शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

ग़लतफ़हमी


[ कहानी ]           ग़लतफ़हमी

मैं यह तो जानता था कि मेम साहेब मुझे बहुत मानती हैं , लेकिन यह नहीं जानता था कि उन्हें यह भी पता है कि  मुझे मुर्गे का कौन सा पीस पसंद है | हुआ यह कि घर में मुर्गा पका था | साहेब ने मेम साहेब से कहा - अरे वह टिलुआ भी  खाता है उसे क्या दे दूँ ? तो मेम साहेब ने कहा - देखो लेग पीस तो उसे मत देना उसे तुम ले लो | [ उन्हें पता नहीं कैसे यह पता था कि मुझे लेग पीस बिलकुल पसंद नहीं ] | ऐसा करो , उसे सर , गर्दन , लीवर और पीठ का हिस्सा दे दो | [ गज़ब की बात कि यही सब टुकड़े मुझे पसंद हैं ] |
तो , मैं यह तो जानता था कि मेम साहेब मुझे बहुत मानती हैं , लेकिन यह नहीं जानता था कि उन्हें यह भी पता है कि  मुझे मुर्गे का कौन सा पीस पसंद है |
सचमुच मेम साहेब मुझे बहुत मानती हैं |  

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