बुधवार, 12 दिसंबर 2012

रौशनी को देखकर


[ कवितानुमा ]

* रौशनी को देखकर
मैं सरपट भागा
मैं आगे आगे
रौशनी पीछे पीछे |
रौशनी रास्ता दिखाती रही
मैं चलता रहा |
और पीछे रौशनी ?
उसके पीछे कोई
रौशनी तो थी नहीं
वह औंधे मुँह
गिरी धडाम |
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