सोमवार, 28 मई 2012

दलितों के दोस्त


कविता :-
दलितों के दोस्त
दलित ही हैं
और कोई नहीं हो सकता ,
उन्हें किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए
सवर्णों की सहानुभूति
उन्हें दरकार नहीं
वे छलिये , शोषक , धोखेबाज हैं |
तो दलितों के हितैषी
दलित ही हो सकते हैं -
वह भी दलित पुरुष
स्त्रियाँ भी हों तो हों
पर दिखतीं नहीं
सारे दलित पुरुष
कवि-कथाकार -चिन्तक '
एक्टिविस्ट मैदान में हैं |
सवर्ण भी पीछे -पीछे पूँछ हिला रहे हैं
दलित आन्दोलन में घुसने के लिए
पर वहाँ उनकी कोई पूँछ नहीं है ,
हो ही नहीं सकती
दलितों के समर्थक , दलितों के दोस्त
सिर्फ दलित हो सकते हैं
दलितों के दुश्मन भी दलित ही होंगे |

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