अपने आनंद के लिए गीता उपदेशक से यूँ भी बात की जा सकती है :- " हे प्रभो ! कर्म करना तो हमारा अधिकार नहीं बल्कि कर्त्तव्य है | अधिकार तो तुम्हारे पास है की तुम हमें उसका फल दो , न दो |" या " यदि कर्म करना हमारा अधिकार ही मान लो , तो फिर तुम्हारा यह निश्चित कर्त्तव्य बनता है कि तुम हमें उसका पूरा फल दो | "
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