आत्मवादी दल (Individualist)
इस क्षेत्र में कम काम हुआ है हिंदुस्तान में | या इसकी चर्चा कम हुई है | Individualism एक पूरा मानववादी दर्शन है और वह व्यक्तिवाद नहीं है , न अहंकार की इसमें गुंजाईश है | अलबत्ता इसमें व्यक्ति के श्रेष्ठता की और उन्मुख होने की चाह अवश्य है | तो क्या यह कुछ गलत या अवांछनीय है ? पर समाजवाद के ढोल के पीछे यह दर्शन गौड़ हो गया , और अब आदमी जैसा है वह सब दिख ही रहा है | राजनीति के प्रदुषण का जो रोना हम रोते हैं उसका कारण यही है कि इसमें अब 'आदमी ' , 'व्यक्ति ', 'आत्मवादी जन 'नहीं हैं | वहाँ यह मान लिया गया कि समाज ठीक होगा तो व्यक्ति ठीक हो जायगा, कहाँ तक हम एक एक जन को सही करते फिरेंगे ? हमारी प्राथमिकता पलट है | बात सभी जन की नहीं है , देश के अधिकांश जन जब तक ठीक नहीं होगें , अच्छी से अच्छी व्यवस्था चौपट होती रहेगी | और यदि नागरिक उत्कृष्ट हुए तो वे दुर्जनों पर भरी पड़कर कुछ बुरी व्यवस्था से भी अच्छे काम निकाल लेंगे |
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