चार बातें
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१- हमारी अंतरात्मा में सीधे - सीधे वह वस्तु क्यों न हो जो आपके इष्ट संत [ जैसे साईं बाबा] की अंतरात्मा में थी या है - स्वार्थ से निकल कर जनहित -जनसेवा की भावना ?
२-जिस धन पर टैक्स न चुकाया गया हो वही काला धन हो जाता है | बाबा रामदेव टैक्स नहीं चुका रहे हैं |
३ - यह तो तय है कि हमें गुलाम बनना है | आजादी के मूल्य हमारे खून में नहीं हैं | अब हमें तय यह करना है कि हम किसकी गुलामी स्वीकार करें , अंग्रेजों की , अमरीका की , माओवादियों की , आतंकवादियों की , या अपने दलित भाइयों की ?
४ - कोई ज़रूरी है क्या कि हम जो सोचते -लिखते हैं वह सही ही हो ? हम गलत भी हो सकते हैं , वह हमारा अधिकार है |
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