इंशा अल्लाह !
मैं उर्दू इसलिए बोलता हूँ क्योंकि यह संस्कृत का मज़ा देती है | जैसे ' ईश्वर ने चाहा तो ' कहने के बजायकहता हूँ ' इंशा अल्लाह ' | संस्कृत का पैर्प्कार भी मैं इसीलिए हूँ क्योंकि उसमे संक्षिप्तता का गज़ब का गुण है | और ज़ाहिर है संक्षिप्तता , लघुता , थोड़े में ज्यादा बात कहना मेरा प्रिय शगल है |
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