बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

कुछ फूल उगाये


कविता :-

* गद्दी [सीट] कभी
खाली न होगी
मूर्खधिराज की |
एक गया तो दूसरा
आता रहेगा |
मूर्खों का '
मूर्खों के लिए
मूर्खों के द्वारा
देश हमारा |
# #

* मैं जी रहा हूँ
एक लम्बी आयु
क्योंकि मैंने
जीवन में
कुछ फूल उगाये ,
कुछ पेंड़ लगाये |
# #

कोई मुझसे पूछ ले न यूँ -
मकड़ियों का घर उजाड़ा क्यूँ ?
इसलिए तोडा न कोई जाल ,
अब न पूछो मैं फँसा हूँ क्यों ?
# #

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