गुलाम बनाओ आन्दोलन
भारत में कुछ पागल - सिड़ी लोग 'आज़ादी बचाओ आन्दोलन ' चला रहे हैं |
यद्यपि मैं भी थोडा पागलपन में उनके साथ हूँ , पर मैं क्षमा चाहता हूँ
, मेरे मन में एक पाप उदय हो रहा है | वह यह कि भारत को अब एक गुलामी
आन्दोलन की ज़रुरत है " हमें गुलाम बनाओ , हम गुलाम हैं , हम गुलाम रहना
चाहते हैं , हमें नहीं चाहिए आज़ादी , हम आज़ादी के काबिल नहीं हैं " etc
हमारा नारा होना चाहिए | वैसे भी चल तो रहा ही है यह आन्दोलन , बस इसे
सही नाम देकर स्वीकार भर करना है | यह कुविचार क्यों आता है कह नहीं सकता
पर निश्चय ही इसके पीछे है हमारे नेताओं का दुष्कर्म -दुराचरण | फिर अपने
वेतन -भत्ते बढ़ाने के विधायकों -सांसदों - ट्रेड यूनियनों की मांगें ,
राज्यों की हठधर्मी , इस्लाम की सक्रियता और उसका सेकुलर स्टेट द्वारा
उचित -अनुचित पिष्टपेषण , निहित लाभ के लिए रेल पटरियों का उत्खंडन,
आतंकवाद - नक्सलवाद का उभार, सेना में विवाद , अन्ना - रामदेव का अति की
सीमा तक आन्दोलन , अन्धविश्वास और दिमागी जड़ता में बढ़ोतरी इत्यादि , जो
निश्चय ही हमें गुलामी की ओर ही ले जायेंगे | तो फिर सीधे- सीधे हम
गुलामी की मांग क्यों न करें ? एक बात बताईये , आज़ादी की लडाई क्या
राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गयी थी या राज्यों की स्वायत्तता के
लिए लड़ी गयी थी ,वह भी आखिर उन्हें कितनी चाहिए ? जब देश ही नहीं रहेगा
तो क्या खाक प्रदेश रहेंगे ? पर विकेंद्रीकरण का विचार जैसे एक फैशन हो
गया गया है | यह इतना ही शुभ होता तो पटेल हैदराबाद ही नहीं तमाम अनगिनत
राज्यों को भारत में न रख पाते | नेहरु का कश्मीर हम आज तक भुगत रहे हैं
| सबकी एक सीमा है और सबको इसे समझना चाहिए , राष्ट्रों को भी और राज्यों
को भी | क्षणिक सफलता के अहंकार में राज्य इसे भूल रहे है | सवाल कांगेस
का नहीं है , कल कोई और होगा केंद्र पर आसीन | आतंक निरोधी केंद्र पर
राज्यों का इतना विरोध राष्ट्र के लिए शुभ नहीं है | आतंकवादी सब गौर से
देख-समझ रहे हैं ,और हमारी कमजोरी भांप कर अपनी रणनीति बना रहे हैं | यह
किसी से छिपा नहीं है | अमरीका भी तो फेडरल देश है , पर वहां राज्य अपनी
ज़िम्मेदारी समझते हैं | यही कारन है कि वह आज विश्व का दादा बना हुआ है ,उसने लादेन को उसके घर में घुसकर मारा और वहां ९/११ के बाद कोई दुर्घटना दुहरायी नहीं जा सकी , भले शाहरुख़ खान
चिल्लाते रहे कि उन्हें मुसलमान होने के कारण हवाई अड्डे पर रुकना पड़ा |
राष्ट्र ऐसे बनता है न कि व्यक्तियों और कुछ स्वार्थी समूहों के अनावश्यक
जिद से | केंद्र जितनी कमज़ोर है ,वह तो है पर उसे अनावश्यक बयान बाजियों
से हमने , अरविन्द केजरीवाल , ओम पुरी, रामदेव आदि ने अपनी झूठी महत्ता
सिद्ध करने के चक्कर में और भी कमज़ोर बनाया है | इसमें राजनीतिक दल भी
दोषी हैं , जो सत्ता के साथ हैं वे भी , जो विरोध में हैं वे भी | हमें
अपने कमज़ोर बच्चों कि भी हौसला अफजाई करनी चाहिए कि ठीक है तुमने गलती
की, असफल हुए , और इस प्रकार कोशिश करो ,तुम्हे सफल होना है , लोकतंत्र
को सफल होना है , हम तुम्हारे साथ हैं | हमें अपने लूले -लंगड़े लोकतंत्र
को अपाहिज कहकर धिक्कारना , तिरस्कार करना नहीं चाहिए , बल्कि उसे
differently abled कहकर उसका सम्मान करना चाहिए | तभी वह आत्मविश्वास से
भर कर कुछ नया करने का साहस कर पायेगा | लेकिन नहीं , सब इसकी टांग
खींचने में अपना पुरुषार्थ समझते हैं भले स्वयं टिटहरी की टांग हों |
इसमें अपनी मीडिया सबसे आगे है, और किसी का नाम जुबान पर लाकर उसका
जायका क्यों ख़राब करें ?
तो क्यों अनावश्यक नाटक करें ? सीधे - सीधे यही अन्दोलन क्यों न चलायें
की हमें "फिर गुलाम होना है , हमें गुलामी पसंद है , हम गुलामी के अत्यंत
सुयोग्य पात्र है " | और इंतजार कीजिये जब कोई पीढ़ी समझदार पैदा होगी तब
वह आज़ादी की फिर कोई लडाई लड़कर उसे हासिल कर लेगी , जो कि अभी तो
मुश्किल ही दिखाई दे रही है , क्योंकि वह आखिर हम नालायकों की ही तो
संतान होगी |
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