गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

ईश्वरीय तत्त्व ( God Particle )


ईश्वरीय तत्त्व ( God Particle )
ईश्वर तो नहीं है लेकिन मनुष्य तो है अपनी पूरी इयत्ता के साथ ? धार्मिक जगत में मनुष्य गौड़ हो जाता है इसलिए हम मानववादी नास्तिकता को गले लगाते हैं | लेकिन प्रतीतितः नास्तिक मंडली में नास्तिकता को ठीक से समझा नहीं जा रहा है | बस ईश्वर नहीं है या उसमे हमारी आस्था नहीं है , इतना भर तो पर्याप्त नहीं ! सोचना पड़ेगा कि फिर है क्या , और क्या होना चाहिए उसके विकल्प में जो ईश्वर बन कार पूरे विश्व पर छाया हुआ है ? कुछ को अमानव बनाता है तो कुछ को मानवीय श्रेष्ठता भी प्रदान करता है | यदि वह सब कुछ गलत होता तो अब तक वह रह न पता , वह भी इतनी शिद्दत के साथ | इसलिए हमें उसकी श्रेष्ठता को पकड़ कर उसे नास्तिकता के रूप में दृढ़ता के साथ मानवीय आस्था में तब्दील करना है | वरना यह सारा आयोजन एक फिसड्डी बन कर रह जायगा | हमें अपनी पूरी बौद्धिक और हार्दिक पराकाष्ठा के साथ इस क्षेत्र में उतरना है , न कि केवल छिछले ढंग से | जिसे मानव का कल्याण और वैज्ञानिक उत्थान संभव हो सके जो कि हमारा अभीष्ट है | वरना आस्तिकता और भजन कीर्तन में क्या दिक्कत थी ? यदि नास्तिकों ने मानवीय आचरण की कोई लम्बी लकीर खींच कर दुनिया को नहीं दिखाई कि देखो हम यह हैं उन पुजारियों से अलग , तो दुनिया हमारी ओर अर्थात वैज्ञानिकता - नास्तिकता की ओर कैसे खिंचेगी ? शब्द से चिढ़ने की ज़रुरत नहीं है , यदि हमने मनुष्य की आध्यात्मिक भूख नहीं शांत की , उसे उसका वांछित सुख , संतोष और शांति नहीं दिया तो शुद्ध मानववाद का हमारा सपना कैसे पूरा होगा ? इस महीन बात को समझने की ज़रुरत है |  पूरी मार्क्सवादी पीढ़ी नास्तिक है, पर वे इसके प्रचार प्रसार को कोई तवज्जो नहीं देते | उनके अनुसार कुछ वैसा होगा तब ऐसा होगा और तब ईश्वर समाप्त हो जायगा , धर्म मिट जायेंगें | जब कि आवश्यकता है कि इस दिशा में पूरी मिशनरी तरीके से काम किया जाय | अब वह उत्साह आये तो कहाँ से आये | नास्तिकता को नकारात्मक [ negative ] धारणा मानने से तो वह आने से रहा | यह ऐसा विचार वस्तुतः है भी नहीं | नास्तिकता तो एक प्रकार से अति , आत्यंतिक आस्तिकता है , जहाँ कथित आस्तिक जन नहीं पहुँच सकते | आस्तिकता का चरम है नास्तिकता, मनुष्यता पर , मानवीय सभ्यता पर परम विश्वास की स्थिति | यह अकर्मण्य और भाव शून्य नहीं बनाती मनुष्य को | मानव मूल्यों के प्रति यदि यह संवेदनशील और सकर्मक न हुयी तो यह टूट जायगी | सिर्फ स्थूल ईश्वर ही तो नहीं है | पर मनुष्य केवल स्थूल तत्त्व भी तो नहीं है ? इस सूक्ष्म तत्व को पहचानने में नास्तिक मंडली कुछ चूक रही है | फिर इधर उस सूक्ष्मता का वैज्ञानिक एक नाम सामने आया है | सो उसी नाम पर ग्रुप का नामकरण किया जा रहा है , जिसमे मानव सभ्यता और संस्कृति पर कुछ गहराई से चिंतन मनन और कर्म कार्यवाही , संभव है हो सके |   

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