सोमवार, 12 नवंबर 2012

नया ईश्वर


[ कविता ]   " नया ईश्वर "

* हम उसे भोग लगाते हैं
वह कुछ नहीं खाता,
हम उसे फूल चढ़ाते हैं
वह प्रसन्न नहीं होता ,
कोई आशीर्वाद नहीं देता ,
न कोई फल - प्रसाद ,
बस , मेरी आँखों में आँखें डाले
जड़वत, पाषाण जैसा बैठा
या खड़ा मुझे देखता है ,
 मानो मेरी मूर्खता परखता है |
बिलकुल ज़ीरो, सिफ़र, शून्य
है मेरा ईश्वर,
बिल्कुल ही नया |
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