गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मनुष्यों से घृणा


* [ नयी बात ]
आज सुबह दो विचार मन में आते हैं | उन्हें सु और कु में विभाजित करना निरर्थक है | विचार सिर्फ  विचार होते हैं | दुनिया का आधा नाश इन्ही सुविचारों से हुआ है | इसलिए इसे कुविचार ही माना जाय तो बड़ी कृपा होगी |
     एक तो यह कि प्रकृति अब मनुष्य को मिटाना, बरबाद करना चाहती है | हो सकता है बदला लेना चाहती हो | या, कारण जो भी हो, मंशा कुछ भी हो | मैं उसकी विवेचना में नहीं जाऊँगा | उसे मैं जानता भी नहीं |
    दूसरा यह कि अब मनुष्यों से घृणा किया जाना चाहिए | ऐसा ही दुष्ट और नालायक है यह | घृणा का ही पात्र है यह | बहुत हो गयी प्रेम की बातें, बहुत धोखे खाये पीढ़ियों ने | सारे धर्म - मज़हब प्यार मोहब्बत के नाम पर ही उगे और कहर ढाए | प्रेम ने बहुत छला | परस्पर घृणा के संतुलन से ही जीवन सही होगा | तो, मैं तो शुरू करता हूँ सर्वप्रथम अपने आप से, अपने प्रियजनों - परिवार से घृणा करने से | फिर आता है क्रम उसका जिसे सुंदर कहा जाता है और आधी दुनिया उस आधी दुनिया पर मरी जाती है | मैं औरतों से घृणा करता हूँ | फिर तो ईश्वर, देवी -देवताओं से नफरत करनी ही पड़ेगी |   #
[20/2/13]

प्यार का चक्कर
* जब से मैंने माना कि प्यार जैसी कोई चीज़ नहीं होती , तब से मनस्क्लेश का एक नया चक्कर शुरू हो गया | कि हाय ! तब तो मुझे भी कोई प्यार नहीं करेगा , अब क्या करूँ , मेरी जीवन नैया कैसे पार होगी ?   क्या यह ऐसे ही नीरस और शुष्क रह जायगी ?
लेकिन आगे का ध्यान किया तो पाया कि प्यार का जो जल तुम्हे दिखाई दे रहा है , वह तो विज्ञानं के टोटल रिफ्लेक्सन का खेल है | वहाँ पानी नहीं है | इसी फेनामेना को मृग तृष्णा कहा जाता है | तब मन को समझाया - रे मन , जब प्यार जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं तो तुझे कोई प्यार क्यों करेगा ? कर ही कैसे सकता है ? तो सच्चाई तो यही है , इसे सहर्ष स्वीकार करो | ऐसे में तो यदि कोई तुमसे कहे कि " मैं तुमसे प्यार करती हूँ " तो उसे केवल तन की भूख समझो | उसे मन से मत जोड़ो वर्ना भ्रम और मृग मरीचिका में पड़ोगे तथा दुःख और संताप झेलोगे | अच्छा ही तो है और सही भी जो मुझसे कोई प्यार नहीं करता | इसकी आशा ही मत करो क्योंकि वस्तुतः ऐसी कोई चीज़ नहीं होती | निश्चिन्त - निष्काम चैन की नींद लो ,और अपना जीवन सार्थक सार्वजानिक कार्यों में लगाओ | शरीर की आवश्यकता को, शरीर की आवश्यकता की                                                                ecrrrfffffffsssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssपूरी करो | प्यार के चक्कर में मन और आत्मा का सत्यानाश मत करो | इससे एक लाभ यह भी है की तुमसे कोई यह नहीं कहेगा की तुम उसे प्यार करो | न तुम किसी को प्यार करो , न कोई तुमसे प्यार करे तो जीवन में न लाभ हो न घाटा , न इनकी बिलावजह चिंता , न कोई फ़िल्मी उपन्यास कथा का निर्माण , जिनसे प्रोत्साहित होकर तमाम युवा ज़िंदगियाँ बरबादी की और कदम बढ़ाती हैं | आमीन |  20/2/13

* " CULTURE  IS POLITICS OF SOCIAL LIFE  "
इस विचार को सोचते जायंगे तो इसे क्रमशः सत्य ही पाएंगे | यह तो हम एक दूसरे से शिष्ट सभी - प्रेम व्यवहार करते, सलाम दुआ, खान पान करते, तीज त्यौहार मानते / शरीक होते हैं, सब ज़िन्दगी की राजनीति है | राजनीति का मतलब जिसमे बनावट और झूठ ज्यादा हो और सच्चाई की मात्रा कम | इस प्रकार हम अपने सुख और शक्ति को बढ़ाते हैं | अन्यथा हम अकेले , अलग थलग न पड़ जायं ? इसीलिए जो सीधे सादे लोग सामाजिक कम होते हैं वे कमज़ोर पड़ जाते हैं | और जो समाज Social Life को सक्षम राजनीतिक रूप से जीता है वह अधिक शक्तिशाली हो जाता है | यहाँ तक की वह राज / शासन करने की स्थिति में आ जाते हैं | 21/2/13

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