मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

सोचते तो हैं


* एक दिल है
तुम्हे देखकर ही
धड़कता है |

* भरा जाता है
मनों में , बैठता है
नक्सलवाद |

* क्या कभी रहा
लोक में लोकतंत्र
जो अब होगा ?

* बात , उनके
कान में डालकर
मैं चला आया |


* नागरिक जी
सोच नहीं पाते हैं
सोचते तो हैं !

* स्वीकार नहीं
आपकी सारी बातें
शिरोधार्य हैं |


* सदुपयोग
धन - धान्य का करूँ
ईश्वर का भी |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें