर्क 
न सिख से ईसाई |

* व्यस्त रहता 
यही स्वास्थ्य का राज़ 
मस्त रहता |

* मेरी नियति 
सबसे दुश्मनी है 
वैचारिक तो !

* मेरी दृष्टि में 
हर किस्म की नारी 
आदर योग्य |

* बताईयेगा 
जब ऊब जाइए  
मेरे पोस्ट्स से |

* ऊटपटाँग    
लिखने में क्या श्रम 
मैं लिखता हूँ |

* सूरत नहीं 
सीरत से बनता 
आदमी प्यारा |

* लोग कहेंगे 
अच्छाई का ज़माना 
नहीं रहा, तो 
उन्हें चुप कराओ 
पूछो, तुम अच्छे हो ?

* रंग बिरंगे 
कुछ लोग, तो कुछ 
बदरंग क्यों ?

* माँ के मानी क्या 
परंपरा वाहिनी 
दकियानूसी ?

* ब्राह्मणवाद 
परोक्ष शासन का 
शाश्वत [शाब्दिक ] वाद 
सार्वकालिक सच 
सम्प्रति विद्यमान | 

* नास्तिकता तो 
देती बड़ा संबल 
" आत्मविश्वास " 

* लिख दीजिये 
आपका काम ख़त्म 
अब वे जानें 
उनका काम जाने 
क्या करते हैं वे ?

* आगे ही आगे 
और आगे सोचना 
रुक न जाना 
बहुत दूरस्थ है   
विचारों की मंजिल |

* जातिगत जो 
गैरबराबरी है 
न अभी बाक़ी 
शिक्षा में बराबरी 
उसे दूर करेगी |

* सस्ती हो गयी 
आसानी से मिल गयी 
जो कोई वस्तु ?