* मेरा ख्याल है - दुःख में आदमी का दुखी होना तो स्वाभाविक है ,पर अपने दुःख को छिपाकर झेलना चाहिए , प्रकट नहीं करना चाहिए , ज्यादा हाय -तौबा नहीं मचाना चाहिए | लेकिन आदमी को अपने अपने सुख में सुखी होने और दिखने का कुछ ज्यादा ही नाटक करना चाहिए | जिससे दुनिया सुखी रहे |
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