मनुष्य है तो उसकी मूर्खता से मुक्ति कहाँ ?
मैं खुद भी असहमत हूँ | और असहमति का तरीका भी जानता हूँ | ठीक है आप नारियल नहीं फोड़ेंगे , तो फीता तो काटेंगे ? सरस्वती वंदना नहीं करेंगे , तो दीप प्रज्ज्वलन करेंगे | मृतक संस्कार नहीं करेंगे , पर दो मिनट का मौन तो धारण करेंगे ? सही है कि हम आप दूसरे विकल्प को तरजीह देंगे | लेकिन मैं समझता हूँ कि पाखंड तो है वह भी | इसलिए पहले पाखण्ड से चिलचिलाने के ज़रुरत मुझे नहीं पड़ती | एक साफ़ उदहारण लें | खुशवंत सिंह पूर्णतः सरदार सिख दिखते हैं , लेकिन हैं पूरे नास्तिक , सेकुलर और रेशनलिस्ट | अब यदि वह दाढ़ी - बाल मुद्वाने में लग जाएँ , सिख परंपरा को नकारने में जुट जाएँ , या हम उन्हें इस कमजोरी के लिए अपमानित करने लग जाएँ तो वह सिख संस्कृति का कुछ बिगाड़ तो पाएंगे नहीं , ईश्वर विहीन मनुष्य भी नहीं हो पाएँगे | इसलिए - - - और आगे क्या कहें ?
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