सोमवार, 26 नवंबर 2012

सामाजिक सम्मान


सामाजिक सम्मान हासिल करने का तरीका [ To be well placed in society ]
भले हिंदी - उर्दू - संस्कृत - अंग्रेजी के पक्ष में नहीं हो , धर्म का पालन न करो , भगवन को न मानो , लेकिन सामाजिक सम्मान का अधिग्रहण इन्ही चीज़ों से होता है | इसलिए समाज के समक्ष , छद्म ही सही , इन विषयों पर अपनी विद्वता का प्रचुर प्रदर्शन करो | अपने वार्तालाप में सभी भाषाओँ का थोडा थोडा सम्मिश्रण रखिये , इनके ज्ञाता होने का भाव प्रदर्शित कीजिये | आप चाहे जिस जाति धर्म के हों , रामायण - गीता -पुराण के श्लोकों का उच्चारण  कीजिये , उनकी व्याख्या की क्षमता दिखाइए | थोड़ी स- सम्मान प्रशंसा तो कीजिये , लेकिन जरा आलोचनात्मक रुख भी रखिये , क्योंकि आलोचना का आजकल बाज़ार गर्म है | बस यह ध्यान रखिये की वह एक सीमा से अधिक न होने पाए क्योंकि आस्था का मार्केट भी खूब है |
यह बहुधर्मी समाज है | इसलिए केवल हिन्दू किताबों का ही नहीं , इस्लाम और ईसाई मजहबों का भी बराबर उल्लेख कीजिये , अलबत्ता ज्यादा समझदारी और सावधानी के साथ | सबको एक डंडे से मत हांकिये, सबके स्वभाव में अंतर हैं जिससे आपके व्यक्ति और व्यक्तित्व को नुक्सान पहुँच सकता है | तो , कुरान के कथन , पैगम्बर के नैतिक आचरण प्रस्तुत कीजिये , ईसा मसीह के जीवन चरित्र और प्रवचनों का अभिज्ञान कराइए, लेकिन धर्मपरिवर्तन का विरोध कर दीजिये | कुछ आधिनिकता के पक्ष में तो कुछ विपक्ष में भी कह दीजिये | थोडा इसी प्रकार सरकार की भी आलोचना प्रशंसा समय और श्रोता देखकर कीजिये | कैसे नहीं समाज आपको आदर देगा ?
और आगे कुछ आधुनिक लोकतंत्र , समाजवाद , मार्क्सवाद पर अपना ज्ञान बघार दीजिये , माओवाद समझाइए | लेकिन वही बात ! माओवादियों की आलोचना स्थिति देखकर ही कीजिये , कम या ज्यादा  | इससे आपका सम्मान बढ़ेगा , आपका सिक्का जमेगा और आप आदर के पात्र ही नहीं होंगे उसे प्राप्त भी करेंगे | यदि आप दलित जाति के हैं तो यह फार्मूला आपके लिए अत्यंत उपयुक्त है, रामवाण नुस्खा है | ब्राह्मण होने मात्र से तो कोई किसी को तो पूजने से रहा , उलटे वह सामाजिक निरादर ही पाता है | और जो उपरोक्त गुणों से युक्त होगा , वह समाज में स्थान पायेगा ही | यदि कोई समझता है कि आरक्षण सामाजिक सम्मान का माध्यम है , तो वह बिलकुल गलत समझता है | कानून के डर से भले कोई किसी का सम्मान , या कहें निरादर नहीं , करता मिले , पर वह कोई सम्मान तो नहीं है | भला सरकारी भिक्षापात्र  में सामाजिक श्रद्धा और सम्मान कैसे समाहित किया जा सकता है | कोई इसमें ये मूल्यवान वस्तुएँ अपनी इच्छा से क्यों डालेगा ? कुछ लोग इसके  स्वप्नदर्शी हैं , पर यह बात मेरी समझ में नहीं आती |  आरक्षण , और आरक्षण की बदौलत सामाजिक सम्मान ? तो वह देखिये , वह बहुत दूर खड़ा |

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