उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 23 मई 2012
मायके ससुराल
[कविता]
बर्तन मायके में भी माँजती थी
बर्तन ससुराल में भी माँजती हूँ,
गोबर चारा वहां भी करती थी
गोबर चारा यहाँ भी करती हूँ ,
वहां भाई पीटता था
यहाँ मर्द लतियाता है ,
वहां माँ- बाप थे
यहाँ सास -ससुर हैं
मुझे पसाने के लिए ,
मेरा नर्क तो हर जगह है |
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