रविवार, 27 मई 2012

ख्याली पुलाव


मुझे थोड़ी चिंता है कि कुछ लोग सिर्फ शूद्रों / सवर्णों की ही भाषा में बात करते हैं | ठीक है कि वह भी  हकीकत है,पर जहाँ तक उसकी सीमा है उसी में उसको बंद रखिये | वे यह समझ ही नहीं पाते कि ब्राह्मण कुछ भी कहता रहे , शूद्र भी मनुष्य हैं, अपनी अच्छाइयों - बुराइयों  के साथ [ और इस प्रकार वे ब्राह्मण की अवधारणा और उसके औचित्य को ही सिद्ध करते हैं ] | और सवर्ण भी अपनी अज्ञानता - सांस्कारिक  गुलामी के अधीन एक मनुष्य ही है | व्यवहार में ब्राह्मण भी शूद्र है , और शूद्र भी उसकी स्थिति में होता तो ब्राह्मण ही होता! अब तो यह भी आश्चर्य करने की इच्छा  नहीं होती कि द्वंद्वात्मक भौतिकवादी भी , जो कि मनुष्य के निर्माण का दोष या श्रेय सामाजिक स्थितियों -परिस्थितियों को देते हैं , वे भी ब्राह्मण / शूद्र की उत्पत्ति उनके जन्म से मानते हैं | ज़ाहिर है , तब हम मूर्खों की सोच में ही कही कोई कमी होगी | तिस पर भी --
- ख्याल आया कि क्यों न हम सवर्णों की एक संस्था " शूद्र " बनायें , और घोषित करें -हम जन्म से नहीं कर्म से शूद्र हैं | निजी रूप से मैं तो सचमुच नीच व्यवहार अपनाने के पक्ष में हूँ जिससे हम पवित्रात्माओं की गालियाँ पायें और हमारा किंचित भी अवशेष अहंकार तिल -तिल कर तिरोहित हो | विवशता है कि हम दलितों की कोई संस्था नहीं बना सकते , हम अविश्वसनीय हो चुके हैं | पर सोच तो सकते हैं कि यदि हम शूद्र होते तो अपने को इसी व्यवस्था में क्यों न जनतांत्रिक अधिकारपूर्वक  ब्राह्मण घोषित कर देते ? हट ब्राह्मण ! सिंहासन खाली कर कि शूद्र जन आते हैं ?
-सब ख्याली पुलाव है,कुछ होने जाने वाला नहीं है | तो क्या यही जपें - होइहैं सोई जो राम रचि राखा ?         [ निर्निमेष ]

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