गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

अंतरजातीय - अंतर्धार्मिक बच्चे

अभी ' मुक्त यौन ' कह दूँ तो युवा भी हमसे उखड़ जायेंगे | इसलिए मैं इसे अंतरजातीय - अंतर्धार्मिक बच्चे पैदा करने का शुभ कर्म कहकर प्रस्तावित करता हूँ | शादी सजातीय हो , किसी से हो , अनमेल हो , कैसी भी हो, किया जाय और उससे निभाया जाय | ऐसा मेरा मानना है | मैं तलाक़ का पक्षधर नहीं हूँ , भले विषम परिस्थितियों के लिए इसे कानून में रहना चाहिए | लकिन ऐसी शादी चलेगी कैसे जब पार्टनर्स को संतोष नहीं मिलेगा ? यह एक प्रश्न है जिसे मैं जनमत के नाते गौड़ करता हूँ | महत्वपूर्ण दूसरा पक्ष है | यदि इसी प्रकार सजातीय , माता पिता द्वारा अरेंज्ड मैरेज होते रहे तो समाज कैसे प्रगति करेगा और आधुनिक होगा ? इसका जवाब है | युवा इसके लिए भाव एवं व्यवहार के स्तर पर तैयार हो जायं कि शादी तो चलिए हमारे हाथ में नहीं है लेकिन संतानोत्पत्ति तो हमारा निजी मामला है ? वह भी परदे के भीतर का ? इसलिए हम यह करेंगे कि बच्चे सजातीय नहीं होने देंगे | ज़ाहिर है यह शादी किये गए पति या पत्नी के माध्यम से संभव नहीं है | अर्थात, विवाहेतर या नियोग सम्बन्ध अपनाएँगे |  हम अंतरजातीय बच्चे पैदा करेंगे | बाहरी दुनिया के परिचय के लिए भले वे बच्चे किसी ख़ास जाति के बताये जाएँ , लेकिन वैज्ञानिक , अनुवांशिक संरचना में तो वे मनुष्य मात्र ही होंगे ? और यदि DNA और JEANS की खुसूसियत ने अपना रंग दिखाया तो वे सच्चे समतावादी , भेदभाव मुक्त अनूठे इंसान निकलेंगे | अभी तो यह अन्दर की बात होगी , फिर धीरे धीरे जब मामले लीक होते जायेंगे तब समाज का पुराना मानस भी विषम [ अंतर जातीय / धार्मिक ] विवाहों को स्वीकार कर लेगा और इसका मार्ग प्रशस्त होगा | तब तो शायद इसकी प्रासंगिकता ही नहीं रह जायगी , और शायद कभी ' विवाह ' संस्था से मुक्ति भी !

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