शनिवार, 17 नवंबर 2012

हम अत्र कार भी तो हैं


[ गलत बयानी ]
* पत्रकार होने के साथ साथ हम अत्र कार भी तो हैं ! ' अत्र ' माने' - ' यहाँ ' की जिंदगी जैसी जी जानी चाहिए , जीने वाले , जीने की राह बनाने वाले !

* ' असहमति के स्वर ' शासन के खिलाफ बहुत हैं | बहुत आसान भी है यह !
लेकिन दलित - नारी - नक्सल वारी - काश्मीरवादी - बाँध वादी -भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन वादी से असहमति [ संभवतः हो तो ] व्यक्त करके तो दिखाओ |

* दुष्यंत कुमार ग़ज़ल में कहते हैं - कहाँ तो तय था चिरागाँ हर एक बशर के लिए |
लेकिन यह सच कहाँ है ? स्वाधीनता - स्वराज की बात तो थी , लेकिन दुष्यंत की बात कहाँ थी ? किसने ऐसा वादा किया था ? सोचा , सपना भले देखा हो | यह तो उन्होंने अपने मन से जोड़ लिया , और हमारे दिलों में अशांति भर दी | अवश्य इन्होने काम यह किया कि अशांति के कार्यकर्ताओं - संगठनों के हाथ में एक जलती हुई लुकाठी पकड़ा दी | इनकी कवितायेँ देश में असंतोष भरने के बहुत काम आयीं | पात्र - पत्रिकाओं के क्रांतिकारी दिखने में ये बहुत उपयोगी रहीं |

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