मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

समस्याओं का ज़िक्र

अभी तक , बल्कि ईमानदारी से कहूँ तो पूरी ज़िन्दगी में , सबसे बढ़िया टिप्पणी जो पड़ने को मिली वह थी रवीन्द्र मोथसारा  की टिप्पणी , प्रिय संपादक की इस चिर प्रश्न चर्चा के प्रत्युत्तर में कि " आप की नज़र में हिंदुस्तान की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? " इस पर रविन्द्र की अति छोटी सी टिपण्णी आई - " समस्याओं का ज़िक्र " | मैं तत्काल व्यस्तता के चलते इसका appreciation नहीं कर सका , पर यह बात है बहुत महत्व पूर्ण | यद्यपि यह स्थापना मेरी सोच के विपरीत है | मेरे विचार से ' नागरिकों में ज़िम्मेदारी की भावना का अभाव ' हिंदुस्तान की बहुत बड़ी समस्या है | मैं अब भी अपने मत पर कायम हूँ , पर मैंने अपने भीतर बरसो की सफाई - मंजाई के बाद यह गुण [ गुण ही कहना ठीक होगा ] विकसित किया है कि मैं अपने खिलाफ भी सोचूँ | सो उस दृष्टि से मुझे मोठसरा की शब्दावली सटीक लगी | सचमुच हम स्वयं समस्यायों को जन्म देते हैं , हर बात में समस्या ढूंढते हैं | और यदि कोई छोटी सी मिल जाय तो हम उसे तूल देते हैं | जब कि कई बीमारियों की तरह तमाम समस्याएं भी ऐसी होती हैं जिनको यदि नज़रंदाज़ किया जाय तो अपने आप समाप्त हो जाती हैं | कह सकते हैं कि यह तो वैज्ञानिक तरीका है चीर फाड़ करने का | लेकिन ज़िन्दगी सारी विज्ञानं से तो नहीं चलती , वह अधिकांशतः मनोविज्ञान से भी संचालित होती है , जिसे अध्यात्म नाम से भी जाना जाता है | तो वाही रविन्द्र की बात - " समस्याओं का ज़िक्र " , हर वक्त उसका खुलासा , उसका विज्ञापन , हर दर्द की चीख - पुकार , रोना धोना , धरना आन्दोलन हिंदुस्तान की सबसे बड़ी समस्या है |    

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