उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 19 दिसंबर 2012
ईश्वर होता तो
ईश्वर होता तो क्या हम उसे न मानते ? क्यों न मानते ? कैसे न मानते ? क्या मजाल थी हमारी ? वह नहीं है तो इसमें हमारा क्या दोष ? बनाया तो भरसक उसे हमने वह नहीं बना तो हम क्या करें ? और आदमी ने जितना उसे बनाया उतना तो उसे मानते ही हैं !
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