बुधवार, 14 नवंबर 2012

लिखित देने का पाप


[ गलत बयानी ]
* ओशो की एक ध्यान विधि है - पूर्व जन्म में जाने की | मैं इसे मानता ही नहीं सो इसकी उपयोगिता भी नहीं समझ पाया | अब कुछ विवादों के परिप्रेक्ष में मुझे इसकी ज़रुरत पडी | मैं समझता हूँ इसे हर विचारक को सिद्ध करना चाहिए | हमें अपने को उस काल में ले जाना चाहिए जब जाति प्रथा - वर्ण व्यवस्था नहीं थी | फिर वहाँ से आगे बढ़ें और नोटिस करें एक समाज विज्ञानी की तरह कि यह सब कैसे वजूद में आया | मेरे विचार से, तब जो जानकारी हमें मिलेगी वह उससे अलग होगी जिसे हम ब्राह्मणवाद के नाम से पुकारते हैं |

* लिखित देने का पाप  = यदि आप समाज की किसी अप्रिय स्थिति को लिख कर दे देते हैं , भले आप उसमें लिप्त न हों , तो वह आपके लिए अभिशाप हो जायगा | ऐसे कुछ ब्राह्मणों , अब्राह्मणों ने भी संभवतः , समाज  को जातियों - वर्णों के रूप में लिख दिया | वह अब उनके गले की हड्डी बन गयी है, मानो उनके आलावा और कोई शक्तियाँ तब विद्यमान ही नहीं थीं | अब उनकी पीढ़ियाँ भले ही उनका पालन न करें , या न करना चाहें पर अब वे उससे विमुक्त नहीं हो सकतीं | दूसरी तरफ जिन्होंने अपनी किताबों में सब शुभ ही शुभ लिख दिया वे जग में वरेण्य हो गए , भले व्यवहार में वही तमाम बुराइयाँ उनके यहाँ भी प्रचुर रूप में व्याप्त हो, क्योंकि वे वस्तुतः तो सत्य हैं | इसलिए हे बंधुओ जब भी लिखो शुभ लिखो भले ही सब झूठ लिखो |  

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