उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
शनिवार, 26 मई 2012
कर्म विरत
[कवितानुमा] - कर्म विरत
मैं कुछ नहीं करता
उसे भी मेरा किया
मान लिया जाता है
मैं करूँ तो क्या करूँ
जिससे मैं निर्दोष रहूँ ?
संभव नहीं इस जग में
कर्म विरत रहना
तो क्यों न कुछ करता रहूँ ?
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