उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 12 दिसंबर 2012
रौशनी को देखकर
[ कवितानुमा ]
* रौशनी को देखकर
मैं सरपट भागा
मैं आगे आगे
रौशनी पीछे पीछे |
रौशनी रास्ता दिखाती रही
मैं चलता रहा |
और पीछे रौशनी ?
उसके पीछे कोई
रौशनी तो थी नहीं
वह औंधे मुँह
गिरी धडाम |
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